हमारे पूरे इलाके में आम लोगों की चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं है। बाकी कसाईबाड़ा खूब हैं। पूरे उत्तराखण्ड झोला छाप डॉक्टर और नीम हकीम के भरोसे। कोई शिकायत नहीं।कोई आंदोलन नहीं।सिर्फ कुर्सी की लड़ाई।बीमारी कितनी आम हो या गम्भीर,फर्क नहीं पड़ता। सपनों के उत्तराखण्ड में विकास की लूट है।बिना इलाज स्वर्गवास और मोक्ष है। बधाई। लोग गूंगे बहरे और अंधे हों तो उन्हें स्वर्गवासी ही होना चाहिए।आखिर यह देवभूमि है।
हम लोग इतनी बुरीतरह पार्टी बद्ध हैं कि राजनीतिक सवाल पर तो आपस में लड़ने भिड़ने को तैयार हो जाते हैं,लेकिन आम जनता और क्षेत्रीय हित पर सहमति असहमति जताने की जरूरत नहीं समझते।
राजनीति करने वालों की बात समझ में आती है।लेकिन पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों,सामाजिक संगठनों के अगुवा लोगों का क्या?
प्रेमानंद महाजन जी 10 साल तक विधायक रहे।उनका कहना है कि दिनेशपुर ग्रामीण इलाका होने के अस्पताल के अच्छीकरण दिक्कत हो रही है। जबकि आसपास के तमाम ग्रामीण इलाकों में बड़े बड़े शहरों के पास बड़े अस्पताल हैं। जनप्रतिनिधि जनता के बीच जाने की,उनकी तकलीफें सुनने की भी जहमत नहीं उठाते।
बंगाली कल्याण समिति दिनेशपुर के चुनाव पर पूरा जोर लगा दिया जाता है।पदाधिकारी के लिए खूब जोर आजमाइश राजनीति होती है।
2001 के बाद यह संगठन कुम्भकर्णी निद्रा में है। 10 साल बाद चुनाव हुए।पहले चुनाव न होने का बहाना था।रूद्रपुर में भव्य शपथ ग्रहण के बाद वे पदाधिकारी कहाँ हैं?
बंगाली एकता संगठन, पंजाबी संगठन,पहाड़ी संगठन ,यूथ फेडरेशन न जाने कितने संगठन हैं,जिनके लम्बे चौड़े समाजसेवी पोस्ट आये दिन सोशल मीडिया पर वायरल दिखते हैं। लेकिन जनता के मुद्दे पर ये अति सक्रिय लोग मौन साध लेते हैं।
टैग करने पर भी उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।
पत्रकार बिरादरी की तो महिमा अपरम्पार है।
कुछ मित्रो का कहना है कि पुलिन बाबू के नाम पर अस्पताल का नाम रखने पर जोर था। अस्पताल के उच्चीकरण पर नहीं। हम उनसे सौ फीसदी सहमत है।
मैँ उनका बड़ा बेटा की हैसियत से पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि बेशक उनका नाम हटा दिया जाए।हमें बिना काम नाम नहीं चाहिए।काम पर भी नाम नहीं चाहिए।जनता की तकलीफें दूर करने की व्यवस्था कीजिये। आप चाहे तो इंटर कालेज के सामने उनकी मूर्ति भी विसर्जित कर दीजिए।
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संदर्भ
Pulin kumar Biswas
अस्पताल दिनेश पुर और बदहाल चिकित्सा
प्रसंग
Sanjiv Sanjeev Mandal
और दूसरे मित्रों के पोस्ट,वीडियो,वक्तव्य
बिना रोए मां भी दूध नहीं देती। हमने चिकित्सा और उच्च शिक्षा की मांग उठाई ही नहीं है।जन प्रतिनिधि हो या सरका या प्रशासन, वहां तक जनता की बुलंद आवाज नहीं गूंजेगी 1956 या 2001की तरह तो को होना था,वहीं हुआ। जनसमस्याओं के समाधान के लिए खुद पहल करनी होगी।सबको साथ लेकर आवाज़ उठानी होगी,तभी जनप्रतिनिधि हो या प्रशासन या सरकार,उनकी गहरी नींद खुलेगी। पीछे पीछे घूमते रहने से सुनवाई नहीं होगी।अपनी आवाज जोरदार ढ़ंग से बुलंद करने की जरूरत है।
मसलन,जितने भी लोग दिनेशपुर में ही चिकित्सा सुविधा के लिए बड़ा अस्पताल चाहते हैं ,पहले वे अपने फेसबुक वाल व्हाट्सएप ग्रुप में कम से कम एक पोस्ट तो डालें।फिर देखिए असर।
सभी मित्रों को टैग जरूर करें।
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