अतिविशिष्टों की सुरक्षा पर खर्च का ब्यौरा मांगा सुप्रीम कोर्ट ने , अब बाकी खर्च के खुलासे का भी इंतजार!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हमें नहीं मालूम कि रंग बिरंगे राजनीतिक दलों के सत्ता और सत्ता से बाहर शीर्षस्थ नेताओं के स्वदेश विदेश यात्राओं पर कितना खर्च आता है। यह वाकई स्वागत योग्य है कि उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों तथा केंद्र शासित प्रदेशों से अतिविशिष्ट व्यक्तियों के परिजनों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों सहित विभिन्न श्रेणी के व्यक्तियों को उपलब्ध करायी जा रही सुरक्षा पर हुये खर्च का विवरण मांगा है।न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की खंडपीठ ने लाल बत्ती की गाड़ियों के दुरुपयोग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि वे राष्ट्रप्रति, प्रधानमंत्री और राज्यों में इसके समकक्ष सांविधानिक पदों पर आसनी व्यक्तियों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च का विवरण नहीं चाहते हैं।हेलिकॉप्टर सौदे का मामला भी तो अतिविशिष्टों की सुरक्षा से संबंधित है। बिना किसी संवैधानिक पद के राजनेता जनता का पैसा जैसे उड़ाते हैं, उसका तो लेखा जोखा ही नहीं है। राज्य के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों का हाल तो यह है कि वे राज्य में कम, राज्य के बाहर ज्यादा दीखते हैं। आजकल निवेश एक बड़ा बहाना जो हो गया है। अगर केंद्र में मंत्री या अफसर हो गये, समितियों में सदस्य वगैरह बन गये, तो हिसाब कौन मांगें? इसीतरह आयोगों, संसदीय और विशेषज्ञ कमिटियां जो पूरे सुरक्षा तामझाम के साथ काम करती हैं, उनपर होने वाले खर्च भी कभी मालूम नहीं पड़ता।
इन खर्चों की एक बानगी हेलिकॉप्टर घोटाले से सामने आयी है। हेलीकॉप्टर सौदे में हर दिन अब नए-नए खुलासे हो रहे हैं। एक अंग्रेजी अखबार ने दावा किया है कि इटली की कंपनी ऑगस्टा-वेस्टलैंड ने भारत से हेलिकॉप्टर सौदे को अपने पक्ष में करने के लिए वो सब कुछ किया जो उससे बन पड़ा। अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एस. पी. त्यागी के रिश्तेदारों तक पहुंच बनाने के लिए कैश के साथ-साथ लड़कियों का भी इस्तेमाल किया गया था। इटली के प्रॉसिक्यूटर्स के जरिए जमा किए गए दस्तावेजों में ये बात सामने आई है।जांचकर्ताओं ने इस डील के बिचौलियों की बातचीत का ब्योरा इटली के कोर्ट में पेश किये हैं। इसके मुताबिक, दलालों की गर्लफ्रेंड्स के जरिए त्यागी के रिश्तेदारों से संपर्क साधा गया। खासकर जूली त्यागी से, जिसे इस मामले में रकम दिए जाने का दावा जांचकर्ता कर रहे हैं। जांच रिपोर्ट के मुताबिक, डील के लिए त्यागी परिवार से समझौता हुआ था लेकिन रकम जूली त्यागी को सौंपी गई थी। त्यागी परिवार के सदस्यों और अगस्ता-वेस्टलैंड के बिचौलियों के बीच दोस्ती की शुरुआत सन् 2001 में हुई थी, जब कार्लो गेरोसा इटली में एक शादी में जूली से मिला था। 2000-01 में ही भारतीय वायुसेना ने अतिविशिष्ट लोगों के लिए वीआईपी हेलिकॉप्टर की मांग रखी थी।इस बीच, सीबीआई जांच पूरी होने तक भारत सरकार ने इटली की कंपनी को बाकी भुगतान पर रोक लगा दिया है और बचे हुए 9 हेलिकॉप्टरों की डिलिवरी भी नहीं लेगी। करीब 3600 करोड़ रुपये के इस सौदे के लिए भारत में 350 करोड़ से ज्यादा की रिश्वत देने के आरोप में फिनमेकेनिका के सीईओ जूसिपी ओरसी को इटली में सोमवार को ही गिरफ्तार किया जा चुका है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत अतिविशिष्ट लोगों के लिए 12 एडब्ल्यू-101 हेलीकॉप्टरों के लिए इटली की कंपनी से डील हुई है, जिसमें 3 हेलिकॉप्टरों की डिलिवरी हो चुकी है और कंपनी को करीब 1200 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया जा चुका है।जांच रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में दलाल का दावा है कि वह त्यागी के एयर चीफ मार्शल रहते उनसे 6 से 7 बार मिला था। यह त्यागी के उस दावे के बिल्कुल उलट है, जिसमें उन्होंने माना था कि उनकी मुलाकात उस व्यक्ति से एक बार हुई थी, जिसे इस सौदे में दलाल बताया जा रहा है। त्यागी 3600 करोड़ रुपये के इस सौदे में रिश्वत लेने की बात से साफ इनकार कर चुके हैं।