Friday, June 25, 2021

हमसे ज्यादा ज़िंदा हैं नबारून दा- पलाश विश्वास

 नबारून दा आज भी अपनी रचनाओं में हमसे ज्यादा ज़िंदा है। समय और समाज के लिए गैर प्रासंगिक ज़िन्दगी कोई ज़िन्दगी नहीं होती।


मुक्त बाजार में शहरी क्रयशक्ति हीन अंडर क्लास वर्ग समाज में सबसे निचले तबके की ज़िन्दगी उन्हीं की भाषा,उन्हीं के तेवर में हर्बर्ट, फैंटाडू और कंगाल मलसात जैसे उपन्यासों में जीने वाले रचनाकार की मौत नहीं हो सकती।

 

वे प्रसिद्ध रंगकर्मी और इप्टा के स्तम्भ बिजन भट्टाचार्य व विश्वप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी के पुत्र थे। उनके नाना मनीष घटक जबरदस्त गद्य लेखक थे और मामा ऋत्विक घटक विसज्व प्रसिद्ध फिल्मकार। 


परिवार में जीवन के हर क्षेत्र में दिग्गज चमकते दमकते चेहरों के बीच वे अद्वितीय थे।


मेरी नज़र में वे अखतरूज़ज़्मआन इलियास और मंटो के साथ तीसरी दुनिया के सबसे ताकतवर कथाकार थे।


महाश्वेता देवी का मशहूर उपन्यास हजार चुरासीर मां नबारून दा और उनके दोस्तों की ही कहानी है।


महाश्वेता देवी के साथ भाषा बन्धन के संपादकीय में उनके साथ काम करते हुए हमें भाषा, साहित्य, संस्कृति ,समाज और सभ्यता, अस्पृश्यता, अन्याय, उत्पीड़न और असमता, अन्याय के बारे में देखने समझने की दृष्टि मिली।


महाश्वेता देवी कहती थी, नबारून बहुत खड़ूस लेखक है। एक मात्रा तक फालतू नही लिखता। 


बहुत सटीक और ठोस लिखते थे नबारून।


महाश्वेता यह भी कहती थी,बहुत बारीकी से हर चीज को उसके समूचे ब्यौरे,सारे आयाम के साथ नबारून देखते थे। मसलन मच्छर कब घर में घुसते हैं। उनके आने जाने का समय, काटने की तैयारी इत्यादि।


नबारून दा का एक उपन्यास है- ऑटो। ऑटो रिक्शा चलानेवालों की ज़िंदगी पर। ऋत्विक घटक की फ़िल्म यान्त्रिक जिन्होंने देखी है,उन्हें यह उपन्यास इस फ़िल्म की तुलना में पढ़ना मजेदार लगेगा।


 शब्दों और बोली पर इतनी जबरदस्त पकड़ हमने किसी और में देखी नहीं है।


उनके सारे कथा पात्र ठोस और ज़िंदा हैं उनकी तरह।


हम आपकी तरह नहीं हैं। न हम आपकी तरह कभी सपने में भी लिख सकते हैं। शब्दों और बोलीं पर हमारी पकड़ ढीली है। फिरभी हमारे वजूद में आप कहीं न कहीं शामिल हैं नबारून दा।

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