Friday, June 25, 2021

नहीं रहे उपेनबाबू जगदीशपुर के

 नहीं रहे उपेनबाबू। तराई बसानेवालों की पीढ़ी में थे वे।


बहुत दुःखद समाचार है। उपेनबाबू नहीं रहे। दिनेशपुर इलाके के ही गांव जगदीशपुर को बसाने वाले थे उपेनबाबू।पिताजी पुलिन बाबू के साथी थे। उनकी बेटी अंजलि आरती यानी Anjali Mandal यानी बिजली ने खबर दी है कि 22 जुलाई को उनका निधन हो गया। अंजलि विवाह के बाद कोलकाता के पास kaanchrapada में बस गई।वह अच्छी कथाकार हैं। जून अंक में भी उसकी रचना प्रेरणा अंशु में छपीं है। उसकी तीन बेटियां हैं।जिनमें से बड़ी बरहमपुर मुर्शिदाबाद में तैनात थे।


उपेनबाबू लम्बे समय से बीमार चल रहे थे। होश में थे लेकिन किसी को पहचान नहीं रहे थे।


छात्र जीवन मे आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में उपेनबाबू हमारे साथ थे। 1977 में जब मैं उनके घर गया था तब आरती शायद कक्षा 6 की छात्रा थी। कोलकाता में होने के बावजूद हम उससे मिल नहीं सके।


प्रेरणा अंशु परिवार की ओर से उपेन बाबू को विनम्र श्रद्धांजलि।हम शोक में परिजनों के साथ हैं।


अंजलि ने लिखा है-


पिताजी को अंतिम श्रद्धांजलि


गत 22 जून, 2021 दिन मंगलवार पूर्वाह्न 11.47 बजे मेरे परमपूज्य पिताजी स्व. उपेन्द्र नाथ मंडल का देहावसान हो गया है। वे पिछले कई वर्षों से अस्वस्थ चल रहे थे। लगभग 100 वर्ष पूर्ण कर उन्होंने अंतिम साँस ली। जन्मतिथि के बारे में सठीक प्रमाण न मिलने के कारण 100 वर्ष पूर्ण या अपूर्ण कहना मुश्किल है। उनके अनुसार 19 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी जन्मभूमि पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान बांग्लादेश छोड़ा था। अपने परिवार के साथ घुसुड़ी, शिउड़ी आदि शरणार्थी कैम्पों में शरणार्थी बनकर डोल में मिलनेवाले पैसों के सहारे जीवन-यापन कर रहे थे। नैनीताल के लिए बुलावा आने पर अन्य 23 फैमिली के साथ पिताजी लोग भी नैनीताल आने को राजी हो गए। और अंततः एक दिन एक गाड़ी इनको लेकर नैनीताल को रवाना हो गई। अर्धरात्रि को गाड़ी उत्तराखंड के इस तराई क्षेत्र के दिनेशपुर बाजार में एक बेर के पेड़ के नीचे इनको छोड़ गई। उस समय दिनेशपुर के चारों ओर घना जंगल था। जहाँ जंगली जीवों का वास था। एक साथ आए 24 फैमिली किसी तरह एकजगह बैठकर रात गुजारने के बाद सुबह दुर्गापुर नं 2 के ‘‘जोड़ा वट गाछ तला’’ आ गए और वहीं लगभग एक वर्ष तक रहे।  इसी जोड़ा वट तला का एक किस्सा जो पिताजी बार-बार सुनाते थे-रोजी -रोटी के लिए पिताजी एक छोटी सी दुकान चलाते थे। दुकान का सामान लाने के लिए उन्हें सप्ताह में एक बार रूद्रपुर बाजार जाना पड़ता था। एक दोपहर जब वे एक हाथ में सरसो तेल का टिन, दूसरे हाथ में सामान की टोकरी और सिर पर चावल-आटा की बोरी लादकर रूद्रपुर से पैदल चले आ रहे थे कि अचानक एक बाघ बिलकुल उनके सामने आ गया। दोनों हतप्रभ! क्या करें! क्या न करे! कुछ देर एक-दूसरे को ताकने के बाद दोनों उल्टे पैर भाग निकले। पिताजी के भागने का तो कारण था, परन्तु बाघ किसलिए भागा ये समझ नहीं आया।  सामान छोड़कर पिताजी भागते हुए जंगल में भटक गए। शाम ढलने के बाद किसी तरह हाँफते हुए जोड़ा वट तला पहुंचे और हैंडपंप मंे मुंह लगाकर गटागट पानी पीने लगे। यह देख, बरिसाल जिले के एक बुजुर्ग ने उनको खींचकर एक जोरदार थप्पड़ मारा। पिताजी तो गुस्से से लाल-पीले हो गए लेकिन बुजुर्ग आदमी ने उनका हाथ पकड़ा, जमीन से थोड़ी मिट्टी ली और उनके माथे पर टीका लगाया। दो-चार फूँक मारने के बाद पिताजी शांत हुए तो बुजुर्ग ने पूछा-‘‘‘ बाघ से मुलाकात हुई थी क्या?’’ पिताजी आश्चर्यचकित रह गए।