इटली के जांतकर्ताओं ने त्यागी के रिश्तेदारों जूली, डोस्का और संदीप की पहचान उन मध्यस्थों के रूप में की है, जिन्होंने फिनमेकेनिका को 3600 करोड़ रुपये की हेलिकॉप्टर डील दिलाने में मदद की। अगस्ता-वेस्टलैंड फिनमेकेनिका ग्रूप की यूनिट है। जांचकर्ताओं का कहना है कि त्यागी परिवार को करीब 70 लाख रुपये की रिश्वत दी गई। दलाली की बाकी रकम आईडीएस इंडिया नामक कंपनी ने सर्विस कॉन्ट्रैक्ट के जरिए संबंधित लोगों तक पहुंचाए।
जे की बात है कि नैतिकता की दुहाई देने वाली पार्टी भाजपा के वरिष्ठ नेता जसवंतसिंह ने राजग शासन के दौरान 2003 में हेलीकॉप्टर खरीद के मानदंडों में बदलाव किए जाने के फैसले को सही बताते हुए गुरुवार को दावा किया कि ऐसा विशुद्ध रूप से व्यावसायिक कारणों से किया गया था, जिससे कि इसे सौदे को प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके।
राजग सरकार में रक्षामंत्री रह चुके सिंह ने कहा कि यह सही है कि उस समय तकनीकी मानदंड में बदलाव किया गया था, लेकिन इसे लेकर हो रहे हो-हल्ले की कोई वजह नहीं है क्योंकि ऐसा अच्छे कारणों के लिए किया गया था।उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में मूल प्रस्ताव आया और वायुसेना ने कहा कि अतिविशिष्ट व्यक्तियों की आवाजाही के लिए खरीदे जाने वाले इन हेलीकॉप्टरों की 18000 फुट उंचे तक उड़ सकने की क्षमता होनी चाहिए, लेकिन जब यह प्रस्ताव सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति में आया तो तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र ने सही सुझाव दिया कि एकल विक्रेता प्रस्ताव उचित नहीं रहेगा। उस समय केवल एक ही कंपनी 18000 फुट तक की ऊंचाई तक उड़ने वाले हेलीकॉप्टर बनाती थी।
न्यायाधीशों ने कहा, 'केन्द्र, सभी राज्य सरकारें और केन्द्र शासित प्रशासक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में उनके समकक्ष सांविधानिक पदाधिकारियों से इतर सार्वजनिक व्यक्तियों ओर निजी व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने पर हुये कुल खर्च का विवरण पेश करेंगे।'न्यायालय ने करीब दो घंटे की सुनवाई के बाद यह आदेश दिया। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने सुरक्षा प्रदान करने के प्रावधानों और लाल बत्ती लगाने के नियमों के दुरुपयोग के बारे में अनेक उदाहरण पेश किये।
उन्होंने रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी से संबंधित घटना का जिक्र करते हुये कहा कि अपने सुरक्षाकर्मियों और समर्थकों से घिरे रेल राज्य मंत्री ने पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद मे जिलाधिकारी के सरकारी मकान में घुसकर तोड़फोड़ की।
तमिलनाडु सरकार के हलफनामे का जिक्र करते हुये सालवे ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत में प्रदान सम्मान के कारण ही आर्कोट के राजकुमार को सुरक्षा प्रदान की जा रही है।उन्होंने कहा, 'यह समस्या अब एक बीमारी का रूप ले चुकी है और यह राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है।' उत्तर प्रदेश के निवासी अभय सिंह की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने साल्वे द्वारा पेश दो दस्तावेज के अवलोकन के बाद अनेक निर्देश दिये।
न्यायालय ने कहा,'यदि सड़कें असुरक्षित हैं तो यह राज्य के सचिव के लिये भी असुरक्षित होनी चाहिए।' इससे पहले, साल्वे ने भी पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल के अंतिम संस्कार के दौरान तीन दिसंबर को अति विशिष्ट व्यक्तियों के सुगम आवागमन के लिये यातायात रोकने और सुरक्षा बंदोबस्त को लेकर एक अर्जी दायर की थी।
याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सिंघवी ने टिप्पणी की, 'आई के गुजराल ने अपने जीवन काल में ऐसा नहीं किया होगा लेकिन उनके शव ने ऐसा कर दिया।' साल्वे ने कहा, 'मैं तो सिर्फ न्यायालय का ध्यान आकषिर्त करना चाहता हूं कि हमारी कॉलोनी में ही एक आलीशान मकान के सामने हरियाणा पुलिस की पांच गाड़ियां तैतान हैं ओर पूछताछ के दौरान पता चला कि वे मुख्यमंत्री के एक रिश्तेदार की सुरक्षा में हैं।'
