Saturday, November 24, 2012

उग्रतम हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस को मोदी का क्या डर!

उग्रतम हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस को मोदी का क्या डर!

भाजपा में जो हो रहा है, वह अनायास हो रहा है, अब ऐसा नहीं लगता। हिंदुत्व का पुनरूत्थान का किस्सा ही खुले बाजार के​ ​ उत्थान से जुड़ा हुआ है। हिंदुत्व का विरोध, लेकिन खुले बाजार और पूंजी के आगे आत्मसमर्पण की उपभोक्ता संस्कृति ने धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के बारह बजा दिये। इससे मोदी का उत्थान कैसे रोका जा सकता है दूसरी ओर, जाहिरा तौर पर खुदरा कारोबार में विदेसी पूंजी के विरोध वोट बैंक के लिहाज से करने के बावजूद संघ  परिवार न कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ है और न लोकतंत्र के हक में। भारतीय संविधान के बदले उसे मनुस्मृति के मुताबिक राजधर्म निभाना है। खुले बाजार से उसे कोई तकलीफ नहीं है, क्योकि मनुस्मृति व्यवस्था तो वर्चस्ववादी है और बाजार भी​​ वर्चस्ववादी है। अब कांग्रेस जब उसीके एजंडे को अमल में ला रही हो, तब उसे कांग्रेस से क्या तकलीफ हो सकती है? दिवंगत बालासाहेब​ ​ ठाकरे ने  इंदिरा के आपात काल से लेकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के सर्वाधिनायक प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने तक की मुहिम में कांग्रेस का खूब साथ दिया। संघ ने राममंदिर का ताला खुलवाने वाले राजीव गांधी को जिताने के लिए १९८४ के चुनाव में नारा दिया ही था कि जो हिंदू हितों की रक्षा करें, वोट उसीको। फिर पिछले लोकसभा चुनाव में तो शंकराचार्यों, बाबा रामदेव, ब्राह्मणसमाज और हिंदुत्ववादी ताकतों नें मिलकर मनमोहन के हक में जनादेश तैयार करवाया था। भाजपा में जो हो रहा है और आर्थिक सुधार लागू करने में कांग्रेस ने जो आक्रामकता हिंदू राष्ट्रवाद की सुनामी ​​खड़ा करके दिखा रही है, संघ परिवार के कारपोरेट संबंधों के मद्देनजर उसपर भी विचार होना चाहिए। आम लोगों को भरमाने के लिए​ ​ सब्सिडी सीधे बैंक खाते में डालने का कदम उठाकर कांग्रेस ने अपने चुनावी इरादे जगजाहिर भी कर दिये।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

उग्रतम हिंदुत्व की राह पर कांग्रेस को मोदी का क्या डर!चुनाव सर्वेक्षण का गमित भला कुछ हो, उग्र हिंदुत्व और आर्थिक विकास का गुजरात माडल अब सर्व भारतीय है। लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, वामपंथी और अंबेडकरवादी पाखंड से सिख नरसंहार और गुजरात दंगों का न्याय नहीं हो पाया। बहुसंख्यक बहिष्कृत जनसमुदाय हिंदुत्व की पैदल सेना है। ऐसे में मोदी को रोकेगा कौन माई का लाल?

गुजरात विधानसभा चुनाव में राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैट-ट्रिक लगाएंगे। खास बात यह है कि उनकी जीत पहले के मुकाबले और दमदार होगी। एक न्यूज चैनल का आकलन है कि इस चुनाव में बीजेपी को 124 सीटें मिलेंगी। यह 2007 के मुकाबले सात ज्यादा है। गुजरात में विधानसभा की कुल 182 सीटें हैं। सर्वे के मुताबिक, कांग्रेस को इस बार सिर्फ 51 सीटें ही मिलेंगी जो पिछली बार के मुकाबले आठ कम है। 2007 में उसे 59 सीटें मिली थीं। वोट पर्सेंट के मामले में भी बीजेपी को कांग्रेस से काफी आगे बताया गया है।

