Saturday, December 15, 2012

अब हम इस मृत्यु उपत्यका से भागकर जाये तो ​​कहां जायें?

अब हम इस मृत्यु उपत्यका से भागकर जाये तो ​​कहां जायें?

पलाश विश्वास

विदेशी पूंजी सबको चाहिए।अबाध विदेशी पूंजी और कारपोरेट मनुस्मृति राज बहाल करने के लिए सब सहमत। बाकी जो बचा है , वह विशुद्ध सत्ता की राजनीति है। वरना आर्थिक सुधारों के सबसे बड़े औजार डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकता कानून और असंवैधानिक गैरकानूनी​ ​ मानवताविरोधी आधारकार्ड कारपोरेट योजना व संशोधित नागरिकता कानून का कोई विरोध क्यों नहीं करता? विदेशी पूंजी के लिए बाजार की शरण और इसीके साथ विदेशी पूंजी के खिलाफ जिहाद, कारपोरेट राज की खिलाफत और कारपोरेट लाबिइंग ​​में शामिल, कारपोरेट चंदे से राजनीति, कालाधन का विरोध और कालाधन की राजनीति, अर्थ व्यवस्था और जनता का चाहे जो अंजाम हो, ये रंगीन परिदृश्य पहाड़ों में इस वक्त हो रही बर्फबारी और पहाड़ सी जिंदगी जीने को मजबूर जनता के इंद्रझनुषी जीवन के मानिंद हमारे अतुल्य ​​भारत की चरमाभिव्यक्ति है, जो बहुलता, लोकतंत्र , न्याय औक समता के उद्दात्त सिद्धांतों के विपरीत हैं।कारपरेट वैश्विक व्यवस्था को भी अच्छी तरह मालूम है मौकापरस्त राजनीति की हकीकत , जो वर्चस्ववादी वर्गहित के ऊपर तो उठ ही नहीं​​ सकता, जायनवादी कारपोरेट हितों का मकाबला क्या खाक करेगा!

कांग्रेस ने आधार योजना को अपने चुनावी एजेंडे में शामिल कर लिया है। कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई में आधार को हथियार बनाकर पेश किया है।ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि आधार से सब्सिडी की डिलिवरी मॉडल सुधरेगा और इससे भ्रष्टाचार को काबू में करने में मदद मिलेगी। औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी के आंकड़ों से उत्साहित प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा है कि केंद्र सरकार इकॉनमी रिफॉर्म की गति तेजी करेगी। कोशिश होगी कि देश की आर्थिक विकास दर फिर से 8 से 9 प्रतिशत पर पहुंच जाए।

धर्मराष्ट्रवाद के झंडा उठाये वर्चस्ववाद की पैदलसेना हम बाजार की चकाचौध में होशोहवास खो चुके है। सपनों के सौदागर हमारा सीना चाक किये जारहे हैं और हम उनकी पैदल सेना में शामिल। रंगीन दृश्यों औस सुहावने ध्वनियों  के मध्य घृणा और प्रतिहंसा में अपने अपने जातीय, ​​सांप्रदायिक और क्षेत्रीय वजूद में सीमाबद्ध हम उपभोग के उद्दाम कार्निवाल में इसकदर निष्मात हैं, कि भूकंप, भूस्खलन और सुनामी से भी अनंत निद्रा नहीं टूटने वाली हैं। अपनी ही दीवारों में कैद एक अनंत कब्र की जद में समाहित हमारी चेतना और कफन के कारोबारी संजीवनी बंटने​​ लगे हैं। कड़वी दवा के बहाने मरीज को पोटासियम सायोनाइड दिया जा रहा है। जो तमाशबीन हैं, तिलिस्म के रखवाले हैं, वहीं हमारे तरणहार, अवतार और भाग्यविधाता।हम सब पहाड़ों में, मलरोड पर सर्दियों में बर्फबारी के सुहावने मौसम में हानीमून पर्यचक हैं , जिन्हें इस देश से कुछ लेना देना है नहीं। हम आईसीओ में आक्सीजन पर जीवित विलुप्त हो रही प्रजातियां है, और हमारी बिस्तरों के नीचे बिछी हुई है बारुदी सुरंगे। हथियारबंद अपराधी अनंत ​​आखेटगाह में टहल रहे हैं और हम अपने अपने मरुद्दान में सुरक्षित समझ रहे हैं उंगलियों की छाप के बदले समावेशी विकास की छनछनाहट के इंतजार में। विश्वासघात जिनका पेशा है, उन्हें हमने अपने भविष्य सवांरने का छेका दिया हुआ है।