साल्वे ने कहा, 'एक राज्य की हथियारों से लैसे पुलिस दूसरे राज्य की सीमा में कैसे प्रवेश कर सकती है। यह एक सिलसिला बन गया है। इससे पहले, एक व्यावसायी की पंजाब पुलिस ने एक मामले के संबंध में पिटाई की थी। खुशकिस्मती से उसके पास बेंगलुरू से दिल्ली की इंडियन एयरलाइंस की उड़ान का बोर्डिंग पास था। सभी इतने खुशकिस्मत नहीं हैं।'
न्यायाधीशों ने इन दस्तावेज का संज्ञान लेते हुये कहा कि सभी नागरिकों से समान व्यवहार होना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने राज्य के खर्च पर तमाम व्यक्तियों को प्राप्त सुरक्षा और इन पर होने वाले खर्च का विवरण पेश करने सहित अनेक निर्देश दिये।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, 'सार्वजनिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के बच्चों, परिवार के सदस्यों और दूसरे रिश्तेदारों को राज्य के भीतर और राज्य के बाहर प्रदान की गयी सुरक्षा का विवरण पेश किया जाये। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उन व्यक्तियों का भी विवरण पेश किया जाये जिन्हें शासन के खर्च पर सुरक्षा प्रदान की गयी है।'
विजय माल्या सरीखे उद्यमियों सहित तमाम व्यक्तियों को प्राप्त सुरक्षा के बारे में विभिन्न राज्य सरकारों के हलफनामों के आधार पर साल्वे की दलीलों पर विचार करते हुये न्यायालय ने निजी व्यक्तियों को प्राप्त ऐसी सुरक्षा के बारे में भी जवाब मांगा है। न्यायालय जानना चाहता है कि इस तरह की सुरक्षा का खर्च ये निजी व्यक्ति वहन करते हैं या फिर सरकार इसका खर्च उठा रही है।
न्यायालय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से ऐसे व्यक्तियों को प्रदान की गयी सुरक्षा की समय समय पर होने वाली समीक्षा का भी विवरण मांगा है।
न्यायाधीशों ने कहा,'सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश उन नियमों और आदेशों की प्रतियां भी दाखिल करेंगे जिनके तहत पुलिस या दूसरे पदाधिकारियों को व्यक्तियों के आवागमन के दौरान सड़कें बंद करने का अधिकार प्राप्त है।'
अतिविशिष्ट व्यक्तियों के आवागमन के दौरान सुरक्षाकर्मियों द्वारा साइरन बजाने से होने वाली परेशानियों के संदर्भ में न्यायालय ने इस मसले पर भी जवाब मांगा है। लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि एम्बुलेंस और सुरक्षा बलों के वाहन नियामक उपायों के दायरे में नहीं आयेंगे।
इस मामले की सुनवाई के दौरान साल्वे ने कहा कि केन्द्र सरकार को इस बारे में दिशा निर्देश तैयार करने और व्यक्तियों को दी गयी सुरक्षा की समीक्षा करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि राजनयिक कारणों और शासन के औपचारिक समारोंहों के अलावा सड़कों को बंद नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सालिसीटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा से जानना चाहा है कि किस आधार पर लोगों को सुरक्षा प्रदान की जा रही है।
इसी तरह न्यायालय ने केन्द्र सरकार से 'उच्च पदाधिकारियों' का तात्पर्य भी पूछा है। न्यायाधीशों ने सुनवाई के दौरान कहा कि अब तो लाल बत्ती की गाड़ी हैसियत का प्रतीक बन गयी है। हम खुद पहल करेंगे। हमारे वाहनों से लाल बत्ती हटायी जाये। न्यायालय ने इसके साथ ही इस बारे में गृह मंत्रालय से जवाब मांगा है।
इससे पहले, न्यायालय ने कहा था कि महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात पुलिस कर्मियों को सड़कों पर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने जैसे बेहतर कामों में तैनात किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा था कि यदि विभिन्न अदालतों के न्यायाधीशों की सुरक्षा हटाकर सड़कों पर तैनात कर दी गयी तो उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होगी।
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