सीमा विवाद को लेकर अग चीन सकारात्मक है तो छायायुद्ध क्यों?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सीमा विवाद को लेकर अग चीन सकारात्मक है तो छायायुद्ध क्यों?तो क्या भारत सरकार अपनी घोषित पूरब की ओर देखो नीति के तहत सीमा विवाद के उलझे मुद्दे को सुलझाकर दक्षिण एशिया को शांति क्षेत्र बनाने की पहल नहीं कर सकता?पंडित जवाहर लाल नेहरु के पंचशील को भारत चीन सीमा विवाद ने धो जरुर दिया है , पर १९६२ के युद्ध की वजह से उसकी प्रसंगिकता खत्म नहीं हो जाती। भारत इस वक्त दुनियाभर में रक्षा तैयारियों, हथियारों के सौदों पर सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाला देश है। अगर चीन के साथ रिश्ते सामान्य हो जाये और दुनिया की दो बड़ी आर्थिक ताकतों का गठबंधन हो जाये, तो इजराइल और अमेरिका को दक्षिण एशिया में शरारत करने का मौका कम ही मिलेगा। इजराइल रक्षा क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा पार्टनर बनकर उभरा है जिससे न सिर्फ अरब दुनिया, वैश्विक मुस्लम बिरादरी बल्कि भारत में रह रहे मुसलमानों की नाराजगी भी मोल ले रहा है भारत।फिलीस्तीन मुद्दे पर भारत की नीतियां बदल गयी है और अभी गाजा में हुए हमले की तो भारत ने निंदा भी नहीं की।भारत की अर्थव्यवस्था पर ईधन और रक्षा खर्च का दबाव सबसे ज्यादा है। इसे देखते हुए कठोर वास्तव का तकाजा है कि भारत चीन के सकारात्मक रुख का फायदा उठाये। रिचर्ड निक्सन ने जैसे चीन के साथ अमेरिका के रिश्तों में सुधार किया, उससे विश् व्यवस्था में अमेरिका की स्थिति मजबूत ही हुई है। चीन से सीमा विवाद को व्यवहारिक तौर पर सुधारने पर भारत के रक्षा बजच पर दबाव घटेगा और घाटे की अर्थव्यवस्था को राहत मिलेगी।चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत.चीन सीमा विवाद को ...आपसी संबंधों के लिए सिर दर्द तथा मुसीबत...करार देते हुए कहा है कि इस विवाद के समाधान के लिए दोनों देशों को झुकने तथा कुछ कदम आगे बढने के लिए तैयार होना होगा।... विदेशी मामले के जानकार हाल में सम्पन्न चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अहम राष्ट्रीय कांग्रेस ने ठीक बाद तथा दिसंबर के प्रथम सप्ताह में समाप्ति भारत.चीन सीमा वार्ता से ठीक पहले इस तरह के बयान को... महत्वपूर्ण... मान रहे हैं।
इससे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति हू जिंताओ ने औपचारिक रूप से 2012 को चीन-भारत मित्रता का वर्ष घोषित किया। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने फैसला किया कि दशकों पुराने सीमा विवाद सहित कई अन्य मुद्दे सुलझाने के लिए राजनीतिक विश्वास बढ़ाने की कोशिश की जाएगी।वाकयुद्ध की स्थिति को टालने के लिए सरकार से लेकर लोगों के स्तर तक विशेष तौर पर ध्यान तथा निर्देश दिए जाने की जरूरत है।
वाकयुद्ध की स्थिति को टालने के लिए सरकार से लेकर लोगों के स्तर तक विशेष तौर पर ध्यान तथा निर्देश दिए जाने की जरूरत है। दोनों तरफ से पारस्परिक विश्वास पर आधारित वस्तुपरक और मित्रवत माहौल पैदा करने के प्रयास होने चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों ओर एक-दूसरे के बारे में कोई गलत छवि न बने।
पंचशील ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सैद्धांतिक व यथार्थ कार्यवाइयों में रचनात्मक योगदान किया।, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने पंचशील की महत्वता की चर्चा इस तरह की। पंचशील का आज भी भारी महत्व है। वह काफी समय से देशों के संबंधों के निपटारे का निर्देशक मापदंड रहा है। एक शांतिपूर्ण दुनिया की स्थापना करने के लिए पंचशील का कार्यावयन करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इतिहास और अंतरराष्ट्रीय यथार्थ से जाहिर है कि पंचशील की जीवनीशक्ति बड़ी मजबूत है। उसे व्यापक जनता द्वारा स्वीकार किया जा चुका है। भिन्न-भिन्न सामाजिक प्रणाली अपनाने वाले देश पंचशील की विचारधारा को स्वीकार करते हैं। लोगों ने मान लिया है कि पंचशील शांति व सहयोग के लिए लाभदायक है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों व मापदंडों से पूर्ण रूप से मेल खाता हैं। आज की दुनिया में परिवर्तन हो रहे हैं। पंचशील का प्रचार-प्रसार आज की कुछ समस्याओं के हल के लिए बहुत लाभदायक है। इसलिए, पंचशील आज भी एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था का आधार है। उस का आज भी भारी अर्थ व महत्व है और भविष्य में भी रहेगा।