सालभर बाद इन 24 परिवारों को क्वार्टर मिला और ये जंगल के पास कल-कल करती छोटी सी नदी किनारे बसे जगदीशपुर गाँव में आ बसे। जगदीशपुर का नामकरण भी मेरे पिताजी ने ही किया था। इन 24 परिवारों में एक परिवार जो पिताजी लोगों के पड़ोसी भी थे सुरेन्द्र बाछाड़ और पागली का था। अपने सभी संतानों को खोने के बाद जब उनकी हालात पागलों जैसी हो गई तो सभी उन्हें पागली कहकर पुकारने लगे जिस कारण उनका असली नाम खो गया और वह पागली नाम से परिचित हो गई। संतानों की बलि चढ़ने के बाद बची मेरी माँ आरती को वे लोग नजरों से दूर नहीं करना चाहते थे इसलिए मेरे दादाजी और नानाजी ने मित्रता को रिश्तेदारी में बदल दिया।

 पिताजी केे घनिष्ठ मित्रों में माननीय एनडी तिवारी जी (तब वे युवा थे), पुलिन बाबु,, कुमुद बाबु, अमूल्य बाबु, राधाकान्त बाबु, हरेन बाबु, मनोरंजन डाक्टर, विरंचीपद बाबु, तरूणि हालदार, चंद्रबाबु, रवि ढाली आदि आदि थे। पिताजी के अनुसार उस जमाने में एनडी तिवारी जी का ज्यादातर समय इन्हीं बंगाली विस्थापितों के साथ बीतता था। कई-कई बार वे उनके साथ तौलिया पहनकर हैंडपंप के पानी से स्नान करते थे। घर में बना साधारण भोजन करते थे। 

समाजसेवा अथवा राजनीति में पिताजी का वर्चस्व कम रहा परन्तु शुरूआती दौर में विस्थापितों के उत्थान में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे पुलिन बाबु के सभापतित्व काल में उद्बास्तु कमिटि के सदस्य रहे। तत्कालीन न्याय पंचायत, आनन्दखेड़ा के सदस्य पद पर रहते हुए कई वर्षों तक लोक कल्याणार्थ कार्य किए। 

इन सबसे अलग वे साँप काटे का भी इलाज करते थे। इसलिए 36 कालोनी में वे ‘उपेन ओझा’ नाम से भी परिचित थे।मोहनपुर के देव गाइन जी एवं मोतीपुर के आदित्य मास्टार जी के पिताजी ज्योतिश बाबु उनके मंत्र गुरू रहे थे।  

बाद में माता, छोटे भाई स्व0 सुधीर कुमार मंडल एवं पिताजी स्व0 बिहारी लाल मंडल के एक के बाद एक गुजर जाने से वे टूट गए और बाहरी दुनिया से नाता तोड़ लिया।

 मेरे जीवन में पिताजी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मेरी उलझी हुई जिन्दगी के हर मोड़ पर उन्होंने मेरा साथ दिया और विपरीत परिस्थितियों से लड़ने के गुर सिखाए। आज उनकी कमी खल रही है। रह-रहकर उनके सानिध्य में गुजारे पल याद आ रहे हैं काश! उस बहुमूल्य समय को बरबाद न कर उनसे कुछ और जानकारियां हासिल करती, उनके जीवन के हर पहलु से वाकिफ होती, 100 साल का लंबा सफर जो उन्होंने तय किया, उनको अक्षरों में पिरों सकती... मेरी नाकामी जिन्दगी भर शूल बनकर मेरे हृदय को भेदती रहेगी। 

आज अंतिम श्रद्धांजलि देते समय जो कुछ भी स्मरण हो आया मैने आपके साथ साझा किया। इसका कोई पुख्ता प्रमाण मेरे पास नहीं है जो कुछ उनके मुंह से सुना है वही सपाट व्यक्त किया है। यदि कहीं कोई त्रुटि हो तो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं। 

अंत में पिताजी को मेरी तरफ से कोटि-कोटि प्रणाम एवं हार्दिक श्रद्धांजलि।

अंजलि मंडल

25-6-2021

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