सत्तागठजोड़ की महारानी हो ​​या युवराज, प्रधानमंत्री हो या वित्तमंत्री सभी आधार के जरिये कैश सब्सिडी देकर क्रांति का संकल्प दोहरा रहे हैं जो दरअसल जल जंगल​​ जमीन आजीविका और नागरिकता से बहुजन मुलनिवासियों के बेदखली का संकल्प है। सवर्ण राजनीति तो इसपर एकताबद्ध है  जायनवादी मनुस्मृति शासन कायम रखने के लिए क्योंकि खुला बाजार भी क्रयशक्ति आधारित वर्चस्व और बहिस्कार की व्यवस्था है। पर इस चिरस्थाई बंदोबस्त ​के खिलाफ क्यों खामोश है? बहुजन समाज और उसकी राजनीति मैंगो जनता के तरणहार के रुप में आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल​ से लेकर राष्ट्राय नेतृत्व की महत्वाकांक्षा से ओत प्रोत ममता बनर्जी तक लंबी लाइन लगी है। समाजवादी और अंबेडकरवादी हैं तो वामपंथी ​​भी हैं। एक रुपये में आजादी के जरिये बिना हिसाब किताब की सांस्कृतिक क्रांति के जरिए जबरन चंदावसूली, निरंतर घृणा अ्भियान और ​​महापुरुषों के नाम का अनंत जाप करनेवलों ने भी कोई जनसत्ता पार्टी बना ली।

बंगाल की अग्निकन्या ने तो आज फिक्की अधिवेशन में बड़े तेवर दिखाये। दूसरी ओर उग्रतम हिधर्म राष्ट्रवाद के ध्वजावाहक व नरसंहार सांस्कृतिक वर्चस्व के प्रवक्ता  संघपरिवार भी आर्थिक सुधारों का ​​विरोध करते हुए केंद्र की आलोचना में जमीन आसमान एक कर रहे हैं, तो दूसरी ओर मिली भगत से खुचरा कारोबार में विदेशी निवेश को ​​संसदीय हरी झंडी दिलाने के बाद सुधारधर्मी तमाम कानून पास कराने के लिए सत्तापक्ष के साथ मोर्चाबद्ध है। लोहिया और अंबेडकर के नाम राजनीतिक दुकान चलानेवाले लोग मनुस्मृति मुताबिक संविधान के कायाकल्प के खिलाफ अपनी खाल बचाते हुए सत्ता की मलाई बटोर रहे हैं सत्ता की। बहुजनों को सामाजिक न्याय और समता के लिए आरक्षण और जातीय पहचान मजबूत करने के अलावा उनकी कोई चिंता बहुजनों के आर्थिक सशक्तीकरण की तो है ही नहीं, उनकी बेदखली और उनके नरसंहार से भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।

अब हम इस मृत्यु उपत्यका से भागकर जाये तो ​​कहां जायें?

नीति निर्धारण के दिशा निर्देश क्या हैं। जरा गौर करें!

विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अगले दो साल कठिन होंगे।उन्होंने कहा, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अगला दो साल बेहद बुरा दौर होगा और भारत के लिए यह मौका बुनियादी ढांचे और विकास के संस्थागत पक्षों में निवेश का समय है। बसु ने यहां इंस्टीच्यूट आफ ह्यूमन डेवलपमेंट द्वारा आयोजित समारोह में कहा 'मेरा विचार से अगले दो साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए बेहद बुरा दौर होगा और भारत ऐसे में क्या कर सकता है। यह भारत के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश में कर सकता है साथ ही विकास के संस्थागत पक्षों में भी निवेश का है।' जाहिर है कि बाजार का सबसे ज्यादा सरोकार है मानव और मानवता के विकास का, प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण का। सामाजिक न्याय , समता और लोकतंत्र का।आखिरी दौर के मतदान से पहले गुजरात में किसकी सरकार बनेगी, इस पर सट्टेबाजी जमकर चल रही है और एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनने की उम्मीद जताई जा रही है।गुजरात के सटोरियों के मुताबिक बीजेपी की सरकार फिर से बन सकती है। इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 100 सीटें मिलने के आसार हैं। वहीं कांग्रेस को 45-50 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। कांग्रेस का भाव 30 पैसे चल रहा है। 13 दिसंबर को गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बड़े पैमाने पर हुई वोटिंग के बाद सट्टा बाजार में सटोरियों ने अपना काम कर दिया है।

जरा गौर करें!

बजट की तैयारियां शुरू हो गई है। इंडस्ट्री संगठन फिक्की की इसी सिलसिले में वित्तमंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात हुई है। फिक्की ने वित्तमंत्रालय को बजट से पहले मांगों की लंबी चौड़ी लिस्ट सौंपी है। फिक्की के प्रेसिडेंट आर वी कनोडिया ने वित्तमंत्री से कहा कि बजट में सर्विस या एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने पर प्रस्ताव नहीं होना चाहिए।

फिक्की ने टैक्स नियमों में ज्यादा सफाई और टैक्स एडमिनिस्ट्रेशन दुरुस्त करने की मांग की है। साथ ही निवेश को बढ़ावा देने वाले टैक्स नियम बनाने की सिफारिश की है।

फिक्की ने टैक्स रिफंड से जुड़े मामलों का जल्द निपटारा करने और कस्टम ड्यूटी और सविर्स टैक्स ना बढ़ाने का सुझाव दिया है। फिक्की ने मांग की है कि गार पर शोम कमेटी की सिफारिशें लागू हो। साथ ही विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स लगाने का फैसला जल्दबाजी में ना हो। फिक्की ने वित्त मंत्रालय को सुझाया है कि प्रॉपर्टी टैक्स जल्दबाजी में न लगाया जाए।

फिक्की के मुताबिक विदेशी कंपनियों के डिवीडेंड पर टैक्स नहीं लगाना चाहिए। जीएसटी जल्द से जल्द लागू करने की मांग रखी गई है। वहीं जीएसटी लागू होने तक बेसिक कस्टम ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव दिया गया है। इसके साथ ही सविर्स टैक्स के नए नियम पर सफाई देने की मांग की गई है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सब्सिडी बिल पर फिक्र जताई है। उन्होंने कहा है कि भारी-भरकम सब्सिडी के चलते वित्तीय घाटा कम करना मुश्किल हो रहा है। इसलिए सब्सिडी घटाना जरूरी है, खासकर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ सबसे ज्यादा है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर किए जाने वाले खर्च से ऑयल सब्सिडी ज्यादा है। इकोनॉमी ऊंचे वित्तीय घाटे का बोझ नहीं सह सकती। इस साल वित्तीय घाटा 5.3 फीसदी तक लाने का लक्ष्य है।

इधर इंडस्ट्री ने एक बार फिर से सरकार को याद दिलाया है कि ग्रोथ के रास्ते पर बने रहने के लिए जरूरी है कि सरकार रिफॉर्म जारी रखे। फिक्की की नई प्रेसिडेंट नैना लाल किदवई ने कहा कि सरकार ने जिस तरह से विपक्षी पार्टियों के विरोध के बावजूद रिफॉर्म के कदम उठाए हैं, उससे इंडस्ट्री में भरोसा बना है। उन्होंने उम्मीद जताई की सरकार ये प्रक्रिया आगे भी जारी रखेगी।

