यह भी गौर करने वाली बात है कि महिलाओं ने भारी बहुमत से ोबामा को जिताया। प्रजनन के बारे में स्त्री को ही ्धिकार जहां ओबामा का घोषित सिद्धांत है, वहां रोमनी गर्भपात के खिलाफ धर्म की दुहाई दे रहे थे। यहीं नहीं, रिपब्लिकन प्रचार में ओबामा की वजह से ईसाइत के खतरे में होने की चेतावनी देते हुए बराक ओबामा के मुसलमान होने की बात जोर शोर से कही जारही थी। यह धर्मोन्माद किसी काम के नहीं आया। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में भी धर्मोन्माद की कोई भूमिका नहीं होगी?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
खुले बाजार की अर्थव्यवस्था के समर्थक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को खारिज कर चुके हैं। संसद और लोकतांत्रिक व्यवस्था, संविधान को हाशिये पर रखकर भारत को अमेरिका बनाने की कवायद के जरिये कारपोरेट राज कायम हो चुका है। पर उसी अमेरिका में जनता ने कारपोरेट के उम्मीदवार मिट रोमनी की कड़ी शिकस्त देकर बाराक ओबामा की जीत के जरिए साबित कर दिया कि बाजार सर्वशक्तिमान नहीं होता। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर राज करने वाले यहूदी हिंदुत्व लाबी को अमेरिकी चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। देश में छाए रिसेशन के बाद बराक ओबामा दूसरे ऐसे राष्ट्रपति बने हैं जो राष्ट्रपति चुनाव में जीते हैं। इससे पहले फ्रेंकलीन रूजवैल्ट रिसेशन के बाद जीत कर राष्ट्रपति की गद्दी पर काबिज हुए थे।बराक ओबामा ने बुधवार को अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी के खिलाफ शानदार जीत दर्ज की और आर्थिक चिंताओं के बीच दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।संकट के प्रभाव से अर्थव्यवस्था को उभारने में ओबामा की क्षमता को लेकर संदेहों को दरकिनार करते हुए मतदाताओं ने यथास्थिति बनाए रखी है और डेमोक्रेट का सीनेट पर नियंत्रण बरकरार है, जबकि हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में रिपब्लिकन का नियंत्रण है।भारत के साथ मजबूत संबंध के पक्षधर 51 वर्षीय ओबामा पहले अश्वेत अमेरिकी हैं, जो व्हाइट हाउस तक पहुंचे हैं। वह कटु एवं महंगे प्रचार अभियान के बाद आसान जीत दर्ज करने में सफल रहे।कड़े मुकाबले में काफी कम मतों से होने वाले फैसले के पूर्वानुमान को गलत साबित करते हुए ओबामा को वर्जीनिया, मिशिगन, विस्कोनसिन, कोलेराडो, लोवा, ओहियो और न्यूहैम्पशायर में प्रथम चरण के कड़े मुकाबले के बाद काफी मत मिले।उन्हें 535 वोट कॉलेज में से 303 मत मिले, जबकि रोमनी को 206 मत मिले। इसके अलावा डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में उन्हें तीन मत मिले। किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 मत हासिल करने होते हैं।फ्लोरिडा का चुनाव परिणाम अभी सामने नहीं आया है। फ्लोरिडा में मतगणना कल तक के लिए रोक दी गई है और ओबामा को वहां कुछ फायदा मिल सकता है। फ्लोरिडा में 29 वोट हैं।ओबामा की जीत से ईरान के लोग भी राहत की सांस ले रहे हैं। मिट रोमनी की जीत ईरान के लिए युद्ध हो सकती थी।
रोमनी ने बाजार के हितों की बात करते हुए रोजगार सृजन का सपना दिखाया था, जबकि ओबामा सार्वजनिक उपक्रमों के जरिए रोजगार बढ़ने की बात करते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य बीमी सबके लिए लागू करने और दूसरी जनकल्याण योजनाओं के खिलाफ ओबामा के खिलाफ बाजार ने बाकायदा जिहाद छेड़ दिया था। रोमनी ने जीतने के बाद इजराइल की मर्जी मुताबिक विदेश नीति तय करने की बात करते हुए चीन को सबक सिखाने की हुंकार भरी थी। वे शीत युद्ध की वापसी का संकेत दे रहे थे। तो ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की धमकी भी दे रहे थे। वियतनाम और इराक के अनुभवों के आदार पर शांतिकामी अमेरिका ने उनकी चलने नहीं दी। अब रोमनी तो हार ही गये, अश्वेत मुस्लिम पिता के पुत्र ओबामा की जीत से धर्म निरपेक्ष और लोकतांत्रिक विश्व की जहां जीत हुई है, वहीं अमेरिकी युद्धक अर्थ व्यवस्था के आक्रामक कारपोरेट साम्राज्यवाद से फिलहाल विश्व को राहत मिली है। एक और शीत युद्ध,एक और तेल युद्ध टल जाने की उपलब्धि है ओबामा की जीत। पहले ही ईंधन संकट से जूझ रहे भारत के लिए यह और बड़ी राहत है। अभी तो छह सिलिंडर के लिए सब्सिडी मिल रही है, ईरान के खिलाफ युद्ध छिड़ा तो गैस और तेल की कीमते क्या होंगी, अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। अमेरिकी अर्थ व्यवस्था की चुनौतियां अब चाहे जो हों, वह इराक और अफगानिस्तान में दम न तोड़ें, ओबामा ने कम से कम यह सुनिश्चित किया है। तूफान सैंडी के मौके पर निर्वाचित सरकार के महत्व को उन्होंने कामायाबी से साबित किया, यह भारत के लिए भी एक सबक है।