एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission (NHRC)) एक स्वायत्त विधिक संस्था है । इसकी स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को हुई थी।पर इसके कामकाज में हिंदू राष्ट्रवाद हावी होता दिखायी दे रहा है।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक न्यायाधिकरण या प्रशासनिक संस्था नहीं है। इसका काम न्यायालयों के काम को दोहराना नहीं है, न ही पुलिस तंत्र के कार्य को विस्थापित करना है। इसका काम तो मानवाधिकार उल्लंघन के उन मामलों को प्रकाश में लाना तथा राहत के उपाय करना है जो सामने आने से रह गए हों, किंतु इसके विपरीत आयोग का रिकार्ड देखकर लगता है कि इसने अपनी इच्छा और सुविधा से काम तय किए है।
मानवाधिकार जननिगरानी समिति की ओर से पेश इस केस स्टडी का अगर हम तुलनात्मक अध्ययन करें तो साफ देख सकते हैं कि किस प्रकार से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली ने एक ही प्रकार के केस में अलग अलग कैसे दो तरफा कार्यवाही की है। इससे हिन्दू और मुस्लिम के बीच साफ साफ भेद भाव दिखाई देता है और माननीय आयोग के ऊपर ये प्रश्न खडा होता है कि आखिर क्या कारण है कि एक ही प्रकार के हिन्दू मामलों में सीधे कार्यवाही के निर्देश आयोग द्वारा दिये गये हैं जबकि दूसरी तरफ ठीक उसी प्रकार के मुस्लिम मामलों को सीधे राज्य मानवाधिकार आयोग, लखनऊ को भेज दिया गया है, यह कहते हुये कि मामला राज्य से जुड़ा है। लेकिन फिर वही प्रश्न खडा होता है कि फिर हिन्दू केस में वही मामला राज्य का न होकर सीधे आयोग अपने स्तर से कार्यवाही का आदेश दे रहा है। हम देख सकते हैं कि पुलिस उत्पीडन के हिन्दू केस में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सीधे एस.एस.पी या सम्बन्धित अधिकारी को नोटिस दिया है और बिल्कुल ऐसा ही केस पुलिस उत्पीडन के मुस्लिम केस को राज्य मानवाधिकार आयोग को स्थानांतरित कर दिया है। साथ ही राज्य मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों पर कोई कार्यवाही नही की है, केवल एक सूचना पत्र भेज दिया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा केस राज्य मानवाधिकार आयोग में दर्ज कर लिया गया है।
Story of PVCHR advocacy published in Economist
PVCHR LOGO
Story of PVCHR advocacy published in Economist:
Yet traditions die hard in UP, malign ones especially. At the very time Akhilesh was speaking, a five-year-old girl, Soni, was breathing her last in Raitara, a dirt-poor hamlet 320 kilometres
(200 miles) to the south-east. She belonged to the Musahar, or rat-catcher, caste. The village school does not teach Musahar children, who work in brick factories most of the year. Musahar adults cannot get the temporary work that the government supposedly guarantees to all, and supplies of state-subsidized food are patchy. Soni died of malnutrition.
A lot rests on Akhilesh's shoulders. With 200m people, UP is the world's largest local-government unit. It is bigger than Brazil and contains more than 20% of India's poorest people. Anyone who can dent poverty there would make a difference to global poverty statistics.
http://www.economist.com/node/21562253
मानव अधिकार एक व्यक्ति की राष्ट्रीयता, उसके निवास, लिंग, राष्ट्रीयता या जातीय मूल, रंग, धर्म या अन्य स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार हैं। सभी समान रूप से भेदभाव के बिना मानव अधिकारों के हकदार हैं। ये अधिकार आपस में संबंधित, अन्योन्याश्रित और अविभाज्य हैं।भारत में, मानवाधिकारों की रक्षा के कई तरीके हैं। संसद और कार्यपालिका को देश में कानून का निर्माण और कार्यान्वयन सौंपा गया है जबकि न्यायपालिका इसके निष्पादन को सुरक्षित करती है।
इन बुनियादी चीजों के अलावा संस्थानों के अन्य निकाय हैं जो मौजूदा तंत्र को मजबूत और समृद्ध बनाते हैं। वास्तव में समर्पित सरकारी एजेंसियां, सामाजिक रूप से समर्पित गैर सरकारी संगठन, स्थानीय सामुदायिक समूह और अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसियां दुनिया भर में मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए कार्य करती हैं।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग पर महत्वपूर्ण लिंक्स
- एनएचआरसी के बारे में अधिकांशतः पूछे जाने वाले प्रश्न- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
- एनएचआरसी द्वारा जारी महत्वपूर्ण निर्देश /गाइडलाइंस- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
- एनएचआरसी के सारांश प्रकरण- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
- मानव अधिकार का शिकायत का ऑनलाइन पंजीयन प्रपत्र- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
- एनएचआरसी में दर्ज शिकायत की स्थिति की ऑनलाइन जांच- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं
- राज्यवार मानव अधिकार आयोगों की सूची
मुस्लिम केस मे स्थिति | हिन्दू केस मे स्थिति | ||||||
पीडित का नाम /पता | केस का प्रकार | शिकायत /कार्यवाही NHRC द्वारा | SHRC Uttar Pradesh | पीडित का नाम /पता | केस का प्रकार | शिकायत /कार्यवाही NHRC द्वारा | |
1 | शमशुद्दीन + 9 अन्य (वाराणसी) | 22 मुस्लिम परिवार वालो को पुलिस द्वारा धमकी देकर भागने को मजबूर करना और 11 व्यक्तियो को बिना किसी कारण के थाने मे बैठाना और चालान करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 31168(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 7/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | संजय यादव, पुत्र – मुल्लर यादव, वाराणसी | पुलिस उत्पीडन से परेशान होकर फांसी लगाया | 38274/24/72/2011/UC – Notice to SSP |
2 | मोहम्मद ईशा (वाराणसी) | पुलिस द्वारा जबरदस्ती मारपीट व थाने मे बैठाना और केस वापस लेने की धमकी देने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 9004(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 15/7/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | योगेन्द्र गुप्ता उर्फ जोखू, जौनपुर | पुलिस उत्पीडन से परेशान होकर फांसी लगाया | Notice to SSP 24217/24/39/2011/OC |
3 | फुरकान (मुरादाबाद) | भाई की जगह भाई की गिरफ्तारी और यातना और हथकडी पहनाकर पुलिस द्वारा कोर्ट मे पेस करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29152(21)/2011-12 दिनांक 24/1 /2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | दीपू राजभर – वाराणसी | पुलिस उत्पीडन से परेशान होकर खाया जहर | Notice to SSP, 16413/24/72/2011/UC |
