Tuesday, July 27, 2021

वजूद से चस्पां

 शिवन्ना का भाई ननिहाल में मस्त।कभी हम भी ऐसे ही रहे होंगे। मेरी माँ बसन्ती देवी,ताई हेमलता,चाची उषा और बड़ी दीदी मीरा के पास जाहिर है कि तराई के घनघोर जंगल में मोबाइल फोन नहीं रहा होगा।






जब बाघ भालू से जिंदा बचने की लड़ाई हो तो फोटो का क्या मतलब? फिर ऐसे कपड़े?

 हम तो मिट्टी कीचड़ से लथपथ रहे होंगे जैसे पलाश के फूल। मेरे पिता पुलिनबाबू तब आंदोलनों की आग में दहक महक रहे थे।

यह तस्वीर साहब की मम्मी गायत्री ने खींची है।

मेरी ताई ज्यादा होशियार थी,नाम के साथ पूरे पर्यावरण की समूची तस्वीर हमारे वजूद के साथ चस्पां कर दी।

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