ओबामा को अंतिम क्षण में तब मदद मिली होगी, जब सैंडी चक्रवात ने अमेरिका के पूर्वी तट पर तबाही मचाई जिससे इसके बाद की स्थितियों से निपटने की उनकी दक्षता सामने आई।बहरहाल अमेरिकी जनता के भरोसे के बल पर बराक ओबामा अपने प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी की ओर से अर्थव्यवस्था और अमेरिका के भविष्य के सवालों को लेकर बनाए गए चक्रव्यूह को ध्वस्त करने में कामयाब हो गए हैं। वह ऐतिहासिक जीत दर्ज कर लगातार दूसरी बार देश के राष्ट्रपति बन गए हैं। व्हाइट हाऊस में ओबामा के दूसरी बार पहुंचने पर भारतीय उद्योग जगत ने इसका स्वागत तो किया लेकिन उनके मन कुछ आशंकाएं भी हैं। मसला आउटसोर्सिंग का जो है। ओबामा पहले भी इस मुद्दे पर कुछ सख्त कदम उठाते रहे हैं। उद्योगपतियों ने आउटसोर्सिंग के मामले में चिंता भी जताई है। अब देखना यह होगा कि ओबामा का इस मसले पर क्या रुख रहता है।
दूसरी ओर,चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अमीरी-गरीबी के बढ़ते अंतर, भ्रष्टाचार, और पार्टी में सत्ता के केंद्रीकरण पर बढ़ती जन चिंताओं के बीच विश्व के इस सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राष्ट्र की अगुवाई के लिये नया नेतृत्व नियुक्त करने जा रही है. नये नेता चुनने वाली 18वीं कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस गुरुवार से बीजिंग में होने जा रही है. यह कांग्रेस ऐसे समय में होने जा रही है जब अमेरिका में सत्ता के शीर्ष के लिए कड़ा मुकाबला हुआ है और यह यह दोनों देशों की प्रणालियों के बीच घोर अंतर का परिचायक है.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के बाद एक बार फिर तूफान आ गया है। यूनाइटेड एयरलाइंस और अमेरिकन एयरलाइंस जैसी प्रमुख विमानन कंपनियों ने तेज हवाओं और प्रतिकूल मौसम को देखते हुए न्यूयार्क की अपनी सभी उड़ानों को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया है।
इनमें न्यूयार्क से रवाना होने वाली और न्यूयार्क आने वाली उड़ानें शामिल हैं। कंपकंपाती सर्दी के बीच बारिश होने के साथ ही करीब 55 मील प्रति घंटा (96 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं।
एक सप्ताह पहले ही यह क्षेत्र सैंडी तूफान से प्रभावित हुआ था जिसने व्यापक तबाही मचायी थी।
तेज हवाओं के दौर के गुजर जाने के बाद उड़ानों के सामान्य होने की संभावना है। कई अन्य कंपनियों ने भी अपनी उड़ानें स्थगित करने की घोषणा की है।
ओबामा की जीत के बाद वित्त वर्ष 2013 में बाजार के नई ऊंचाई छूने की संभावना बनी हुई है।बराक ओबामा के दोबारा राष्ट्रपति बनने से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बेहतर ग्रोथ की उम्मीद जताई जा रही है। इसका फायदा चीन और भारत जैसे देशों को मिलेगा। भारतीय शेयर बाजारो में आज लगातार छठे दिन तेजी जारी रही। बराक ओबामा के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर चुने जाने की खबर के बीच विदेशी संस्थागत निवेशकों की लिवाली से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 85 अंक की बढ़त के साथ 18,902.41 अंक पर बंद हुआ। करीब एक महीने बाद बाजार इस स्तर पर पहुंचा है।
अमेरिकी अरबपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा की जीत को व्यापार जगत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। ओबामा की जीत से नाखुश ट्रंप ने अमेरिकी चुनावी प्रक्रिया को लोकतंत्र के लिए आपदा करार दिया है। रियल एस्टेट किंग डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने ट्वीट किया, 'यह चुनाव एक भौंडा दिखावा था, हम लोकतंत्र नहीं हैं।' एक अन्य ट्वीट में ट्रंप ने कहा, 'ज्यादा वोट का मतलब नुकसान है...क्रांति।' हफिंग्टन पोस्ट के मुताबिक इस ट्वीट के जरिए ट्रंप ने अमेरिका में क्रांति का आह्वान किया है।
