Tuesday, September 25, 2012

गरीब जिये या मरे, उससे बाजार और राजनीति का क्या!

गरीब जिये या मरे, उससे बाजार और राजनीति का क्या!
Posted by admin on September 25, 2012 in राजनीति | 0 Comment
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बाजार और राजनीति को गरीब से क्या?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
What about your own FDI man, Mamata Di?
Provided Mamata is honest enough to lead anti FDI crusade, she should discard her own finance minister Amit Mitra first who was imported from USA and represents industry via FICCI. Because corporate elements, the extra constitutional elements making policies are most responsible for economic ethnic cleansing. If Mamata is committed to Ma, Mati Manush, she must begin charity at home.

Palash 
 Biswas

गरीब जिये या मरे, उससे बाजार और राजनीति का क्या!
गरीब जिये या मरे, उससे बाजार और राजनीति का क्या!बाजार का तंत्र मुनाफा केंद्रित है। जिन पांच हजार व्यापारी परिवारों के खातिर विदेशी निवेश का विरोध हो रहा है, वे भी बाजार में शामिल हैं और उनका कारोबार मुनाफा कमाने के लिए नहीं है, ऐसा बी कहा नहीं जा सकता। मुद्दा यह है कि गरीबों का हाड़ मांस चूसते रहने का ेकाधिकार किसे हो। राजनीतिक लड़ाई इसी वर्चस्व को लेकर है। बहिष्कृत निनानब्वे फीसद जनता के खिलाफ अश्वमेध के पुरोहित सभी हैं। बाजार और राजनीति से जुड़े तमाम लोग।कारपोरेट लालच के खिलाफ विश्वव्यापी शेयर बाजार कब्जा करो आंदोलन का कोई असर भारत में नहीं पड़ा। न बाकी विश्व में साल भर में ही इसकी कोई खबर बन रही है। राजनीति बाजार के विरुद्ध नहीं है। राजनीति में रहने के लिए, वोट के लिए बाजार के खिलाफ बोलना जरूर पड़ता है। व्यापारियों की हड़ताल हो गयी।भारत बंद भी हो गया। पर विदेशी निवेश के किलाफ राजनीतिक सक्रियता महज बयानबाजी और खबरों तक ही सीमित क्यों है?अभी अभी संसद का मानसून सत्र प्रधानमंत्री के इस्तीफे की भाजपाई मांग की वजह से धुल गया। तो अल्पमत सरकार को गिराकर जनविरोधी बाजार के खिलाफ जिहाद छेड़ने में राजनीति को परहेज क्यों है? संसद के विशेष अधिवेशन की मांग क्यों नही हो रही? 
-एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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