4 | ईद्रीश अंसारी (वाराणसी) | भू माफियाओ और पुलिस द्वारा धमकी देने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 2436(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 19/12/2011 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | रामलाल – पडरी – मिर्जापुर | पुलिस उत्पीडन | कार्यवाही मे मुआवजा मिला और पुलिस पर कार्यवाही हुई – 20346/24/72/09-10 |
5 | रूखशाना (मेरठ) | पुलिस द्वारा दबंगो के खिलाफ कार्यवाही न करके पीडित को जेल भेजने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 31173(154)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 7/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | रामलाल पटेल – वाराणसी | फर्जी मुठ्भॆड (संतोष ) | मुआवजा और cbcid enquiry – 9550/24/72/7-08-DB II |
6 | शफीक मंसूरी (सम्भल, मुरादाबाद) | वर्षा के कारण घर गिरने और पुनर्वास की कोई व्यवस्था प्रसाशन द्वारा नही किये जाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 31024(21)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 6/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | राम वृक्ष – वाराणसी | पुलिस महकमा मे काम करने वाले पडोसी से पीडित, थाने द्वारा कार्यवाही न करना | Notice to SSP, 29342/24/72/2011 |
7 | तसलीम (मुरादाबाद) | पुलिस द्वारा कोई कर्यवाही न करने के कारण आत्महत्या | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 31214(21)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 7/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | Maheshaa Nand Bhai - Sonbhadra | दबंगो द्वारा धमकी और स्थानीय थाना द्वारा हिलाहवाली | Notice to SP, जांच चल रही है |
8 | साजिया (मेरठ) | दहेज उत्पीडन के मामले को पुलिस द्वारा दर्ज नही किये जाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 32759(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 16/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | सोनपुरवा गांव – बडागांव मे मुसहरो की दयनीय स्थिति | स्थानीय प्रशासन द्वारा हिलाहवाली | Notice to D.M., जांच चल रही है, 30651/24/72/2011/M -4 |
9 | आयशा/सलीम (मुरादाबाद) | पुलिस हिरासत मे मौत | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34529(41)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | Jarawati Devi- Varanasi | पुलिस द्वारा मामले मे हिला हवाली | Notice to DIG, enquiry is going on |
10 | लतीफन (मेरठ) | दबंगो के खिलाफ पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही व एफ आई आर दर्ज न करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 31044(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 2/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | लल्ली देवी व अन्य – इलाहाबाद | मामले मे दोषियो के विरूद्ध कार्यवाही न करना | Notice to DIG, 19453/24/4/2011- WC |
11 | मुहम्मद आशकार (मुरादाबाद) | भूखमरी से मौत | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34524(2)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | kewala devi - varanasi | Police denied to file fir | Notice to ssp, 258/24/72/2011/OC |
12 | शमीम खान (अलीगढ) | दहेज हत्या के मामले मे पुलिस द्वारा लापरवाही | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 32773(81)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 16/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | छोटे लाल - माहारजगंज | पुलिस द्वारा उत्पीडन और रूपया ऎठने के सन्दर्भ मे | Notice to SSP 39541/24/49/2010/oc |
13 | बेबी W/O जैनुल आफरीन (वाराणसी) | दबंगो द्वारा घर मे घुस कर मारपीट करने के मामले मे पुलिस द्वारा कोई कर्यवाही ना करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34359(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 28/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | TRIBHUWAN SINGH - vARANASI | POLICE TORTURE | Notice to SSP, 11352/24/72/2010/OC/M-3 |
14 | ईदरीश फैसाज (प्रतापगढ) | हत्या के केस को पुलिस द्वारा दुर्घटना का रूप देने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34195(72)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 28/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | prabhaakar dubey | पुलिस द्वारा फर्जी मुकदमा मे फसाने | Notice to SP 39045/24/72/09-10/OC/M-3 |
15 | आस मोहम्मद/साकिब (मेरठ) | सडक दुर्घटना मे मुआवजे व कार्यवाही के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 29220(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 24/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
16 | इमराना (मेरठ) | 4 वर्षीय बच्ची के हत्या मे पुलिस द्वारा समझौता के लिये दबाव बनाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 29331(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 24/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
17 | इंतजार (मेरठ) | अर्धविक्षिप्त युवक पर जानलेवा हमले मे पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न किये जाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34516(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
18 | महजबीन/मेधा नागर (वारणसी) | कोर्ट के आदेश के बाद भी नारी संरक्षण गृह द्वारा अपरहण मे सहयोग करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 26371(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 4/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
19 | चान्द अन्सारी (वाराणसी) | आर्थिक तंगी से आत्महत्या | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 26344(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 4/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
20 | महक (मेरठ) | बीमार छात्रा को स्कूल से छुट्टी न देने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 29214(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 24/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
21 | दानिश (मेरठ) | मालिक द्वारा कर्ज वसूली के लिये मारपीट व धमकी के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34203(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 28/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