भारत में भी ओबामा की जीत को लेकर आशंका है। यहां आईटी उद्योग जगत में डर है कि ओबामा के आने से नुकसान होगा। आईटी कंपनी आईगेट के सीईओ फनीश मूर्ति ने ओबामा की जीत को भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री के लिए दुखद करार दिया है। अमेरिका में रजिस्टर्ड आईगेट कंपनी के अधिकतर दफ्तर भारत में ही हैं और यहीं उसके ज्यादातर कर्मचारी काम करते हैं। मूर्ति ने कहा, 'हमें यह समझना होगा कि 2013 तक चुनाव का कितना असर रहता है, उसके बाद ही हम इसके प्रभावों का सही से आंकलन कर पाएंगे।'
भारत की आउटसोर्सिंग कंपनियां अपनी कुल आय का आधे से अधिक अमेरिका से अर्जित करती हैं। विश्लेषक मानते हैं कि आउटसोर्सिंग के प्रति ओबामा का कठोर रुख बरकरार रहेगा।
यह भी गौर करने वाली बात है कि महिलाओं ने भारी बहुमत से ओबामा को जिताया। प्रजनन के बारे में स्त्री को ही अधिकार जहां ओबामा का घोषित सिद्धांत है, वहां रोमनी गर्भपात के खिलाफ धर्म की दुहाई दे रहे थे। यहीं नहीं, रिपब्लिकन प्रचार में ओबामा की वजह से ईसाइत के खतरे में होने की चेतावनी देते हुए बराक ओबामा के मुसलमान होने की बात जोर शोर से कही जारही थी। यह धर्मोन्माद किसी काम के नहीं आया। क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में भी धर्मोन्माद की कोई भूमिका नहीं होगी?ओबामा की जीत उनकेवोट बैंक से निकली। नतीजे और एक्जिट पोल बताते हैं कि अमेरिकी आबादी का नस्ली ढाचा ओबामा के पक्ष में गया। साथ ही शहरी इलाकों की उदार श्वेत आबादी ने ओबामा का समर्थन किया। जबकि ग्रामीण इलाकों का समर्थन रोमनी को गया। अफ्रीकी अमेरिकी, लैटिनी अमेरिकी और एशियाई मूल के लोगों का मतदान में हिस्सा 2008 के 24 फीसद की तुलना में इस बार 26 फीसद हो गया। इसी तरह युवा पिछले चुनाव में भी ओबामा केसाथ थे। इस बार उनकेवोट और बढे़ हैं।दुनिया भर में जहां बराक ओबामा की शानदार जीत की प्रशंसा हो रही है, वहीं इस्राइली प्रतिष्ठानों और मीडिया में इस बात पर चिंता जताई जा रही है। वहां कहा जा रहा है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा मिट रोमनी के मौन समर्थन का बदला लेने का प्रयास करेंगे।हालांकि नेतन्याहू ने ओबामा को उनकी जीत पर बधाई दी है और आशा जताई कि वे एकजुट होकर काम करते रहेंगे फिर भी सत्तारूढ़ पार्टी के अन्य नेताओं को अपनी निराशा छिपाते नहीं बन रही है और कुछ ने तो खुलेआम कहा है कि ओबामा विश्सनीय नहीं हैं।नेतन्याहू ने अपने बधाई संदेश में कहा कि अमेरिका और इस्राइल के बीच रणनीतिक संबंध इतना मजबूत है जितना पहले कभी नहीं था। मैं राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मिलकर काम करता रहूंगा, ताकि इस्राइल के नागरिकों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।बराक ओबामा के पैतृक गांव में लोगों ने गाते और नाचते हुए अपनी माटी के सपूत की जीत का जश्न मनाया। उनकी दादी ने कहा कि वह इसलिए जीते कि वह सभी लोगों को प्यार करना जानते हैं।
गौरतलब है कि अमेरिकी कांग्रेस में अब कम से कम 19 महिला सीनेटर होंगी जो देश के इतिहास में सर्वाधिक है।सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी की डेब फिशर (नेबरास्का) और डेमोक्रेटिक पार्टी की टॉमी बाल्डविन (विस्कोनसिन), माजिए हीरोनो (हवाई) और एलिजाबेथ वारेन (मैसाचुसेट्स) शामिल हो रही हैं।
अमेरिका ने बराक ओबामा को दोबारा चुन कर सही फैसला किया है. ओबामा बेहतरीन राष्ट्रपति नहीं हैं लेकिन वह रिपब्लिकन मिट रोमनी के बेहतर विकल्प हैं, क्यों? बता रही हैं डॉयचे वेले की वॉशिंगटन संवाददाता क्रिस्टीना बैर्गमान.
राष्ट्रपति बराक ओबामा किसी तरह अमेरिका को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने और दूसरी मंदी रोकने में कामयाब रहे हैं. ओबामा को राष्ट्रपति बने अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि उन्होंने 787 अरब डॉलर के बेल आउट पैकेज पर दस्तखत कर दिए. इस के साथ देश में उस नीति का चलना जारी रहा जो पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने बैंकों के बेलआउट से शुरू की थी. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, आठ फीसदी की बेरोजगारी दर अभी भी बहुत ऊंची है लेकिन जानकार इस बात से सहमत है कि अगर समय पर उपाय नहीं किए गए होते तो स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती थी.