औद्योगिक संगठन फिक्की की 85वीं सालाना आम बैठक का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कैश सब्सिडी प्रक्रिया शुरू होने से भ्रष्टाचार काफी हद तक कम होगा। बिचौलिये समाप्त होंगे और करोड़ों लोग बैंकिंग प्रणाली के दायरे में आ जाएंगे।

मनमोहन ने कहा, 'आर्थिक सेक्टर में सरकार ने जो फैसले लिए उनमें से कुछ राजनीतिक रूप से कठिन हैं। विरोध की राजनीतिक करने वाले वालों ने अनावश्यक रूप से रास्ता रोकने का प्रयास किया, लेकिन सरकार को अपने फैसलों पर विश्वास है। उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता आम लोगों के हित को साधने का है।'

प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने हाल ही में जो कदम उठाए, वह अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने की दिशा में शुरुआत भर हैं। आगे इसकी गति और तेजी की जाएगी। इनके जरिए आर्थिक विकास की दर को फिर से 8 से 9 प्रतिशत की उच्च आर्थिक विकास के रास्ते पर लाया जाएगा।

जनरल ऐंटि अवॉइडेन्स रूल्स (गार) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, सरकार ने टैक्स संबंधी कानूनों में सुधार की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार चाहती है कि आर्थिक सेक्टर में काम तेजी से हो। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निवेश मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के गठन को मंजूरी दी है, इससे समयबद्ध तरीके से बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी देने में मदद मिलेगी।

मल्टि ब्रांडेड रिटेल सेक्टर में एफडीआई के विरोध पर डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि जो इन कदमों का विरोध कर रहे हैं, वह या तो वैश्विक सचाई को नहीं समझते हैं या फिर पुरानी सोच से बंधे हैं। सबको इस बात को समझना चाहिए कि देश की तरक्की के लिए निवेश में तेजी जरूरी है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को एक बार फिर रीटेल में एफडीआई का तल्ख लहजे में विरोध किया है। ममता ने कहा कि हम आम आदमी के साथ हैं हमारी सोच पुरानी है। दरअसल, प्रधानमंत्री ने शनिवार को वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की की 85वीं बैठक में एफडीआई जैसे सुधारों का विरोध करने वालों को ग्लोबल सचाइयों से अनजान या फिर पुरानी सोच वाला बताया था।

ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने एफडीआई की अनुमति दिए जाने के विरोध में केन्द्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। एफडीआई का विरोध करने वालों पर प्रधानमंत्री के पलटवार के बारे में पूछे जाने पर ममता ने कहा, 'हम क्या कर सकते हैं, हम तो पुराने ख्यालात के लोग हैं। जनता और आम आदमी के प्रतिनिधि हमेशा ही पुरानी सोच के होते हैं। मुझे इस पर गर्व है कि हम लोगों के साथ हैं।' ममता भी फिक्की की आम सभा को संबोधित करने पहुंची थीं।

ममता बनर्जी ने उद्योगपतियों से पश्चिम बंगाल में निवेश का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि राज्य में निवेश की व्यापक संभावनाएं हैं। उद्योगों की सुविधा के लिए राज्य सरकार ने भूमि बैंक बनाया है, जमीन उपलब्ध है। बिजली भी राज्य में है, रोजगार के लिए भी अलग सेक्शन बनाया गया है। राजकाज में इंटरनेट और वेबसाइट का इस्तेमाल शुरू किया गया है।

