Monday, 10 December 2012 10:58 |
विष्णु बैरागी लेकिन गए कुछ बरसों से लग रहा है कि इसे धीमी मौत मारने का षड़्यंत्र शुरू हो गया है। इसकी बीमा योजनाओं को कम लाभदायक बना कर विकर्षक (रिपल्सिव) बनाने की कोशिशें साफ नजर आ रही हैं। इसके निवेश पर भारत सरकार की शत-प्रतिशत गारंटी होने के बावजूद, समान धरातल (लेवल प्लेइंग फील्ड) की दुहाई देकर, 'बीमा दावा भुगतान की सुरक्षा और सुनिश्चितता' के नाम पर धरोहर-राशि (साल्वेन्सी मनी) के रूप में इसके हजारों करोड़ रुपए जाम कर दिए गए हैं। यह रकम न तो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश की जा सकती है न ही खुले बाजार में। यानी इतनी बड़ी रकम पर मिलने वाला ब्याज या मुनाफा अपने आप समाप्त हो गया जिसका सीधा नकारात्मक असर ग्राहकों के बोनस पर पड़ता है। इसे यों समझा जा सकता है कि ग्राहक के सौ रुपयों के निवेश पर भारत सरकार ने तो सौ रुपयों की गारंटी दे ही रखी है, इसके समांतर सौ रुपए अलग से जमा करवा लिए गए हैं। यानी सौ रुपयों पर दो सौ रुपयों की गारंटी। इसके विपरीत, निजी बीमा कंपनियों को सौ रुपयों के लिए सौ रुपए ही सुरक्षित रखने हैं। पूरी दुनिया में शायद भारत में ही ऐसा हो रहा है कि सरकारी गारंटी को भी अविश्वसनीय मान कर अलग से गारंटी ली गई हो। यानी सरकार की गारंटी पर भी गारंटी। भारतीय जीवन बीमा निगम की प्राप्तियों में कमी करने की एक और कोशिश यह है कि सरकार ने इसकी कुल चुकता पूंजी पांच करोड़ से बढ़ा कर एक सौ करोड़ कर दी है। यानी पहले जो पंचानबे करोड़ रुपए निवेश कर दो पैसे प्राप्त किए जा सकते थे, वे अब स्थायी रूप से जाम कर दिए गए हैं। ये दो पैसे ग्राहकों का बोनस बढ़ाने में मददगार होते। इसके समांतर ही, लोकसभा में पारित एक संशोधन के जरिए, भारतीय जीवन बीमा निगम के ग्राहकों के बोनस में कमी का एक और उपाय कर दिया गया। अब भारतीय जीवन बीमा निगम की अधिशेष (सरप्लस) रकम का नब्बे प्रतिशत अंश ही ग्राहकों के लिए दिया जा सकेगा। पहले यह अंश पंचानबे था। यानी अब ग्राहकों को बोनस और भी कम मिलेगा। पहली ही नजर में साफ लग रहा है कि इसकी बीमा योजनाओं को निजी बीमा कंपनियों की बीमा योजनाओं के मुकाबले कम लाभदायक बनाने की जुगत भिड़ाई जा रही है। मानो इतना पर्याप्त नहीं है, इसलिए इसे ऐसे निवेश के लिए विवश किया जा रहा है जहां पैसा डूबना निश्चितप्राय है। अभी-अभी सरकार ने, भारतीय जीवन बीमा निगम को, सरकारी विमानन कंपनी एअर इंडिया के तीन हजार करोड़ रुपयों के बांड खरीदने के निर्देश दिए हैं। यह निवेश उन्नीस वर्षों के लिए होगा। एअर इंडिया की दशा किसी से छिपी नहीं है। यह ऐसा सफेद हाथी बन कर रह गया है जो सरकार से न तो पाला जा रहा है और न ही इससे मुक्ति पाई जा रही है। हर कोई जानता है कि एअर इंडिया डूबती नाव है। इसे जीवित रखने के लिए सरकार इसे इसी साल अप्रैल में तीस हजार करोड़ रुपए का राहत पैकेज दे चुकी है। पिछले साल दिसंबर तक इस पर कुल जमा तिरालीस हजार सात सौ सतहत्तर करोड़ रुपए का कर्ज था और पिछले पांच साल में इसे सत्ताईस हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हो चुका है। कहा गया है कि भारतीय जीवन बीमा निगम को अपने निवेश पर कुल 9.27 प्रतिशत की दर से ब्याज की आय होगी। यह दर भारतीय जीवन बीमा निगम को सरकारी निवेश पर वर्तमान में मिल रही ब्याज दर (लगभग तीन प्रतिशत) के मुकाबले अत्यधिक आकर्षक जरूर है, लेकिन विचारणीय मुद्दा यह है कि जिस एअर इंडिया का कर्ज साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है वह इतनी ऊंची दर की ब्याज रकम कैसे (और कब) चुका पाएगा? कहीं ब्याज चुकाने के लिए तो कर्ज नहीं लेगा? यह साफ दिख रहा है कि इस 'कमाऊ पूत' यानी भारतीय जीवन बीमा निगम को संखिया देकर धीमी मौत मारा जा रहा है। देश के लोगों को एक बार फिर 1956 के पहले वाली स्थिति में ले जाने की कोशिश हो रही है जब लोग अपने दावों के कागज लिए भटकते थे और उनकी सुनने वाला कोई नहीं था। कठिनाई यह है कि इसके महत्त्व को अनुभव करने को कोई तैयार नहीं है और जो अनुभव करने वाले हैं, वे संख्या में इतने कम हैं कि उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती से भी गई-गुजरी साबित हो रही है। इसके ग्राहकों का ऐसा एक भी संगठन देश में नहीं है जो इन गंभीर बातों को अनुभव करे और सरकार को सोचने पर विवश कर दे। |
Monday, December 10, 2012
भविष्य के आधार में सेंध
भविष्य के आधार में सेंध
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