Thursday, August 18, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



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From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/8/15
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


गुजरातःछह आइपीएस हो चुके हैं बागी

Posted: 14 Aug 2011 11:20 AM PDT

दंगों और मुठभेड़ के मामलों ने गुजरात की मोदी सरकार और भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के बीच गहरी दरार पैदा कर दी है। फरवरी, 2002 के दंगों और सोहराबुद्दीन व इशरत जहां मुठभेड़ मामलों को लेकर अब तक आधा दर्जन आइपीएस खुलकर सरकार के सामने आ चुके हैं। 1992 बैच के गुजरात कैडर के आइपीएस राहुल शर्मा ने दंगों के दौरान मंत्रियों और भाजपा व विहिप के नेताओं की पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से फोन पर हुई बातचीत की सीडी नानावती आयोग व एसआइटी को सौंपकर मोदी सरकार से पंगा ले लिया था। इसके लिए सरकार ने उन्हें पहले नोटिस और अब आरोपपत्र थमा दिया है। हफ्ते भर पहले ही सरकार ने आइपीएस संजीव भट्ट को भी कदाचार के आरोप में निलंबित कर दिया था। भट्ट ने तो सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर दंगों में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भी भूमिका होने का आरोप लगा दिया था। भट्ट का कहना है कि 27 फरवरी, 2002 को मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर हुई उच्चस्तरीय बैठक में मोदी ने पुलिस अधिकारियों को समुदाय विशेष को अपने गुस्से का इजहार करने की छूट देने का निर्देश दिया था। भट्ट के मुताबिक इस बैठक में वे भी शामिल थे। सरकार ने भट्ट के खिलाफ कई पुराने मामलों को फिर खुलवा दिया है। इनमें 131 लोगों के खिलाफ टाडा का फर्जी मामला बनाना भी शामिल है। भट्ट से पहले पूर्व डीजीपी और 1971 बैच के आइपीएस आरबी श्रीकुमार भी सरकार पर गुजरात दंगों के दौरान समूह विशेष से भेदभाव का आरोप लगा चुके हैं। उनकी पदोन्नति रोक दी गई थी। जिसे उन्होंने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में चुनौती दी थी। कैट के आदेश पर उन्हें पुलिस महानिदेशक का पद मिला। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के शासन में 1976 बैच के आइपीएस कुलदीप शर्मा का काफी दबदबा था। कुलदीप शर्मा को कच्छ-भुज जिले में हथियार और मादक पदार्थो की तस्करी पर लगाम कसने के लिए जाना जाता है। गुजरात सीआइडी क्राइम के आइजी पद पर रहते उन्होंने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड की अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपकर मोदी सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। इसके बाद उन्हें भेड़ ऊन विभाग में प्रबंध निदेशक पद पर तैनात कर दिया गया था। कुलदीप शर्मा बाद में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गए। सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की ही जांच करने वाले डीआइजी रजनीश राय ने आइपीएस डीजी वंजारा, राजकुमार पांडियन और राजस्थान के आइपीएस दिनेश एमएन को उच्च अधिकारियों को सूचित किए बिना गिरफ्तार कर लिया था। राय की तरह ही 1986 बैच के आइपीएस सतीश वर्मा इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर चर्चा में हैं। वह इस मुठभेड़ की जांच कर रही एसआइटी के सदस्य हैं। उनकी जांच ने राज्य के कई आला पुलिस अधिकारियों को परेशानी में डाल रखा है। सरकार ने उनके खिलाफ वर्ष 1990 का पोरबंदर का गोसाबारा हथियार मामला खोल दिया है। गुजरात हाई कोर्ट ने हालांकि सरकार को ताकीद किया है कि वह ऐसा कोई कदम न उठाए जिससे इशरत मुठभेड़ की जांच प्रभावित हो(शत्रुघ्न शर्मा,दैनिक जागरण,अहमदाबाद,14.8.11)।

मुंबईःअंबानी इंटरनैशनल स्कूल को मिली नई पहचान

Posted: 14 Aug 2011 11:04 AM PDT

आईजीसीएसई एग्जामिनेशन में धीरुभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल के पैंसठ स्टूडेंट्स ने वर्ष 2011 में शत-प्रतिशत सफलता हासिल किए। बता दें कि इस साल 65 स्टूडेंट्स ने आईजीसीएसई एग्जाम दिए थे। इनमें से 87.4 स्टूडेंट्स ने ए स्टार और ए ग्रेड हासिल की जबकि, 51 पर्सेंट स्टूडेंट्स ने सौ फीसदी अंक अर्जित किए। 43 पर्सेंट स्टूडेंट्स ने 7 ए स्टार हासिल किए। जो पिछले छह सालों में सबसे उच्च रहा है।

इस बारे में स्कूल की चेयरपर्सन नीता अंबानी ने कहा कि वर्ष 2011 में आयोजित आईजीसीएसई एग्जामिनेशन में इस बार हमारे स्टूडेंट्स ने जो एक्सट्रा ऑर्डिनरी अचिवमेंट दिखाया है, वह काबिलेतारीफ है। इससे एक बेंच मार्क स्थापित हुआ है। हालांकि, इसके पीछे हमारे स्कूल के टीचरों का समर्पण और स्टूडेंट्स के कठिन श्रम का परिणाम हैं। जिससे चलते कई बच्चों के सपने हकीकत में बदले हैं। इस सफलता से जहां स्कूल के बच्चों का टैलंट सामने आया है वहीं, आईजीसीएसई स्कुल के तौर पर धीरुभाई अंबानी इंटरनैशनल स्कूल को ग्लोबल पहचान मिली है(नवभारत टाइम्स,मुंबई,13.8.11)।

