Saturday, December 8, 2012

साल्टलेक नागरिकों के लिए आतंकनगरी में तब्दील!

साल्टलेक नागरिकों के लिए आतंकनगरी में तब्दील!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कोलकाता महानगर तीन सौ साल पुराना  है, जिस पर आबादी घनत्व का भयकर दबाव है। इसीके मद्देनजर तत्कालीन मुख्यमंत्री​ ​ डा. विधान राय ने कोलकाता के विस्तार की योजना बनाय़ी थी और कल्याणी को इससे जोड़ने का सपना देखा था। पर कल्याणी कोलकाता का हिस्सा नहीं बन सका। इसके बजाय कोलकाता के पूर्वी छोर पर स्थित जलभूमि क्षेत्र साल्ट लेक में एक अत्याधुनिक योजनाबद्ध उपनगर बसाकर कोलकाता के विस्तार की योजना को अमली जामा पहनाया गया। इससे पहले पंजाब के चंडीगढ़ में योजनाबद्ध नगरनिर्माण का अनुभव भारत को रहा है।​​ इस्पात नगरियों बोकारो और भिलाई में बी योजनाबद्ध शहरीकरण हुआ। गौरतलब है कि साल्टलेक को बसाने का काम दिल्ली में नोएडा ​​और मुंबई में नय़ी मुंबई को बसाने से कापी पहले पूरा हो गया। यहां युवा बारती क्रीड़ांगण नाम का  एक ऐसा स्टेडियम है , जहां एक साथ​ ​ एक लाख से अधिक लोग एक साथ मैच देख सकते हैं। राइटर्स बिल्डिंग से कई मंत्रालय साल्टलेक में स्थानातंरित करके विकास भवन का निर्माण हुआ। बंगाल में वाम मोर्चा सासन का रिकार्ड बनाने वाले दिवंगत मुख्यमंत्री ज्योति बसु यहां इंदिरा भवन में ही रहते रहे हैं।साल्टलेक को ​​एक आदर्श रिहायशी इलाका बनाने की योजना थी, इसलिए यहां तमाम अति महत्वपूर्ण लोगों ने बसेरा डाला। सेक्टर फाइव में आईटी उद्योग का केंद्र बन जाने से यह सिलिकन वैली का ही एक अंग लगता है।लेकिन नागरिक सुविधाओं की बात करें तो दिल्ली के नोएडा और द्वारिका उपनगरों​ ​  एवं मुंबई के नवी मुंबई और पनवेल उपनगरों से साल्टलेक कोसों पीछे हैं। पर्यावरण की तो परवाह ही नहीं है। अंधाधुंध निर्माण और ​​प्रोमोटर सिंडिकेट के वर्चस्व के साये में साल्टलेक यहां के नागरिकों के लिए आतंकनगरी में तब्दील है। पीने का पानी तक समय पर नहीं​ ​ मिलता। यातायात के साधन सीमित हैं।

रिहाइशी इलाकों में  अवैध पार्किंग और अवैध कारोबार से भी लोग परेशान हैं।साल्टलेक स्वास्थ्य व शिक्षा उपनगरी के रुप में भी विकसित हो रहा है। लेकिन स्थानीय नागरिकों के लिए न सरकारी अस्पाताल हैं और न ​​स्तरीय राजकीय शिक्षा प्रतिष्ठान।साल्टलेक के नागरिकों से बातें करने पर पता चला कि कैसे घुटन में वे जी रहे हैं और वीआईपी क्षेत्र में होने के कारण बुनियादी सेवाओं से किसतरह वे वंचित हैं। इस पर खास तौर पर इसलिए भी ध्यान देना जरुरी है क्योंकि राजारहाट से लेकर बारासात तक पूरब में कोलकाता का विस्तार हो रहा है तो सांतरागाछी के बाद पश्चिम कोलकाता का विस्तार होना है। अगर साल्टलेक की समस्याएं ही अनसुलझी​ ​ रही तो नये उपनगरों में जीवनकितना दुःसह होगा अंदाजा लगाया जा सकता है।


बहरहाल साल्टलेक के लिए सालभर की उपलब्धियां कुछ इस प्रकार हैं।कोलकाता नगर निगम (केएमसी) साल्ट लेक और दमदम के पांच लाख से अधिक निवासियों को एक दिन में सात लाख गैलन पानी देने के लिए सहमत हो गया है।लेकिन इससे पानी की किल्लत दूर होने की संभावना नहीं लगती।पानी की आपूर्ति भी  अनियमित है।कोलकाता नगर निगम की तरह साल्टलेक इलाके में भी वेवर स्कीम प्रक्रिया चालू की जायेगी। शहरी विकास मंत्र फिरहाद हकीम ने कहा है कि इससे कोलकाता की तरह साल्टलेक के लोगो को टैक्स में भी छूट मिलेगी। उल्लेखनीय है कि वेवर स्कीम के तहत बकाया टैक्स में छूट देकर वसूली की जाती है। यह प्रक्रिया कोलकाता में लागू हो गया है। अब साल्टलेक में भी सरकार लागू करेगी।साल्टलेक की भूमि हस्तांतरण के प्रस्ताव को राज्य कैबिनेट में मंजूरी मिल गई। इसी के साथ वर्षो से लीज पर जमीन देने पर लगी रोक भी हट गई। अब लोग प्रति कट्ठे के लिए राज्य सरकार को पांच लाख रुपए का शुल्क अदा कर जमीन हस्तांतरित कर सकते हैं।