सीमा विवाद को लेकर भारत-चीन युद्ध भी लड़ चुके हैं। 1962 के बाद से जम्मू-कश्मीर में 38 हजार वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि चीन के कब्जे में है। इसके अलावा पाकिस्तान ने तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते के तहत 5,180 वर्ग किमी. भारतीय भूमि भी चीन को दे दी है। इसके अलावा पूर्वी क्षेत्र में भी चीन अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किमी. भारतीय भूमि पर भी अपना अवैध दावा करता है।चीन के बढ़ते सैन्य शक्ति विस्तार से मुकाबले के लिए भारत ने अपनी रक्षा दीवार मजबूत करने की योजना में तेजी ला दी है। इस कड़ी में रक्षा मंत्रालय ने चीन से सटे सरहदी इलाकों में सैन्य ढांचा मजबूत करने की व्यापक योजना को आगे बढ़ाया है। इसमें सीमा पर नए सैन्य ठिकाने बनाना, करीब एक लाख सैनिकों की तैनाती और सामरिक अस्त्रों की मौजूदगी बढ़ाना शामिल है।सूत्रों के मुताबिक 12वीं योजना के लिए तैयार इस विस्तार कार्यक्रम में पर्वतीय इलाकों के लिए खास तौर पर दो स्ट्राइक डिवीजन बनाने और लद्दाख क्षेत्र में नई ब्रिगेड खड़ी करना भी प्रस्तावित है। इसके लिए अगले पांच से छह वर्षो में 90 हजार से ज्यादा सैनिकों की भर्ती की जानी है। वहीं पूर्वी मोर्चे पर तोपखाने की मौजूदगी भी बढ़ाई जानी है।सेना मुख्यालय सूत्रों के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने व्यापक क्षमता विस्तार की 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक की योजना को मंजूरी दे दी है और अब वित्त मंत्रालय की अनुमति का इंतजार है।सूत्र बताते हैं कि जल और थल पर खास सैन्य अभियानों की जरूरत के लिए सेना अपने 54 इंफेंट्री डिवीजन को रैपिड एंफीबियस फोर्स में बदलने की तैयारी भी शुरू कर चुकी है। साथ ही इस कड़ी में 91 इंफेंट्री ब्रिगेड को उभयचर ब्रिगेड में बदला जा रहा है। इसके लिए सेना मुख्यालय अंडमान-निकोबार में मौजूद सैन्य ढांचे की भी ताकत बढ़ा रहा है।चीन के मुकाबले पूर्वी सीमा पर ढांचागत क्षमताएं सुधारने के लिए 'इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्लान फॉर इस्टर्न थियेटर' को भी सेना मुख्यालय तैयार कर चुका है।
राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन की चीन यात्रा से पहले भारत के साथ सीमा विवाद के मुद्दे को लेकर चीनी नेताओं का रूख आज सकारात्मक नजर आया। चीन का कहना है कि इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की कई बातें समान हैं और वार्ता में काफी सकारात्मक प्रगति हुई है। अगले सप्ताह सोमवार से शुरू हो रहे मेनन के दो दिवसीय दौरे पर पूछे गए सवालों के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ली ने जानकारी दी, 'वर्षों से चीन-भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में सामान्य तौर पर परिस्थिति शांतिपूर्ण और स्थाई ही रही है।' उन्होंने कहा, 'सीमा विवाद को शांतिपूर्ण और दोस्ताना बातचीत के जरिए हल करने के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कई समानताएं हैं। विशेष प्रतिनिधियों की बैठकों में भी साकारात्मक प्रगति हुई है।' सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत-चीन के बीच अभी तक 15 दौर की वार्ता हो चुकी है।
भारत और चीन दोनों प्राचीन सास्कृतिक देश हैं। दोनों का लंबा इतिहास और संस्कृति है। भारत और चीन दोनों नई उभरती अर्थव्यवस्था हैं और सार्विक विकास दोनों की सामान अभिलाषा है। 21वीं सदी में प्रवेश के बाद दोनों का तेज विकास हुआ। युद्ध की गर्माहट के बाद अगर आज के हालात देखे जाएं तो दोनों के बीच संपर्क निरंतर मजबूत हो रहे हैं और आपसी राजनीतिक विश्वास भी स्थिर रूप से प्रगाढ़ हो रहा है।भारत चीन का एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी बनकर उभर रहा है और चीन अक्सर संयुक्त राष्ट्र में भी भारत का विरोध करता है। भारत के लिए चीन के साथ द्विपक्षीय संबंधों को अच्छा रखने के प्रयास के साथ साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए पूरी प्रतिबद्धता और मजबूती से अपने पक्ष को रखना आवश्यक है।सीमित ऊर्जा संसाधनों पर अधिकार करना हो या खाद्यान्न सुरक्षा की व्यवस्था, दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले और दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश के राष्ट्रहितों का टकराव जगजाहिर है। इसी तरह हिमालयी भू-भाग में पर्यावरण के नाजुक सतुलन के संरक्षण या इसे जोखिम में डालने वाले मुद्दे पर भी चीन और भारत में सहमति नहीं। भूमंडलीकरण के इस दौर में बड़ा बाजार हो या सस्ते श्रमिकों की फौज, इनमें से किसी एक को ही प›िमी ताकतवर देश अपने हित साधने के लिए चुन सकते हैं। जहां तक सामरिक-भू-राजनीतिक आयाम का प्रश्न है, वहा भी भारत और चीन विपरीत ध्रुव पर ही नज़र आते हैं। चीन ने बड़े कौशल से नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में घुसपैठ कर भारत की घेराबदी पूरी कर ली है। पाकिस्तान को एटम बम संपन्न बनाने में चीन की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि साम्यवादी विचारधारा का अनुसरण करने का दावा करने वाला चीन कंट्टरपंथी इस्लामी देशों का समर्थन भारत को अड़चन और असमंजस में डालने के लिए करता रहा है।