22 | जाकिर (सीतापुर) | 8 वर्षीय बच्ची के साथ दुराचार का प्रयास मे आरोपी को पुलिस द्वारा बचाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34193(34)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 28/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
23 | आसिफ सैफी (मेरठ) | शिक्षक द्वारा 6 के छात्र को पीटकर उंगली तोडने और लगातार प्रताडित करने के समबन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34554(81)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
24 | परवीन (मेरठ) | युवती का अपहरण व दुराचार की कोशिश मे पुलिस द्वारा पीडिता की शिकायत दर्ज न किये जाने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 28377(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 19/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
25 | मोमीन (मेरठ) | दबंगो द्वारा फायर करने पर नामजद तहरीर देने पर भी पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही न करने के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 34534(15)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 29/2/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
26 | शहजहा (वाराणसी) | सिपाही द्वारा व स्थानीय नेता द्वारा घर मे घुस कर पीडिता के साथ बलात्कार करने के प्रयास के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 29565(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 25/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. | |||
27 | कोबरा बीबी (वाराणसी) | सिपाही द्वारा व स्थानीय नेता द्वारा घर मे घुस कर पीडिता के साथ बलात्कार करने के प्रयास के सम्बन्ध मे. | NHRC ने केस को SHRC Uttar Pradesh को ट्रान्सफर किया | SHRC Uttar Pradesh को RTI लगाने पर पता चला कि केस संख्या 29559(65)/2011-12 के रूप मे SHRC Uttar Pradesh मे दिनांक 25/1/2012 को दर्ज कर लिया गया है और अभी मामला विचाराधीन है. कार्यवाही की कोई रिपोर्ट नही मिली. |
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग | ||
* | राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी)- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं की स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं के तहत की गई थी। यह आयोग देश में मानव अधिकारों की रक्षा के लिए स्वायत्त तथा स्वतंत्र निकाय की तरह कार्य करता है। मानव अधिकार मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए आयोग ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। इनमें से कई मुद्दे तो सीधे भारत के उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार देखे जा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के आदेनुसार निम्न कार्यक्रमों का अनुसरण किया जा रहा है:
मानव अधिकार आयोग द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे तथा कार्यक्रमों मे शामिल हैं:
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मानव विशेषाधिकार के पीछे मूल संकल्पना | ||
* | मानव अधिकारों की आधुनिक अवधारणा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुई। वाक्यांश "मानव अधिकार" अपेक्षाकृत आधुनिक है। उसकी बौद्धिक आधारशीला दर्शन और प्राकृतिक नियम व स्वतंत्रता की अवधारणाओं से पता लगाया जा सकता है। सम्मान और समझ मानव अधिकारों की संस्कृति को पाने के लिए आवश्यक है जो कि हर इंसान की बुनियादी जरूरतों के प्रति संवेदनशील रहा है। यह हर किसी के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की आवश्यकताओं का सम्मान करता है और हर व्यक्ति और लोगों के समूह की वृद्धि और विकास के लिए निष्पक्ष और समान अवसर प्रदान करता है। यह राज्य की शक्ति और उसकी एजेंसियों द्वारा उसके मनमाने उपयोग से हर एक की रक्षा करता है। संयुक्त राष्ट्र- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं और इसके सदस्यों ने कानूनी निकायों से कई दौर की बातचीत के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं और अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार कानून- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं बनाए हैं। | |
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर)- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1948 में अपनाया गया था। यूडीएचआर ने सदस्य देशों से मानवीय, नागरिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। ये अधिकार " दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति" का हिस्सा हैं।
स्वाभाविक आत्मसम्मान और बराबरी व अविच्छेद अधिकारों की मान्यता मानव परिवार के सभी सदस्यों के लिए दुनिया में स्वतंत्रता, न्याय और शांति के आधार हैं। मानव अधिकारों की उपेक्षा और अवमानना कर बर्बर कार्य हुए जिसकी हमारी आत्मा इजाजत नहीं देती लेकिन मानव अधिकारों के आने के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तवज्जो दिया जाने लगा है जिससे आम लोग सर्वोच्च आकांक्षा रख सकें।
संयुक्त राष्ट्र ने बुनियादी मानव अधिकारों, मनुष्य की गरिमा और मूल्यों के साथ पुरुष और महिलाओं के समान अधिकार में भरोसा जताया है और अत्यधिक स्वतंत्रता के साथ जीवन के बेहतर स्तर और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने मानव अधिकारों के निरीक्षण और बुनियादी स्वतंत्रता के अनुपालन के साथ सार्वभौमिक सम्मान को बढ़ावा देने और उसके सहयोग से इन्हें प्राप्त करने का वादा किया है।
हालांकि यूडीएचआर एक गैर बाध्यकारी प्रस्ताव है और अब इसे अंतरराष्ट्रीय प्रथागत कानून के तौर पर माना जाने लगा है जो राष्ट्रीय और अन्य न्यायपालिकाओं द्वारा उपयुक्त परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है।
भारतीय संविधान तथा मानव अधिकार | ||