रांची विश्वविद्यालयःस्किल डेवलपमेंट प्लान पर ब्रेक

Posted: 14 Aug 2011 10:42 AM PDT

देश के चुनिंदा मैनेजमेंट संस्थानों को टक्कर देने और कॉरपोरेट जगत की मांग के अनुसार छात्रों को तैयार करने के उद्देश्य से आरयू के एमबीए डिपार्टमेंट ने स्किल डेवलपमेंट प्लान बनाया था।

इस कार्यक्रम को चलाने के लिए विभाग ने छात्रों द्वारा दी गई शुल्क की राशि से ही बजट का प्रस्ताव तैयार को आरयू को भेजा था। लेकिन आरयू प्रशासन द्वारा बजट में भारी कटौती किए जाने के कारण इस प्लान पर ब्रेक लग सकता है।

बजट ४६ लाख का मंजूरी मात्र 16 लाख : डिपार्टमेंट ने 46 लाख रुपए का वार्षिक बजट विवि को भेजा था। लेकिन इसमें 65 फीसदी की कटौती करते हुए मात्र 16 लाख रुपए की मंजूरी विवि ने दी। इस राशि से अतिरिक्त एक भी गतिविधि चलाना मुश्किल है।


कंटिंजेंसी मद में तीन हजार : एमबीए डिपार्टमेंट को कंटिंजेंसी मद में मात्र तीन हजार रुपए प्रति माह देने की स्वीकृति मिली है, जबकि 25 हजार रुपए की मांग की गई थी।

ये थी शैक्षणिक योजनाएं 

डिपार्टमेंट का कहना है कि यहां के छात्रों का कम्युनिकेशन स्किल काफी कमजोर रहता है। जबकि इस क्षेत्र में कम्युनिकेशन स्किल मजबूत होना जरूरी है। इसके लिए परमानेंट फैकल्टी की नियुक्ति होनी चाहिए। इंडस्ट्रियल टूर, मार्केटिंग सर्वे और कॉरपोरेट जगत से जुड़े केस की स्टडी सहित खेल से जुड़ी गतिविधियों पर आने वाले खर्च का प्रारूप तैयार कर स्वीकृति के लिए भेजा गया था।

बजट के अनुरूप मिलेगी राशि

विभाग को बजट के अनुरूप राशि दी जाएगी। शैक्षणिक समेत अन्य गतिविधियों के संचालन में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होगी। यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। इसका निराकरण शीघ्र कर लिया जाएगा।
डॉ. एए खान, कुलपति, रांची विश्वविद्यालय(राकेश,दैनिक भास्कर,रांची,14.8.11)

हरियाणाःप्रोजेक्ट मैनेजमेंट सेल होगा स्थापित,शिक्षक पुरस्कारों में बरती जाएगी पारदर्शिता

Posted: 14 Aug 2011 10:35 AM PDT

हरियाणा स्कूल शिक्षा विभाग ने 53 परियोजनाओं के प्रबंधन के लिए प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सेल स्थापित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए प्राध्यापकों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं, जिन्हें प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त किया जाएगा।


यह जानकारी देते हुए स्कूल शिक्षा के महानिदेशक विजेंद्र कुमार ने आज कहा कि इन परियोजनाओं के प्रबंधन के लिए विभाग को प्रतिनियुक्ति पर प्राध्यापकों की आवश्यकता है, जिन्हें सहायक परियोजना प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इच्छुक प्राध्यापक इसके लिए निर्धारित प्रोफार्मा में ई-मेल के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए निदेशक, स्कूल शिक्षा, तथा अतिरिक्त निदेशकों और अन्य विशेषज्ञों द्वारा साक्षात्कार लिया जाएगा। आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 अगस्त है। 

उधर,हरियाणा की शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने कहा कि सरकार ने राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार-2010 के लिए एक ऐसी नीति तैयार की है, जिससे शिक्षक पुरस्कारों के वितरण एवं चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सकेगी। इसके लिए सभी जिलों के अध्यापकों की सूची 25 अगस्त तक मुख्यालय को भेजनी होगी। भुक्कल ने कहा कि इसके लिए जिला स्तरीय कमेटियों का गठन किया गया है। 

विभाग ने प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों तथा जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र लिखकर राज्य पुरस्कार-2010 के लिए अध्यापकों के नाम भेजने को कहा है, ताकि उत्कृष्ट अध्यापकों को आगामी 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्मानित किया जा सके। 

शिक्षा मंत्री ने कहा कि पांचवीं तक की कक्षाओं को पढ़ाने वाले अध्यापकों को प्राथमिक शिक्षक पुरस्कार तथा 6 से 12 कक्षा तक पढ़ाने वाले अध्यापकों को माध्यमिक शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इसके लिए कोई भी अध्यापक पुरस्कार के लिए स्वयं आवेदन नहीं कर सकेगा, बल्कि 31 दिसम्बर 2010 तक अध्यापकों की 15 वर्ष की नियमित सेवाओं तथा मुख्याध्यापक / प्राचार्य की 20 वर्ष की नियमित सेवाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर उनका चयन होगा। परंतु संयुक्त (इंक्लूसिव) शिक्षा के लिए लगाए गए अध्यापकों की नियमित सेवाओं की समय सीमा घटाकर क्रमश: 10 वर्ष तथा 15 वर्ष की गई है(दैनिक भास्कर,चंडीगढ़,14.8.11)।

