Thursday, June 10, 2021

शरत चन्द्र की नायिका से कम नही थी हमारी सावित्री भाभी

 सावित्री भाभी की त्रासदी और  लॉक डाउन और कोरोना कर्फ्यू में ज़िंदगी और मौत


पलाश विश्वास


आज बसंतीपुर में शोक का समय है।

हमारी सावित्री भाभी करीब आठ महीने तक मरणासन्न रहने के बाद कल रात 3 बजे के करीब चल बसी। वे 70 साल के करीब थी।


पति हाजू साना की मृत्यु बहुत पहले हो गयी थी। एकमात्र बेटा जगदीश शायद लिवर सिरोयसिस से जवानी में ही चल बसा।दो बेटियां हैं। जगदीश के दो बेटे पंकज और सूरज उनकी देखभाल करते रहे हैं।



आठ महीने पहले हल्द्वानी अस्पताल ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हल्द्वानी से मतकोटा काली नगर के रास्ते बसंतीपुर आते हुए गड्ढों में गाड़ी उछलते रहने से वे रास्ते में जिंदा  हो गयी। 


गांव में तब मौत की खबर फैल गयी थी। लेकिन सावित्री भाभी घर ज़िंदा लौटी।


उससे महज तीन दिन पहले उन्हें दिनेशपुर निकलते वक्त सड़क साफ करते देखा था। 


अजब गजब जीवट की थी सावित्री भाभी। शरत चन्द्र की किसी नायिका से कम कष्ट और शोक उन्होंने नहीं झेले। कम संघर्ष नही किया। वे सारी बातें याद आ रही हैं।


पहले पहल फिर अस्पताल में भर्ती करने की कोशिश हुई। कोई अस्पताल तैयार नही हुआ। वे होश में थी। दिनेशपुर से झोलाछाप डॉक्टर बुलाकर, ग्लूकोज चढ़ाकर उन्हें ठीक करने की कोशिशें की जाती रहीं। वे कभी होश में होती कभी नहीं। खाना पीना थोड़ा बहुत शुरू जरूर हुआ, लेकिन बिस्तर से उठ नहीं सकी।


आज सुबह साढ़े छह बजे उनका पोता पंकज ने दरवाजा खटखटाया और घर में गांववालों को बुलाने की बात कही। मेरी नींद नहीं खुली थी। जागते जागते वह निकल गया था।


साबिता जी बोली, कोरोना समय में क्यों गांव के लोगों को बुला रहा है पंकज?


मेरी नींद उड़नछू हो गई। में तुरन्त समझ गया। उनके घर गया तो अंत्येष्टि की तैयारी हो रही थी।


गांव के लोग सामाजिक दूरी बनाते हुए जमा थे।


सामने राशन की दुकान पर बीपीएल कार्ड वालों को पहलीबार पांच पांच किलो अनाज बांटा जा रहा था। छोटे छोटे घेरे में लोग खड़े थे।


उनका मायका करीब 60 किमी दूर शक्ति फार्म के रत्न फार्म नम्बर एक में है। फोन कर दिया था। लेकिन जाहिर है कि वे आ नहीं सकते। आस पड़ोस के गांव से पंकज और सूरज की छोटी बहन आयी। अकेली।


मैंने पूछा, तुम्हारा वर कहाँ है?

वह बोली, महाराष्ट्र में लोकडौन में फंसा है।

महाराष्ट्र में कहाँ?

चंद्रपुर के आसपास।

मैंने कहा, चिंता मत करो। वहां हालात ठीक होंगे।

वह बोली, नागपुर में कोरोना के मरीज हैं।


अंदर सावित्री भाभी की छोटी बेटी रो रही थी।

मैंने पूछा, बड़ी कहाँ है?

जवाब मिला, कर्नाटक में फंसी है लॉक डाउन में।


सावित्री भाभी के पति हाजू साना अपने मौसा बिपिन सरदार और मौसी हजारी के साथ बसंतीपुर आये थे। मौसेरे भाई नाबालिग थे। हाजू दा ही खेती करते थे।


बसंतीपुर में ऐसे परिवार काफी थे, जिनमे जोड़ तोड़ कर परिवार बना था। कोई चाचा के साथ, कोई मौसा के साथ, कोई सिर्फ दो भाई। बाकी लोग विभाजन में उस पार छूट गये। ज्यादातर महिलाओं का मायका पीछे छूट गया।


