Friday, September 19, 2025

क्या दुनिया में अब सिर्फ बूढ़े लोग जिएंगे?

प्रिय भाई रिटायर्ड पोस्ट मास्टर Sameer Chandra Roy जी आज अरसे बाद प्रेरणा अंशु के दफ्तर आए।लंबी बातचीत हुई।मौजूदा हालात से दुखी हैं।लेकिन अपनी विचारधारा पर कायम हैं। स्वास्थ्य थोड़ा ढीला है,लेकिन सक्रिय है। प्रेरणा अंशु के सितम्बर अंक ही उपलब्ध है। लेट आने के कारण हम उन्हें सिर्फ सितंबर अंक की प्रतियां दे पाए। फिर हम उनके स्कूटर पर बैठकर हरिदासपुर पहुंचे। थोड़ी देर गायत्री के साथ अपनी दुकान पर बैठे।हरिदासपुर प्राइमरी स्कूल में हमारे सहपाठी मंटू मांझी के बड़े बेटे का कल ही 15 दिनों तक दिल्ली,देहरादून, हरिद्वार, रुद्रपुर के अस्पतालों में इलाज के बाद निधन हो गया। यह दुखद है। मंटू मेरे कोलकाता प्रवास के दौरान ही चल बसे।उनके बड़े भाई माखन दा भी नहीं रहे। मंझला भाई अमूल्य दा का मेरे बसंतीपुर लौटने के बाद निधन हो गया। प्रवासी लंबे समय तक बने रहने के कारण उन्हें ठीक से जनता भी नहीं। दिवंगत बेटे ने बसंतीपुर की बेटी से विवाह किया था।उस बेटी की उम्र पैंतीस साल के लगभग है। हरिदासपुर के हर परिवार से बहुत घनिष्ठ रिश्ता रहा है बचपन से,क्योंकि इसी गांव के प्राइमरी स्कूल में मेरी पढ़ाई हुई है।हर परिवार में आना जाना रहा है। यह और दुखद है कि कम उम्र के लोगों की अकाल मृत्यु हो रही है। Nityanand Mandal और हमने हिसाब जोड़कर देखा है कि हमसे बड़े अस्सी पर 25 स्त्री पुरुष बसंतीपुर में स्वस्थ हैं, लेकिन हमारे गांव लौटने के बाद पचास,साथ साल की उम्र के लोगों का निधन होता रहा है। सिर्फ कार्तिक काका अस्सी पार थी। देवाशीष की मन का निधन सौ साल पूरे होने के बाद हुआ। तो नित्यानंद की काकी का निधन 85 पार करने के बाद हुआ। गांव,कस्बे और शहर में अमूमन ऐसा हो रहा है। बीमारी और दुर्घटनाओं में बच्चों और जवान लोगों का अक्सर निधन हो रहा है। जबकि नब्बे, सौ पार स्त्री पुरुष स्वस्थ और सक्रिय हैं। क्या नई पीढ़ी सेहत का ख्याल नहीं रखता? पहले चिकित्सा की सुविधाएं नहीं थी।लोग प्रकृति पर निर्भर थे। तब भी इतनी अकल मौतें नहीं होती थी। हम बूढ़े मजे में जी रहे हैं और जवान पोते निकल ले रहे हैं। ऐसे जीने का भी कोई मतलब है कि हम बच्चों का ख्याल नहीं रख पा रहे हैं और न बच्चे हमारी सुन रहे हैं? क्या अब दुनिया सिर्फ बूढ़ी आबादी में बदल जाएगी? समीर का दुखी होना वाजिब है।