पीटीए की सहमति से फीस बढ़ाना गलत :दिल्ली हाईकोर्ट

Posted: 14 Aug 2011 10:25 AM PDT


पब्लिक स्कूलों में पैरंट्स टीचर्स एसोसिएशन (पीटीए) की सहमति से फीस बढ़ोतरी के नियम को हाईकोर्ट ने गैर-कानूनी बताया है। 2009 में दिल्ली सरकार ने फीस बढ़ोतरी को लेकर जारी नोटिफिकेशन में इस नियम का प्रावधान किया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नोटिफिकेशन के इस प्रावधान का कि कोई भी स्कूल सिर्फ पीटीए की सहमति से फीस बढ़ा सकता है कोई कानूनी आधार नहीं है। गौरतलब है कि फीस वृद्धि मामले में शुक्रवार को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाने का निर्देश दिया था। यह कमेटी निजी स्कूलों के खातों की जांच कर यह तय करेगी कि उनके द्वारा बढ़ाई गई फीस उचित है या नहीं। न्यायमूर्ति एके सीकरी व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की खंडपीठ ने कहा था कि नोटिफिकेशन में यह प्रावधान दिल्ली एजुकेशन एक्ट की धारा 17(3) के विपरीत है, क्योंकि इस धारा के मुताबिक फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को शिक्षा निदेशालय से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। पीठ ने कहा कि फीस बढ़ोतरी के लिए स्कूलों को पैरंट्स की दया पर निर्भर छोड़ना दिल्ली एजुकेशन एक्ट का उल्लंघन है। इसे वैध नहीं ठहराया जा सकता है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार के इस नोटिफिकेशन को अभिभावक महासंघ की तरफ से सोशल ज्यूरिस्ट अशोक अग्रवाल ने चुनौती दी थी। नोटिफिकेशन में एक जनवरी 2006 से स्कूलों को फीस बढ़ाने की छूट दी गई थी। अग्रवाल की दलील थी कि एजुकेशन एक्ट 17(3) के तहत बीच सत्र में कोई भी स्कूल फीस नहीं बढ़ा सकता। उनकी यह भी दलील थी कि हाईकोर्ट के 30 अक्टूबर 1998 के आदेश के मद्देनजर इस तरह से फीस बढ़ाना गलत है(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,14.8.11)।

भारतीयों को अमेरिकी शिक्षण संस्थानों में आसानी से दाखिला

Posted: 14 Aug 2011 10:24 AM PDT

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह में हुए समझौतों का अब असर दिखने लगा है। दोनों देशों ने बेहतर भविष्य गढ़ने और एक-दूसरे को ठीक तरह से समझने के लिए शिक्षा के द्वार खोलने शुरू कर दिए हैं। पार्टनरशिप प्रोग्राम के तहत अमेरिका ने अपने 11 प्रतिष्ठित कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का चयन किया है। इनमें अब भारतीय छात्र आसानी से दाखिला ले सकेंगे। चयनित शिक्षण संस्थानों में फोर्ट हेज स्टेट यूनिवर्सिटी, जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी, नार्दन इलिनोइस यूनिवर्सिटी, न्यूयॉर्क सिटी यूनिवर्सिटी से संबद्ध क्वींस कॉलेज, रोलिंस कॉलेज रटगर्स, न्यूजर्सी स्टेट यूनिवर्सिटी, सुफोल्क यूनिवर्सिटी, थॉमस कॉलेज, केंटकी यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगन और यूनिवर्सिटी ऑफ मॉनटाना शामिल हैं। इन शिक्षण संस्थाओं को इस जरूरी कार्यक्रम के लिए पूरी तरह जवाबदेही निभाने को कहा गया है। इंटरनेशनल एजुकेशन (आइआइइ) के अध्यक्ष एलन ई गुडमैन ने कहा कि भारत-अमेरिका के बीच ज्ञान साझा करने की यह सोच एक साल पहले तब सामने आई थी, जब प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका दौरे पर आए थे। इस कार्यक्रम की सफलता के लिए शिक्षण संस्थानों पर एक करोड़ डॉलर खर्च करने की योजना है। इसके तहत उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। गुडमैन ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक भागीदारी वाले इस कदम से दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत होंगे। भविष्य में युवा पीढ़ी एक दूसरे को बेहतर तरह से समझ पाएगी। यूनिवर्सिटी ऑफ मॉनटाना व शिक्षा संबंधी मामलों के उपाध्यक्ष पेरी ब्राउन ने कहा, भारत महत्वपूर्ण देश है। ऐसे में शिक्षा क्षेत्र में उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसी संस्थान के अंतरराष्ट्रीय विकास कार्यक्रम के अधिकारी पीटर बेकर ने कहा, भारत शैक्षणिक क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। यहां के छात्र बड़ी संख्या में अमेरिका पढ़ाई के लिए आते हैं(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,14.8.11 में वाशिंगटन की रिपोर्ट)।