* | मानवाधिकार पर सार्वभौम घोषणा का प्रारूप तैयार करने में भारत ने सक्रिय भागीदारी की। संयुक्त राष्ट्र के लिए घोषणा पत्र का मसौदा तैयार करने में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने विशेष रूप से लैंगिक समानता को दर्शाने की जरूरत को उजागर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भारत छह प्रमुख मानव अधिकार प्रतिज्ञापत्र और बच्चों के अधिकारों पर करार के वैकल्पित प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता है। भारतीय संविधान के लागू होने के बाद सार्वभौम घोषणा के अधिकांश अधिकारों को इसके दो भागों, मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया गया है जो मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा के लगभग क्षेत्रों को अपने में समेटे हुए है। अधिकारों के पहले सेट में अनुच्छेद 2 से 21 तक घोषणा और इसके अंतर्गत संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक में मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया है। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरूद्ध अधिकार, धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्वतंत्रता का अधिकार, कुछ विधियों की व्यावृति और सांविधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है। अधिकारों के दूसरे सेट में अनुच्छेद 22 से 28 तक घोषणा और संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को शामिल किया गया है। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, कार्य का अधिकार, रोजगार चुनने का स्वतंत्र अधिकार, बेरोजगारी के खिलाफ काम की सुरक्षा और कार्य के लिए सुविधाजनक परिस्थितियां, समान कार्य के लिए समान वेतन, मानवीय गरिमा का सम्मान, आराम और छुट्टी का अधिकार, समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में निर्बाध हिस्सेदारी का अधिकार, मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार, लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना, समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता और राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के सिद्धांतों को शामिल किया गया है। हालांकि, मानव अधिकारों के लिए सम्मान भारतीय लोकाचार में सामाजिक दर्शन के एक भाग के रूप में लंबे समय से एक अस्तित्व में है। | |
मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993
भारत ने मानव अधिकार रक्षा अधिनियम, 1993- बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं को बनाकर संघ तथा राज्य स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयोगों की स्थापना आवश्यक कर दिया है। इस अधिनियम की वजह से संघ स्तर पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तथा राज्यों के स्तर पर राज्य मानव अधिकार आयोगों की स्थापना करना कानूनी रूप से आवश्यक हो गया है। यह आयोग मानव अधिकारों तथा उससे संबंधित विषयों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा राज्य मानवाधिकार आयोग अब नागरिकों के रोममर्रा के जीवन का हिस्सा बन गया है साथ ही देश के शासन में भी इसका असर बढ़ता हुआ महसूस किया जा सकता है। अधिकारों में बारे में नागरिकों में अभिरुचि तथा जानकारी लगातार बढ़ रही है। भारत विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा का पक्षधर है तथा इसके लिए कार्यरत संघों का समर्थक भी है।
भारत में मानवाधिकार
http://hi.wikipedia.org/s/9ta
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से* यह लेख यह श्रेणी के सम्बन्ध में है: |
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देश के विशाल आकार और विविधता, विकसनशील तथा संप्रभुता संपन्न धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा, तथा एक भूतपूर्व औपनिवेशिक राष्ट्र के रूप में इसके इतिहास के परिणामस्वरूप भारत में मानवाधिकारों की परिस्थिति एक प्रकार से जटिल हो गई है. भारत का संविधान मौलिक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें धर्म की स्वतंत्रता भी अंतर्भूक्त है. संविधान की धाराओं में बोलने की आजादी के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका का विभाजन तथा देश के अन्दर एवं बाहर आने-जाने की भी आजादी दी गई है.
यह अक्सर मान लिया जाता है, विशेषकर मानवाधिकार दलों और कार्यकर्ताओं के द्वारा कि दलित अथवा अछूत जाति के सदस्य पीड़ित हुए हैं एवं लगातार पर्याप्त भेदभाव झेलते रहे हैं. हालांकि मानवाधिकार की समस्याएं भारत में मौजूद हैं, फिर भी इस देश को दक्षिण एशिया के दूसरे देशों की तरह आमतौर पर मानवाधिकारों को लेकर चिंता का विषय नहीं माना जाता है.[1]इन विचारों के आधार पर, फ्रीडम हाउस द्वारा फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2006 को दिए गए रिपोर्ट में भारत को राजनीतिक अधिकारों के लिए दर्जा 2, एवं नागरिक अधिकारों के लिए दर्जा 3 दिया गया है, जिससे इसने स्वाधीन की संभतः उच्चतम दर्जा (रेटिंग) अर्जित की है.[2]
अनुक्रम[छुपाएँ] |
[संपादित करें]भारत में मानवाधिकारों से संबंधित घटनाओं के कालक्रम
- 1829 - पति की मृत्यु के बाद रुढ़िवादी हिन्दू दाह संस्कार के समय उसकी विधवा के आत्म-दाह की चली आ रहीसती-प्रथा को राममोहन राय के ब्रह्मों समाज जैसे हिन्दू सुधारवादी आंदोलनों के वर्षों प्रचार के पश्चाद गवर्नर जनरलविलियम बेंटिक ने औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया.
- 1929 - बाल-विवाह निषेध अधिनियम में 14 साल से कम उम्र के नाबालिकों के विवाह पर निषेद्याज्ञा पारित कर दी गई.
- 1947 - भारत ने ब्रिटिश राज से राजनीतिक आजादी हासिल की.
- 1950 - भारत के संविधान ने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के साथ संप्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की. संविधान के खण्ड 3 में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय मौलिक अधिकारों का विधेयकअन्तर्भुक्त है. यह शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से पूर्ववर्ती वंचित वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान भी करता है.
- 1952 - आपराधिक जनजाति अधिनियम को पूर्ववर्ती "आपराधिक जनजातियों को "अनधिसूचित" के रूप में सरकार द्वारा वर्गीकृत किया गया तथा आभ्यासिक अपराधियों का अधिनियम (1952) पारित हुआ.
- 1955 - हिन्दुओं से संबंधित परिवार के कानून में सुधार ने हिन्दू महिलाओं को अधिक अधिकार प्रदान किए.
- 1958 - सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम, 1958-[3]
- 1973 - भारत का उच्चतम न्यायालय केशवानन्द भारती के मामले में यह कानून लागू करता है कि संविधान की मौलिक संरचना (कई मौलिक अधिकारों सहित संवैधानिक संशोधन के द्वारा अपरिवर्तनीय है.
- 1975-77- भारत में आपात काल की स्थिति-अधिकारों के व्यापक उल्लंघन की घटनाएं घटीं.
- 1978 - मेनका गांधी बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह कानून लागू किया कि आपात-स्थिति में भी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन (जीने) के अधिकार को निलंबित नहीं किया जा सकता.
- 1978-जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम, 1978[4][5]
- [[1984 - ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके तत्काल बाद 1984 के सिख विरोधी दंगे
- 1985-6 - शाहबानो मामला जिसमें उच्चता न्यायालय ने तलाक-शुदा मुस्लिम महिला के अधिकार को मान्यता प्रदान की जिसने मौलानाओं में विरोध की चिंगारी भड़का दी. उच्चतम न्यायालय के फैसले को अमान्य करार करने के लिए राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिमा (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) अधिनियम 1986 पारित किया.
