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From:
Samyantar <donotreply@wordpress.com> Date: 2012/10/27
Subject: [New post] साक्षात्कार : अचानक आनेवाली बाढ़ें मानव निर्मित अपदायें हैं
To:
palashbiswaskl@gmail.com समयांतर डैस्क posted: "अंतराष्ट्रीय ख्याति के भूगर्भ वैज्ञानिक व पर्यावरण विद खडग़ सिंह वल्दिया से अनुपम चक्रवर्ती की ब" New post on Samyantar | | अंतराष्ट्रीय ख्याति के भूगर्भ वैज्ञानिक व पर्यावरण विद खडग़ सिंह वल्दिया से अनुपम चक्रवर्ती की बातचीत प्र: हिमालय तथा भारत के अन्य भागों में अचानक आनेवाली बाढ़ें रह-रह कर आने लगी हैं। वे कौन सी भूगर्भीय प्रक्रियाएं हैं जो इन्हें पैदा कर सकती हैं? उ: अचानक आनेवाली बढ़ों का भूगर्भविज्ञान से बहुत कम संबंध है। उनका संबंध वर्षा के पैटर्न से है जिनमें विगत वर्षों में वातावरण के गर्म हो जाने से काफी परिवर्तन हुए हैं। इस बात के प्रमाण हैं कि बढ़ते हुए वातावरणीय तापमान के कारण अब बरसाती मौसम में वर्षा एक सार नहीं हो रही है। गर्मियों में सूखे का दौर बढ़ा है और उसके बाद तेज बारिश के छोटे-छोटे दौर पड़ते हैं। वर्षा पडऩे की दर इतनी तीव्र और व्यापक होती है कि पानी को मिट्टी में रिसने का समय ही नहीं मिलता। स्थिति इसलिए और खराब हुई है कि पेड़ों की आड़ मुश्किल से ही बची है, मट्टी इस हद तक जमी रहती है उसमें पानी चला जाए। इसका नतीजा यह होता है कि नदी में पानी बढ़ जाता है और अचानक बाढ़ आ जाती है। प्र: क्या उत्तरकाशी में अगस्त में जो अचानक बाढ़ आई और जिसे सरकार पिछले 30 वर्षों में आई सबसे भयानक बाढ़ कहा है, का एक मात्र यही कारण हो सकता है? उ: यह पूरी तरह से मानव निर्मित थी। एक नदी में गहरी मुख्यधारा के अलावा दोनों ओर बाढ़ का मार्ग होता है जिसके साथ बाढ़ का मैदान यानी खादर जुड़ा होता है। ऐतिहासिक रूप से लोग बाढ़ के रास्ते में मकान नहीं बनाते थे और वहां सिर्फ खेती करते थे। लेकिन दशकों की मानवीय गतिविधि ने खादर और बाढ़ के मार्ग के भू-स्वरूप को खत्म कर दिया है। अब यही नहीं कि बाढ़ के मार्ग में निर्माण हो रहा है बल्कि नदी की धारा के काफी निकट तक हो रहा है। रेलवे लाइनें और पुल बाढ़ के मार्ग को रोकते नहीं हैं बल्कि आरपार स्तंभों पर चलते हैं इसके विपरीत सड़कें और उनके पुल आसानी से बह जाते हैं क्योंकि निमार्णकर्ता भूगर्भीय संरचना की बिल्कुल चिंता नहीं करते। पहले वे नदी की धारा पर खंभे खड़े करते हैं। फिर वे नदी के दोनों ओर किनारे से पहुंचने के लिए पुश्ते खड़े करते हैं। पुश्ते बांधों का काम करते हैं और पुल जलद्वारों (स्लूइस गेट) का। पहाड़ी इलाकों में निमार्णकर्ता सिर्फ पुलिया (कलवर्ट) बनाते हैं या कई बार लागत कम करने के लिए सिर्फ गड्डा करते हैं। उत्तरकाशी में सड़कों और पुलों सहित सारा निर्माण बाढ़ के मार्ग और खेतों में हुआ है। नदी के किनारे बननेवाले सारे शहर बाढ़ के मार्ग पर हैं। इसलिए जब नदी उफान पर होगी तो क्या करेगी? प्र: क्या आपको लगता है कि पहाड़ी इलाकों में जमीन पर बढ़ता दबाव भी विनाशकारी अचानक आनेवाली बाढ़ों के लिए जिम्मेदार है? उ: निश्चय ही जमीन पर दबाव है। लेकिन गांववाले नदी के टीलों पर मकान बनाते हों ऐसा आप नहीं पाएंगे। वे इसकी जगह ढलानों पर मकान बनाते हैं। गलत तरह की परियोजनाएं इस तरह के भू स्खलन का परिणाम हैं। हिमालयीय क्षेत्रों में पिछले भूस्खलनों में सड़कें बनाना आम बात है। यह पहाड़ को काटने या खोदने की कीमत को बचाता है। इसलिए अच्छे इंजीनियर सड़कें बनानेवाले ठेकेदारों पर दबाव डालते हैं कि वे सड़क के साथ-साथ नालियां बनाएं। पर कई में इस तरह की नालियों का प्रबंध नहीं है जिससे कि पानी बह जाए। यह और भूस्खलनों को जन्म देता है। साभार: डाउन टु अर्थ | | | | |
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