यूपीःशिक्षक कल्याण कोष पर लगी शासन की नजर

Posted: 13 Aug 2011 07:04 PM PDT


प्रदेश के राज्य विविद्यालय व महाविद्यालयों में शिक्षक कल्याण कोष (टीडब्ल्यूएफ) को लेकर नेताओं व संगठनों में विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। राज्य सरकार शिक्षकों के लिए मेडीक्लेम योजना को अमल में लाने में जुटी है। दूसरी ओर शिक्षक संघों ने शासन पर शिक्षक कल्याण कोष पर नजर गड़ाने का आरोप लगा दिया है और कहा कि शिक्षकों को जब राज्य कर्मचारी का दर्जा देने पर सरकार राजी है, तो वह करोड़ों के शिक्षक कल्याण कोष का ब्योरा क्यों जुटाने में लगी है। विभिन्न विविद्यालयों में शिक्षक कल्याण कोष में जमा रकम करीब सात करोड़ के आसपास पहुंच गयी है। इनमें सर्वाधिक तीन करोड़ के आसपास धनराशि चौधरी चरण सिंह विवि मेरठ के पास है और इसकी आधी करीब डेढ़ करोड़ कानपुर विविद्यालय के शिक्षक कल्याण कोष में है। सबसे कम करीब दस लाख रुपये लुआक्टा और इसी के करीब लूटा के शिक्षक कल्याण कोष में धनराशि जमा है और फिक्स डिपाजिट में है। उल्लेखनीय है कि शासन में विविद्यालय के शिक्षकों को मेडीक्लेम योजना देने के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने एक जुलाई को सभी विविद्यालय के कुलसचिवों पत्र जारी कर शिक्षक कल्याण कोष में जमा धनराशि और उसके इस्तेमाल का ब्योरा मांगा था। शासन के इस पत्र के बाद शिक्षक संघों में उबाल आ गया और 24 जुलाई को फुफुक्टा ने शिक्षक कल्याण कोष में किसी भी तरह के शासन के हस्तक्षेप पर कड़ा विरोध दर्ज कराया। फुफुक्टा के सुर में लखनऊ विविद्यालय सम्बद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) ने भी सुर मिलाया और कहा कि सरकार शिक्षकों को मेडीक्लेम देने के लिए शिक्षक कल्याण कोष को नहीं ले सकती है। राज्य के दूसरे कर्मचारियों को बीमा योजनाओं का लाभ दिया जा सकता है, तो फिर शिक्षकों के साथ 'गिव एण्ड टेक' का रवैया क्यों अपनाया जा रहा है। लुआक्टा के अध्यक्ष डा. मनोज कुमार पाण्डेय का कहना है कि शासन के इसी छलावे में एक बार शिक्षक आ चुके हैं और तीन वर्ष तक तनख्याह से हर महीने 22 रुपये के हिसाब से कटौती कराने के बाद भी उन्हें स्वास्थ्य बीमा योजना का कोई लाभ नहीं मिला। अब शिक्षक दोबारा सरकार के झांसे में नहीं आने वाले हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को अपनी ही धनराशि से मेडीक्लेम लेना है तो सरकार के हाथों में धनराशि देने के बजाय उसे शिक्षक संगठन अपने स्तर से अमल में लाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि लुआक्टा अधिकतम दस हजार रुपये की धनराशि शिक्षक कल्याण कोष से मदद देता है, जो नान रिफण्डेबल है। 
विविद्यालय व महाविद्यालयों के शिक्षकों के मूल्यांकन कार्य करने, प्रेक्टिल कराने और पेपर सेट करने में मिलने वाले मानदेय में निर्धारित प्रतिशत में कुछ धनराशि की कटौती की जाती है। यह धनराशि शिक्षक कल्याण कोष में जमा होती है। राज्य के विविद्यालय में पारिश्रमिक से शिक्षक कल्याण कोष के नाम कटौती की धनराशि लविवि में चार प्रतिशत, कानपुर विवि में पांच और मेरठ विवि में छह फीसद है। इन सभी विविद्यालयों को मिलाकर करीब सात करोड़ रुपये कल्याण कोष में जमा हैं, इनमें काफी धनराशि फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में जमा है(कमल तिवारी,राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,14.8.11)।

छत्तीसगढ़ःपुनर्मूल्यांकन आवेदन में अब फोटोग्राफ लगेंगे

Posted: 13 Aug 2011 07:02 PM PDT

रसूख वाले छात्रों को दिल खोलकर अंक दिए जाने के एक दर्जन से ज्यादा मामलों के खुलासों से मची खलबली के बीच रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय ने पुनर्मूल्यांकन के आवेदन की प्रक्रिया को ही बदल दिया है। ज्यादातर मामलों में यह बात सामने आई कि गोलमाल के शक में कुछ लोगों ने पुनर्मूल्यांकन के लिए फर्जी आवेदन कर दिया था। पुनर्मूल्यांकन में पता चला कि वेल्युएशन में गड़बड़ी हुई थी।

मेरिट में आए छात्र सप्लीमेंट्री की केटेगरी में आ गए थे। नई व्यवस्था के तहत अब छात्रों को पुनर्मूल्यांकन का आवेदन करते समय अपना फोटो लगाकर दस्तखत भी करने होंगे। अगर फोटो और दस्तखत सालाना परीक्षा के फार्म जैसे नहीं हुए तो आवेदन निरस्त कर दिया जाएगा।

सारे इंतजामों के बाद मूल्यांकन में गड़बड़ी खुलने का रास्ता भी बंद हो गया लगता है। इसे विवाद से बचने की यूनिवर्सिटी की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। विश्वविद्यालय में इस पूरी प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि गड़बड़ी करने वाले मूल्यांकनकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।