ओबामा के दूसरे कार्यकाल में सबसे बड़ी चुनौती है 160 खरब डॉलर के कर्ज से जूझना. राष्ट्रपति ने कहा है कि वह टैक्स बढ़ा कर और खर्च घटा कर इसे सही करेंगे जो गणित के लिहाज से कर्ज संकट के दौर में उचित मालूम पड़ता है. यह रोमनी की सोच के बिल्कुल उलट है जिन्होंने रिपब्लिकन घोषणा पत्र में कहा था कि वह हर हाल में टैक्स बढ़ाने का विरोध करेंगे. राजनीतिक रूप से यह कहना गैरजिम्मेदारना और गणित की नजर में सच्चाई से दूर है. कोई भी शख्स अगर मोलभाव में सीधे सीधे समझौते की गुंजाइश खारिज कर दे तो उसे बचकाना ही कहा जाएगा.
जहां तक सामाजिक नीतियों की बात है ओबामा की कड़ी मेहनत की वजह से कानून में बदल पाए स्वास्थ्य सुधार अब आखिरकार लागू हो सकेंगे. ओबामा के दूसरे दौर का मतलब है कि लाखों अमेरिकियों को स्वास्थ्य बीमा मिल सकेगा और गंभीर रूप से बीमार होने का मतलब कंगाल होना नहीं होगा. रोमनी ने इन सुधारों को राष्ट्रपति बनने के पहले दिन ही खत्म करने का एलान किया था.
निश्चित रूप से राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में सब कुछ अच्छा नहीं किया. ईरान के विरोध प्रदर्शन या सीरिया की हिंसा में हाथ डालने से झिझक रहे ओबामा को उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन उनकी आलोचना करने वालों को याद रखना चाहिए कि 2008 में अमेरिकी लोगों ने उनके वादे पर उन्हें वोट दिया था. ओबामा ने अमेरिका की एकध्रुवीय महाशक्ति की छवि से बाहर निकाल कर उसे सहयोगी ताकत में तब्दील कर दिया. लीबिया में अंतरराष्ट्रीय सैनिक कार्रवाई इसका सबसे अच्छा उदाररण है.
सबसे आखिर में लेकिन एक जरूरी बात यह भी है कि राष्ट्रपति ओबामा के शासन में अमेरिका थोड़ा बहुत जाना समझा लगता है. ओबामा ने शांत रह कर न्यायिक तरीके से पिछले चार साल सत्ता में गुजारे हैं. रिपब्लिकन हर तरह की नीतियों को उलट पलट करते रहने की आदत को ध्यान में रखें तो रोमनी के राष्ट्रपति होने पर क्या होता इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. अमेरिका को इस वक्त एक स्थिर शख्स की जरूरत है और बराक ओबामा के रूप में उन्होंने उसे दोबारा चुन लिया है.
ओबामा अपने कुछ और कामों को सफलताओं में गिन सकते हैं. इनमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम के लिए बराबर वेतन और समलैंगिकों को सेना में अपनी सेक्सुअलिटी जाहिर करने का अधिकार भी शामिल है. हम ओबामा के आप्रवासन कानूनों में सुधार को भी ज्यादा मानवीय होने की उम्मीद कर सकते हैं जो जल्दी ही सामने आने वाले हैं. ओबामा की नीतियां किसी भी रूप में आबादी के एक हिस्से को अलग थलग नहीं करेंगी जो देश की आर्थिक सफलता में टैक्स देकर योगदान देते हैं. रिपब्लिकन सुधारों के लागू होने पर ऐसा हो सकता था.
गौरतलब है कि बराक ओबामा लगातार दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए हैं और उनकी इस बड़ी सफलता के पीछे उनकी पत्नी मिशेल ओबामा की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसे उन्होंने बड़ी गरिमा से निभाया भी है।अमेरिका की प्रथम महिला से जब कोई सवाल करता है कि क्या है मिशेल ओबामा तो उनका एक ही जवाब होता है कि वह सबसे पहले मालिया और साशा की मां हैं। लेकिन एक मां, समर्पित पत्नी, वकील और लोक सेवक से पहले की उनकी जिंदगी के बारे में पूछा जाए तो वह खुद को सिर्फ फ्रेजर और मारियान रोबिन्सन की बेटी बताती हैं।मिशेल ने व्हाइट हाउस के क्षरोखे से अमेरिका की प्रथम महिला की जो छवि पेश की है वह एक दबंग और महत्वाकांक्षी महिला की नहीं बल्कि एक प्यारी सी मां और एक पूर्ण समर्पित पत्नी की है और उनकी इस छवि ने भी बराक ओबामा के व्यक्तित्व को नए आयाम देने में सकारात्मक भूमिका अदा की है।मिशेल की इसी छवि को अमेरिकी पसंद करते हैं और यही कारण है कि अमेरिकी ओबामा से कहीं अधिक मिशेल के मुरीद हैं।
ओबामा ने अपने लंबे विजय भाषण में वरीयताओं और कदमों का जिक्र करते हुए अपना एजेंडा स्पष्ट किया। ओबामा की जीत से अमेरिकी संसद की सूरत में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। अमेरिकी काग्रेस यानी संसद में गतिरोध और मजबूत हो गया है। संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में रिपब्लिकन काबिज हैं जबकि सीनेट में डेमोक्रेट। अर्थात ओबामा का चुनौती भरा एजेंडा संसद की खींचतान में फंसेगा। ओबामा को सबसे पहले अमेरिका को वित्तीय संकट की गर्त से निकालना है जिसके लिए उन्हें रिपब्लिकन की मदद चाहिए।लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद अपने पहले भाषण में बराक ओबामा ने कहा कि वह संवेदनशील और सशक्त अमेरिका चाहते हैं। उन्होंने काफी लंबा भाषण दिया। उनके भाषण की पांच अहम पंक्तियां ये रहीं-