लेकिन मोदी के जीतने से कांग्रेस के राष्ट्रीय समीकरण में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।यह इसलिए नहीं कि गुजरात से सिर्फ छब्बीस लोकसभा सदस्य चुने जाने हैं और इस लिहाज से पश्चिम बंगाल की अग्निकन्या के मुकाबले भी वे कहीं नहीं हैं, संघ,मीडिया और कारपोरेट के खुले समर्थन​ ​ के बावजूद। भाजपा में जो हो रहा है, वह अनायास हो रहा है, अब ऐसा नहीं लगता। हिंदुत्व का पुनरूत्थान का किस्सा ही खुले बाजार के​ ​ उत्थान से जुड़ा हुआ है। हिंदुत्व का विरोध, लेकिन खुले बाजार और पूंजी के आगे आत्मसमर्पण की उपभोक्ता संस्कृति ने धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के बारह बजा दिये। इससे मोदी का उत्थान कैसे रोका जा सकता है दूसरी ओर, जाहिरा तौर पर खुदरा कारोबार में विदेसी पूंजी के विरोध वोट बैंक के लिहाज से करने के बावजूद संघ  परिवार न कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ है और न लोकतंत्र के हक में। भारतीय संविधान के बदले उसे मनुस्मृति के मुताबिक राजधर्म निभाना है। खुले बाजार से उसे कोई तकलीफ नहीं है, क्योकि मनुस्मृति व्यवस्था तो वर्चस्ववादी है और बाजार भी​​ वर्चस्ववादी है। अब कांग्रेस जब उसीके एजंडे को अमल में ला रही हो, तब उसे कांग्रेस से क्या तकलीफ हो सकती है? दिवंगत बालासाहेब​ ​ ठाकरे ने  इंदिरा के आपात काल से लेकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के सर्वाधिनायक प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने तक की मुहिम में कांग्रेस का खूब साथ दिया। संघ ने राममंदिर का ताला खुलवाने वाले राजीव गांधी को जिताने के लिए १९८४ के चुनाव में नारा दिया ही था कि जो हिंदू हितों की रक्षा करें, वोट उसीको। फिर पिछले लोकसभा चुनाव में तो शंकराचार्यों, बाबा रामदेव, ब्राह्मणसमाज और हिंदुत्ववादी ताकतों नें मिलकर मनमोहन के हक में जनादेश तैयार करवाया था। भाजपा में जो हो रहा है और आर्थिक सुधार लागू करने में कांग्रेस ने जो आक्रामकता हिंदू राष्ट्रवाद की सुनामी ​
​खड़ा करके दिखा रही है, संघ परिवार के कारपोरेट संबंधों के मद्देनजर उसपर भी विचार होना चाहिए। आम लोगों को भरमाने के लिए​ ​ सब्सिडी सीधे बैंक खाते में डालने का कदम उठाकर कांग्रेस ने अपने चुनावी इरादे जगजाहिर भी कर दिये।

वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आज एक बार फिर रिजर्व बैंक को नये बैंक लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया शुरु करने की हिदायत दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि नये बैंक लाइसेंस जारी करने के लिये जो अधिकार चाहिये वह रिजर्व बैंक के पास हैं और उम्मीद जताई कि वह प्रक्रिया आगे बढ़ाकर इस मामले में सरकार की स्थिति को समझेगा।

उन्होंने कहा ''मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि रिजर्व बैंक जो तीन अधिकार चाहता है वह उसके पास पहले से ही है। यह उनके नियमों में पहले से ही हैं ... बैंकिंग लाइसेंस जारी करने के अधिकार उसी में हैं।''

सरकार एक जनवरी से जरूरतमंदों को दी जाने वाली सभी तरह की सरकारी सहायता सीधे उनके बैंक खातों में डाल देगी। योजना की शुरुआत 15 राज्यों के चुनिंदा 51 जिलों से होगी। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने शनिवार को यह बात कही।