इसके विपरीत, चीन के साथ 1962 में हुए युद्ध के जख्मों को कुरेदने की कोशिशों के बीच भारत ने दो टूक कहा है कि अब वक्त बदल चुका है और वह अपनी हर इंच जमीन की हिफाजत में सक्षम है। इस युद्ध की 50वीं बरसी से पहले रक्षा मंत्री एके एंटनी ने कहा कि 2012 का भारत पहले वाला नहीं है और उसकी क्षमताएं 1962 के मुकाबले कहीं अधिक हैं।रक्षा मंत्री ने पूर्वोत्तर में सुरक्षा ढाचे की मजबूती में अपेक्षा के मुकाबले कमी की बात तो मानी, लेकिन साथ ही कहा कि इसमें पहले के मुकाबले काफी सुधार आया है। दो दिन बाद 1962 में हुए चीनी हमले के पचास साल पूरे हो रहे हैं, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर में 38 हजार वर्ग किमी भारतीय भूमि चीन के कब्जे में है। इसके अलावा पाकिस्तान ने तथाकथित चीन-पाकिस्तान सीमा समझौते के तहत 5,180 वर्ग किमी क्षेत्र की भारतीय जमीन भी चीन को दे रखी है। अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किमी भारतीय भूमि पर भी चीन अपना अवैध दावा करता है। सैन्य कमाडरों की बैठक के बाद मीडिया के सवालों से रूबरू एंटनी ने कहा कि पूर्वोत्तर में ढाचागत विस्तार पर पहले माकूल ध्यान नहीं दिया गया था, लेकिन अब तेजी से सुरक्षा ढाचे, साधनों व संख्याबल का विस्तार हो रहा है।
एंटनी ने जोर देकर कहा कि हम चीन के साथ लंबित मामलों को सुलझाने के लिए बातचीत करने के साथ ही अपनी सेनाओं को बेहतरीन शस्त्रास्त्रों व साधनों से लैस करने पर भी ध्यान देते रहेंगे। चीनी हैकरों की सेंधमारी को लेकर दुनियाभर में उठ रही चिंताओं के बीच साइबर सुरक्षा इंतजामों के बारे में पूछे जाने पर रक्षा मंत्री का कहना था कि इस मोर्चे पर शुरुआती देर के बावजूद सुरक्षा तंत्र मजबूत बनाने का काम तेजी से हो रहा है। सैन्य कमाडरों की हर साल दो बार होने वाली उच्चस्तरीय बैठक में प्राथमिकताओं से जुड़े एक सवाल पर एंटनी ने स्पष्ट किया कि इसमें सेनाओं की खामियों की समीक्षा कर उनके समाधान तलाशने पर जोर होता है।
अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चीन को नक्शे में अपना भूभाग दिखाए जाने पर भारत की जवाबी कार्रवाई के बीच चीन ने सीमा विवाद को द्विपक्षीय रिश्तों के लिए सिरदर्द और समस्या बताया है। नई दिल्ली आए कम्यूनिस्ट पार्टी आफ चाइना [सीपीसी] के वरिष्ठ नेता ली ने बेबाकी से कहा कि इस मसले पर दोनों पक्षों को झुकना होगा और आधा-आधा सफर तय करना होगा।चाइनीज पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कांफ्रेंस की नेशनल कमेटी की स्थायी समिति के सदस्य ली जुनरु ने बुधवार को एक प्रेस कान्फ्रेंस में यह टिप्पणी की। उन्होंने माना कि सीमा विवाद ने द्विपक्षीय संबंधों के विकास की राह में रोड़ा अटका दिया है। जितनी जल्दी से जल्दी हो सके, नया अध्याय लिखने के लिए हमें पन्ने पलटने की कोशिश करनी चाहिए।सीपीसी के लिए नई पौध तैयार करने वाली सेंट्रल पार्टी स्कूल के उपाध्यक्ष रहे ली ने सीमा विवाद के जल्द समाधान की जरूरत बताई। ताकि रिश्ते मजबूत बनाने की राह में कोई बाधा न रह जाए। गौरतलब है कि चीन ने अपने नए ई पासपोर्ट में अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को अपने भूभाग के तौर पर दिखाया है। जवाब में भारत ने भी ऐसे वीजा जारी किए जिनमें अक्साई चीन को अपने हिस्से के तौर पर दिखाया गया। इसको लेकर दोनों देशों में कूटनीतिक तनाव फिर उभर आया। सीपीसी की 18वीं कांग्रेस के बारे में ली ने कहा कि आने वाले वर्षो में कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार आर्थिक और राजनीतिक सुधारों को आगे बढ़ाएगी। एक प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली आए ली ने यहां कांग्रेस, भाजपा, माकपा और भाकपा के नेताओं से मुलाकात की। दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में चीन की दखलंदाजी के आरोपों से इंकार करते हुए ली ने स्पष्ट किया कि उनका देश स्वयं पश्चिमी देशों के हमलों का शिकार रहा है और हम दूसरों को उसी तरह पीड़ित नहीं बनाना चाहते।