ओबामा ने अपनी पत्नी की तारीफ करते हुए कहा, 'मिशेल मैंने तुमसे कभी पहले इतना प्यार नहीं किया।मैं आज जो भी हूं वो नहीं होता, अगर उस महिला(मिशेल) ने मुझसे शादी नहीं की होती जिसका हाथ मैंने 20 साल पहले मांगा था। मुझे इससे पहले कभी इतना गर्व महसूस जितना तुम्हें फर्स्ट लेडी के रूप में प्यार करते हुए देखकर होता है। शाशा और मालिया, मेरी अपनी आंखों के सामने तुम अपनी मां जैसी मजबूत और खूबसूरत बनने के लिए बढ़ रही हो। मैं तुम पर गर्व करता हूं।'
अपने प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी को बड़े अंतर से हराने वाले डेमोक्रैट उम्मीदवार ओबामा ने (कहा, 'मेरे और रोमनी के बीच कांटे की टक्कर इसलिए रही क्योंकि हम दोनों को ही अपने मुल्क से बेहद प्यार है और दोनों ही इसके बेहतर भविष्य के बारे में सोचते हैं। अब हम रोमनी के साथ देश को आगे ले जाने पर चर्चा करेंगे।'
ओबामा बोले, 'अमरीका की राजनीति उतनी बंटी हुई नहीं है जितनी दिखाई देती है क्योंकि ये यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका है...मैं उन उदाहरणों को याद दिलाना चाहता हूं जब हमने साथ मिलकर काम किया है। न्यू जर्सी और न्यू यॉर्क में दोनों पार्टी के नेताओं ने साथ मिलकर तूफान से तबाह हुए ढांचे को फिर से खड़ा करने में मदद की। मतभेद केवल इतना है कि हमने अलग-अलग रास्ते चुने हैं। हमारी अर्थव्यवस्था सुधर रही है, एक दशक तक चली जंग खत्म हो रही है।'
ओबामा ने कहा, 'मुझे गर्व है...मैं अमेरिका का राष्ट्रपति हूं'। उन्होंने कहा, 'आपने वोट किया, यह बड़ी बात है। राजनीति के इतिहास में यह बड़ी जीत है'एक गुलाम देश का भविष्य तय करने के अधिकार पाने के 200 से ज्यादा साल बाद आज की रात एक बार फिर हम अपने देश को सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ा रहे हैं। यह देश आपके चलते आगे बढ़ रहा है। यह आगे बढ़ रहा है क्योंकि आपने उस भरोसे को मजबूत किया है जिसने युद्ध और अवसाद पर जीत हासिल की है, जिसने देश को नाउम्मीदी की गहराइयों से निकालकर उम्मीदों के आसमान पर पहुंचा दिया है। वो भरोसा जो बताता है कि भले ही हम अपने व्यक्तिगत सपनों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहे हों लेकिन संपूर्णता में हम एक ही अमेरिकी परिवार हैं। हम उठते हैं एक देश, एक परिवार होकर और हम गिरते हैं एक देश, एक परिवार होकर।'
ओबामा ने कहा, 'हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे ऐसे अमेरिका में रहे जिस पर कर्ज का बोझ न हो, असमानता जिसे कमजोर न कर रही हो, जो विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं के खौफ में न हों। हम अपने बच्चों को ऐसा देश देना चाहते हैं जो सुरक्षित हो, और विश्व जिसका सम्मान और तारीफ करे। एक राष्ट्र जो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं की सुरक्षा में हो। लेकिन हम ऐसा देश भी चाहते हैं जो युद्ध के बाद भी विश्वास के साथ आगे बढ़े और ऐसी शांति स्थापित करे जिसमें दुनिया के हर व्यक्ति को आजादी और सम्मान हासिल हो।'
अमेरिका में पहले अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव में अपनी जीत दर्ज कर इतिहास रचने वाले बराक ओबामा ने शिकागो में जीत के बाद दिए अपने पहले भाषण में भावुक दिखाई दिए। उन्होंने रोमनी को इस चुनाव में कड़ी टक्कर देने के लिए शुक्रिया भी कहा। उन्होंने कहा कि अमेरिका को आगे ले जाने के लिए वह न सिर्फ मिट रोमनी को साथ लेकर चलना चाहते हैं बल्कि दोनों पार्टियों में तालमेल बनाकर आगे जाना चाहते हैं। इसके लिए वह आने वाले समय में दोनों पार्टियों के नेताओं के साथ मिलकर काम करेंगे।
इस मौके पर उन्होंने देश पर लगातार बढ़ रहे कर्ज को कम करने की चुनौती का भी जिक्र किया। साथ ही करों में सुधार और अप्रवासियों की भी बात कही। अपने भाषण में उन्होंने मध्यम वर्गीय परिवारों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मुहैया कराने और उन्हें सुरक्षा देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अमेरिका को तेल के क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनाना होगा। इसके अलावा उन वस्तुओं पर जिनके लिए अमेरिका को दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है, निर्भरता कम करनी होगी।