राशन पर दी जाने वाली सब्सिडी हो या फिर पेंशन सहायता, गरीबों को मिलने वाली स्कॉलरशिप हो अथवा बुजुर्ग पेंशन सभी तरह की सब्सिडी और सहायता अब सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में पहुंचा दी जाएगी। यह काम आधार कार्ड प्रणाली के जरिए किया जाएगा। सरकार का मानना है कि इससे सब्सिडी का दुरुपयोग कम होगा और जरूरतमंद को फायदा पहुंचेगा।

वित्त मंत्री ने सालाना बैंकिंग सम्मेलन बैनकॉन का उद्घाटन करते हुए कहा, 'हमारे पास इस योजना को शुरू करने के लिए केवल पांच हफ्ते का समय बचा है। एकबार इस योजना के शुरू होने पर इसे देश के सभी 600 जिलों तक पहुंचाया जाएगा। हर तिमाही में ज्यादा से ज्यादा जिले इस प्रणाली के तहत जोड़े जाएंगे।'

गुजरात में फिर लहराएगा मोदी का परचमः चुनाव सर्वेक्षणआजतक वेब ब्यूरो/भाषा | नई दिल्ली, 24 नवम्बर 201


चुनाव पूर्व एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा राज्य में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में सात और अधिक सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को एक बड़े अंतराल से जीत दिलाएगा, जबकि कांग्रेस इस बार 51 सीटों तक सिमट सकती है.

एक न्यूज चैनल और नील्सन सर्वेक्षण के अनुसार 182 सदस्यीय गुजरात विधानसभा में बीजेपी को सात और अधिक सीटों के साथ 124 सीटें मिलने की संभावना है. 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 117 सीटें मिली थीं. आठ सीटों के नुकसान के साथ कांग्रेस के 51 सीटों तक सिमटने की संभावना है.

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 59 सीटें मिली थीं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि पूर्व बीजेपी नेता केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी के खाते में केवल तीन सीटें आ सकती हैं. राकांपा के दो सहित निर्दलीय चार सीटें जीत सकते हैं.

सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र में पटेल के प्रभाव के बावजूद बीजेपी वहां 54 में से 39 सीटें जीत सकती है. सर्वेक्षण में यह भी दर्शाया गया है कि इसमें शामिल करीब 53 फीसदी लोगों ने कहा कि 2014 के आम चुनाव में मोदी को केंद्र में भाजपा का नेतृत्व करना चाहिए.

चुनाव पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार अरविंद केजरीवाल के राजनीति में कूदने का लोगों पर ज्यादा असर नहीं पड़ा है और केवल 15 फीसदी लोगों ने उनका समर्थन किया.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story/modi-to-sweep-gujarat-polls-again-as-per-opinion-polls-1-714089.ht
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सिविल सोसाइटी की नौटंकी से भी भाजपा को चूना लगना तय है। वोट बैंक उसीका धंसकना है। फिर बाबा रामदेव के हठयोग के दर्शन होने तो अभी बाकी है। योगगुरु बाबा रामदेव केंद्र सरकार पर निशाना साधते-साधते मुंबई हमले के गुनहगार आतंकी आमिर अजमल कसाब की तुलना शहीदे आजम भगत सिंह से कर बैठे। उनकी इस हरकत पर बीजेपी ने उन्हें सोच-समझकर बोलने की सलाह दी है तो कांग्रेस ने भी बाबा के बयान को गलत बताया है।गौरतलब है कि पिछले दिनों बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्वामी विवेकानंद की तुलना दाऊद इब्राहिम से कर दोनों के आईक्यू को समान बताया था। कसाब को फांसी देने के मामले में बाबा रामदेव ने बयान दिया है कि कसाब को फांसी इतने गुपचुप तरीके से दी गई जैसे शहीद भगत सिंह को दी गई थी। रामदेव ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ये भी कहा कि ऐसा सरकार ने अपनी गिरती हुई छवि सुधारने के लिए किया।रामदेव ने कहा कि अपनी गिरती हुई इमेज को सही करने के लिए सरकार ने कसाब को फंसी दे दी, लेकिन दी ऐसे जैसे शहीद भगत सिंह को दी हो। गुप्त तरीके से। रामदेव के इस बयान पर बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने रामदेव को बयान देने से पहले सावधानी बरतने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि तुलना करने में सावधानी भी रखनी चाहिए और सचेत भी रहना चाहिए। वहीं कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने भी कहा कि भगत सिंह और कसाब की तुलना करना बिल्कुल गलत है।

