धर्मोन्माद की चपेट में एपार बांग्ला ओपार बांग्ला
बीच में बहती हैं तीस्ता और गंगा
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में एपार बांग्ला ओपार बांग्ला
बीच में बहती हैं तीस्ता और गंगा
बेहद बुरा वक्त बांग्लादेश यात्रा के लिए चुना है बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने।हालांकि अराजकता और हिंसा से गिरी बेगम हसीना वाजेद ने प्रोटोकाल तोड़कर स्वागत से लेकर सुरक्षा इंतजाम उनका किसी राष्ट्राध्यक्ष के बराबर कर दिया लेकिन सीमा के उस पार तमाम मुद्दे बेमतलब हो गये देश व्यापी हिंसा और अराजकता के माहौल में।हालांकि बीबीसी के मुताबिक हसीना के विरोधी जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी उन पर भारत की पिछलग्गू होने का आरोप लगाते हैं, भारत के लिए उन्होंने काफ़ी कुछ किया है लेकिन बदले में बांग्लादेश को कुछ नहीं मिला है। अगर तीस्ता और भूमि सीमा समझौता हो जाता है, अगर मोदी और ममता इसे मिलकर आगे बढ़ाते हैं तो शेख हसीना की पकड़ बांग्लादेश की राजनीति में और मज़बूत होगी। इससे शेख हसीना कह सकेंगी कि भारत से हम यह हासिल कर पाए हैं। इससे बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने वाले भारत समर्थकों का हाथ मज़बूत होगा। जीरो ग्राउंड पर हकीकत यह है कि भाजपा और मोदी का सरकार दोनों इस वक्त बंगविजय के मोड में हैं और दीदी को बांग्लादेश यातारा की कामयबी का सेहरा बांधने का कोई मूड उनका लगता नहीं है।उल्टे दीदी को जल्द से जल्द जेल भेजने की तैयारी है।राजनय के मामले में मोदी दीदी कोई रसायन पका है,इसके आसार कहीं से दीखते नहीं हैं।
इसी बीच मुकुल राय और ममता बनर्जी के बीच पूर्ण अलगाव की उलटी गिनती शुरू हो गयी है। नयी दिल्ली में मुकुल राय के आवास से शुक्रवार को ममता बनर्जी का सभी सामान हटा कर उसे अभिषेक बनर्जी के आवास में शिफ्ट किया गया।
मुकुल राय के उक्त आवास को तृणमूल के कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. ममता के सामान को वहां से हटाकर अभिषेक के आवास में शिफ्ट करने के बाद यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि दिल्ली में तृणमूल का कार्यालय अभिषेक का फ्लैट ही होगा। शुक्रवार को हटाये गये सामान में खाट,ट्रीडमील, कंप्यूटर व अन्य सामान हैं. इस संबंध में मुकुल राय का कहना है कि उन्हें इस बाबत कुछ नहीं मालूम।उस फ्लैट में वह नहीं रहते थे।
दूसरी तरफ ,बांग्लादेश में आम जनता की जान माल की कोई गारंटी वहीं है नहीं।फिर जिस तीस्ता को लेकर लंबित विवाद है,वह सूखी नदी है इस मौसम में।इस पार के किसानों को सिंचाई का पानी मिल नहीं रहा है तो दीदी के लिए बांग्लादेश को कोई खास रियायत देने का मौका नहीं है।कोलकाता में तो वे तीस्ता प्रश्न टालती रही हैं लेकिन ढाका में सबसे बड़ा सवाल यही है।गंगा जल बंचवारे के मुद्दे पर भी दीदी के रवैये सेखुश नहीं है बांग्लादेश।
गौरतलब है कि बांग्लादेश में 21 फरवरी को आयोजित होने वाले कार्यक्रम 'भाषा दिवस' में भाग लेने के लिए बांग्लादेश की सीएम ममता बनर्जी दौरे के लिए निकल गई है। सीएम 19-22 फरवरी तक चार दिवसीय दौरे पर बांग्लादेश में रहेंगी और भाषा दिवस के साथ ही वहां कई समारोह में भाग लेंगी। साथ में साहित्यकार शीर्षेदु मुखर्जी टॉलीवुड से अभिनेता प्रसेनजीत, निर्माता श्रीकांत मोहता, निर्देशक गौतम घोष व नचिकेता बांग्लादेश गये हैं। कवियों में सुबोध सरकार, शांतनु महाराज, कल्याणी काजी, इंद्रनील सेन, सौमित्र राय व शिवाजी पांजा भी साथ हैं।पत्रकारों का बहुत बड़ा दल भी बांग्लादेश घूमने निकला है।
