---------- Forwarded message ----------
From: rajiv yadav <rajeev.pucl@gmail.com>
Date: 2012/10/25
Subject: Rihai manch- SR darapuri & Sandeep pandey statement on Fasih mahmood issue
To: Rajeev <media.rajeev@gmail.com>
आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
----------------------------------------
फसीह महमूद मामला खुफिया एजेंसियों की गैर कानूनी कार्यशैली का ताजा
उदाहरण- एसआर दारापुरी
फसीह का मामला लोकतंत्र के समक्ष खुफिया एजेंसियां द्वारा प्रस्तुत
चुनौती- संदीप पाण्डे
देश में असुरक्षा का माहौल फैला रही हैं खुफिया एजेंसियां- एसआर दारापुरी
लखनऊ 25 अक्टूबर 2012/ आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच ने
यूपी एटीएस द्वारा फसीह महमूद से आजमगढ़ के तीन युवकों के बारे में
पूछताछ के बाबत दिए गए बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सपा
सरकार से यूपी एटीएस की विवादित कार्यशैली पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की
मांग की है।
रिहाई मंच द्वारा जारी विज्ञप्ति में पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर
दारापुरी ने कहा कि एक तरफ तो राज्य सरकार के मंत्री अहमद हसन आजमगढ़ के
संजरपुर गांव के लड़कों को आतंकवाद के नाम पर फसाने के लिए मायावती सरकार
को जिम्मेवार ठहराते हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ उनकी एटीएस फसीह महमूद
से, जिनके बारे में पूरा देश जान गया है कि कैसे खुफिया एजेंसियों ने
उन्हें फंसाया है, से आजमगढ़ से गायब बताए जा रहे युवकों के बारे में
पूछताछ का माहौल बनाकार फिर से सूबे में आतंकवाद का हौव्वा खड़ा करना
चाहती है। श्री दारापुरी ने कहा कि यदि सपा सचमुच धर्मनिरपेक्ष होती तो
फसीह महमूद के खुफिया एजेंसियों द्वारा सउदी अरब स्थित उनके घर से अवैध
तरीके से गायब किए जाने के खिलाफ संसद में सवाल उठाती? आजमगढ़ से गायब
बताए जा रहे युवकों का पता लगाती कि उन्हें किसने गायब किया? लेकिन ऐसा
करने के बजाय वह एटीएस से उन लड़कों को आतंकवादी साबित करने पर तुली है।
श्री दारापुरी ने कहा कि इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये
लड़के एजेंसियों के ही गिरफ्त में हों, जिन्हें जरुरत पड़ने के हिसाब से
एटीएस गिरफ्तार दिखा दे। उन्होंने कहा कि फसीह महमूद के मामले में आजमगढ़
के लड़कों का नाम लिया जाना एटीएस की इस साजिस की तरफ इशारा करता है। इसे
हर मुमकिन ताकत के साथ बेनकाब करना होगा।
पूर्व आईपीएस अधिकारी ने एटीएस और खुफिया एजेंसियों के कार्यशैली पर सवाल
उठाते हुए कहा कि जिस तरह आरडीएक्स, पाकिस्तान के फोन नम्बर और
महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों के नक्से के साथ पुलिस द्वारा दिखाए गए मुस्लिम
युवक अदालतों ंसे बेदाग छूट रहे हैं उससे समझा जा सकता है कि आईबी और
एटीएस किस तरह बेगुनाहों को फंसाती है। आखिर उनके पास आरडीएक्स कहां से
आता है? इसका जवाब सरकार को देना होगा। श्री दारापुरी ने एटीएस और खुफिया
एजेंसियों पर इस्लामोफोबिया और असुरक्षा का माहौल फैलाने का आरोप लगाते
हुए कहा कि जिस तरह अभी पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत से प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम की डेढ़ सौवीं वर्षगंाठ पर विस्फोट करने की फिराक में
रहने का आरोप लगाकर पकड़ा था, बेगुनाह बरी हुए हैं। जिससे समझा जा सकता
है कि राष्ट्रवाद के नाम पर असुरक्षा का भय दिखाने में किस तरह खुफिया
एजेंसियां शामिल हैं। उन्होंने मांग की है कि 1992 के बाद गणतंत्र और
स्वतंत्रता दिवस के इर्द गिर्द आतंकवाद के नाम पर हुई गिरफ्तारियों की
न्यायिक जांच कराई जाय, क्योंकि इन सब में खुफिया एजेंसियों की भूमिका
संदिग्ध है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में शामिल खुफिया और पुलिस
अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट सिर्फ टिप्पड़ी तक सीमित रह रही है जो
पर्याप्त नहीं है। उसे ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाइयों में
जाना होगा। तभी उसकी विश्वसनियता भी बढ़ेगी।
मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डे ने कहा कि
फसीह महमूद मामले से संदेह व्यक्त होने लगा है कि खुफिया एजेंसियां सरकार
के अधीन हैं, या वो खुद सरकार को संचालित करने लगी हैं। उन्होंने कहा कि
जिस तरह फसीह महमूद की गिरफ्तारी के बाद उनके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस
जारी हुआ उससे आतंकवाद निरोधी दस्तों की पूरी कार्यशैली पर सवाल उठता है।
संदीप पाण्डे ने इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व पर उठ रहे सवालों पर सरकार
से श्वेत पत्र लाने की मांग करते हुए कहा कि जैसे-जैसे एटीएस और खुफिया
एजेंसियों पर सवाल उठ रहे हैं, वैसे-वैसे मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां
फिर से बढ़ रही हैं। यहां तक की पुणे की यर्वदा जेल में कतील सिद््िकी की
हत्या पर सवालों से घिरी एटीएस और खुफिया एजेंसियों को जांच के दायरे में
लाने के बजाय सरकार ने उन्हें बेलगाम छूट दे दी है। जिसके तहत कतील
सिद्किी की हत्या का बदला लेने की पटकथा के बहाने निर्दोष मुस्लिम युवकों
को उठा रहे हैं। जिसके चलते एक ऐसा माहौल बन गया है जिसमें कानून भी
एटीएस के आगे बौना साबित हो रहा है।
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डे ने कहा
कि यूपी में सपा ने चुनावों में आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह मुसलमानों
को छोड़ने का वादा किया था, लेकिन छोड़ा तो किसी को नहीं तीन अन्य
बेगुनाहों को पकड़ा। सूबे के खुफिया अधिकारी इसराइल जाने लगे हैं। यह सब
सपा के साम्प्रदायिक नियत को दिखाता है। उन्होंने कहा कि यह बहुत शर्मनाक
बात है कि सच्चर आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा करने वाली सपा
सरकार के गठन के सात महीने के भीतर ही खुद सच्चर साहब को लखनऊ आकर
आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह मुसलमानों को छोड़ने की मांग करनी पड़ी।
द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम, राजीव यादव
आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
09415254919, 09452800752
From: rajiv yadav <rajeev.pucl@gmail.com>
Date: 2012/10/25
Subject: Rihai manch- SR darapuri & Sandeep pandey statement on Fasih mahmood issue
To: Rajeev <media.rajeev@gmail.com>
आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
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फसीह महमूद मामला खुफिया एजेंसियों की गैर कानूनी कार्यशैली का ताजा
उदाहरण- एसआर दारापुरी
फसीह का मामला लोकतंत्र के समक्ष खुफिया एजेंसियां द्वारा प्रस्तुत
चुनौती- संदीप पाण्डे
देश में असुरक्षा का माहौल फैला रही हैं खुफिया एजेंसियां- एसआर दारापुरी
लखनऊ 25 अक्टूबर 2012/ आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच ने
यूपी एटीएस द्वारा फसीह महमूद से आजमगढ़ के तीन युवकों के बारे में
पूछताछ के बाबत दिए गए बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सपा
सरकार से यूपी एटीएस की विवादित कार्यशैली पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने की
मांग की है।
रिहाई मंच द्वारा जारी विज्ञप्ति में पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर
दारापुरी ने कहा कि एक तरफ तो राज्य सरकार के मंत्री अहमद हसन आजमगढ़ के
संजरपुर गांव के लड़कों को आतंकवाद के नाम पर फसाने के लिए मायावती सरकार
को जिम्मेवार ठहराते हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ उनकी एटीएस फसीह महमूद
से, जिनके बारे में पूरा देश जान गया है कि कैसे खुफिया एजेंसियों ने
उन्हें फंसाया है, से आजमगढ़ से गायब बताए जा रहे युवकों के बारे में
पूछताछ का माहौल बनाकार फिर से सूबे में आतंकवाद का हौव्वा खड़ा करना
चाहती है। श्री दारापुरी ने कहा कि यदि सपा सचमुच धर्मनिरपेक्ष होती तो
फसीह महमूद के खुफिया एजेंसियों द्वारा सउदी अरब स्थित उनके घर से अवैध
तरीके से गायब किए जाने के खिलाफ संसद में सवाल उठाती? आजमगढ़ से गायब
बताए जा रहे युवकों का पता लगाती कि उन्हें किसने गायब किया? लेकिन ऐसा
करने के बजाय वह एटीएस से उन लड़कों को आतंकवादी साबित करने पर तुली है।