हजारों की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वह अब और ज्यादा मजबूत होकर व्हाइट हाउस में वापस आए हैं। लोगों ने इस जीत से दिखा दिया अमेरिका हमारा है। इस चुनाव में जिस किसी ने भी भाग लिया उसको मेरा थैंक्स। उन्होंने इस जीत को मुश्किल बताते हुए कहा कि आप सभी ने इसको आसान बना दिया। इस मौके पर उनके साथ मिशेल ओबामा और उनकी दोनों बेटियां भी साथ थीं। सभी ने शिकागो में लोगों की बधाई स्वीकार की और उन्हें धन्यवाद भी दिया।
उन्होंने कहा कि अब हमें यह विचार करना है कि आने वाले कल को कैसे सुधारना है। आज की रात राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। हम आगे बेहतरी के लिए काम करेंगे। उन्होंने अपने सहयोगियों का शुक्रिया अदा किया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि हम सब चुनौतियों का मिलकर सामना करेंगे, अभी हमें बहुत आगे जाना है। उन्होंने अपनी जीत के लिए चुनाव प्रचार में लगी टीम को बधाई भी दी। इस टीम को उन्होंने दुनिया की सबसे बेहतरीन कंपेनिंग टीम तक करार दिया। उन्होंनें कहा कि जो वोलेंटियर इस अभियान में हमारा हिस्सा बने उन सभी का धन्यवाद। अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि मैं इस जीत के लिए यहां मौजूद लोगों और सभी अमेरिकियों को बधाई देता हूं। इस जीत के लिए उन्होंने अपनी पत्नी मिशेल ओबामा का भी धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि अब उनका लक्ष्य युवाओं को ज्यादा से ज्यादा काम दिलाने का होगा।
ओबामा ने इस दौरान उनके सामने आने वाली चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अपने लक्ष्यों को पाने में अभी हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसके लिए उन्होंने लोगों से मदद की अपील भी की। उन्होंने कहा कि अमेरिका कोई छोटा सा देश नहीं है, एक विशाल देश होने के नाते यहां की चुनौतियां भी विशाल हैं। लेकिन हमें पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ना होगा। हमें उन बच्चों के सपनों को साकार करना होगा जो अभी स्कूल और कालेजों में अपने आने वाले भविष्य के सपने संजों रहे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा ने लंबी, विवादास्पद व खर्चीली चुनावी लड़ाई के बाद आखिरकार अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी पर ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के साथ ही इतिहास भी रच दिया। अमेरिका में कई चुनौतियों के बीच दूसरा कार्यकाल हासिल करने वाले ओबामा लगातार तीसरे राष्ट्रपति हैं। इस चुनाव के शुरुआत में ओबामा को उनके विरोधियों ने हल्के में लिया था। पर हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर काम करने के कौशल ने ही अश्वेत अमेरिकी नेता को मतदाताओं के दिलों तक पहुंचने में उनकी मदद की। ओबामा को पहले कार्यकाल के दौरान इन अफवाहों को दूर करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी कि वह एक मुस्लिम हैं। कई दशकों के बाद अमेरिका में आई भीषण मंदी के बीच ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी संघर्ष करना पड़ा। जिसमें धीमी रोजगार वृद्धि दर और बेरोजगारी दर का आठ फीसदी से ऊपर बने रहना बड़ा मुद्दा रहा। रोमनी को हराकर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करने के बाद ओबामा ने शिकागो में बदलाव का फिर संकेत दिया और कहा कि अमेरिका के लिए सर्वोत्तम आना अभी बाकी है।
चार साल पहले 'बदलाव' का नारा देकर राष्ट्रपति चुने गए ओबामा के समक्ष इस बार बेरोजगारी, आर्थिक मंदी आदि से निपटने संबंधी कई चुनौतीपूर्ण मुद्दे थे। विभिन्न प्रांतों में प्रचार अभियान के दौरान इन मसलों पर जवाब देने में उन्हें खासी मुश्किल भी पेश आई थी। रोमनी की ओर से इन मसलों पर निरंतर घेरे जाने के बावजूद ओबाम परेशान जो जरूर हुए, लेकिन डिगे नहीं। जिसका नतीजा यह हुआ कि उनकी छवि एक धैर्यवान नेता के रूप में भी सामने आई। अपने मजबूत इरादों को वह बार-बार जनता के सामने प्रदर्शित करने में कामयाब रहे। संभवत: यह लोगों को अपने पक्ष में करने में ओबामा के लिए काफी अहम साबित हुआ।
