"शिव" से बडा सर्वहारा कौन है ?
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शिव भारत भावरूप हैं , शिव तो भारत का लोकमन हैं ।
इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ?
इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ?
यदि लोकवार्ता का कोई अध्येता भारत के लोकमानस का अध्ययन करना चाहता है तो उसे भोलानाथ से स्पष्ट कोई दूसरा सूत्रग्रन्थ नहीं मिल सकता ।
सचाई तो यह है कि शिव को छोड कर भारत के लोकमानस का कोई भी अध्ययन पूरा हो ही नहीं सकता है ?
वह आर्य भी है ,अनार्य भी है , वह द्रविड भी है , वह कोलकिरात भी है । वह क्या नहीं है ?
वह जितना देवों का है उतना ही असुरों का है ।शिव मानो भारतीयता की मूर्तिमान व्याख्या हैं ।
शिव तो भारत का लोकमन हैं । इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ? शिव भारत भावरूप हैं ।
लोकमानस की वह विराट भावसंपदा शिव की मंगलमूर्ति में समाहित है ।
भारत के वे सभी कबीले उनके बराती हैं ।
भारत में विविधताऒं और अनेकता भेद-भिन्नता की बात करते हैं किन्तु आप गौर से देखिये क्या सचमुच वे सारे भेद शिव में आकर एकरस एकाकार हो गये हैं !
उसके यहां कोई जातिभेद है न वर्णभेद ?
शिव से बडा अघोरी भी कौन है , छूआछूत उसकी देहरी को भी नहीं लांघ सकी ।
शिव से बडा कोई वैष्णव है क्या ? वैष्णवानां यथा शंभु :। वह विष्णु में ऐसा रमा कि हरिहर हो गया और शक्ति में ऐसा रमा कि अर्धांगीश्वर हो गया । उससे बडा सर्वहारा कौन है ?
भारत के आम-आदमी को देखिये और फिर शिव को देखिये !
कितना भोला है , कितना सरल-सहज है ,किन्तु प्रलयंकर भी वही है । लेकिन यह लोक जहर ही तो पीता है । शिव वह विश्वंभर है ।
पशुपति है ।वह शिव है और रुद्र भी है । तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में ।स्मशानवासी है ।वह विषपायी है । सबको अमृत बांट कर वह जहर पी जाता है ।
by -Rajendra Ranjan Chaturvedi
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