विकास की गंगा की बाढ़ में डूब रहा एक गांव
विकास का मतलब आज क्या यह हो चला कि मानवीय संवेदना को ही भुला दिया जाए? यदि ऐसा है तो आखिर ऐसा विकास किस के लिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि आदिवासियों और गरीब लोगों की गिनती महज़ वोट के लिए होती है लेकिन मानव के रुप में नहीं क्योंकि आजाद भारत में हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधा पाने का हक़ होता है बशर्ते उसकी गिनती मानव में हो। तो क्या मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का मुडवानी बस्ती के अनुसूचित जनजाति के लोग आजाद भारत की सीमा से बाहर हैं या खानाबदोश के रुप में जिंदगी बसर करना ही इनका मुकद्दर है। सिंगरोली जिला मुख्यालय वैढन से महज 10 किलोमीटर दूर एवं मोरवा रास्ते पर पहाड़ी तलहटी मे एक ऐसी बस्ती है जिसका अस्तित्व मिटने वाला है। अनुसूचित जन जाति में शुमार बैगा जाति के लोगों से आबाद लगभग 60 परिवारों वाली इस बस्ती के भाग्य मे बार बार उजड़ना ही लिखा है। 2012 की वर्तमान इस बरसात के बाद जाड़ा शुरू होते होते इनका उजडना एक बार फिर तय हो चुका है। आबाद इस बस्ती की सभी झुग्गी झोपड़ियाँ एनसीएल की निगाही परियोजना से निकल रहे ओवी की जद मे आ चुके हैं। अपनी प्लानिग के अनुसार यह परियोजना ओवी डम्प करती है तो दो चार घर छोड समूची बस्ती ओवी के अन्दर दब जायेगी। ज्ञातव्य हो कि वर्तमान स्थिति से अभी लगभग हजार मीटर का मूडवानी पूर्वी इलाका औवी मे समाहित होने वाला है। ऐसे मे यदि इन्हें पुनर्वासित न किया गया तो ये लोग कहॉं जायेंगे। कहना मुश्किल है कि अत्यंत निर्धन होने कारण अपना रैन बसेरा कैसे बना पायेगें। जंगली उपज व महुवा या महुवा की शराब ही इनकी जीविका के साधन है। पत्ता से पत्तल व दातून बेच कर जहॉं एक जून की रोटी नहीं जुटा पा रहे हैं वहीं वनकर्मियों के उत्पीडन के कारण सूखी लकडी भी बेच पाना मुश्किल हो गया है। प्रशासन के कागजातों में उन्हें पुरी सुविधा उपल्ब्ध है परन्तु वर्तमान की हकीकत कुछ और ही बयॉं कर रहा है। लगभग 325 की जनसंख्या वाले नामजद 62 परिवार के लिये प्रशासन की तरफ से लगभग 60 सौर ऊर्जा लैम्प लगाये गये हैं परन्तु सभी के सभी नकारा हो चुके हैं। एन सी एल द्वारा 5 हैन्डपम्प भी लगे हैं परन्तु इस मे से कोई काम नही कर रहा। अनुसूचितजाति जनजाति के राष्टी्रय अध्यक्ष का दौरा हुए भी लगभग एक पखवारा बीत चुका है और उनके आश्वासन भी हवा हवाई साबित हो रहे हैं। मुखिया के रूप मे जाने जाते इस बस्ती के छोटे लाल बैगा की जुबानी मुडवानी बस्ती सरकारी उपेक्षा का शिकार शुरू से ही रही है।
सन 1969 में सिचाई विभाग द्वारा इनसे 350 रूपये एकड जमीन अधिग्रहीत की गयी और 1975 मे इनकी शेष जमीन 800 रूपये प्रति एकड दे कर एनसीएल द्वारा ले ली गई। इनकी विपत्ति का अन्त यहीं नही हुआ। इनके द्वारा कथित अनाधिकृत भूअतिक्रमण पर तहसील द्वारा 5 जुलाई 1977 में 25 रूपये का चलान भी वसुला जा चुका है।न तो सिचाई विभाग ने और न ही एन सी एल ने कुछ भी आजिविका के संसाधन दिये। न नौकरी .न प्लाट केवल आर्थिक मुवावजा। 11 मई 2012 को जिला कलेक्टर और ठीक चार महीने बाद 12 सितंबर 2012 को राष्टी्रय अध्यक्ष अनुसूचित जाति जन जाति का आगमन इस बस्ती मे हो चुका है। कहते है कि दुनियां उम्मीद पर कायम है शायद यही वज़ह है कि एक बार फिर उजड जाने की राह पर खडे इस बस्ती के मानव सा दिखने वाले ये लोग सरकार की तरफ उम्मीद लगाये बैठे हैं।
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