चीन की नई पासपोर्ट सेवा में सीमा के गलत दावों पर भारत जवाबी कार्रवाई के साथ इसे सीमा विवाद पर अगले माह होने वाली विशेष प्रतिनिधि स्तर वार्ता में भी उठाने की तैयारी कर रहा है। नई व्यवस्था के तहत चीन अपने नागरिकों को नक्शों के साथ पासपोर्ट जारी कर रहा है जिसमें अरुणाचल व अक्साइ चिन को चीन के भूभाग का हिस्सा बताया जा रहा है। इसके जवाब में भारत ने भी चीन के नागरिकों को वीजा के साथ पासपोर्ट में अपने नक्शे की मुहर लगानी शुरू कर दी है।सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत ने कुछ समय पूर्व लागू हुई इस व्यवस्था पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। चीन के अधिकारियों ने जब व्यवस्था में कोई सुधार नहीं की तो भारत ने जवाब में यह कदम उठाया। इसमें अक्साइ चिन व अरुणाचल प्रदेश भारतीय क्षेत्र में हैं। नई ई-पासपोर्ट व्यवस्था में चीन ने फिलीपींस, वियतनाम, जापान सहित अन्य कई मुल्कों के साथ अनसुलझे सीमा क्षेत्रों को भी अपना ही हिस्सा दिखाया है। अरुणाचल प्रदेश व अक्साइचिन को लेकर चीन 1993 और 1996 में भारत के साथ समझौता कर चुका है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान करेगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार [एनएसए] शिवशकर मेनन ने चीन के साथ हालिया 'मानचित्र विवाद' को तवज्जो नहीं दी है। सोमवार को उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सीमा वार्ता के नजरिए से गौर किया जाना चाहिए। मेनन ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा दिखाने वाले ई-पासपोर्ट जारी करने पर कहा, 'मुझे लगता है कि इन बातों पर खास नजरिए से देखने की जरूरत है।'
शिवशंकर मेनन ने कहा, 'हमारे सीमा के स्थान को लेकर मतभेद हैं। हम उनसे विचार-विमर्श कर रहे हैं। हम इससे निपटने की दिशा में आगे बढ़े हैं।' एनएसए ने कहा कि चीनी दस्तावेज सीमा के उनके रूप को दिखाते हैं, जबकि भारतीय दस्तावेज अपने। मेनन ने ये टिप्पणिया ऐसे समय की हैं, जब विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद चीन के कदम को अस्वीकार्य बता चुके हैं। 'ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन' में चीन पर छपी पुस्तकों के विमोचन के बाद उन्होंने पूछा कि क्या बदला है। सीमा को लेकर चीन का अपना नजरिया है। उन्होंने बताया कि भारत और चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए तीन स्तरीय प्रक्रिया पर सहमत हुए हैं। वर्तमान में हम इसके दूसरे स्तर में हैं। हम सीमा तय करने की रूपरेखा पर सहमति बनाने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। उम्मीद है कि तीसरे और अंतिम चरण में दोनों देशों के बीच सीमा पर सहमति बन जाएगी। उन्होंने कहा कि दोनों देश निवेश व सह-उत्पादन को लेकर आर्थिक संबंध बढ़ाने की प्रक्रिया में थे। हालांकि, दोनों देशों के संबंधों ने अवसरों की जटिल तस्वीर पेश की है।
भारत का कहना है कि सीमा विवाद अरुणाचल प्रदेश के 4,000 किलोमीटर क्षेत्र पर है जबकि चीन इसे महज 2,000 किलोमीटर तक ही सीमित कर देता है। चीन में अरुणाचल प्रदेश के इस क्षेत्र को दक्षिणी तिब्बत के नाम से जाना जाता है। होंग ने कहा, 'इस मुद्दे का पारदर्शी, तर्कपूर्ण और परस्पर स्वीकार्य हल निकालने के लिए चीन शांतिपूर्ण, मित्रवत, समान विमर्श, परस्पर सम्मान और परस्पर समझ के आधार पर द्विपक्षीय वार्ता को आगे बढ़ाने को तैयार है।' उन्होंने कहा, 'जब तक सीमा विवाद पर अंतिम निर्णय नहीं आता, चीन दोनों देशों की सीमा पर शांति और स्थायित्व बनाए रखने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करना चाहेगा।'
इससे पहले होंग ने कहा था कि मेनन का बीजिंग दौरा चीन के लिए बहुत महत्व रखता है। चीन के नए नेतृत्व के साथ भारत के औपचारिक संपर्क की शुरुआत करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन तीन दिसंबर को चीन के दो दिवसीय दौरे पर यहां आ रहे हैं। मेनन के दौरे की मुख्य फोकस द्विपक्षीय संबंध होंगे। इस दौरान वे सीमा विवाद संबंधी वार्ता पर अपने समकक्ष दाई बिंगगुबो से भी मिलेंगे।
दूसरी ओर, अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि अमेरिका को भारत और चीन जैसी उभरती शक्तियों के साथ अपने संबंधों का सफलतापूर्वक निर्वाह करने की जरूरत है। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि ओबामा प्रशासन द्वारा एशिया में सैन्य, कूटनीतिक और वाणिज्यिक रूप से अमेरिका को मजबूत करने का मतलब चीन को 'रोकना' नहीं है।
सीमा विवाद
भारतीय पक्ष
ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया। यह भी मानना है कि इस सीमा रेखा का निर्धारण हिमालय के सर्वोच्च शिखर तक किया गया है।
चीनी पक्ष
