Saturday, July 3, 2021

मानसून के बादल क्या बांझ हो गए? जलवायु परिवर्तन से दरें।पलाश विश्वास

 मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं?

नवजात शिशुओं के लिए कितनी सुरक्षित है पृथ्वी?

पलाश विश्वास


जलवायु परिवर्तन का जलवा,अमेरिका और कनाडा में भी 49 डिग्री सेल्सियस तापमान और लू से मर रहे लोग। पूर्वी अमेरिका के रेगिस्तान और कनाडा के पठारी पहाड़ी इलाकों में भी इतनी गर्मी अभूतपूर्व है।


सात सात पृथ्वी के संसाधन हड़पने के बाद पूरे अंतरिक्ष को उपनिवेश बनाने वाले महाशक्तिमान के कार्बन उत्सर्जन की यह परमाणु ऊर्जा है।


मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं?


हिमालय के रोम रोम में एटीएम बम के धमाके कैद हैं और मानसून के बादल भी बरस नहीं रहे हैं।


हिमालय और हिन्द महासागर के मध्य गंगा यमुना, सिंधु रवि व्यास सतलज और ब्रह्मपुत्र के हरे भरे मैदानों की हरियाली छीजती जा रही है।


 ग्लेशियर पिघल रहे हैं। 

तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।

मानसरोवर भी फट जाएगा किसी दिन।

देवलोक से शुरू होगा महाप्रलय।


कैलास पर्वत के साथ पिघल जाएगा एवरेस्ट भी।


मानसून की घोषणा के बाद बरसात गायब है। जब आएगी बरसात तो कहर बरपा देगी।


कोरोना खत्म नहीं हुआ। बिना इलाज के मरने को अभिशप्त देश में कोरोना क्या,हर बीमारी महामारी है।

हिमालय की तबाही के साथ इस झुलसने वाले जलवायु में मैदानों के रेगिस्तान बनने पर हम कैसे जी सकेंगे?


प्रेरणा अंशु के जुलाई अंक में हमने अपनी बात में इस पर थोड़ी चर्चा की है। आगे गम्भीर चिंतन मनन और पर्यावरण एक्टिविज्म की जरूरत होगी रोज़मर्रे की ज़िंदगी में मौत का मुकाबला करते हुए।


घर में बादल उमड़ घुमद रहे हैं।बिजलिया चमक रही है।

बिजली गुल है। उमस के मारे में घने अंधेरे में नींद भी नहीं आती। फिलहाल हवा कभी तेज़ है तो कभी पत्ती भी हिलती नहीं है।


मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं?


प्रकृति किस तरह बनाएगी संतुलन?


नवजात शिशुओं के लिए कितनी सुरक्षित है पृथ्वी?


न्यूय्यार्क से 

Partha Banerjee 

ने लिखा है

*कृपया इस चर्चा को शुरू करें।* -- यह न्यूयॉर्क में गर्मियों के मध्य का समय है। मैंने जून में इतना अधिक तापमान कभी नहीं देखा। सौ डिग्री फारेनहाइट के आसपास। लॉस एंजिलिस, मायामी, टेक्सास- इन जगहों पर लोग ज्वल रहे हैं। एक बार, जून में, मैंने खुद को देखने के लिए एरिज़ोना रेगिस्तान के माध्यम से मेक्सिको के लिए एक मानवाधिकार ग्रुप के साथ यात्रा की। आज से पन्द्र्ह साल पहले। वह तब होता है 115 डिग्री। पानी नहीं है। बस जीने की चाहत रखने वाले गरीब लोगों के अवशेष यहां-वहां पाए जा सकते हैं। जलवायु आपदा बहुत तेजी से हो रही है। वैज्ञानिक भविष्यवाणी कर रहे हैं कि अगर हमने अभी घड़ी नहीं घुमाई तो मानव सभ्यता सिर्फ एक सदी में खत्म हो जाएगी। उस चेतावनी का सम्मान करते हुए दुनिया के विभिन्न देश देश को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। एक तरफ डेनमार्क या जर्मनी जैसे अमीर देश हैं, रवांडा या बोलीविया जैसे गरीब देश हैं। लेकिन भारत, बांग्लादेश, ब्राजील और अमेरिका में अधिकांश आम लोगों के लिए विज्ञान एक महत्वपूर्ण विषय नहीं है। बहुत कट्टरता और प्रागैतिहासिक मानसिकता है। मीडिया में इस भयानक कोरोना संकट के बाद भी पर्यावरण या स्वास्थ्य-चिकित्सा मुद्दों पर ज्यादा वैज्ञानिक चर्चा नहीं हो रही है। भारत में चक्रवात और बाढ़ ने ऐतिहासिक रूप ले लिया है। दूसरी ओर जल संकट अकल्पनीय है। अमेरिका के बड़े क्षेत्रों में अब फसलों के उत्पादन के लिए तापमान नहीं है। भयंकर सूखे के कारण विशाल क्षेत्र ज्वल  रहे हैं। मुख्यधारा की राजनीति में कोई चर्चा नहीं होती। लोग नफरत, झूठ और सस्ते मनोरंजन में डूब रहे हैं। कट्टर देशभक्ति में आंखें बंद कर ली हैं।

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