रोजाना अखबारों और टीवी चैनलों पर साल्टलेक क्षेत्र में आपराधिक वारदातों की खबरें छायी रहती है। इस अति महत्वपूर्ण इलाके में ​​सेक्टर फाइव, युवा भारती स्टेडियम, नलवन, साइंस सिटी,निक्को पार्क, विकास भवन, विभिन्न  अस्पतालों और वाणिज्यिक कार्यालयों , प्रतिष्ठानों में लाखों नागरिक रोजाना आते हैं।​​ पर न उनके लिए पर्याप्त यातायात के साधन हैं और न सुरक्षा की न्यूनतम गारंटी।मेट्रो रेल के चालू हो जाने पर थोड़ी राहत की उम्मीद है,​​ पर विस्तृत इलाके में यातायात के लिए लोग आटोरिक्सा पर ही निर्भर हैं,जिन पर किसी का नियंत्रण नहीं है। साल्टलेक में बड़ी संख्या ​में  ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति अकेले रहते हैं जिनके बच्चे देश विदेश में काम कर रहे हैं। उनकी सहूलियत और सुरक्षा की ओर किसी का ध्यान नहीं​ ​ है।घर, पार्क या सड़क , कहीं भी आप अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करते तो निश्चित जानिये कि अब आप साल्टलेक में हैं।

जंगली बिल्ली, छोटे बंदर, ऊदबिलाव, सफेद गर्दन वाले किंगफिशर, तितलियां और पानी के सांपों की विशेष प्रजातियां, जैसे अभी कल की ही बात लगती हैं। कोलकाता के एक हिस्से में ये वन्य जीव ऐसे दिखते थे, जैसे प्रकृति की किसी वीरान और हरी-भरी गोद में सांस ले रहे हों। हाल तक वन्य जीवों की ये विशेष प्रजातियां कोलकाता के पूर्वी छोर के किनारे से गुजरती बड़ी सड़क यानी 'ईस्टर्न मेट्रोपोलिटन बाईपास' के किनारे के तालाबों, दलदलों और छोटी झीलों के इर्द-गिर्द फैली हरियाली की विशेषता हुआ करती थी। वजह वन्य जीवों की ऐसी ढाई सौ से अधिक प्रजातियां सिर्फ और सिर्फ कोलकाता के जलभूमि क्षेत्र (वेटलैंड्स) में पाई जाती थी। लेकन अब भूमि के इस्तेमाल के कानूनों को तोड़-मरोड़ कर वेटलैंड्स पाटे जा रहे है और उन पर कॉलोनियां विकसित करने की होड़ लगी है, उससे प्रकृति का यह वरदान नष्ट हो रहा है। इससे भी कहीं ज्यादा रफ्तार से यहां की लुप्तप्राय प्रजातियों का रहा-सहा अस्तित्व भी संकट में है।अंधाधुंध शहरीकरण की वजह से कोलकाता का वेटलैंड क्षेत्र तेजी से घट रहा है। एक अनुमान के अनुसार, अब यह क्षेत्र 10 हजार एकड़ तक सिमट कर रह गया है। इन दिनों सुंदरवन के इलाकों में जिस तरीके से विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ चल रहा है, इस कवायद का खास असर होता नहीं दिख रहा। यहां के पानी में ऑक्सीजन कम हो रहा है। आर्सेनिक की मौजूदगी के संकेत भी मिले हैं। पानी में आर्सेनिक की मात्रा 15 मिली ग्राम तक मिली है।

प्रमोटरों ने स्थानीय किसानों से वेटलैंड 'खरीदी' है और उसे पाटकर कॉलोनी बसाई जा रही है। ये आंकड़े ऑन रिकॉर्ड हैं। विभिन्न संगठनों द्वारा समय-समय पर चिंता जताने के बावजूद इन इलाकों में शहरीकरण का काम अंधाधुंध रफ्तार से चल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संस्था 'साउथ एशियन फोरम फॉर एनवायर्नमेंट' (सेफ) द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार, 1945 में पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स का क्षेत्रफल 20 हजार एकड़ आंका गया था। 2002 में 12,500 एकड़ की जानकारी उपलब्ध थी। लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण में यह क्षेत्र भी तेजी से घट रहा है। एक अनुमान के अनुसार, अब यह क्षेत्र 10 हजार एकड़ तक सिमट कर रह गया है। इन दिनों सुंदरवन के इलाकों को भी 'रामसर साइट' घोषित करने की योजना पर काम चल रहा है। लेकिन वहां भी जिस तरीके से विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों से खिलवाड़ चल रहा है, इस कवायद का खास असर होता नहीं दिख रहा।


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