हालांकि कुलसचिव केके चंद्राकर का कहना है कि मामले की जांच की जा रही है। इस सत्र से लागू कर दिए संशोधित नियमों के तहत पुनर्मूल्यांकन और पुनर्गणना के आवेदन में छात्र-छात्राओं से सारी जानकारी ली जा रही है। आवेदन का पूरा फार्म ही बदला जा चुका है। इसमें नाम, रोल नंबर, इनरोलमेंट नंबर, पिता और माता का नाम स्पष्ट शब्दों में लिखवाया जा रहा है। 

इसके बाद जिस विषय के जिस पर्चे को खुलवाना है उसका विषय कोड का उल्लेख छात्र को करना होगा। छात्र को प्राप्तांकों का भी जिक्र करना होगा। इसके अलावा पुनर्मूल्यांकन के आवेदन में दो पासपोर्ट साइज फोटो चस्पा कराए जा रहे हैं। आवेदन पत्र में छात्रों से तीन स्थानों पर हस्ताक्षर भी लिए जा रहे हैं। 

गोपनीय विभाग से उत्तर पुस्तिका निकालने के पहले पुनर्मूल्यांकन या पुनर्गणना आवेदन पत्र में छात्र के हस्ताक्षर और मुख्य परीक्षा के आवेदन पत्र में छात्र के हस्ताक्षर का मिलान किया जाएगा। दोनों हस्ताक्षर का मिलान किया जाएगा। इसके बाद पुनर्मूल्यांकन की कार्रवाई होगी। हस्ताक्षर नहीं मिले तो आवेदन को स्वत: निरस्त मान लिया जाएगा। न तो इसकी पुनर्गणना होगी और न ही पुनर्मूल्यांकन किया जाएगा। 

उल्लेखनीय है कि रसूखदार लोगों में कुछ ने पुनर्मूल्यांकन के परिणाम को स्वीकार कर लिया। इसमें वे पास से पूरक आ गए थे। हरजिंदर सिंह इसे बर्दाश्त नहीं कर पाए। उन्होंने संशोधित अंकसूची लेने से इनकार कर दिया। इस मुद्दे को लेकर वह हाईकोर्ट में चले गए हैं। मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है। 

रविवि के अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में रविवि का पक्ष मजबूत है। फिर भी आने वाले समय में इस तरह के और विवाद की स्थिति निर्मित न हो। इसके लिए नियमों में बदलाव किया गया है। आवेदन पत्र में भी संशोधन हुआ है। कई छात्रों या उनके परिजनों को इसकी जानकारी नहीं होने पर उन्हें आवेदन के लिए दो से तीन बार रविवि का चक्कर भी लगाना पड़ा है।

"अब तक नियमों की खामी का लाभ लेकर कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की कॉपी के पुनर्मूल्यांकन का आवेदन कर देता था। इसमें काफी गड़बड़ी होती थी। इससे बचने के लिए अब आवेदनों में फोटो और छात्र का आवेदन अनिवार्य किया गया है ताकि न तो छात्र को असुविधा हो और न ही रविवि को। पुराने मामलों की जांच कराई जा रही है-"केके चंद्राकर, कुलसचिव, रविवि(संजय पाठक,दैनिक भास्कर,रायपुर,14.8.11)

राजस्थानःटेट पर बोर्ड हाईकोर्ट में 17 को पेश करेगा जवाब

Posted: 13 Aug 2011 06:59 PM PDT

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड प्रबंधन 17 अगस्त को राजस्थान हाईकोर्ट में जवाब दाखिल करेगा। कोर्ट ने बोर्ड को पासिंग मार्क्‍स के मुद्दे पर नोटिस दिया है। बोर्ड प्रबंधन टेट परीक्षा का परिणाम अब इस महीने के अंत तक घोषित करेगा।


टेट परीक्षा समन्वयक और बोर्ड सचिव मिरजूराम शर्मा के मुताबिक कोर्ट के नोटिस का जवाब तैयार किया जा रहा है। इसे 17 को पेश कर दिया जाएगा। शुक्रवार को ही हाईकोर्ट में एक रिट दायर कर पासिंग मार्क्‍स की शर्त पर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने शिकायत की है कि सी-टेट में इस तरह की कोई बाध्यता नहीं रखी गई है। इधर, बोर्ड की ओर से टेट परीक्षा परिणाम तैयारी जोरों पर है। 

पूर्व में बोर्ड प्रबंधन ने 16 अगस्त को परीक्षा परिणाम घोषित करने की संभावना जताई थी, लेकिन अब बताया जा रहा है कि परिणाम इस महीने के अंत तक घोषित किया जा सकेगा। टेट में करीब 6.5 लाख परीक्षार्थी प्रविष्ट हुए थे। कक्षा 1 से 5 तक और कक्षा 6 से 8 वीं तक के अलग-अलग परिणाम जारी किए जाएंगे(दैनिक भास्कर,अजमेर,14.8.11)।