विभिन्न सर्वेक्षणों के दौरान उन्हें मामूली अंतर से आगे बताया गया था, लेकिन सैंडी तूफान के बाद अमेरिका में उत्पन्न स्थिति से बेहतर ढंग से निपटने का उनको काफी फायदा भी मिला। इस तूफान में अमेरिका के कई प्रांत बुरी तरह चपेट में आ गए थे और लोगों के सामने विकट समस्याएं खड़ी हो गई थी। लेकिन ओबामा ने पूरा संयम बरतते हुए बचाव व राहत कार्यों को अंजाम दिया। अर्थव्यवस्था की सुधरती स्थिति से उत्साहित और सैंडी तूफान के दौरान अपने नेतृत्व में धैर्य का प्रदर्शन करने वाले ओबामा के लिए आगे की राह अभी भी कई चुनौतियों से भरी हैं। बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, विदेश नीति आदि कई जटिल मसले हैं, जिनसे उन्हें पार पाना होगा। और इस बात को ओबामा भी बखूबी समझते हैं, इसी वजह से चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विशेष तौर उल्लेख किया कि वह अमेरिका के ऐसे भविष्य में विश्वास करते हैं जब रोजगार के अधिक अवसर सृजित किए जाएंगे और मध्यम वर्ग को नई सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
इन चुनावों में रोमनी के पक्ष को उम्मीद थी कि आर्थिक संकट के मुद्दे पर ओबामा प्रशासन को घेरने और बेरोजगारी की स्थिति के कारण उन्हें लाभ होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। रोमनी का दूसरा घर कहे जाने वाले न्यू हैम्पशायर और उप राष्ट्रपति पद के रिपब्लिकन उम्मीदवार पॉल रयान के गृह राज्य विस्कान्सिन में हार से रिपब्लिकन पक्ष को गहरा आघात पहुंचा। मगर रोमनी ने ओबामा को कई प्रांतों में कड़ी टक्कर दी।
ओबामा अमेरिका के लगातार तीसरे ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपने पूर्ववर्तियों जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन के बाद राष्ट्रपति पद पर दोबारा कब्जा जमाया है। ओबामा 2009 में अमेरिका का राष्ट्रपति बनने वाले अफ्रीकी मूल के पहले व्यक्ति थे और अब उन्होंने मिट रोमनी को पराजित कर व्हाइट हाउस पर दोबारा काबिज हुए हैं। उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज डब्ल्यू. बुश 2001 से 2009 तक राष्ट्रपति रहे और इसके पहले बिल क्लिंटन 1993 में राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे और वह 2001 तक इस पद पर बने रहे। अमेरिका के इतिहास में यही देखा गया है कि कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति दो कार्यकाल से अधिक समय तक पद पर नहीं रह पाता।
रिपब्लिकन रोमनी ने हार को स्वीकार करते हुए भविष्य के लिए ओबामा को शुभकमाना दी। रोमनी ने कहा कि यह बड़ी चुनौतियों का समय है। मैं प्रार्थना करता हूं कि राष्ट्रपति ओबामा हमारे देश को नेतृत्व देने में सफल होंगे। उधर, शिकागो में अपने प्रचार अभियान मुख्यालय में खुशी से झूम रहे समर्थकों के समक्ष ओबामा ने वादा किया कि नई नौकरियां पैदा करने, वित्तीय घाटे को कम करने तथा कर क्षेत्र में सुधार करने संबंधी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए वह दोनों दलों के नेताओं के साथ मिलकर काम करेंगे। राष्ट्रपति चुनाव में पराजित उम्मीदवार मिट रोमनी अपने लिए निजी तौर पर महत्वपूर्ण दो प्रांतों मिशिगन और मैसाच्यूसेट्स में भी जीत हासिल करने में नाकाम रहे। मिशिगन में वह पैदा हुए जबकि मैसाच्यूसेट्स में वह रहते हैं और गवर्नर के पद पर आसीन रहे।
इससे पहले ओबामा ने ट्वीट के जरिए कहा कि इसका श्रेय आप लोगों को जाता है। आपका आभार।। ओबामा का जन्म चार अगस्त, 1961 को हवाई में हुआ था। उनकी मां श्वेत अमेरिकी और पिता कीनियाई मूल के थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ओबामा दूसरे डेमोक्रेट राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने दूसरा कार्यकाल हासिल किया है। इससे पहले डेमोक्रेट बिल क्लिंटन को लगातार दूसरी बार सफलता मिली थी।
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर जोरदार चुनाव प्रचार करने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बेहद भावुक अंदाज में इस अभियान का अंत करते हुये टीवी चैनलों की तरह माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक पर अपनी शानदार जीत की घोषणा की।ओबामा ने अर्थव्यवस्था में धीमी गति से हो रहे सुधार और उच्च बेरोजगारी दर की समस्या के विद्यमान रहने के बावजूद रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी को मात दी। ओबामा ने ट्विटर, फेसबुक, रेडिट और अन्य लोकप्रिय सोशल मीडिया वेबसाइटों पर लोगों से वोट देने का अनुरोध किया था।जैसे ही एक अमेरिकी टीवी चैनल ने जीत की घोषणा की ओबामा ने अपने दो करोड़ 20 लाख फालोवरों को ट्वीट कर धन्यवाद दिया, यह (सफलता) आपके कारण मिली है। धन्यवाद। यह उनका सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।विभिन्न टीवी चैनलों पर जीत की घोषणा के बाद ओबामा ने प्रथम महिला मिशेल ओबामा के साथ अपनी एक फोटो पोस्ट की और ट्वीट किया, चार और साल। ओबामा के इस ट्वीट को तीन घंटे के अंदर चार लाख 72 लोगों ने एक दूसरे से साझा किया।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को उनके पुन: निर्वाचन पर बधाई दी और दोनों देशों के बीच मित्रता एवं फलदायी सहयोग के जारी रहने तथा द्विपक्षीय सहभागिता को मजबूत करने की दिशा में मिलकर और अधिक काम करने की उम्मीद जताई ।