बहरहाल भ्रष्टाचार से जूझ रही भारतीय जनता के मन में बदलाव की उम्मीद जगाने के लिए आ गई है अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी। इस पार्टी का नाम 'आम आदमी पार्टी' (एएपी) रखा गया है। केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम ऐलान करते हुए कहा कि उनकी पार्टी तमाम राजनीतिक पार्टियों से अलग होगी। जिसके दरवाजे सबके लिए खुले होंगे। एएपी के जनक हैं अरविंद केजरीवाल, वही जिन्होंने पिछले दिनों भ्रष्ट सरकार से त्रस्त जनता को इस देश में आशा की ललहलहाती फसल का सपना दिखाया है। अब उस सपने को सच करने की तैयारी है। केजरीवाल ने कहा, 'आम आदमी पार्टी बिलकुल आम होगी, खास कोई नहीं होगा।

भाजपा नेता राम जेठमलानी ने एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को चिट्ठी लिख दी है। चिट्ठी इस बात की कि भाजपा ने सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति का विरोध करके गलत किया है। राम जेठमलानी इससे पहले भ्रष्टाचार के आरोप पर गडकरी का इस्तीफा भी मांग चुके हैं।जेठमलानी ने गडकरी को लिखी चिट्ठी में कहा है-आज सुबह उठते ही मैं ये पढ़कर हैरान रह गया कि सीबीआई के नए डायरेक्टर रंजीत सिन्हा की नियुक्ति पर भाजपा ने पीएम और कांग्रेस पर हमला बोला है। मुझे अफसोस है कि ये विरोध तथ्यों की जानकारी के अभाव में और शायद उस व्यक्ति के इशारे पर हुआ है जिसने कैट से अपनी याचिका भी वापस ले ली थी। उस आदमी के हर जगह ताकतवर दोस्त हैं जिन्हें नहीं पता कि अगर ये व्यक्ति सिन्हा की जगह सीबीआई का डायरेक्टर बन गया तो क्या त्रासदी मच सकती है। मैं इसके सबूत में कई सरकारी दस्तावेज भेज रहा हूं इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि जब तक सच्चाई का पता न हो, तब तक पार्टी आगे किसी टिप्पणी से बचे।

भाजपा ने शनिवार को संकेत दिए कि वह राम जेठमलानी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है। वह पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी का इस्तीफा मांग चुके हैं और सीबीआई के नए निदेशक की नियुक्ति पर पार्टी के रुख से सहमत नहीं हैं। पार्टी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि जेठमलानी भाजपा अध्यक्ष के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं और अब विपक्ष के दोनों नेताओं के खिलाफ बातें कहीं हैं। हम इनके खिलाफ उनके आरोपों का पूरी तरह खंडन करते हैं। पार्टी ने उनके बयानों का कड़ा संज्ञान लिया है और उचित समय पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

अब इस पर क्या करें कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं यशवंत सिन्हा और राम जेठमलानी द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के इस्तीफे की मांग पर सांसद एवं अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने आज कहा कि दोनों की मांगों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने यहां संवाददाताओं से कहा, मैं यशवंत सिन्हा और राम जेठमलानी की मांगों को लेकर विचारधारात्मक रुप (आइडियोलाजिकली) से उनके साथ हूं। दोनों की मांगों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि जेठमलानी ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे गडकरी के इस्तीफे की मांग करते वक्त दावा किया था कि यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और जसवंत सिंह उनके बहुत करीबी हैं।