दीदी ने शुरुआत कोई बहुत अच्छी की है,ऐसा कहा नहीं जा सकता क्योंकि बांगल्देश के लिए सबसे अहम तीस्ता जल बंटबारे को लेकर रवानगी से पहले कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दियाहै, लेकिन इसके साथ ही कहा कि इस संबंध में वहबांग्लादेश जाकर ही कोई बात करेंगी।हालांकि छिट महल के संबंध में दीदी ने कह दिया कि कि उन्होंने केंद्र सरकार को प्रस्ताव दिया है। जमीन विवाद के समाधान में 17000 एकड़ जमीन पर बसे लोगों के पुनर्वास की जरूरत है। इसके लिए केंद्र सरकार से मदद की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश यात्र के पहले 111 बांग्लादेशी कैदियों को छोड़ा गया है। इस वर्ष कुल 267 कैदियों को छोड़ा जा चुका है. 2011 में 773, 2012 में 1826, 2013 में 3127 तथा 2014 में 2424 कैदियो को छोड़ा गया था।
बांग्लादेश को लेकर जो खेल चल रहा है,वह भारत के हितों के मुताबिक कितना खेल बना सकता है या बिगाड़ सकता है,अंदाजा लगाना मुश्किल है क्योंकि हर मुद्दे पर बंगाल सरकार और भारत सरकार एक दूसरेके पाले में गेंद फेंक रही हैं।इसतरह कोईसकारात्म पहल की उम्मीद तो दीखती नहीं है।गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नीति आयोग की बैठक में नहीं शामिल हुईं। बैठक में 31 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
सबसे खराब बात तो यह है कि शारदा फर्जीवाड़े के सिलसिले में बांग्लादेशी कट्टर पंतियों की मदद और जमात गठबंधन से तृणमूली गठजोड़ के खुल्ले आरोप जो लग रहे हैं उस पार के मीडिया में वह बेहद असहज बना रही है इस दौरे को। हसीना के लिए मजबूरी है कि भारत का समर्थन उन्हेंमिलता रहे क्योंकि ढाका में चर्चा यह भी है कि संघ परिवार के तार लेकिन उनके प्रबल प्रतिद्वंद्वी खालिदा जिया के साथ जुड़े हैं।भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने हालांकि दीदी की रवानगी से पहले बधाई दीदी को दे दी है।दीदी ने गलियारों के हस्तांतरण के वायदे को दोहराया है।गलियारों का मुद्दा भी उतना सरल है नहीं।दोनों तरफ गलियारों में फंसे लोग हस्तांतरण से जितने खुश हो सकते हैं,अपने हालात बदलने के आसार होते ही वे बदले बदले नजर आ सकते हैं,जिसका खामियाजा बाकी बंगाल में भी भुगतना है।
सबसे बड़ा जोखिम बांग्लादेश में परिस्थितियां इतनी नाजुक हैं कि कोई भी राजनयिक चूक वहां फंसे हुए अल्पसंख्यकों पर पड़ना लाजिमी है।चूंकि बांग्लादेश में हसीना और उनके दल आवामी लीग को शुरु से भारत समर्थक माना जाता है तो इस्लामी कट्टरपंथ और निरपेक्ष तबके में भी माना यही जा रहा है कि हसीना भारत के हितों के मुकताबिक काम करती रही है।
हिंद महासागर क्षेत्र में तेलक्षेत्र के हस्तांतरण को बांग्लादेश में बहुत बडा़ मुद्दा बनाया गया है और कहा जा रहा है कि बांग्लादेश के तेलक्षेत्र हसीना ने भारत को गिफ्च कर दिया है।इसीतरह सुंदरवन में बिजलीपरियोजना लगाने के मुद्दे पर भी ढाका में भारत विरोधी तेवर हैं।
इस पार बंगाल में भी हालात बहुत ठीक नहीं है जहां धर्मांध राजनीति के फूल बंगाल की सर जमीं पर खूब खिल रहे हैं।शारदा फर्जीवाड़े मामले में सीबीआई का जाल सिमता जा रहा है।दीदी घिरती जा रही हैं और उनके खासमखास पार्टी का संगठन समेत कभी भी केसरिया शिविर में समाहित हो सकते हैं।भीतरघात की कोशिश वनगांव में भी हो चुकी है।जिसपर तिलमिलाकर दीदी ने खुद मुकुल के लिए अलग रास्ता खोल दिया है।भले ही संघविरोधी ध्रूवीकरण की वजह से वनगांव लोकसभा उपचुनाव और कृष्णगंज विधानसभा उपचुनावों में वोट टूटे नहीं हैं दीदी के।उनका करिश्मा अटूट है।इसके उलट वाम वोटों में लगातार गिरावट और बंगाल में हर चैथे नवोटर के केसरिया हो जाने की परिस्थिति में अगर तृणमूल के कुछ महाबलि मुकुल के साथ केसरिया खेमे में खुलकर निकल गये तो कहना मुश्किल है कि दीदी के अटूट वोटबैंक का क्या होना है।