मैकमोहन रेखा को अवैध मानता है लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की वास्तविक स्थिति कमोबेश यही है। इस क्षेत्र में हिमालय प्राकृतिक सीमा का निर्धारण नहीं करता क्योंकि अनेक नदियों यहां से निकलती हैं और सीमाओं को काटती हैं
विवाद के बिंदु
सिक्किम-तिब्बत सीमा को छोड़कर लगभग पूरी भारत-चीन सीमा रेखा विवादित हैं।
अक्साई चिन: जम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में विशाल निर्जन इलाका है। भारत का दावा लेकिन वास्तव में चीन का नियंत्रण है।
अरुणाचल प्रदेश: चीन का दावा लेकिन नियंत्रण भारत का है।
अन्य विवादित क्षेत्र
सिक्किम-तिब्बत-पश्चिम बंगाल सीमा के मिलन बिंदु सुमदोरोंग चू एलएसी में पांच या छह ऐसे बिंदु हैं जो दोनों देशों के बीच विवादित हैं।
वर्तमान स्थिति
पूर्व में हुए समझौते के आधार पर वर्तमान में दोनों पक्ष एलएसी पर निगरानी करते हैं और विवादित स्थलों पर गश्त करने के दौरान वहां फौजी कैप, बेल्ट और सिगरेट पैक छोड़ जाते हैं। इसका मकसद दूसरे को अपनी उपस्थिति दर्ज कराना होता है।
यदि गश्त के दौरान दोनों पक्ष आपस में मिल जाते हैं तो वे अपने हथियारों को रख देते हैं। एक-दूसरे से विनम्रता से पेश आते हैं और कहते हैं कि वे अपने क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं।
जल विवाद
ब्रम्हपुत्र नदी : चीन यारलुंग सांग्पो (ब्रम्हपुत्र नदी का तिब्बती नाम) नदी की धारा को मोड़कर अपने उत्तर-पूर्व या उत्तर पश्चिम में जिनजियांग प्रांत तक जल पहुंचाना चाहता है। भारत के भारी विरोध और दबाव के बाद उसने अपनी योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया है।
वीजा विवाद को लेकर रक्षा संबंधों में आए तनाव के बाद भारत और चीन संयुक्त सैन्य अभ्यास शुरू कर सकते हैं। इस संबंध में फैसला अगले वर्ष जनवरी में होने वाली वार्षिक रक्षा वार्ता [एडीडी] में किया जाएगा।सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि भारत और चीन एडीडी में सैन्य अभ्यास बहाल किए जाने के बारे में विचार विमर्श करेंगे। उसके बाद ही इस संबंध में अंतिम फैसला किया जाएगा।उल्लेखनीय है कि भारत और चीन अब तक दो सैन्य अभ्यास कर चुके हैं। आखिरी अभ्यास 2008 में कर्नाटक के बेलगांव में हुआ था। चीन द्वारा वर्ष 2010 में तत्कालीन उत्तरी सैन्य कमांडर ले. जनरल बीएस जसवल को आधिकारिक बीजिंग यात्रा की अनुमति नहीं दिए जाने के बाद भारत ने उसके साथ सैन्य आदान प्रदान बंद कर दिया था। साथ ही तीसरे सैन्य अभ्यास में शामिल होने से भी इंकार कर दिया था।
हिलेरी ने फोरन पॉलिसी पत्रिका समूह द्वारा आयोजित 'परिवर्तनकारी रूझान 2013' संगोष्ठी में कल दिए गए अपने भाषण में कहा, 'हमें चीन और भारत जैसी उभरती शक्तियों के साथ अपने संबंधों का सफलतापूर्वक निर्वाह करने की जरूरत है।' विदेश नीति के मुद्दे पर अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, ''वैश्विक शक्ति के रूप में चीन का उदय एक दोराहे पर पहुंच रहा है। इसका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि चीन किस तरह, आर्थिक चुनौतियों, पड़ोसियों के साथ मतभेदों और अपने राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था में व्याप्त तनाव से निपटता है।' चीन एशिया प्रशांत क्षेत्र में मजबूत होती अमेरिकी उपस्थिति को लेकर लगातार अपनी चिंताएं जाहिर करता आया है।
हिलेरी ने कहा कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की मजबूत स्थिति, चीन के लिए खतरा नहीं है। हिलेरी ने कहा, 'इनमें से कुछ भी रोकथाम के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में नियमों पर आधारित निर्देशों तक पहुंचना है। ताकि आने वाले दशकों के लिए यहां शांति और समृद्धि का प्रादुर्भाव हो।' हिलेरी ने कहा कि अमेरिका-चीन संबंधों को आगे ले जाना विशेष रूप से महत्वूपर्ण है लेकिन यह विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण भी है।' उन्होंने कहा कि अमेरिका अर्थशास्त्र को अपनी विदेश नीति के केंद्र में ला रहा है।
विदेश मंत्री ने कहा कि अर्थशास्त्र तेजी से अंतर्राष्ट्रीय मामलों को आकार दे रहा है। 'भारत और ब्राजील जैसे देशों का प्रभाव उनके आकार की वजह से तो बढ़ ही रहा है लेकिन सैन्य ताकत से अधिक उनकी अर्थव्यस्था के बढ़ते आकार की वजह से उनकी ताकत अधिक बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि अमेरिका को अलग-अलग क्षेत्रों की शक्तियां जैसे ब्राजील एवं मैक्सिको, भारत एवं इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की जैसे देशों के साथ संबंधों का विकास करना होगा क्योंकि इन देशों का अपने क्षेत्रों में और वैश्विक मंच पर प्रभाव बढ़ रहा है।