श्री दारापुरी ने कहा कि इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि ये
लड़के एजेंसियों के ही गिरफ्त में हों, जिन्हें जरुरत पड़ने के हिसाब से
एटीएस गिरफ्तार दिखा दे। उन्होंने कहा कि फसीह महमूद के मामले में आजमगढ़
के लड़कों का नाम लिया जाना एटीएस की इस साजिस की तरफ इशारा करता है। इसे
हर मुमकिन ताकत के साथ बेनकाब करना होगा।
पूर्व आईपीएस अधिकारी ने एटीएस और खुफिया एजेंसियों के कार्यशैली पर सवाल
उठाते हुए कहा कि जिस तरह आरडीएक्स, पाकिस्तान के फोन नम्बर और
महत्वपूर्ण सैन्य ठिकानों के नक्से के साथ पुलिस द्वारा दिखाए गए मुस्लिम
युवक अदालतों ंसे बेदाग छूट रहे हैं उससे समझा जा सकता है कि आईबी और
एटीएस किस तरह बेगुनाहों को फंसाती है। आखिर उनके पास आरडीएक्स कहां से
आता है? इसका जवाब सरकार को देना होगा। श्री दारापुरी ने एटीएस और खुफिया
एजेंसियों पर इस्लामोफोबिया और असुरक्षा का माहौल फैलाने का आरोप लगाते
हुए कहा कि जिस तरह अभी पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत से प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम की डेढ़ सौवीं वर्षगंाठ पर विस्फोट करने की फिराक में
रहने का आरोप लगाकर पकड़ा था, बेगुनाह बरी हुए हैं। जिससे समझा जा सकता
है कि राष्ट्रवाद के नाम पर असुरक्षा का भय दिखाने में किस तरह खुफिया
एजेंसियां शामिल हैं। उन्होंने मांग की है कि 1992 के बाद गणतंत्र और
स्वतंत्रता दिवस के इर्द गिर्द आतंकवाद के नाम पर हुई गिरफ्तारियों की
न्यायिक जांच कराई जाय, क्योंकि इन सब में खुफिया एजेंसियों की भूमिका
संदिग्ध है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में शामिल खुफिया और पुलिस
अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट सिर्फ टिप्पड़ी तक सीमित रह रही है जो
पर्याप्त नहीं है। उसे ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाइयों में
जाना होगा। तभी उसकी विश्वसनियता भी बढ़ेगी।
मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डे ने कहा कि
फसीह महमूद मामले से संदेह व्यक्त होने लगा है कि खुफिया एजेंसियां सरकार
के अधीन हैं, या वो खुद सरकार को संचालित करने लगी हैं। उन्होंने कहा कि
जिस तरह फसीह महमूद की गिरफ्तारी के बाद उनके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस
जारी हुआ उससे आतंकवाद निरोधी दस्तों की पूरी कार्यशैली पर सवाल उठता है।
संदीप पाण्डे ने इंडियन मुजाहिदीन के अस्तित्व पर उठ रहे सवालों पर सरकार
से श्वेत पत्र लाने की मांग करते हुए कहा कि जैसे-जैसे एटीएस और खुफिया
एजेंसियों पर सवाल उठ रहे हैं, वैसे-वैसे मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां
फिर से बढ़ रही हैं। यहां तक की पुणे की यर्वदा जेल में कतील सिद््िकी की
हत्या पर सवालों से घिरी एटीएस और खुफिया एजेंसियों को जांच के दायरे में
लाने के बजाय सरकार ने उन्हें बेलगाम छूट दे दी है। जिसके तहत कतील
सिद्किी की हत्या का बदला लेने की पटकथा के बहाने निर्दोष मुस्लिम युवकों
को उठा रहे हैं। जिसके चलते एक ऐसा माहौल बन गया है जिसमें कानून भी
एटीएस के आगे बौना साबित हो रहा है।
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डे ने कहा
कि यूपी में सपा ने चुनावों में आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह मुसलमानों
को छोड़ने का वादा किया था, लेकिन छोड़ा तो किसी को नहीं तीन अन्य
बेगुनाहों को पकड़ा। सूबे के खुफिया अधिकारी इसराइल जाने लगे हैं। यह सब
सपा के साम्प्रदायिक नियत को दिखाता है। उन्होंने कहा कि यह बहुत शर्मनाक
बात है कि सच्चर आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा करने वाली सपा
सरकार के गठन के सात महीने के भीतर ही खुद सच्चर साहब को लखनऊ आकर
आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाह मुसलमानों को छोड़ने की मांग करनी पड़ी।
द्वारा जारी-
शाहनवाज आलम, राजीव यादव
आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों का रिहाई मंच
09415254919, 09452800752
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