बंगाल में जो प्रबल धर्मोन्माद है इसवक्त और जो धार्मिक ध्रूवीकरण होता साफ नजर आ रहा है,बांग्लादेश के प्रति तनिक उदारता भी इस उन्माद और ध्रूवीकरण को तेज करने में मददगार हो सकती है।
केंद्र से राजनयिक पहल कोई हो नहीं रही है और बांग्लादेश में निरंतर हालात ऐसे बिगड़ रहे हैं कि कारोबार से लेकर खेती तक चौपट है,पूरा बांग्लादेश अवरुद्ध है और रोज खून की नदियां वहां बह रही हैं। ऐसे हालात में अराकता जो है वह कभी भी कहर बनकर अल्पसंख्यकों पर गजब कयामत ठा सकती है और हो नहो,इसका सबब दीदी का यह असमय सफर भी बन सकता है।
हसीना के साथ खड़ी दीदी और उनके लिए हसीना का राष्ट्राध्यक्ष जैसा बंदोबस्त कट्टरपंथियों की सुलगायी आग में घी का काम खूब कर सकती है।
जबकि मुकुल को पार्टी से बेदखल करने और पार्टी की मिल्कियत पर मुकुल के दावे के परिदृश्य में बांगालदेश के हालात के बजाय दीदी की नजर दिल्ली और कोलकाता की हलचल में फंसी होगी।
दरअसल बंगाल के मुख्यमंत्री का बांग्लादेश सफर कोई सांस्कृतिक आदान प्रदान या ईलिश की आवाजाही सुनिश्चित करने जैसा कोई मामला नहीं है जबकि वहां हालात तख्तापलट के जैसे हैं और भारत सरकार पर काबिज संघ परिवार के शत प्रतिशत हिंदुत्व और 2021 तक भारत में इस्लाम के सफाये के ऐलान और असम में जब तब होते दंगों एक मुद्दों को लेकर गजब का भारतविरोदी माहौल वहा है और संघ परिवार और तृणमूल दोनों के तार जमात और खालिदा के साथ जुड़े ताये जाते हैं।
बहरहाल पड़ोसी देश की यात्रा पर जाने से एक दिन पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बांग्लादेश की यात्रा मेरे लिए गौरव की बात है। बुधवार को राज्य सचिवालय नवान्न में पत्रकारों से बात करते हुए ममता ने कहा कि उनकी यात्रा से बंगाल व बांग्लादेशके संबंध और मजबूत व मधुर होंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि बांग्लादेश में भाषा शहीदों को श्रद्धांजलि देना मेरे लिए ऐतिहासिक क्षण होगा। उन्होंने कहा कि हमारी भाषा, संस्कृति, खानपान, शिष्टाचार आदि सब एक समान है। इसलिए इस यात्रा से दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ होंगे।
ममता बनर्जी ने बताया कि उन्हें बांग्लादेश जाते हुए ऐसा लग रहा है कि वह अपने देश में ही जा रही हैं। बांग्लादेश में ममता बनर्जी कई कार्यक्रमों में भाग लेंगी और कई रैलियों को संबोधित भी करेंगी। ममता बनर्जी ने बताया, 'मुझे बांग्लोदश सरकार ने आमंत्रित किया था। इन दिनों बांग्लादेश और भारत के बीच संबंध ठीक है। भारत और बांग्लादेश दोनों देशों की सरकारों ने घुसपैठ करने वाले लोगों को रिहा किया है। मैं वहां दोनों देशों के बीच चल रहे भूमि अधिग्रहण विवादों को सुलझाने पर जोर दूंगी।'.
बांग्लादेश की जो धर्मनिरपेक्ष ताकतें है और जो लोकतांत्रकिक पक्ष है,उसके लिए भी दीदी की इस यात्रा से हासिल करने लायक कोई परिस्थिति है नहीं।
विडंबना यह है कि इस यात्रा के बाद अगर बांग्लादेश में हालात और खराब होने के हालात बनते हैं और अल्पसंख्यक उत्पीड़न का सिलसिला जारी रहता है,तो फिर शरणार्थी सैलाब सीमापार से उमड़ने का खतरा है जिसेस और तेज होगा बंगाल में धारिमिक ध्रूवीकरण और धर्मोन्माद दोनों।
हालात कुल मिलाकर यह है कि सीमा के इसपार और उसपार परस्थितियां अत्यंत संवेदनशील है ,जिसपर राजनीति तो बहुत घनघोर है लेकिन न बंगाल की तरफसे न भारत सरकारी की तरफ से राजनयिक तैयारी कोई हुई है।
खामोश बह रही हैं तीस्ता और गंगा।
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