स्मृति दिवस पर अखण्ड भारत के कानून मंत्री और बाबासाहब भीम राव अम्बेडकर को पूर्वी बंगाल से संविधान सभा में भेजने वाले महाप्राण जोगेंद्र नाथ मण्डल को श्रद्धांजलि।
बंगाल के बाहर 22 राज्यों में जंगल,पहाड़ और पठारी आदिवासी बहुल इलाकों में छितरा दिए गए करोड़ों विभाजनपीडित दलित बंगाली इसी की सजा भुगत रहे हैं।जिन्होंने बाबासाहब को चुना,उनकी नागरिकता नहीं है।उनकी जमीन का मालिकाना हक नहों है।वे बाघों का चारा बना दिये गए। बांग्ला इतिहास भूगोल भाषा संस्कृति से बाहर कर दिए गए और बाबासाहब के सबसे निर्णायक समर्थक होने के बावजूद जन्हें न आरक्षण मिला है और न जीवन के किसी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व।
जिन्होंने भारत का विभजन किया वे मनुस्मृति राज में शासक बन गए। जोगेंद्र नाथ मण्डल खलनायक बना दिये गए और पूर्वी बंगाल के दलित बाघों का चारा। जिनमे 10 प्रतिशत का भी अब्जितक पुनर्वाद नहीं हुआ।
बाबा साहब को चुनने के कारण उनके हिन्दुबहुल जैशोर,खुलना ,बरीशाल और फरीदपुर जिले पाकिस्तान को देकर उन्हें हमेशा के लिए विस्थापित बना दिया गया।
बचपन में महाप्राण के सहयोगी रहे मेरे पिता पुलिनबाबू से उनके संस्मरण इस अफसोस के साथ सुनते थे कि महाप्राण को सत्तावर्ग के दुष्प्रचार की वजह से उन्होंने के लोगों ने भारत विभजन का खलनायक बना दिया गया जबकि सत्ता हस्तांतरण की सौदेबाजी में न वे कहीं थे और न गांधी।
जोगेंद्रनाथ मण्डल तो बाबासाहब के सहयोगी थे,जो न विभजन रोक सकते थे और न विभजन कर सकते थे। बंगाल की तीनों अंतरिम सरकारों में दलित मुसलमान गठजोड़ सत्ता में थी।
अखण्ड बंगाल और अखण्ड भारत में जो सत्ता से बाहर होते,उन्होंने मिलकर विभजन को अंजाम दिया ताकि मजदूर किसानों का राज कभी न हो और भारत में फासिज्म का मनुस्मृति राजकाज हो।
पाकिस्तान के मंत्री पद से इस्तीफा देकर बनागल लौट आये इन्हीं जोगेंद्र नाथ मण्डल से नदिया जिले के रानाघट के पास हरिश्चंद्रपुर गांव में पुलिनबाबू उनके पकिसयं जाने के फैसले के खिलाफ लड़ बैठे और इतनी तेज बहस हो गयी कि पुलिनबाबू बैठक छोड़कर पूर्वी पाकिस्तान जाकर भाषा आंदोलन में शामिल होकर ढाका में गिरफ्तार होकर जेल चले गए।
तब अमृत बाजार पत्रिका के सम्पादक तुषारकान्ति घोष ने पूर्वी पाकिस्तान के जेल से उन्हें रिहा करवाया।
न पुलिनबाबू कुछ लिखकर रख गए और न जोगेंद्र नाथ मण्डल बाबा साहब अम्बेडकर की तरह लेखक थे। इज़लिये पूर्वी बंगाल के बारे में हम वही जैनते हैं जो बंगाल के विभाजन और पूर्वी बंगाल के दलितों के सर्वनाश के लिए भारत का विभजन करने वालों ने लिखा।
कोलकाता में जोगेंद्रनाथ मण्डल के बेटे जगदीश चन्द्र मण्डल और महाप्राण और पिताजी के सहयात्री ज्ञानेंद्र हालदार से मिलकर कुछ बातें साफ हुई।
जगदीश चन्द्र मण्डल ने बड़ी मेहनत से अम्बेडकर और महाप्राण के पत्राचार, उस समय के सारे दस्तावेज इकट्ठा कर जोगेंद्रनाथ मण्डल पर चार खंडों की किताब लिखी और पुणे समझौता व मरीचझांपी नरसंहार पर अलग किताबें लिखी तो बातें खुलने लगी।
इसके बाद नागपुर विश्विद्यालय के डॉक्टर प्रकाश अगलावे की पहल पर संजय गजभिये के महाप्राण पर शोध और उनपर मराठी में लिखी किताब से पूरा किस्सा सामने आ गया। लेकिन आम बंगालियों और खासतौर पर दलित विस्थापितों की नज़र में महाप्राण अब भी खलनायक है और उत्तर व दक्षिण भारत के लोग तो उन्हें जानते भी नहीं।
यही वजह है कि भारत विभजन की त्रासदी के असल खलनायक ही भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश में निरंकुश शासक बने रहे।
यह भारत के इतिहास की सिंधु सभ्यता के पतन और बौद्ध धम्म के पतन के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी है।
I would like to give respect to him for their input in this freedom.
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