Thursday, July 15, 2021

हरेले को आंदोलन बनाने की जरूरत। पलाश विश्वास

 हरेले को आंदोलन बनाने की जरूरत

पलाश विश्वास


प्रकृति और पर्यावरण के लोकपर्व हरेला पर आप सभी को शुभकामनाएं।


आषाढ़ का महीना बीत चला तो आज हरेले के दिन बारिश हो रही है।राहत है।


तराई में धान की रोपाई हो गयी है।बिन पानी खेत के खेत सुख रहे हैं। लगाया हुआ धन जोतकर नए सिरे से रोपाई की नौबत है।


इस सूखे के परिदृश्य में इस लोक पर्व की प्रसंगकीकता समझ में नहीं आई तो फिर क्या होगा भविष्य में,अंदाज भी नहीं लगा सकते।


हम लोग नैनिताल समाचार में बाकायदा हरेले के टिनाडे तैयार करके अखबार के पन्ने पर खोंस कर सभी को हरेला की बधाई देते रहे हैं। चार दशक से नैनिताल समाचार इसी तरह निकल रहा है।


लेकिन पर्यावरण की लोक चेतना अब हरेले तक सीमित है और बाकी सबकुछ दावानल में स्वाहा है।


पशु पक्षी कीट पतंग ही नहीं , हम सभी इस दावानल में झुलस रहे हैं।


रस्म अदायगी नहीं,हरेले को आंदोलन बनाने की जरूरत है।


कल हमने बसंतीपुर के चारों तरफ 1970 तक बहने वाली नदियों की लाशें देखीं।


रात भर सो नहीं सके।बिजली भी नहीं थी।


उमड़ते घुमड़ते बरसते बादल अब सिर्फ समृतियाँ में हैं।

फिरभी हरेले का स्वागत क्योंकि जो भी हो,हम हो न हों, बची रहेगी पृथ्वी।

No comments:

Post a Comment