भारत को चीन से मुकाबले के लिए तैयार रहना चाहिए और उसे अपनी सैन्य तैयारियों को तेजी और मजबूती देनी होगी। भले ही चीन शांतिपूर्ण सहयोग की बात करता हो, परंतु उसका दोहरा रवैया भारत की परेशानी बढ़ा रहा है। चीन लगातार अपने लोगों के मन में भारत के खिलाफ जहर भर रहा है।
राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बनी नरेश चंद्रा टास्क फोर्स ने भारत के प्रति चीन के दोहरे रवैये पर चिंता जताते हुए सेना को मजबूती प्रदान करने की सिफारिश की है।
एक अखबार में प्रकाशित नरेश चंद्रा समिति की सिफारिशों में यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की कोई जरूरत नहीं है। इसकी जगह तीनों सेनाओं के प्रमुखों की समिति से एक चेयरमैन चीफ ऑफ स्टाफ चुनने की सिफारिश भी इस समिति ने की है। सिफारिश मानी गई तो इस तरह से देश में चार चार सितारों वाले जनरल हो जाएंगे। समिति की सिफारिश के मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा ढाचा तैयार किया जाना चाहिए जो इंटेलीजेंस और सैन्य गतिविधियों को साथ लेकर चलने वाला हो। समिति ने रक्षा फर्म को ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया पर दोबारा विचार करने को भी कहा है। डीआरडीओ प्रमुख और रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार के पदों को अलग करने, रक्षा मंत्रालय में सेना के अधिकारियों की संयुक्त सचिव के स्तर तक नियुक्ति की बात भी समिति ने की है।
वहीं, चीन भारत के प्रति अपने पूर्वाग्रह नहीं छोड़ रहा है और वह अपने लोगों को भारत के खिलाफ भड़का रहा है। हाल ही में भारतीय राजदूत की मौजूदगी में बीजिंग की एक आर्ट गैलरी में एक फिल्म दिखाई गई। जिसमें भारत और भारतीय लोकतंत्र का बेहद गंदा चित्रण किया गया है। इसमें गुजरात के दंगों को भी दिखाया गया है। भारत ने इस वीडियो पर आपत्ति जाहिर की है।
चीन व भारत विश्व के दो बड़े विकासशील देश हैं। दोनों ने विश्व की शांति व विकास के लिए अनेक काम किये हैं। चीन और उसके सब से बड़े पड़ोसी देश भारत के बीच लंबी सीमा रेखा है। लम्बे अरसे से चीन सरकार भारत के साथ अपने संबंधों का विकास करने को बड़ा महत्व देती रही है। इस वर्ष की पहली अप्रैल को चीन व भारत के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षगांठ है।
वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। इस तरह भारत चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने वाला प्रथम गैरसमाजवादी देश बना। चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की औपचारिक स्थापना के बाद के पिछले 55 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों से गुजरे। उनका विकास आम तौर पर सक्रिय व स्थिर रहा, लेकिन, बीच में मीठे व कड़वी स्मृतियां भी रहीं। इन 55 वर्षों में दोनों देशों के संबंधों में अनेक मोड़ आये। आज के इस कार्यक्रम में हम चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों का सिंहावलोकन करेंगे।
प्रोफेसर मा जा ली चीन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध अनुसंधान संस्थान के दक्षिणी एशिया अनुसंधान केंद्र के प्रधान हैं। वे तीस वर्षों से चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों के अनुसंधान में लगे हैं। श्री मा जा ली ने पिछले भारत-चीन संबंधों के 55 वर्षों को पांच भागों में विभाजित किया है। उन के अनुसार, 1950 के दशक में चीन व भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं कीं और उनकी जनता के बीच भी खासी आवाजाही रही। दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध थे। लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में प्रवेश कर गये। इस के बावजूद दोनों के मैत्रीपूर्ण संबंध कई हजार वर्ष पुराने हैं। इसलिए, यह शीतकाल एक ऐतिहासिक लम्बी नदी में एक छोटी लहर की तरह ही था। 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया , तो दोनों देशों की सरकारों के उभय प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की बहाली हुई। 1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों में गर्माहट आ चुकी थी। हालांकि वर्ष 1998 में दोनों देशों के संबंधों में भारत द्वारा पांच मिसाइलें छोड़ने से फिर एक बार ठंडापन आया। पर यह तुरंत दोनों सरकारों की कोशिश से वर्ष 1999 में भारतीय विदेशमंत्री की चीन यात्रा के बाद समाप्त हो गया। अब चीन-भारत संबंध कदम ब कदम घनिष्ठ हो रहे हैं।