उन्होंने कहा, 'पिछले एक डेढ़ साल में हमने जो कदम उठाए हैं उनके परिणाम मिलने शुरू हुए हैं। पश्चिम बंगाल की जीडीपी 6.94 फीसदी बढ़ी है। राजस्व वसूली में भी अच्छी बढ़ोतरी हुई है।' ममता ने उद्योगपतियों से कहा कि उन्हें ज्यादा रियायत नहीं दे सकतीं।' पारदर्शिता हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है, जो कर सकती हूं वही बोलूंगी। आपको भ्रम में नहीं रखना चाहती। आप पश्चिम बंगाल की बराबरी दूसरे राज्यों से नहीं कर सकते। पश्चिम बंगाल पर कर्ज का भारी बोझ है। अरबों रुपए ब्याज और किस्त का लौटाना पड़ता है।'

ममता ने उद्योगपतियों से कहा कि वे पश्चिम बंगाल में पर्यटन क्षेत्र में निवेश करें। सूचना प्रौद्योगिकी में आएं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत निवेश करें। सरकार उनकी हरसंभव मदद करेगी। दूसरे राज्यों से तुलना कर केन्द्र से बार-बार मदद की गुहार लगाने के बारे में पूछे जाने पर ममता ने कहा, 'हमारा दूसरे राज्यों के साथ कोई भेदभाव नहीं है, हम केन्द्र से अपना अधिकार मांग रहे हैं। हमारा अधिकार हमें मिलना चाहिए और दूसरे राज्यों को उनका अधिकार मिलना चाहिए।'

फिक्की के वर्तमान अध्यक्ष आर.वी कनोडिया और आम सभा के बाद इस उद्योग संगठन की कमान संभालने वाली नैना लाल किदवई ने ममता की दो टूक की सराहना की। उन्होंने राज्य में निवेश बढ़ाने में मदद करने का भरोसा दिया। फिक्की के पूर्व महासचिव और पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा भी इस अवसर पर उपस्थित थे।

लखनऊ में योग गुरु बाबा रामदेव ने कांग्रेस पर हमला करते हुए खूब कहा है कि संसद में एफडीआई के मुद्दे पर सरकार को मिली जीत वस्तुत: सीबीआई की जीत है। रामदेव ने सरदार बल्लभ भाई पटेल की 62वीं पुण्य तिथि पर आज यहां आयोजित राष्ट्र रक्षा संकल्प सभा को संबोधित करते हुए कहा, ''राज्यसभा और लोकसभा में एफडीआई की जीत नहीं हुई है, यह सीबीआई की जीत थी।'' उन्होंने कहा कि आज जो केंद्र सरकार घाटे में चल रही है, वह विदेशी बैंकों में जमा देश का कालाधन वापस ले आये तो उसके पास धन का आधिक्य हो जायेगा। रामदेव ने कहा, ''एफडीआई की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।संघ परिवार और मोदी मार्का विकास के बारे में वेबहरहाल चुप है। सिविल सोसाइटी के कितने रंग हमने देख लिये।बंगाल में परिवर्तनब्रगेड वेतनबद्ध, अन्नाब्रिगेड कारपोरेट राज पर अनंत खामोशी के साथ, अफ्रीका और मध्यपूर्व में आयातित अमेरिकी लोकतंत्र और बामसेफ की हजारों धड़ों ​​की हरकतें। अरविंद केजरीवाल के भंडाफोड़ गुरिल्लायुद्ध के जरिये सत्ता की लड़ाई में शामिल एक और राजनीतिक पार्टी। आम आदमी के​ ​ नाम पर। एक रुपये में आजादी बांटने वाले ने तो जनसत्ता पार्टी ही बना ली।​
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​राजनीति, सिविल सोसाइटी, कारपोरेट मीडिया, धर्म राष्ट्रवाद का झंडा उठाये सोशल नेटवर्किंग में केशरिया सेना और ग्लोबल बाजार की जायनवादी  शक्तियां जहां, एकजुट होकर हमारे खिलाफ सक्रिय हैं, वहां हम आत्मरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं सिर्फ दूसरों की मौतपर जश्न और अपनी बारी का इंतजार!

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