Sunday, June 15, 2014

सहानुभूति, स्वानुभूति की बजाय सामूहिक अनुभूति जिसका प्रबल स्वर-संगीत हो वही आदिवासी साहित्य है. आप क्या कहते हैं?


सहानुभूति, स्वानुभूति की बजाय सामूहिक अनुभूति जिसका प्रबल स्वर-संगीत हो
वही आदिवासी साहित्य है. आप क्या कहते हैं?
आदिवासी साहित्य का रांची घोषणा-पत्र

आदिवासी साहित्य की बुनियादी शर्त उसमें आदिवासी दर्शन का होना है जिसके मूल तत्त्व हैं -

1. प्रकृति की लय-ताल और संगीत का जो अनुसरण करता हो.
2. जो प्रकृति और प्रेम के आत्मीय संबंध और गरिमा का सम्मान करता हो.
3. जिसमें पुरखा-पूर्वजों के ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल और इंसानी बेहतरी के अनुभवों के प्रति आभार हो.
4. जो समूचे जीव जगत की अवहेलना नहीं करें.
5. जो धनलोलुप और बाजारवादी हिंसा और लालसा का नकार करता हो.
6. जिसमें जीवन के प्रति आनंदमयी अदम्य जिजीविषा हो।
7. जिसमें सृष्टि और समष्टि के प्रति कृतज्ञता का भाव हो.
8. जो धरती को संसाधन की बजाय मां मानकर उसके बचाव और रचाव के लिए खुद को उसका संरक्षक मानता हो.
9. जिसमें रंग, नस्ल, लिंग, धर्म आदि का विशेष आग्रह न हो.
10. जो हर तरह की गैर-बराबरी के खिलाफ हो.
11. जो भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और आत्मनिर्णय के अधिकार पक्ष में हो.
12. जो सामंती, ब्राह्मणवादी, धनलोलुप और बाजारवादी शब्दावलियों, प्रतीकों, मिथकों और व्यक्तिगत महिमामंडन से असहमत हो.
13. जो सहअस्तित्व, समता, सामूहिकता, सहजीविता, सहभागिता और सामंजस्य को अपना दार्शनिक आधार मानते हुए रचाव-बचाव में यकीन करता हो.
14. सहानुभूति, स्वानुभूति की बजाय सामूहिक अनुभूति जिसका प्रबल स्वर-संगीत हो.
15. मूल आदिवासी भाषाओं में अपने विश्वदृष्टिकोण के साथ जो प्रमुखतः अभिव्यक्त हुआ हो.







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