इधर के वर्षों में चीन-भारत संबंधों में निरंतर सुधार हो रहा है। चीन व भारत के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी है। भारत स्थित भूतपूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, अब चीन-भारत संबंध एक नये काल में प्रवेश कर चुके हैं। इधर के वर्षों में, चीन व भारत के नेताओं के बीच आवाजाही बढ़ी। वर्ष 2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेई ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय संबंध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय संबंधों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया। चीन व भारत के संबंध पुरानी नींव पर और उन्नत हो रहे हैं।
[विदेश नीति]] पर चीन व भारत बहुध्रुवीय दुनिया की स्थापना करने का पक्ष लेते हैं, प्रभुत्ववादी व बल की राजनीति का विरोध करते हैं और किसी एक शक्तिशाली देश के विश्व की पुलिस बनने का विरोध करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में मौजूद वर्तमान विवादों का किस तरह निपटारा हो और देशों के बीच किस तरह का व्यवहार किया जाये ये दो समस्याएं विभिन्न देशों के सामने खड़ी हैं। चीन व भारत मानते हैं कि उनके द्वारा प्रवर्तित किये गये शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उन लक्ष्यों तथा सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करते हैं, जिनका दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा पालन किया जाना चाहिए।
शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत यानी पंचशील चीन, भारत व म्येनमार द्वारा वर्ष 1954 के जून माह में प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शांति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान है,और आज तक दोनों देशों की जनता की जबान पर है। देशों के संबंधों को लेकर स्थापित इन सिद्धांतों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान किया जाये, एक- दूसरे पर आक्रमण न किया जाये , एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल न दी जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बरकारार रखा जाये। ये सिद्धांत विश्व के अनेक देशों द्वारा स्वीकार कर लिये गये हैं और द्विपक्षीय संबंधों पर हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों व दस्तावेजों में दर्ज किये गये हैं। पंचशील के इतिहास की चर्चा में भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत श्री छन रे शन ने बताया, द्वितीय विश्वॉयुद्ध से पहले, एशिया व अफ्रीका के बहुत कम देशों ने स्वतंत्रता हासिल की थी। लेकिन, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, उपनिवेशवादी व्यवस्था भंग होनी शुरू हुई। भारत व म्येनमार ने स्वतंत्रता प्राप्त की और बाद में चीन को भी मुक्ति मिली। एशिया में सब से पहले स्वतंत्रता प्राप्त करने वाले देश होने के नाते, उन्हें देशों की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडला का कायम रहना बड़ा आवश्यक लगा और उन्हें विभिन्न देशों के संबंधों का निर्देशन करने के सिद्धांत की जरुरत पड़ी। इसलिए, इन तीन देशों के नेताओं ने मिलकर पंचशील का आह्वान किया।
शांति व विकास की खोज करना वर्तमान दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है। पंचशील की शांति व विकास की विचारधारा ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों के स्वस्थ विकास को आगे बढ़ाया है और भविष्य में भी वह एक शांतिपूर्ण, स्थिर, न्यायपूर्ण व उचित नयी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना में अहम भूमिका अदा करेगी।
दोनों देशों के संबंधों को आगे विकसित करने के लिए वर्ष 2000 में पूर्व भारतीय राष्ट्रपति नारायणन ने चीन की राजकीय यात्रा के दौरान, पूर्व चीनी राष्ट्राध्यक्ष च्यांग ज मिन के साथ वार्ता में भारत और चीन के जाने-माने व्यक्तियों के मंच के आयोजन का सुझाव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव पर श्री च्यांग ज मिन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। दोनों सरकारों ने इस मंच की स्थापना की पुष्टि की। मंच के प्रमुख सदस्य, दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक व तकनीक तथा सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों के जाने माने व्यक्ति हैं। मंच के एक सदस्य श्री च्यो कांग ने मंच का प्रमुख ध्येय इस तरह समझाया, इस मंच का प्रमुख ध्येय दोनों देशों के विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने व्यक्तियों द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के विकास के लिए सुझाव प्रस्तुत करना और सरकार को परामर्श देना है। यह दोनों देशों के बीच गैरसरकारी आवाजाही की एक गतिविधियों में से एक भी है। वर्ष 2001 के सितम्बर माह से वर्ष 2004 के अंत तक इसका चार बार आयोजन हो चुका है। इसके अनेक सुझावों को दोनों देशों की सरकारों ने स्वीकृत किया है। यह मंच सरकारी परामर्श संस्था के रूप में आगे भी अपना योगदान करता रहेगा।