भागीदारी कार्यक्रम से जुड़े 11 अमेरिकी विवि

Posted: 13 Aug 2011 06:56 PM PDT

भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की '21वीं शताब्दी ज्ञान संबंधी पहल'के लिये अमेरिका के 11 प्रसिद्ध विविद्यालयों को भारत के साथ भागीदारी कार्यक्र म के लिये चुना गया है। वाशिंगटन में भारत-अमेरिका के बीच अक्टूबर में होने वाली वार्ता से पहले चुने गए विविद्यालयों के नामों की घोषणा अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्थान द्वारा घोषित किया गया है। अंतरराष्ट्रीय शिक्षा संस्थान (आई आई ई) की घोषणा में भागीदारी के लिए चुने गए संस्थानों में फोर्ट हेस विविद्यालय, र्जाज मैसन विविद्यालय, उत्तरी इलिनोयिस विविद्यालय, क्वींस कॉलेज (सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयार्क), रोलिंस कॉलेज, थॉमस कॉलेज, केंटकी विविद्यालय, ओरेगन विविद्यालय और मोंटाना विविद्यालय शामिल हैं। इस ज्ञान संबंधी पहल का मूल उद्देश्य आईआईटी जैसे प्रमुख संस्थानों के लिए संकाय को विकसित करना है। इसके अंतर्गत भारतीय और अमेरिकी विविद्यालयों के बीच भागीदारी कार्यक्र मों के लिए एक लाख डॅालर की राशि मुहैया कराई जाएगी। आई आई ई के अनुसार, सूची में शामिल सभी संस्थान भागीदारी के तहत टास्क फोर्स गठित करने और कूटनीतिक योजना तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली संस्करण,14.8.11 में वाशिंगटन की रिपोर्ट)।

गुजरात सरकार व आइपीएस लॉबी में बढ़ रही दरार

Posted: 13 Aug 2011 06:52 PM PDT

गुजरात दंगों एवं मुठभेड़ के मामलों ने राज्य सरकार तथा भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के बीच गहरी दरार पैदा कर दी है, जिसके कारण पुलिस तो सकते में है ही साथ ही सरकार खुद को कई मोर्चो पर असहज महसूस कर रही है। फरवरी 2002 में हुए दंगे, सोहराबुद्दीन मुठभेड़ या फिर इशरत जहां मुठभेड़ मामला को लेकर अब तक आधा दर्जन आइपीएस अधिकारी सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। सबसे ताजा मामला गुजरात कैडर के 1992 बैच के आइपीएस अधिकारी राहुल शर्मा का है, जो कि फिलहाल राजकोट में डीआइजी के पद पर तैनात हैं। गुजरात दंगों के दौरान भावनगर में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे लेकिन एक मदरसे पर हमले पर उतारु दंगाइयों के एक समूह को रोककर शर्मा ने करीब 300 मुस्लिम बच्चों की जान बचाई थी। शर्मा ने दंगों की जांच कर रहे नानावटी आयोग और विशेष जांच दल को ऐसे सबूत मुहैया करा दिए, जिससे राज्य सरकार को परेशानी होने लगी। नतीजतन मोदी सरकार ने उनके ऊपर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। इससे पहले दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी की ओर से पुलिस अधिकारियों को एक समुदाय विशेष को गुस्से का इजहार करने देने की छूट का निर्देश देने की बात कहते हुए भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र पेश किया था। भट्ट नानावटी आयोग के समक्ष भी अपने बयान दर्ज करा चुके हैं लेकिन फिलहाल न्यायालय की ओर से शपथ पत्र पर संज्ञान नहीं लिया गया है। भट्ट के इसी व्यवहार को सरकारी सेवा नियमों को भंग करने तथा अनुशासनहीनता मानते हुए सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया है। पुलिस महानिदेशक चित्तरंजन सिंह ने भट्ट को आपराधिक प्रवृत्ति वाला अधिकारी बताते हुए उनके खिलाफ पहुंची शिकायतों को पुन: खोल दिया है, जिसमें 131 लोगों के खिलाफ टाडा का फर्जी मामला बनाना भी शामिल है। गुजरात दंगों के दौरान समूह विशेष से भेदभाव का आरोप लगाने वाले 1971 बैच के आइपीएस अधिकारी आरबी श्रीकुमार ने पदोन्नति रोके जाने को केंद्रीय प्रशासकीय ट्रिब्यूनल में भी चुनौती दी थी। अदालत के आदेश से सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें पुलिस महानिदेशक का पद दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री काल में 1976 बैच के आइपीएस अफसर कुलदीप शर्मा काफी दमदार अधिकारी हुआ करते थे। मिनी पाकिस्तान के रूप में पहचाने जाने वाले गुजरात के कच्छ-भुज जिले में नब्बे के दशक में हथियार व मादक पदार्थो की तस्करी के खिलाफ कुलदीप शर्मा ने जबरदस्त अभियान चलाकर इन सब प्रवृत्तियों पर रोक लगा दी थी। गुजरात सीआइडी क्राइम के आइजी के पद पर रहते शर्मा ने सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड की अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपकर राज्य सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। इसके बाद उन्हें भेड़ ऊन विभाग में प्रबंध निदेशक पद पर तैनात कर दिया गया लेकिन शर्मा कंपनी कानून की आड़ लेकर ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट नई दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसके बाद सोहराबुद्दीन मामले की जांच करने आए डीआइजी रजनीश रॉय ने आइपीएस अधिकारी डीजी वणजारा, राजकुमार पांडियन, राजस्थान के आइपीएस अधिकारी दिनेश एमएन आदि को बिना उच्च अधिकारियों को सूचित किए बिना गिरफ्तार कर लिया था। सोहराबुद्दीन मामले में राज्य के गृह राज्यमंत्री अमित शाह, पूर्व रेंज डीआइजी डीजी वणजारा, आइपीएस अधिकारी पांडियन, दिनेश एम समेत एक दर्जन पुलिस अधिकारी आरोपी हैं। शाह जहां अक्टूबर 2010 से गुजरात से बाहर हैं, वहीं शेष अधिकारी जेल में बंद हैं। वर्ष 1986 बैच के आइपीएस अधिकारी सतीश वर्मा इशरत जहां मुठभेड़ मामले को लेकर चर्चा में हैं। मामले की जांच कर रही एसआइटी के सदस्य हैं तथा उन्होंने मुठभेड़ की जांच करते हुए पुलिस के ही कई आला अधिकारियों को भी परेशानी में डाल दिया था। सरकार ने उनके खिलाफ वर्ष 1990 में पोरबंदर का गोसाबारा हथियार लेंडिंग का मामला खोल दिया हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार को ताकीद किया है कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाएं, जिससे इशरत की जांच प्रभावित हो। दंगे एवं मुठभेड़ जैसी घटनाओं के बावजूद कई आइपीएस अधिकारी ऐसे भी हैं जो सरकार के साथ खड़े रहे, इनमें सबसे पहला नाम दंगों के दौरान अहमदाबाद में पुलिस आयुक्त रहे पीपी पांडे का आता है। सरकार के वफादार एडीजीपी ओपी माथुर सेवानिवृति के बावजूद रक्षा यूनिवर्सिटी के कुलपति का काम देख रहे हैं। दंगों के दौरान डीजीपी का पदभार संभाल रहे के. चक्रवर्ती सेवानिवृत्त होने के बाद भी सरकार के साथ खड़े हैं(शत्रुघ्न शर्मा,दैनिक जागरण,अहमदाबाद,14.8.11)।