गडकरी के विषय में पटनासाहिब के सांसद ने कहा, वह मेरे मित्र हैं, लेकिन एक जिम्मेदार पद पर काबिज व्यक्ति को न सिर्फ ईमानदार होना चाहिए, बल्कि ईमानदार दिखना चाहिए। सिन्हा और जेठमलानी की तारीफ करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि दोनों में देश का प्रधानमंत्री बनने की योग्यता है, लेकिन वर्तमान में भाजपा में प्रधानमंत्री के सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार के रूप में वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी हैं।

बिहारी बाबू के बयान के बाद गडकरी से तुरंत इस्तीफे की मांग करने वाले यशवंत सिन्हा को एक बार फिर बल मिला है। इससे पहले जेठमलानी और उनके वकील पुत्र महेश ने गडकरी से इस्तीफे की मांग की थी।

सीबीआई के निदेशक के रूप में बिहार कैडर के आईपीएस रंजीत सिन्हा को लेकर भाजपा में घमासान छिड़ा है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने पत्र लिखकर सरकार से सिन्हा की नियुक्ति पर फिर से विचार करने को कहा है।

रंजीत सिन्हा प्रकरण पर शॉटगन ने कहा, सीबीआई जैसे महत्वपूर्ण संगठन को नेतृत्व विहीन नहीं रखा जा सकता। नये निदेशक की नियुक्ति में निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई गयी है। सीबीआई निदेशक जैसे पद के लिए रंजीत एक वरिष्ठ और सक्षम अधिकारी हैं।

जेठमलानी ने कहा कि एक अच्छा काम किया है प्रधानमंत्री ने। उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूं। दरअसल जो आदमी डायरेक्टर बनना चाहता था वो उसके लायक ही नहीं था। उसका रिकॉर्ड इतना खराब है कि वो अभी जिस पद पर है उसके भी लायक नहीं है। मगर वो बड़ा प्रभावी आदमी है। तभी बीजेपी में भी उनका कुछ चल रहा है। इसीलिए मैंने गडकरी को पत्र लिखा है और कहा है कि मैं दस्तावेज भेजता हूं।

जेठमलानी ने कहा कि अगर उस व्यक्ति को जो इस पद की दौड़ में था सीबीआई का निदेशक बना दिया गया होता तो ये देश के लिए बहुत बुरा होता। गौरतलब है कि कल ही लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर नए सीबीआई चीफ की नियुक्ति रोकने की मांग की थी। दोनों वरिष्ठ नेताओं का तर्क था कि लोकपाल की नियुक्ति का मामला संसद में विचाराधीन है जिसमें सीबीआई चीफ की नियुक्ति की प्रक्रिया बदलने का भी प्रावधान है। ऐसे में नए चीफ की नियुक्ति नई प्रक्रिया से ही होनी चाहिए।

दूसरी ओर सरकार का कहना था कि लोकपाल बिल के पास होने और कानून बनने में वक्त लग सकता है जबकि वर्तमान सीबीआई चीफ 30 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में इस महत्वपूर्ण पद को बिल के इंतजार में खाली नहीं छोड़ा जा सकता।

अब सांसद राम जेठमलानी ने गडकरी को चिट्ठी लिखकर खुलेआम पार्टी रुख का विरोध करते हुए उसे गलत ठहराया है। जेठमलानी की ये चिट्ठी इसलिए भी खास हो जाती है क्योंकि ये गडकरी नहीं बल्कि सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेताओं के रुख की भी खुलेआम खिलाफत है। जेठमलानी ने इशारों-इशारों मे सुषमा और जेटली पर एक ऐसे अफसर का पक्ष लेने का आरोप लगा दिया जिसका रिकॉर्ड खराब है और जो इस पद के लायक नहीं है।