हालांकि इधर चीन व भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की और चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ के साथ एक संयुक्त घोषणापत्र जारी किया। घोषणापत्र में भारत ने औपचारिक रूप से कहा कि भारत तिब्बत को चीन का एक भाग मानता है। इस तरह भारत सरकार ने प्रथम बार खुले रूप से किसी औपचारिक दस्तावेज के माध्यम से तिब्बत की समस्या पर अपने रुख पर प्रकाश डाला, जिसे चीन सरकार की प्रशंसा प्राप्त हुई।
इस के अलावा, चीन व भारत के बीच सीमा समस्या भी लम्बे अरसे से अनसुलझी रही है। इस समस्या के समाधान के लिए चीन व भारत ने वर्ष 1981 के दिसम्बर माह से अनेक चरणों में वार्ताएं कीं और उनमें कुछ प्रगति भी प्राप्त की। वर्ष 2003 में पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसके पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे ज्ञापन कम ही जारी हुए हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों द्वारा सम्पन्न इस ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायीं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधियों को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल रहा। चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। सीमा समस्या के हल के लिए चीन व भारत के विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर सलाह-मश्विरा जारी है। वर्ष 2004 में चीन और भारत ने सीमा समस्या पर यह विशेष प्रतिनिधि वार्ता व्यवस्था स्थापित की। भारत स्थित पूर्व चीनी राजदूत च्यो कांग ने कहा, इतिहास से छूटी समस्या की ओर हमें भविष्योन्मुख रुख से प्रस्थान करना चाहिए। चीन सरकार ने सीमा समस्या के हल की सक्रिय रुख अपनाई है। चीन आशा करता है कि इसके लिए आपसी सुलह औऱ विश्वास की भावना के अनुसार, मैत्रीपूर्ण वार्ता के जरिए दोनों को स्वीकृत उचित व न्यायपूर्ण तरीकों की खोज की जानी चाहिए। विश्वास है कि जब दोनों पक्ष आपसी विश्वास , सुलह व रियायत देने की अभिलाषा से प्रस्थान करेंगे तो चीन-भारत सीमा समस्या के हल के तरीकों की खोज कर ही ली जाएगी।
इस समय चीन व भारत अपने-अपने शांतिपूर्ण विकास में लगे हैं। 21वीं शताब्दी के चीन व भारत प्रतिद्वंदी हैं और मित्र भी। अंतरराष्ट्रीय मामलों में दोनों में व्यापक सहमति है। आंकड़े बताते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ में विभिन्न सवालों पर हुए मतदान में अधिकांश समय, भारत और चीन का पक्ष समान रहा। अब दोनों देशों के सामने आर्थिक विकास और जनता के जीवन स्तर को सुधारने का समान लक्ष्य है। इसलिए, दोनों को आपसी सहयोग की आवश्यकता है। अनेक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
चीन-भारत संबंधों के भविष्य के प्रति श्री मा जा ली बड़े आश्वस्त हैं। उन्होंने कहा, समय गुजरने के साथ दोनों देशों के बीच मौजूद विभिन्न अनसुलझी समस्याओं व संदेहों को मिटाया जा सकेगा और चीन व भारत के राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ होंगे। इस वर्ष मार्च में चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ भारत की यात्रा पर जा रहे हैं। उनके भारत प्रवास के दौरान चीन व भारत दोनों देशों के नेता फिर एक बार एक साथ बैठकर समान रुचि वाली द्विपक्षीय व क्षेत्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श करेंगे। श्री मा जा ली ने कहा, भविष्य में चीन-भारत संबंध और स्वस्थ होंगे और और अच्छे तरीके से आगे विकसित होंगे । आज हम देख सकते हैं कि चीन व भारत के संबंध लगतार विकसित हो रहे हैं। यह दोनों देशों की सरकारों की समान अभिलाषा भी है। दोनों पक्ष आपसी संबंधों को और गहन रूप से विकसित करने को तैयार हैं। मुझे विश्वास है कि चीन-भारत संबंध अवश्य ही और स्वस्थ व मैत्रीपूर्ण होंगे और एक रचनात्मक साझेदारी का रूप लेंगे।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति नारायण ने कहा, मेरा विचार है कि चीन और भारत को द्विपक्षीय मैत्रीपूर्ण संबंधों को और गहरा करना चाहिए। हमारे बीच सहयोग दुनिया के विकास को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका अदा कर सकेंगे।
दोनों तरफ से पारस्परिक विश्वास पर आधारित वस्तुपरक और मित्रवत माहौल पैदा करने के प्रयास होने चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों ओर एक-दूसरे के बारे में कोई गलत छवि न बने।
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