- 1989 - अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 पारित किया गया .
- 1989-वर्तमान- कश्मीरी बगावत ने कश्मीरी पंडितों का नस्ली तौर पर सफाया, हिन्दू मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर देना, हिन्दुओं और सिखों की हत्या तथा विदेशी पर्यटकों और सरकारी कार्यकर्ताओं का अपहरण देखा.
- 1992 - संविधानिक संशोधन ने स्थानीय स्व-शासन (पंचायती राज) की स्थापना तीसरे तले (दर्जे) के शासन के ग्रामीण स्तर पर की गई जिसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीट आरक्षित की गई. साथ ही साथ अनुसूचित जातियों के लिए प्रावधान किए गए.
- 1992 - हिन्दू-जनसमूह द्वारा बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर दिया गया, परिणामस्वरूप देश भर में दंगे हुए.
- 1993 - मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई.
- 2001 - उच्चतम न्यायालय ने भोजन का अधिकार लागू करने के लिए व्यापक आदेश जारी किए.[6]
- 2002 - गुजरात में हिंसा, मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक को लक्ष्य कर, कई लोगों की जाने गईं.
- 2005 - एक सशक्त सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हुआ ताकि सार्वजनिक अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में संघटित सूचना तक नागरिक की पहुंच हो सके.[7]
- 2005 - राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एनआरईजीए) रोजगार की सार्वभौमिक गारंटी प्रदान करता है.
- 2006 - उच्चतम न्यायालय भारतीय पुलिस के अपयार्प्त मानवाधिकारों के प्रतिक्रिया स्वरूप पुलिस सुधार के आदेश जारी किए.[8]
- 2009 - दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 की घोषणा की जिसने अनिर्दिष्ट "अप्राकृतिक" यौनाचरणों के सिलसिले को ही गैरक़ानूनी करार कर दिया, लेकिन जब यह व्यक्तिगत तौर पर दो लोगों के बीच सहमति के साथ समलैंगिक यौनाचरण के मामले में लागू किया गया तो अंसवैद्यानिक हो गया, तथा भारत में इसने समलैंगिक संपर्क को प्रभावी तरीके से अलग-अलग भेद-भाव कर देखना शुरू किया.[9] भारत में समलैंगिकता भी देखें:
[संपादित करें]हिरासत में मौतें
पुलिस के द्वारा हिरासत में यातना और दुराचरण के खिलाफ राज्य की निषेधाज्ञाओं के बावजूद, पुलिस हिरासत में यातना व्यापक रूप से फैली हुई है, जो हिरासत में मौतों के पीछे एक मुख्य कारण है.[10][11] पुलिस अक्सर निर्दोष लोगों को घोर यातना देती रहती है जबतक कि प्रभावशाली और अमीर अपराधियों को बचाने के लिए उससे अपराध "कबूल" न करवा लिया जाय.[12] जी.पी. जोशी, राष्ट्रमंडल मानवाधिकारों की पहल की भारतीय शाखा के कार्यक्रम समन्वयक ने नई दिल्ली में टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस हिंसा से जुड़ा मुख्य मुद्दा है पुलिस की जवाबदेही का अभी भी अभाव.[13]वर्ष 2006 में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ के एक मामले में अपने एक फैसले में, केन्द्रीय और राज्य सरकारों को पुलिस विभाग में सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ करने के सात निर्देश दिए. निर्देशों के ये सेट दोहरे थे, पुलिस कर्मियों को कार्यकाल प्रदान करना तथा उनकी नियुक्ति/स्थानांतरण की प्रक्रिया को सरल और सुसंगत बनाना तथा पुलिस की जवाबदेही में इज़ाफा करना.[14]
[संपादित करें]भारतीय प्रशासित कश्मीर
कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और संयुक्त राष्ट्र ने भारतीय-प्रशासित कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट दी है. हाल ही में एक प्रेस विज्ञप्ति में ओएचसीएचआर (OHCHR) के एक प्रवक्ता ने कहा, "मानवाधिकारों के उच्चायुक्त का कार्यालय भारतीय-प्रशासित कश्मीर में हल-फिलहाल हुए हिंसक विरोधों के बारे अधिक चिंतित है सूचनानुसार जिसके कारण नागरिक तो मारे गए ही साथ ही साथ सभा आयोजित करने (एक साथ समूह में जमा होने) अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया.[15].वर्ष 1996 के मानवाधिकारों की चौकसी के रिपोर्ट ने भारतीय सेनावाहिनी एवं भारतीय सरकार द्वारा समर्थित अर्द्धसैनिक बलों की कश्मीर में गंभीर और व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन करने के आरोप लगाए हैं.[16] ऐसा ही एक कथित नरसंहार सोपोर शहर में 6 जनवरी 1993 को घटित हुआ. टाइम पत्रिका ने इस घटना का विवरण इस प्रकार दिया, "केवल एक सैनिक की ह्त्या के प्रतिशोध में, अर्द्धसैनिक बलों ने पूरे सोपोर बाज़ार को रौंद डाला और आसपास खड़े दर्शकों को गोली मार दी. भारत सरकार ने इस घटना की निन्दा करते हुए इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" कहा तथा दावा किया कि अस्त्र-शस्त्र के एक जखीरे में बारूद के गोले से आग लग गई जिससे अधिकांश लोग मौत के शिकार हुए.[17] इसके अतिरिक्त कई मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस अथवा सेना द्वारा कश्मीर में लोगों के गायब कर दिए जाने के दावे भी पेश किए हैं.[18][19]जनवरी 2009 में श्रीनगर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर सड़क के किनारे एक सैनिक चौकी गार्ड.