चिदंबरम ने यहां हो रहे दो दिवसीय वार्षिक राष्ट्रीय बैंकिंग सम्मेलन :बैन्कॉन 2012: के उद्घाटन के बाद संवाददाताओं से कहा ''मुझे भरोसा है कि रिजर्व बैंक  सरकार के इस सुविचारित रुख को समझेगा और प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगा।''
वित्त मंत्री ने कहा कि कानून में संशोधन के जरिये केंद्रीय बैंक को मिली शक्तियों को केवल औपचारिक स्वरूप देना है और उन्हें कानून में एकसाथ जगह देना है।

पिछले सप्ताह चिदंबरम ने जब रिजर्व बैंक से लंबे समय से लटके नए बैंकिंग लाइसेंस जारी करने के लिए कहा था तो 16 नवंबर को रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव  ने कहा था कि बिना आवश्यक कानूनी प्रावधान किये बिना के यह संभव नहीं होगा।
यह पूछने पर कि क्या आरबीआई ने मंत्रालय को लिखित रूप में बताया है कि बिना विधेयक पारित हुए नए लाइसेंस जारी नहीं किए जा सकते चिदंबरम ने कहा ''मुझे नहीं पता कि हमने 10 दिन पहले जो पत्र भेजा था उसका औपचारिक जवाब आया है  या नहीं। मुझे नहीं पता उसका औपचारिक रुख क्या है।''

यह पूछने पर कि क्या उन्हें संसद के चालू शीतकालीन सत्र में कानून पारित होने की उम्मीद है मंत्री ने हां में जवाब दिया।
चिदंबरम ने कहा ''मुझे पूरा भरोसा है कि बैंकिंग नियमन संशोधन विधेयक जल्द से जल्द पारित होगा।''

उन्होंने कहा ''यदि रिजर्व बैंक प्रक्रिया को फिर से शुरु करता है और साल भर पहले जारी अंतिम दिशानिर्देशों पर आगे बढ़ता है तब भी उसे पहला लाइसेंस जारी करने  में छह से आठ महीने का वक्त लगेगा, जो शक्तियां उसे चाहिये उनकी उसे तुरंत  जरुरत नहीं होगी।''

चिदंबरम ने कहा ''ऐसी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल तभी किया जा सकता है जबकि बैंक कुछ गलत करें। और ऐसा लाइसेंस जारी करने के कुछ ही दिन बाद नहीं होगा।''

चिदंबरम ने कहा ''इसलिए जब तक ऐसी स्थिति आएगी बैंकिंग नियमन कानून में संशोधन हो जायेगा और उसमें वांछित शक्तियां निहित होंगी। इसलिए जैसा कि तत्कालीन वित्त मंत्री के बजट भाषण में कहा गया है हमें जल्द से जल्द दिशानिर्देश को अंतिम स्वरूप देने और नए बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन प्राप्त करना शुरू करना चाहिए।''

रिजर्व बैंक गड़बड़ी करने वाले बैंक के निदेशक मंडल को अपने अधिकार में लेने की शक्तियां चाहता है। इसके साथ ही केन्द्रीय बैंक ऐसे बैंक की होल्डिंग कंपनी में पांच प्रतिशत से अधिक शेयर के अधिग्रहण का भी अधिकार चाहता है। रिजर्व बेंक ने इससे पहले वर्ष 2002 में नये निजी क्षेत्र के बैंकों को लाइसेंस जारी किये थे।

रिजर्व बेंक ने नये बैंक लाइसेंस के लिये दिशानिर्देश को अगस्त 2011 में अंतिम रुप दे दिया था। लेकिन इस पर आगे कदम बढ़ाने से पहले वह जरुरी कानून शक्तियां मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है। इससे पहले बैंक लाइसेंस वर्ष 2008..09 में ही जारी करने की बात की गई थी।

दिशानिर्देशों के अनुसार नये बैंक के लिये न्यूनतम 500 करोड़ रुपये की पूंजी आवश्यकता होगी और इसमें कामकाज के पहले पांच साल के दौरान विदेशी शेयरधारिता 49 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।

क्या संसद में चलेगा कसाब का दांव?

