ओलंपिक सोना और जयपाल सिंह मुंडा
पलाश विश्वास
जयपाल सिंह मुंडा 1928 men ओलंपिक का पहला स्वर्ण जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान थे। वे ics भी थे और संविधान सभा के एकमात्र मुखर आदिवासी सदस्य भी।
उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का अभीतक सही मूल्यांकन नहीं हुआ।जसिंता,यह काम भी हमें ही करना है।कोई दूसरा हमारा मूल्यांकन कभी नहीं करेगा।हमें उनके मूल्यांकन का मोहताज भी नहीं होना चाहिए।
निजी तौर पर जाति वर्ण नस्ल वर्चस्व के मातबरों से में जीवन के किसी भी क्षेत्र में न्याय की उम्मीद नहीं करता।
छल प्रपंच और दमन से बहुसंख्यक आबादी के प्रतिनिधत्व और अवसर खत्म करने वालों के कारण ही हम 138 करोड़ भारतवासी आजादी के सत्तर साल बाद किसी एक अदद स्वर्णपदक का जश्न मनाकर करोड़ो प्रतिभाओं के साथ हुए अन्याय को सिरे से नज़रंदाज़ करते हैं।
हमारे बच्चे भूख और कुपोषण के शिकार होते हैं।
हमारे बच्चे बिना चिकित्सा के बेमौत मारे जाते हैं।
घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए स्कूल नही जा पाते।
जो स्कूल जाते भी हैं,उनके लिए समान शिक्षा और समान अवसर नहीं है।
बच्चों को न खेलने की आज़ादी है और न उन्हें खेलने का अवसर मिलता है।
फिरभी हम पदकों की गिनती करते हुए तिरंगा लहराते हैं। इस व्यवस्था को बदलने की नहीं सोचते।
70 साल तो क्या 700 साल भी हम इसीतरह वंचना के जख्म पर मलहम लगाते रहेंगे छिटपुट कामयाबी पर।
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