Tuesday, June 10, 2014

रणवीर एनकाउन्टर का सच बाहर आना अभी बाकी है......


चन्द्रशेखर करगेती feeling sad : खाकी पहनने के बाद इंसान कहाँ गुम हो जाता है ?
18 hrs · Edited · 

रणवीर एनकाउन्टर का सच बाहर आना अभी बाकी है......

कल एमबीए छात्र रणवीर सिंह की फर्जी एनकाउंटर में हत्या के मामले में में दोषी ठहराये गए 17 पुलिस कर्मियों को न्यायालय ने सजा तो सुना दी है जिसका मैं व्यक्तिगत तौर पर मैं सम्मान करता हूँ, इस मामले में इतनी उम्मीद तों निचली अदालत से तों थी ही !

परंतु यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है, मामले में सीबीआई ने जिस तरह से जांच की थी वह भी अपने आप में खामियों वाली ही है, आम तौर पर भारत में देखा गया है कि जब भी इस प्रकार की जांचों में अपराधों का खुलासा होता है तो प्रशासन के बड़े अधिकारियों को छोड़ दिया जाता है, जबकि व्यवहार में यह अंतर देखा गया है कि इस प्रकार के मामलों में उनकी महती भूमिका होती है, और जब मामला किसी अपराधी को एनकाउन्टर कर मार गिराने का होता है तो ऐसे मामले में इन्सपेक्टर और सब-इंस्पेक्टर के द्वारा निर्णय नहीं लिए जाते हैं l

रणवीर के एनकाउंटर में भी ऐसा ही हुआ था, यह तथ्य जांच के दौरान विचारणीय था कि जिस वक्त यह घटना हुई थी, उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल मसूरी आ रही थीं । चेकिंग अभियान के दौरान यह घटना हुई, राष्ट्रपति की सुरक्षा को लेकर दून में तैनात पुलिसकर्मियों ने रणवीर को सिर्फ इसलिए पकड़ा और बाद में मार गिराया ताकि उसकी सतर्कता और सजगता पर देश भर का ध्यान जाए । इस कारण रणवीर की गिरफ्तारी को राष्ट्रपति की सुरक्षा से जोड़ा गया था । दून पुलिस पर एनकाउंटर का बुखार इस कदर चढ़ा था कि उन सिपाहियों को भी इस मामले में शामिल कर लिया गया जो जाैली ग्रांट या किसी अन्यत्र स्थान पर राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे । इस एनकाउंटर के बाद पुलिस के तमाम बड़े आला अधिकारीयों ने मीडीया को संबोधित करते हुए बड़ी वाह-वाही लूटी थी, और शायद बाद में इनामों की घोषणा भी हुई थी ? लेकिन कुछ ही समय बाद पुलिस के आला अधिकारियों की बनायी कहानी की परते एक एक कर उधडने लगी, जिसकी सजा छोटे स्तर के इन्सपेक्टर और सब-इंस्पेक्टर और सिपाहियों को भुगतनी पड़ रही है, जो केवल मात्र अपने उच्च अधिकारियों के हुक्म को बजा लाने को ही होते है, जिनकी इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि वे फरमान की नाफरमानी कर सकें l

बड़ा सवाल यह भी है कि रणवीर एनकाउंटर को राष्ट्रपति की सुरक्षा से जोड़ने से पहले निश्चित रूप से आला अफसरों की राय ली गई होगी, ऐसा कदापि संभव नहीं है कि राष्ट्रपति शहर में हो और उनके सुरक्षा से जुड़े मसले पर एक दारोगा बिना अपने उच्च अधिकारियों के निर्देश के इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने का निर्णय कर अकेला कर ले, और जब मामला एनकाउन्टर जैसे बड़े मामले का हो । इस एनकाउन्टर से जुड़े आला अफसरों के नाम अब तक सामने नहीं आए हैं ।

मामले में अभियोजन और बचाव दोनो ही उच्च न्यायालय में जाने की बात कर रहें हैं, उच्च न्यायालय में बैठे विद्वान न्यायाधीश सीबीआई जांच में रह गयी कमियों को भी पकड़ेंगे, ऐसे में यह मानकर चलना चाहिए कि इस प्रकरण से कुछ नाम हटेंगे तों कुछ उच्च अधिकारियों के नाम भी जुडेंगे, ये अधिकारी वे हैं जो आज भी देहरादूनन या आसपास के जिलों में तैनात हैं । अगर मामला उच्च न्यायालय पहुंचता है तो उत्तराखंड के कुछ बड़े पुलिस अफसरों की नींद भी जरुर खराब होगी, क्योंकि यदि हाईकोर्ट में मामला पहुंचा तो जांच की आंच उन तक भी पहुंच सकती है जो इस घटना में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी रूप में भागीदार रहे हैं ।

इन सब संभावनाओं के बीच कानून के खिलाड़ी दावपेंच चलाते रहेंगे, लेकिन दोषियों को मिलने वाली बड़ी से बड़ी सजा से शायद रणवीर वापस नहीं आ पायेगा, पर घटना से समाज के बीच ही रहने वाले पुलिसकर्मी सबक तों ले ही सकते हैं, चाहे वह कितना बड़ा और कितना बड़ा पुलिस कार्मिक क्यों ना हो !

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