गुरुवार, 22 नवंबर, 2012 को 08:26 IST तक के समाचार

संसद के पिछले कई सत्र हंगामे की भेट चढ़ चुके हैं

आज से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में फिर से जोरदार हंगामे के आसार दिखाई दे रहे हैं.
यूपीए सरकार के क्लिक करेंखुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसले पर विपक्ष के अधिकतर दल ऐसी संसदीय बहस चाह रहे हैं जिसमें वोटिंग का प्रावधान हो, जब कि सरकार की पूरी कोशिश है कि इस मुद्दे पर मतदान न हो पाए.

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दूसरी तरफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सरकार के खिलाफ क्लिक करेंअविश्वास प्रस्ताव को फिलहाल व्यापक समर्थन नहीं मिल पाया है. इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि 19 सदस्यों वाली तृणमूल कांग्रेस प्रस्ताव के लिए ज़रूरी 50 सांसदों का समर्थन भी हासिल कर पाएगी या नहीं.
यूपीए सरकार ने शीतकालीन सत्र से ठीक एक दिन पहलेक्लिक करेंकसाब को फांसी पर लटकाने का फैसला कर जनमत को अपने पक्ष में करने का दांव चला है. देखना यह है कि वह संसद में इसे राजनीतिक रूप से भुना पाने में सफल रहती है या नही.

बैठक असफल

विपक्ष की नाराजगी इस बात पर है कि सरकार तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा दिए गए उस आश्वासन से फिर गई है जिसमें यह कहा गया था कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के बारे में सभी संबंधित पक्षों से सलाह मशविरा करने के बाद ही अंतिम फैसला किया जाएगा.
लोकसभाध्यक्ष द्वारा बुलाई गई बैठक के असफल होने के बाद अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीजेपी के चोटी के नेताओं से मंत्रणा करने के लिए उन्हें रात के खाने पर बुलाया है.
मनमोहन सिंह की कोशिश होगी कि सरकार और बीजेपी के बीच मतभेदों को कुछ हद तक कम किया जा सके ताकि इस संसद सत्र को भी वही हश्र न हो जो इससे पहले कई संसद सत्रों का हो चुका है.

मतदान पर ज़ोर

"हम चाहते हैं कि सदन चले. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी है लेकिन हमारी शर्त यही है कि सबसे पहले वह मुद्दा उठाया जाए जिसके बारे में सरकार ने सदन को आश्वासन दिया था और वह भी उस नियम के तहत जिस पर मतदान हो सके"

सुषमा स्वराज

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ज़ोर देकर कहा है,"हम चाहते हैं कि सदन चले. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी है लेकिन हमारी शर्त यही है कि सबसे पहले वह मुद्दा उठाया जाए जिसके बारे में सरकार ने सदन को आश्वासन दिया था और वह भी उस नियम के तहत जिस पर मतदान हो सके"
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के गुरुदास गुप्ता का भी कहना था कि वह सुषमा स्वराज की खुदरा क्षेत्र में निवेश पर नियम 184 के तहत बहस कराए जाने की माँग का समर्थन करते हैं.
कांग्रेस के प्रवक्ता पीसी चाको ने पार्टी और सरकार के उस तर्क का समर्थन करते हुए कहा कि खुदरा क्षेत्र में निवेश का फैसला पूरी तरह से कार्यपालिका द्वारा लिया गया फैसला है जिस पर संसद में मतदान नहीं कराया जा सकता.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर विपक्ष सही समझता है तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है. उनके अनुसार सरकार को संसद में बहुमत हासिल है और वह इसे संसद में सिद्ध भी कर सकती है.
विपक्ष में इस बात पर चिंता है कि अगर सरकार अविश्वास प्रस्ताव बचाने में सफल हो जाती है तो अगले छह महीनों तक उसके खिलाफ कोई भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा.

क्या संसद में चलेगा कसाब का दांव?