कई मानवाधिकार संगठनों, जैसे कि एमनेस्टी इंटरनैशनल एवं ह्युमन राइट्स वॉच (HRW) ने भारतीयों के द्वारा कश्मीर में किए जाने वाले मानवाधिकारों के हनन की निंदा की है जैसा कि "अतिरिक्त-न्यायायिक मृत्युदंड", "अचानक गायब हो जाना", एवं यातना;[20] "सशस्त्र बलों के विशेष अधिकार अधिनियम", जो मानवाधिकारों के हनन और हिंसा के चक्र में ईंधन जुटाने में दण्ड से छुटकारा दिलाता है. सशस्त्र बलों के विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) सेनावाहिनी को गिरफ्तार करने, गोली मारकर जान से मार देने का अधिकार एवं जवाबी कार्रवाई के ऑपरेशनों में संपत्ति पर कब्ज़ा कर लेना या उसे नष्ट कर देने का व्यापक अधिकार प्रदान करता है. भारतीय अधिकारियों का दावा है कि सैनिकों को ऐसी क्षमता की ही आवश्यकता है क्योंकि जब कभी भी हथियारबंद लड़ाकुओं से राष्ट्रीय सुरक्षा को संगीन खतरा पैदा हो जाता है तो सेना को ही मुकाबला करने के लिए तैनात किया जाता है. उनका कहना है कि, ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए असाधारण उपायों की जरुरत पड़ती है." मानवाधिकार संगठनों ने भी भारत सरकार से जन सुरक्षा अधिनियम को निरसित कर देने की सिफारिश की है,[21] चूंकि "एक बंदी को प्रशासनिक नजरबंदी (कारावास) के अदालत के आदेश के बिना अधिकतम दो सालों के लिए बंदी बनाए रखा जा सकता है".[22]. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (युनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्युज़िज़) के एक रिपोर्ट के मुताबिक यह तय किया गया कि भारतीय प्रशासित कश्मीर "आंशिक रूप से आजाद" है,[23] (जबकिपाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के बारे में निर्धारित किया गया कि "आजाद नहीं" है.[24][संपादित करें]प्रेस की आजादी
मुख्य लेख : Freedom of press in Indiaसीमा के बिना संवाददाताओं(रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स) के अनुमान के अनुसार, दुनिया भर में प्रेस की आजादी के सूचकांक में भारत का स्थान 105वां है (भारत के लिए प्रेस की आजादी का सूचकांक 2009 में 29.33 था).[25] भारतीय संविधान में "प्रेस" शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार" का प्रावधान किया गया है (अनुच्छेद 19(1) a). हालांकि उप-अनुच्छेद (2), के अंतर्गत यह अधिकार प्रतिबंध के अधीन है, जिसके द्वारा भारत की प्रभुसत्ता एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध जनता में श्रृंखला, शालीनता का संरक्षण, नैतिकता का संरक्षण, किसी अपराध के मामले में अदालत की अवमानना, मानहानि, अथवा किसी अपराध के लिए उकसाना आदि कारणों से इस अधिकार को प्रतिबंधित किया गया है". जैसे कि सरकारी गोपनीयता अधिनियम एवंआतंकवाद निरोधक अधिनियम के कानून लाए गए हैं. [26] प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए पोटा (पीओटीए) का इस्तेमाल किया गया है. पोटा (पीओटीए) का इस्तेमाल किया गया है. पोटा (पीओटीए) के अंतर्गत पुलिस को आतंकवाद से संबंधित आरोप लाने से पूर्व किसी व्यक्ति को छः महीने तक के लिए हिरासत में बंदी बनाकर रखा जा सकता था. वर्ष 2004 में पोटा को निरस्त कर दिया गया, लेकिन युएपीए (UAPA) के संशोधन के जरिए पुनःप्रतिस्थापित कर दिया गया.[27] सरकारी गोपनीयता अधिनियम 1923 कारगर रूप से बरकरार रहा.
स्वाधीनता की पहली आधी सदी के लिए, राज्य के द्वारा मीडिया पर नियंत्रण प्रेस की आजादी पर एक बहुत बड़ी बाधा थी. इंदिरा गांधी ने वर्ष 1975 में एक लोकप्रिय घोषणा की कि "ऑल इण्डिया रेडियो" एक सरकारी अंग (संस्थान) है और यह सरकारी अंग के रूप में बरकरार रहेगा. [28] 1990 में आरम्भ हुए उदारीकरण में, मीडिया पर निजी नियंत्रण फलने-फूलने के साथ-साथ स्वतंत्रता बढ़ गई और सरकार की अधिक से अधिक तहकीकात करने की गुंजाइश हो गई. तहलकाऔर एनडीटीवीजैसे संगठन विशेष रूप से प्रभावशाली रहे हैं, जैसे कि, हरियाणा के शक्तिशाली मंत्री विनोद शर्मा को इस्तीफा दिलाने के बारे में. इसके अलावा, हाल के वर्षों में प्रसार भारती के अधिनियम जैसे पारित कानूनों ने सरकार द्वारा प्रेस पर नियंत्रण को कम करने में उल्लेखनीय योगदान किया है.
[संपादित करें]एल जी बी टी (LGBT) अधिकार
मुख्य लेख : Homosexuality in Indiaजब तक दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 जून 2009 को सम-सहमत वयस्कों के बीच सहमति-जन्य निजी यौनकर्मों को गैरआपराधिक नहीं मान लिया[29] तबतक 150 वर्ष पुरानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की अस्पष्ट धारा 377, औपनिवेशिक ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा पारित कानून की व्याख्या के अनुसार समलैंगिकता को अपराधी माना जाता था. बहरहाल, यह कानून यदा-कदा ही लागू किया जाता रहा.[30] समलैंगिकता को गैरापराधिक करार करार करने के अपने आदेश में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि मौजूदा कानून भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के साथ प्रतिद्वन्द्व पैदा करती है और इस तरह के अपराधीकरण संविधान की धारा 21, 14 और 15 का उल्लंघन करते हैं.[31]
[संपादित करें]मानव तस्करी
मानव तस्करी भारत में $ 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक अवैध व्यापार है. हर साल लगभग 10,000 नेपाली महिलाएं वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए भारत लायी जाती हैं.[32] हर साल 20,000-25,000 महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है.[33]बाबूभाई खिमाभाई कटारा एक सांसद थे जब एक बच्चे की कनाडा में तस्करी के लिए वे गिरफ्तार कर लिए गए.