 मेरी ताई और मेरी मां के साथ भी ऐसा हुआ। धर्म भाई, धर्म पिता कहकर ऐसी महिलाओं ने तराई के गांवों में अपना नया मायका बना लिया था।


 दिलों की मरम्मत करने का वह लहूलुहान वक्त था। अपनों से बिछुड़कर परायों को अपना बनाकर फिर ज़िंदगी शुरू करने का वक्त था।


 इसलिए बसंतीपुर में अलग अलग जिलों से आये अलग अलग जातियों के लोग एक साझा परिवार में बदल गए।

इसी लिहाज से हाजू साना मेरे बड़े भाई थे। कार्तिक साना मेरे चाचा हैं। विधु अधिकारी बड़े भाई और दिवंगत महेंद्र मण्डल मेरे मामा।


सावित्री भाभी का विबाह बसंतीपुर में ही हुआ। मुझे उनकी शादी याद नही है।


तब गांव और पूरी तराई में जहां तहां सांप पाए जाते थे। जहरीले सांप। हर साल अनेक लोग सर्पदंश के शिकार होते थे। मन्तर पढ़कर जड़ी बुटी से सांप कटे का इलाज करते थे हाजू दा।


बसंतीपुर की जात्रा पार्टी की बड़ी धूम थी। हाजू दा अनोखे कलाकार थे। रुद्रपुर हल्द्वानी के कार्यक्रमों में भी वे  जाया करते। हंसमुख और हमेशा सबकी मदद करने वाले। पीने की लत लगी और इसीमें जान चली गयी।एकमात्र बेटा भी बाप की तरह मरा।


हाजू दा पता नहीं किससे प्रेम करते थे।

सावित्री भाभी सुंदर थी, लेकिन उन्हें पसंद नहीं थीं।


तीसरी चौथी कक्षा में यह बात समझ में आ गयी। तभी से भाभी अपना दुख मुझसे बांटती थी। नैनीताल पढ़ते हुए यह सिलसिला जारी रहा।


फिर मैं पत्रकारिता में ऐसे खप्प गया कि मुझे पता नही चला कि भाभी किससे अपना दुख बांटती थी। इस बीच हाजू दा और उनके बेटे की मौत हो गयी। उनके मौसा और मौसी भी नही रही। मौसेरे भाई बड़े हो गए। सबसे छोटे मौसेरे भाई से मेरी तहैरी बहन रेखा का विबाह हो गया।


में घर लौट आया 40 साल बाद तो देखा, जगदीश के दोनों बेटे पंकज और सूरज भाभी का बहुत खयाल रखते हैं। पहलीबार सावित्री भाभी को ज़िंदगी में खुश देख रहा था।


उनकी खुशी लम्बी नहों  चली।

 वह बिस्तर पर पड़ गयी। 

अब उन्हें बिस्तर से राहत मिली।


कोरोना कर्फ्यू में बसन्तीपुर में यह पहली मौत है।


मुझे इतनी राहत है कि बाकी देश की तरह सावित्री भाभी की अंत्येष्टि में कोई दिक्कत न हुईं।


लॉक डाउन की वजह से रिश्तेदार नहीं आ सके। लेकिन गांव के रिश्ते अभी सही सलामत है। लॉक डाउन तोड़ नही रहे हैं। सामाजिक दूरी भी बनाये रखते हैं। फिरभी सभी अब भी सुख दुख में साथ साथ हैं।


मनुष्यता और सभ्यता इन्ही गांवों में बसी है।


आत्मीयता और रिश्ते भी, परिवार और समाज भी गांव में बचे हुए हैं, जिनपर मुक्त बाजार और पूंजीवाद को कोई असर नही हैं।


मुझे खूब महसूस हो रहा है कि महानगरों और बड़े शहरों के मुक्त बाजार से करोड़ो की तादाद में जो लोग गांव पैदल भी पहुंचना चाहते हैं, वे रोजी रोटी के लिए नहीं, इन्ही रिश्तों, इन्हीं परिवारों और इसी शुद्ध भारतीय ग्रामीण समाज के  लिए सब कुछ दांव पर लगाकर घर आना चाहते हैं।


कोरोना को हारना ही होगा।

मुक्तबाजार और पूंजीवाद का ग्लोबल तिलिस्म भी न्यूयार्क से लेकर भारत के गांवों में भी टूटने लगा है।

बसंतीपुर

2020

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