Tuesday, August 10, 2021

भीष्म साहनी का उपन्यास तमस, भारत विभाजन और मेरे पिताजी।पलाश विश्वास

 साहित्य में भारत विभाजन और भीष्म साहनी

पलाश विश्वास




भीष्म साहनी जी के लेखन के बारे में कुछ कहने लिखने की शायद जरूरत नहीं है। तमस भारत विभाजन की त्रासदी पर क्लासिक रचना है। आम लोगों की यह आपबीती पंजाबी के साहित्यकारों ने खूब दर्ज किया है। मंटो की कहानियां तो भीतर से मठ डालती हैं। 


बांग्ला में प्रफुल्ल रॉय के केया पातार नौको और कपिल कृष्ण ठाकुर के उजानतलार उपकथा को छोड़ दें तो विभाजन के वास्तविक शिकार लोगोंकी कोई आपबीती दर्ज नहीं हुई। 


अतीन बंदोपाध्याय के नील कंठो पाखीर खोजे पठनीय है।लेकिन यह कथा एक जमींदार परिवार का वृत्तांत है।


 सुनील गंगोपाध्याय के समूचे लेखन में हिंदी और हिंदी भाषियों के प्रति जितनी घृणा है,उससे कहीं ज्यादा दलितों और आदिवासियों के खिलाफ है।  उनके लिए विभाजपीडितों का मतलब है पूर्वी बंगाल के सवर्ण भद्रलोक। 


शंकर् का नजरिया भी कमोबेश यही रहा है।


सिर्फ फिल्मकार ऋत्विक घटक ने मेघे ढाका तारा, कोमलगान्धार और सुवर्णरेखा के जरिये विभाजन की त्रासदी को जिया है।


बंगाल और पंजाब के समूचे साहित्य, उर्दू में कुर्त उल इन हैदर, राही मासूम रज़ा के आधा गांव को ध्यान में रखते हुए भारत विभाजन की सबसे प्रामाणिक तस्वीर भीष्म जी ने ही रची है। 


मंटो बेहद प्रभावशाली हैं ,लेकिन उनके यहाँ इतना विराट कैनवास और इतने बारीक ब्यौरे नहीं है।


विभाजनपीडित परिवार से होने और पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी लड़ाई में शामिल होने के कारण भीष्म जी की दूसरी रचनाओं के मुकाबले हमें तमस अपनी ही रचना लगती है,जो में लिख नहीं सका और लिख भी नहीं सकता।


तमस के हर पन्ने पर मुझे पुलिन बाबू का चेहरा नज़र आता है।


मेरे पिता पुलिनबाबू कैंसर से जूझ रहे थे। आखिरी कोशिश के तहत हम उन्हें लेकर एम्स दिल्ली ले गए। वहां पंकज बिष्ट जी आये। उन्होंने मुझसे कहा कि चलो,एक कार्यक्रम में जाना है। भीष्म जी होंगे।


पिताजी के साथ रह गए मंझले भाई पद्दोलोचन और रंगकर्मी सुबीर गॉस्वामी।


कार्यक्रम में हमारे प्रवेश करते ही मंच पर बैठे भीष्म साहनी जी उठ खड़े हो गए। बोले,पंकज जी नमस्ते।

पंकज दा और हम हतप्रभ रह गए।


अपने से युवा लोगों के प्रति यही अपनापा विष्णु प्रभाकर, उपेन्द्रनाथ अश्क, अमृतलाल नागर, महाश्वेता देवी, विष्णु चन्द्र शर्मा,शैलेश मटियानी, महादेवी वर्मा, रघुवीर सहाय,भैरव प्रसाद गुप्त, कमलेश्वर,अमरकांत, राजेन्द्र यादव  जैसे पुराने साहित्यकारों में देखी और महसूस की है। लेकिन अफसोस किनाज के बड़े साहित्यकारों का न अपने समकालीन और न युवा रचनाकारों से ऐसी आत्मीयता नज़र आती है।


103 वे जन्मदिन पर भीष्म साहनी जी की स्मृति को नमन। वे हमारे हिस्से का भी लिख गए,इसके लिए आभार।

No comments:

Post a Comment