| Sunday, 03 June 2012 17:10 |
प्रियंका सोनकर यानी डॉ आंबेडकर ने दलितों के अंदर वह चेतना जगाई, जो उनके पहले किसी ने भी उनमें नहीं जगाई थी। उनके अधिकारों के प्रति चेतना। उन्होंने दलितों को वह अधिकार वापस दिलाया जो इस संसार में मनुष्य होने के नाते उनके पास होने चाहिए। आज अगर दलित हिंदू धर्म अपना रहे हैं और अपने घरों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां रख कर पूजा कर रहे हैं तो यह उनकी अज्ञानता है, न कि आंबेडकर द्वारा दलितों को उनका मनुष्य के रूप में दिलाया गया अधिकार। आंबेडकर ने साफ-साफ कहा था कि यह धर्म हमें गुलाम बनाता है। उन्होंने कहा कि 'हिंदुओं की गिनती उन अविश्वासी लोगों में की जा सकती है, जिनकी करनी और कथनी में अंतर है। उन लोगों पर विश्वास मत कीजिए, जो एक ओर घोषणा करते हैं कि ईश्वर सभी में है और दूसरी ओर आदमियों के साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार करते हैं। ऐसे लोगों से संबंध मत रखिए, जो चीटियों को तो चीनी दें, पर आदमियों को सार्वजनिक कुंओं से पीने का पानी न लेने देकर मारें।' आंबेडकर ने हिंदू धर्म को छोड़ कर बौद्ध धर्म ग्रहण करने के लिए कहा था। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म अत्यंत व्यावहारिक है, जो मनुष्य के चरमोत्कर्ष का साधन है। उनके अनुसार 'धर्मांतरण कोई खेल नहीं। न तो यह मौज या मनोरंजन का विषय ही है। यह तो संपूर्ण दलित समाज के जिंदगी और मौत का प्रश्न है। व्यक्ति के विकास के लिए समाज की आवश्यकता है, तब भी समाज की धारणा धर्म का अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता। व्यक्ति का विकास ही धर्म का वास्तविक उद्देश्य है, ऐसा मैं समझता हूं। जिस धर्म में व्यक्ति का कोई महत्त्व नहीं है, वह धर्म मुझे स्वीकार नहीं।' इन सब बातों को ध्यान में रख कर देखें तो कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि डॉ आंबेडकर ने दलितों को हिंदू धर्म ग्रहण करने के लिए बाध्य किया हो या फिर बौद्ध धर्म ग्रहण करने के लिए। ऐसे में दलितों के हिंदू धर्म अपनाने या फिर हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए आंबेडकर को जिम्मेदार ठहराना कहां तक उचित है? |
Friday, June 8, 2012
आंबेडकर से शिकायत क्यों
आंबेडकर से शिकायत क्यों
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