राजस्थान प्रशासनिक सेवाःएक विषय में महारथ से अब अफसर बनना आसान नहीं

Posted: 13 Aug 2011 06:49 PM PDT

आरएएस परीक्षा में आईएएस पैटर्न लागू हुआ तो एक विषय में महारथ हासिल कर सफलता पाना आसान नहीं रहेगा। कला, वाणिज्य, विज्ञान के साथ ही इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट जैसे प्रोफेशनल कोर्स से जुड़े छात्रों के लिए भी सफलता के समान अवसर पैदा होंगे।

राज्य में आरएएस की भविष्य में होने वाली भर्ती यूपीएससी पैटर्न पर किए जाने की योजना का सबसे ज्यादा फायदा उन छात्रों को मिलेगा जिनकी सामान्य अध्ययन में पकड़ रहेगी। यहां प्रारंभिक परीक्षा में विषय लेने की बाध्यता से छूट मिल जाएगी। सामान्य ज्ञान आधारित दो सौ अंकों का सिर्फ एक पेपर होने से छात्र की देश और राजस्थान से संबंधित सामान्य ज्ञान की कड़ी परीक्षा होगी। इसमें सामान्य विज्ञान, मानसिक योग्यता के साथ ही वैश्विक स्तर का नॉलेज जरूरी होगा।


परीक्षा पैटर्न : आरएएस बनाम आईएएस

आईएएस : प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य अध्ययन, एप्टीट्यूट के 200-200 नंबर के दो पेपर। मुख्य परीक्षा में दो ऑप्शनल विषय 300-300 अंक (चार पेपर)। सामान्य ज्ञान के दो पेपर प्रत्येक 300 का। निबंध-200 अंक। अनिवार्य विषय के रूप में हिंदी-अंग्रेजी उत्तीर्ण करना जरूरी। इंटरव्यू-300 अंक। 
आरएएस : प्रारंभिक परीक्षा में दो पेपर। सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान 200 अंक तथा विषय विशेष 200 अंक। मुख्य परीक्षा में दो ऑप्शनल विषय। प्रत्येक 400-400 अंक। अनिवार्य विषय के रूप में हिंदी 200 और अंग्रेजी 100 अंक का पेपर। सामान्य ज्ञान-200 अंक। इंटरव्यू- 160 अंक। 

प्रस्तावित पैटर्न आरएएस

प्रारंभिक परीक्षा में 200 अंकों का एक पेपर। विषय विशेष का पेपर नहीं। सामान्य ज्ञान, सामान्य विज्ञान, मानसिक योग्यता संबंधी प्रश्न होंगे। राजस्थान से जुड़े सवालों को प्राथमिकता। मुख्य परीक्षा में 200-200 अंकों के चार पेपर। सामान्य ज्ञान एवं सामान्य अध्ययन तथा भाषा गत जानकारी से जुड़े सवाल होंगे। हिंदी भाषा के 50, अंग्रेजी के 40, राजस्थानी भाषा के 10 प्रतिशत अंक। इंटरव्यू 100 अंकों का। इसमें पहले की तरह छात्र की विश्लेषणात्मक क्षमता, परिस्थितिवश तत्काल निर्णय की क्षमता, आत्म विश्लेषण जैसे विषयों की बारीकी से जांच के साथ ही बॉडी लैंग्वेज परखी जाएगी। 