[संपादित करें]धार्मिक हिंसा
मुख्य लेख : Religious violence in Indiaभारत में (अधिकतर हिंदुओं और मुसलमानों के धार्मिक गुटों के बीच) सांप्रदायिक संघर्ष ब्रिटिश शासन से आज़ादी के आसपास के समय से ही प्रचलित हैं. भारत में सांप्रदायिक हिंसा की सबसे पुरानी घटनाओं में केरल मोप्लाह (Moplah) विद्रोह था, जब कट्टरपंथी इस्लामी जंगियों ने हिंदुओं की हत्या कर दी. भारत विभाजन के दौरान हिंदुओं/ सिखों और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगों में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा में लोग बड़ी संख्या में मारे गए थे.
1984 के सिख विरोधी दंगों में चार दिन की अवधि के दौरान भारत की नरमदलवादी धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस पार्टी के सदस्यों द्वारा सिखों की हत्या होती रही, कुछ लोगों का अनुमान है कि 2,000 से अधिक मारे गए थे.[34] अन्य घटनाओं में 1992 के मुंबई दंगे तथा 2002 के गुजरात की हिंसा की घटनाएं शामिल हैं- उत्तरार्द्ध वाली घटना में,इस्लामी आतंकवादियो ने हिंदू यात्रियों से भरी गोधरा में खड़ी ट्रेन को एक हमले में जला डाला, जिसमे 58 हिंदू मारे गए थे, इस घटना के परिणामस्वरूप 1000 से अधिक मुसलमान मारे गए थे (जिसका कोई उल्लेख नहीं है).[35]. कई कस्बों और गांवों को छिटपुट छोटी-मोटी घटनाएं त्रस्त करती रही हैं; जिसमे से एक उदहारण स्वरुप उत्तर प्रदेश के मऊ में हिंदू-मुस्लिम दंगे के दौरान पांच लोगों की हत्या थी, जो एक प्रस्तावित हिंदू त्योहार के समारोह के उपलक्ष में भड़का दिया गया था.[35] ऐसी ही एक अन्य घटना में को सांप्रदायिक दंगों में 2002 मराद नरसंहार शामिल है, जिसे उग्रवादी इस्लामी गुट राष्ट्रीय विकास मोर्चा द्वारा अंजाम दिया गया था, साथ ही साथ तमिलनाडु में इस्लामवादी तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कज़घम द्वारा निष्पादित हिन्दुओं के खिलाफ सांप्रदायिक दंगे हैं.
[संपादित करें]जाति से संबंधित मुद्दे
मुख्य लेख : Caste system in India, Caste politics in India, और Caste-related violence in Indiaह्यूमन राइट्स वॉच के एक रिपोर्ट के अनुसार, दलितों और स्वदेशी लोगों (जो अनुसूचित जनजातियों या आदिवासियों के रूप में जाने जाते हैं) वे लगातार भेदभाव, बहिष्कार, एवं सांप्रदायिक हिंसा के कृत्यों का सामना कर रहे हैं. भारतीय सरकार द्वारा अपनाए गए क़ानून और नीतियां सुरक्षा के मजबूत आधार प्रदान करती हैं, लेकिन स्थानीय अधिकारियों द्वारा ईमानदारी से कार्यान्वित नहीं हो रही है."[36]
एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है, "यह भारतीय सरकार की जिम्मेदारी है कि जाति के आधार पर भेदभाव के खिलाफ कानूनी प्रावधानों को पूरी तरह से अधिनियमित और लागू करे.[37]
कई खानाबदोश जनजातियों के साथ भारत की अनधिसूचित (डिनोटिफाइड) जनजातियों की जनसंख्या जो सामूहिक रूप से 60 मिलियन है, लगातार आर्थिक कठिनाइयों और सामाजिक कलंक का सामना कर रहे हैं, इस तथ्य के बावजूद कि आपराधिक जनजातियों के अधिनियम 1871 को सरकार द्वारा 1952 में निरसित कर दिया गया था औरआभ्यासिक अपराधियों के अधिनियम (एचओए) (1952) द्वारा इतने प्रभावी रूप से प्रतिस्थापित कर दिया गया कि, तथाकथित "अपराधिक जनजातियों" की पुरानी सूची से एक नई सूची बनाई गई. यहाँ तक कि आज भी ये जनजातियां असामाजिक गतिविधि निवारण अधिनियम'(PASA) के परिणामों को झेलती हैं, जो केवल उनके अस्तित्व में बने रहने के लिए उनके दैनन्दिन संघर्ष में इजाफा ही करते हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर लोग गरीबी रेखा के नीचे ही रहते हैं. नस्ली भेदभाव उन्मूलन (CERD) पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और संयुक्त राष्ट्र की भेदभाव विरोधी निकाय समिति ने सरकार से इस क़ानून को अच्छी तरह से निरसित कर देने को कहा है, क्योंकि ये पहले की आपराधिक जनजातियां बड़े पैमाने पर उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार सहती रही हैं और कइयों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़े वर्ग का दर्जा देने से इनकार कर दिया गया है ताकि उनके आरक्षण के अधिकार को नकार दिया जाय जो उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाता.[38][39][40]
[संपादित करें]अन्य हिंसा
जैसे कि बिहारी-विरोधी मनोभाव के संघर्षों ने कभी-कभी हिंसा का रूप धारण कर लिया है.अपराध जांच के लिए आक्रामक तरीके जैसेकि 'नार्कोअनालिसिस' (नियंत्रित संज्ञाहरण) अर्थात अवचेतन में विश्लेषण की अब सामान्यतः भारतीय अदालतों ने अनुमति दी है. हालांकि भारतीय संविधान के अनुसार "किसी को भी खुद उसी के खिलाफ एक गवाह नहीं बनाया जा सकता है", अदालतों ने हाल ही में घोषणा की है कि यहाँ तक कि इस प्रयोग के संचालन के लिए अदालत से अनुमति आवश्यक नहीं है. अवचेतानावस्था में विश्लेषण (Narcoanalysis) का अब व्यापक रूप से प्रयोग प्रतिस्थापित/प्रवंचना के लिए किया जाता है अपराध जांच के वैज्ञानिक तरीकों के संचालन के लिए कौशल और बुनियादी सुविधाओं की कमी है.[मूल शोध?] अवचेतानावस्था में विश्लेषण (Narcoanalysis)[कौन?] पर भी चिकित्सा की नैतिकता के खिलाफ आरोप लगाया गया है.