गुरुवार, 22 नवंबर, 2012 को 08:26 IST तक के समाचार

संसद के पिछले कई सत्र हंगामे की भेट चढ़ चुके हैं

आज से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में फिर से जोरदार हंगामे के आसार दिखाई दे रहे हैं.
यूपीए सरकार के क्लिक करेंखुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति देने के फैसले पर विपक्ष के अधिकतर दल ऐसी संसदीय बहस चाह रहे हैं जिसमें वोटिंग का प्रावधान हो, जब कि सरकार की पूरी कोशिश है कि इस मुद्दे पर मतदान न हो पाए.

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दूसरी तरफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सरकार के खिलाफ क्लिक करेंअविश्वास प्रस्ताव को फिलहाल व्यापक समर्थन नहीं मिल पाया है. इस बात पर भी सवाल उठ रहे हैं कि 19 सदस्यों वाली तृणमूल कांग्रेस प्रस्ताव के लिए ज़रूरी 50 सांसदों का समर्थन भी हासिल कर पाएगी या नहीं.
यूपीए सरकार ने शीतकालीन सत्र से ठीक एक दिन पहलेक्लिक करेंकसाब को फांसी पर लटकाने का फैसला कर जनमत को अपने पक्ष में करने का दांव चला है. देखना यह है कि वह संसद में इसे राजनीतिक रूप से भुना पाने में सफल रहती है या नही.

बैठक असफल

विपक्ष की नाराजगी इस बात पर है कि सरकार तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा दिए गए उस आश्वासन से फिर गई है जिसमें यह कहा गया था कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के बारे में सभी संबंधित पक्षों से सलाह मशविरा करने के बाद ही अंतिम फैसला किया जाएगा.
लोकसभाध्यक्ष द्वारा बुलाई गई बैठक के असफल होने के बाद अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीजेपी के चोटी के नेताओं से मंत्रणा करने के लिए उन्हें रात के खाने पर बुलाया है.
मनमोहन सिंह की कोशिश होगी कि सरकार और बीजेपी के बीच मतभेदों को कुछ हद तक कम किया जा सके ताकि इस संसद सत्र को भी वही हश्र न हो जो इससे पहले कई संसद सत्रों का हो चुका है.

मतदान पर ज़ोर

"हम चाहते हैं कि सदन चले. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी है लेकिन हमारी शर्त यही है कि सबसे पहले वह मुद्दा उठाया जाए जिसके बारे में सरकार ने सदन को आश्वासन दिया था और वह भी उस नियम के तहत जिस पर मतदान हो सके"

सुषमा स्वराज

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ज़ोर देकर कहा है,"हम चाहते हैं कि सदन चले. कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होनी है लेकिन हमारी शर्त यही है कि सबसे पहले वह मुद्दा उठाया जाए जिसके बारे में सरकार ने सदन को आश्वासन दिया था और वह भी उस नियम के तहत जिस पर मतदान हो सके"
भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के गुरुदास गुप्ता का भी कहना था कि वह सुषमा स्वराज की खुदरा क्षेत्र में निवेश पर नियम 184 के तहत बहस कराए जाने की माँग का समर्थन करते हैं.
कांग्रेस के प्रवक्ता पीसी चाको ने पार्टी और सरकार के उस तर्क का समर्थन करते हुए कहा कि खुदरा क्षेत्र में निवेश का फैसला पूरी तरह से कार्यपालिका द्वारा लिया गया फैसला है जिस पर संसद में मतदान नहीं कराया जा सकता.
उन्होंने यह भी कहा कि अगर विपक्ष सही समझता है तो उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है. उनके अनुसार सरकार को संसद में बहुमत हासिल है और वह इसे संसद में सिद्ध भी कर सकती है.
विपक्ष में इस बात पर चिंता है कि अगर सरकार अविश्वास प्रस्ताव बचाने में सफल हो जाती है तो अगले छह महीनों तक उसके खिलाफ कोई भी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121122_wintersession_rf.shtml


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