दक्ष प्रशासक तैयार होंगे

आएएस परीक्षा में आईएएस पैटर्न लागू करने की योजना सही मायने में भविष्य को लेकर तैयार की जा रही है। यह बदलाव मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग सहित अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज से संबंधित विद्यार्थियों के लिए सरल व उपयोगी साबित होगा। अब विषय में दक्षता हासिल करने के साथ-साथ परीक्षार्थी को सामान्य अध्ययन में बेहद मजबूत होने की जरूरत रहेगी। यह भी संभव है कि प्रशासनिक अधिकारी व्यापक समझ के चलते समाज के हर हिस्से के लिए लाभकारी नीतियों के सुझाव दे सकेंगे। 
बॉय इन्विटेशन -प्रोफेसर राजीव गुप्ता, राजस्थान यूनिवर्सिटी

आईएएस रैंकिंग होल्डर भी पक्ष में

सिविल सर्विस परीक्षा में 522 वीं रैंक पर रहीं सरोज कहती हैं- आरएएस में आईएएस पैटर्न लागू होने से स्केलिंग को लेकर कई बार होने वाले नुकसान की आशंका खत्म होगी। छात्र को व्यापक परिदृश्य में दिमाग को विकसित करना होगा। 

आईएएस पैटर्न कब से लागू होगा यह तय नहीं, लेकिन यह तय है कि यह छात्रों की तैयारी की दिशा ही बदल देगा। स्केलिंग समस्या को लेकर एक के बाद एक नए विवादों से भी मुक्ति मिल जाएगी। —वी.पी. गुप्ता, डायरेक्टर, रॉय इंस्टीट्यूट 

प्रस्तावित पैटर्न तभी सफल हो पाएगा, जब उसमें राजस्थान का व्यापक कोटा रखा जाए। यह तब हितकर साबित होगा जब अलग-अलग क्षेत्र के विद्वानों से एकसाथ पाठ्यक्रम पर उनका मंतव्य जाना जाए। -हुकुमचंद जैन, लेखक-इतिहासकार(मदन कलाल,दैनिक भास्कर,जयपुर,14.8.11)

महाराष्ट्रःनहीं मिली नए कालेजों को मंजूरी

Posted: 13 Aug 2011 06:36 PM PDT

चालू शैक्षणिक सत्र में उच्च शिक्षा विभाग एक भी नए कालेज खोलने की अनुमति देने के मुड में नहीं है। यही वजह है कि कालेज शुरू करने की अनुमति देने की अंतिम समय सीमा समाप्त हुए डेढ़ माह गुजर गया है। अभी तक विभाग ने राज्य भर की विवि से आए किसी भी प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं की है।

राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय से नए कालेजों के 85 प्रस्ताव भेजे गए थे। इसके साथ ही प्रवेश क्षमता बढ़ाने तथा नए पाठच्यक्रम शुरू करने के प्रस्ताव भी भेजे गए थे। विभाग ने अभी तक विवि से संबद्ध महाविद्यालयों में नए पाठच्यक्रम शुरू करने के प्रस्ताव को ही मंजूरी दी है। शेष प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सूत्रों की मानें तो एआईसीटीई के बाद विभाग ने भी नए कालेज नहीं देने का मन बनाया है। विभाग के इस रूख से बेचैन शिक्षण संस्था संचालकों ने मुंबई का रूख करने की तैयारी पूरी कर ली है।


उच्च शिक्षा विभाग के साथ ही तकनीकी शिक्षा विभाग ने भी इस वर्ष राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा भेजे गए व्यवसायिक पाठच्यक्रम के प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं की है। यदि मान्यता देना ही होता तो 15 जुलाई तक मान्यता मिल गई होती। किन्तु विवि को अभी तक इस संबंध में कोई पत्र नहीं भेजा है। संस्था संचालकों को उम्मीद थी कि जुलाई में न सही अगस्त के प्रारंभ में हुई कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव पर मुहर लग जाएगी। सूत्रों ने बताया कि बैठक में इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर चर्चा नहीं हुई। 
प्रस्तावों को मान्यता क्यों नहीं मिली है अभी तक इस संबंध में कोई भी कारण ज्ञात नहीं हो पाया है। उल्लेखनीय है कि गत मई माह में विवि महाविद्यालय व विश्वविद्यालय विकास मंडल की ओर से शैक्षणिक सत्र 2011-12 में 65 नए कालेज शुरू करने के प्रस्ताव को मान्यता देने के लिए विभाग के पास भेजा था। इसके अलावा कुछ प्रस्ताव सीटों में इजाफे के भी थे। इनमें से किसी भी प्रस्ताव को अभी तक मान्यता नहीं मिली है। 

पहले लगा मुंबई हमले ने रूकवाया फैसला

प्रस्ताव को मान्यता अभी तक क्यों नहीं मिली इस संबंध में कारण अज्ञात है। किन्तु गत 15 जुलाई की समय सीमा निकलने के बाद संस्था संचालकों को लगा कि मुंबई में गत दिनों हुए तीन बम विस्फोट के कारण अभी प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं हो पाया है। सरकार अभी विस्फोट प्रकरण में व्यस्त होने के कारण प्रस्ताव की फाइल पर हस्ताक्षर नहीं हुए है। जबकि विभाग के अधिकारियों की मानें तो विस्फोट का प्रस्ताव से कोई संबंध नहीं है। सूत्रों ने कहा कि संभवत: इस वर्ष सभी पाठच्यक्रमों में विद्यार्थियों के टोटे को देखते हुए विभाग ने प्रस्ताव को मान्यता नहीं दी होगी(दैनिक भास्कर,नागपुर,14.8.11)।
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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