यह पाया गया है कि देश के आधे से अधिक कैदी पर्याप्त सबूत के बिना ही हिरासत में हैं. अन्य लोकतांत्रिक देशों के विपरीत, आम तौर पर भारत में आरोपी की गिरफ्तारी के साथ ही जांच की शुरूआत होती है. चूंकि न्यायिक प्रणाली में कर्मचारियों की कमी और सुस्ती है, अतः कई वर्षों से जेल में सड़ रहे निर्दोष नागरिकों का होना कोइ असामान्य बात नहीं है. उदाहरण के लिए, सितम्बर 2009 में मुम्बई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से एक 40-वर्षीय व्यक्ति को मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा क्योंकि जिस अपराध के लिए वह 10 साल से जेल में सजा काट रहा था दरअसल उसने वह अपराध किया ही नहीं था.
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
- भारत में सामाजिक और आर्थिक मुद्दे
- भारत में सेंसरशिप
- भारतीय आपातकाल (1975-77)
- पोटा
- भारत में भ्रष्टाचार
- भारत में नस्लवाद
- भारत में कामुकता
[संपादित करें]सन्दर्भ
- ↑ भारत, एक देश का अध्ययन, संयुक्त राज्य अमेरिका के कांग्रेस पुस्तकालय
- ↑ "वर्ल्ड 2006 में स्वतंत्रता: सिविल लिबर्टीज और चयनित से डेटा के राजनीतिक अधिकारों सर्वेक्षण फ्रीडम हाउस की वार्षिक ग्लोबल" पीडीएफ (122 किबा), फ्रीडम हाउस, 2006
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- ↑ http://www.unhcr.org/refworld/publisher,NATLEGBOD,,IND,3ae6b52014,0.html
- ↑ खाद्य का अधिकार
- ↑ सूचना अधिकार
- ↑ सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस सुधार
- ↑ [2]
- ↑ पुलिस हिरासत में मौत के कारण अत्याचार द ट्रिब्यून
- ↑ पश्चिम बंगाल में हिरासत पर मौत और भारत के इनकार के खिलाफ यातना कन्वेंशन की पुष्टि एशियाई मानवाधिकार आयोग 26 फरवरी 2004
- ↑ हिरासत मौतें और भारत में यातना एशियाई कानूनी संसाधन केन्द्र
- ↑ भारत में जवाबदेही पुलिस: राजनीति से दूषित पोलिसिंग
- ↑ सुप्रीम कोर्ट पुलिस पर सुधार प्रकाश का जिम्मा ले लेता है: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रकाश सिंह, CHRI
- ↑ http://www.unhchr.ch/huricane/huricane.nsf/view01/1058F3E39F77ACE5C12574B2004E5CE3?opendocument
- ↑ http://www.hrw.org/campaigns/kashmir/1996/India-07.htm
- ↑ रक्त ज्वार बढ़ती - TIME
- ↑ भारत
- ↑ बीबीसी समाचार | विश्व | दक्षिण एशिया | कश्मीर के अतिरिक्त न्यायिक हत्याएं
- ↑ संघर्ष के पीछे कश्मीर घाटी - कश्मीर के हनन
- ↑ भारत: निरसन अधिनियम सशस्त्र बल विशेष अधिकार
- ↑ संघर्ष के पीछे कश्मीर: न्यायपालिका को कम (ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट जुलाई 1999)
- ↑ 2008 विश्व में स्वतंत्रता - कश्मीर (भारत), शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र आयुक्त उच्च, 02-07-2008
- ↑ 2008 विश्व में स्वतंत्रता - कश्मीर (पाकिस्तान), शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र आयुक्त उच्च 02-07-2008
- ↑ दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता सूचकांक 2009 सीमाओं के बिना संवाददाताएं
- ↑ "The Prevention of Terrorism Act 2002".
- ↑ Kalhan, Anil et al. (2006). Colonial Continuities: Human Rights, Antiterrorism, and Security Laws in India. 20 Colum. J. Asian L. 93. अभिगमन तिथि: 2009-03-24.
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- ↑ http://timesofindia.indiatimes.com/photo.cms?msid=4728348
- ↑ मानव भारत में अपराध में आयोजित बदल तस्करी ज़ी न्यूज़
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- ↑ हमेशा के लिए संदिग्ध: पुलिस बर्बरता सदस्यों की "डिनोटिफाइड जनजातियों" के आघात सहन करने के लिए जारी रखने सीमावर्ती , द हिंदू, खंड 19 - अंक 12, जून 08-21, 2002.
[संपादित करें]बाहरी लिंक्स
- मानव अधिकार संरक्षण समूह (भारत)
- भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता - IFEX
- भारत में घरेलू हिंसा
- भारत में मानव अधिकार कानून
- भारत में मानव अधिकारों के दुरुपयोग सहित पुलिस की स्थिति, प्रताड़ना और हिरासत में मौत
- मानव अधिकार के भारतीय संस्थान (भारत)
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