Thursday, August 19, 2021

लोधा शबर जनजाति की चुनी कोटाल को क्यों आत्महत्या करनी पड़ी?

 चुनी कोटाल, महाश्वेता देवी और आदिवासी

पलाश विश्वास



शबर जनजाति पर म्हाश्वेतादि ने अपनी पत्रिका बर्तिका के जरिये सिलसिलेवार काम किया था। यह सामग्री बांग्ला में है।पहले बर्तिका के सारे अंक हमारे पास होते थे।अब एक भी नहीं है।


 बर्तिका के जरिये आदिवासी समाज के लिए उन्होंने व्यापक काम किया है,जो उनके कथा साहित्य से कम महान नहीं है।


आज कोलकाता के मशहूर बांग्ला अख़बार में खेड़िया शबर जनजाति की विश्विद्यालय की दहलीज तक पहुंची स्त्री रमणिता के बारे में खबर छपी है।


गौरतलब है कि इससे बरसों पहले लोधा शबर जनजाति की एक स्त्री विश्विद्यालय से शोध कर रही थी।जिनका नाम था चुनी कोटाल।


विश्विद्यालय में लोधा शबर जनजाति  कोटासे होने की वजह से उनका दमन उत्पीड़न इतना ज्यादा हुआ कि चुनी कोटाल को आत्महत्या करनी पड़ी। 


हम सभी,खासतौर पर महाश्वेता देवी , विवहलित हो हए थे।आंदोलन भी चला।


लेकिन दमन और उत्पीड़न का सिलसिला रुका नहीं है। आरक्षण तो नाम मात्र का है।कितने आदिवासी समूहों को आरक्षण का फायदा हुआ?


आदिवासियों के लिए विश्विद्यालय आज भी वर्जित क्षेत्र है। आज भी विभिन्न विश्विद्यालयोन में ऐसे दमन उत्पीड़न की शिकायतें मिलती हैं।


दिलोदिमाग लहूलुहान हो जाता है और हम कुछ कर नहीं पाते। ऐसी कहानियां जरूर आम जनता को जानना चाहिए।


आरक्षण की राजनीति और राजनेताओं को छोड़ दें तो आरक्षण से दलितों,आदिवादियों,अल्पसंख्यकों और स्त्रियों का कितना उत्थान हुआ और क्यों नहीं हुआ 70 साल बाद भी,चुनी कोटाल की कथा उसका जवाब है।


 आगे सरकारी क्षेत्र के निजीकरण और उत्पादन प्रणाली, अर्थव्यबस्था कारपोरेट हवाले होने के बाद ओबीसी कोटे का वोटबैंक सधने के अलावा क्या बनेगा,इस पर ओबीसी समुदायों को सोचना होगा कि ओबीसी कोटे के भी कहीं दलित और आदिवासी आरक्षण जैसा हश्र तो नहीं होगा?


जनजातियों के बारे में हिंदी में ऐसे काम जो भी हुए,उसे आम जनता के सामने लाने की जिम्मेदारी हमारी है।


कृपया 6398418084 व्हाट्सअप नम्बर पर मुझसे संपर्क करें।


पलाश विश्वास

कार्यकारी संपादक ,प्रेरणा अंशु

Mail-prernaanshu@gmail.com

Website- prerna anshu.com

No comments:

Post a Comment