ओबामा को अपने बधाई संदेश में मनमोहन ने पिछले चार साल में दोनों नेताओं के बीच जुड़ाव का उल्लेख किया और याद किया कि दोनों देशों के बीच सहयोग न सिर्फ संबंधों के संपूर्ण आयाम से आगे निकल चुका है, बल्कि रिश्ते भी प्रगाढ़ हुए हैं ।
प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में कहा कि प्रिय श्रीमान राष्ट्रपति, अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में आपके पुन: चुने जाने पर आपको हार्दिक बधाई देने में मुझे अत्यंत खुशी हो रही है ।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अमेरिकी जनता ने ओबामा में फिर से जो निष्ठा जताई है, वह राष्ट्र प्रमुख के रूप में उनके गुणों के प्रति उनके स्नेह का प्रतीक है । ओबामा के पहले कार्यकाल के दौरान अपने संबंधों का जिक्र करते हुए मनमोहन ने लिखा कि पिछले चार सालों में भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक रणनीतिक भागीदारी के हमारे दृष्टिकोण के अनुरूप दोनों लोकतंत्रों के बीच संबंधों में सतत प्रगति हुई है । उन्होंने कहा कि हम अपने द्विपक्षीय संबंधों को न सिर्फ पूर्ण आयाम तक ले गए, बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों को गहरा भी किया ।
यह उल्लेख करते हुए कि हम अपनी मित्रता को बहुत महत्व देते हैं। मनमोहन ने कहा अपने साझा मूल्यों की स्थाई बुनियाद और पिछले चार साल की उपलब्धियों के आधार पर हमारी सहभागिता के जारी रहने की मैं उम्मीद करता हूं ।
चीन ने आज बराक ओबामा के फिर से राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने का सतर्कतापूर्वक स्वागत किया और आशा जताई कि अमेरिकी राष्ट्रपति 'सकारात्मक चीन नीति' का पालन करेंगे ताकि 'नये प्रकार के संबंधों का निर्माण' हो सके और मतभेद दूर हो सकें तथा एक दूसरे के लिये लाभदायक सहयोग को हासिल किया जा सके।निर्वतमान नेताओं राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने ओबामा के फिर से जीतने पर उन्हें बधाई दी वहीं कल से शुरू हो रही कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस के बाद हू का स्थान लेने जा रहे शी जिनपिंग ने उप राष्ट्रपति जो बाइडन को बधाई दी। अपने संदेश में हू ने ध्यान दिलाया कि सतत प्रयास के फलस्वरूप पिछले चार साल में अमेरिका चीन संबंधों में सकारात्मक प्रगति हुई है।
ओबामा के पक्ष में जो स्थिति रही, वह है कैलिफोर्निया में उनके पक्ष में व्यापक मतदान जहां सबसे ज्यादा 55 इलेक्टोरल वोट हैं और 18 वोट वाले ओहियो में भी उनका अच्छा जनाधार रहा। कैलिफोर्निया का परिणाम आने से पहले रोमनी ओबामा पर बढ़त बनाए हुए थे।ओबामा की जीत से जुड़ा एक अहम पहलू यह भी है कि उन्होंने डेमोक्रेट के गढ़ पेनसिल्वेनिया, विस्कोन्सिन तथा मिशिगन में जीत को कायम रखा। चार साल पहले बदलाव और उम्मीद की बुनियाद पर अमेरिकी जनता का अपार समर्थन हासिल करने वाले ओबामा के लिए दूसरा कार्यकाल हासिल करना आसान नजर नहीं आ रहा था क्योंकि उनके खिलाफ आक्रमक ढंग से नकारात्मक अभियान चलाया जा रहा था, हालांकि वह जीतने में कामयाब रहे। मैसाचुसेट्स प्रांत के पूर्व गवर्नर रोमनी को ओबामा ने अभिजात और मध्यम वर्ग से बिल्कुल अलग करार दिया था।
ओबामा का प्रचार अभियान पूरी तरह मध्य वर्ग से जुड़े मुद्दों को ध्यान में रखकर चलाया गया और इराक में युद्ध की समाप्ति के मुद्दे को भी जोरदार ढंग से रखा गया। अब ओबामा के सामने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र तथा वाल स्ट्रीट में ऐतिहासिक सुधारों के अपने वादे को पूरा करने की बड़ी चुनौती है। वह देश से बाहर भी अपना ध्यान केंद्रित करेंगे और ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर उनका अधिक जोर रह सकता है।
चैनलों पर जीत का ऐलान होते ही ओबामा के समर्थक खुशी से झूम उठे। शिकागो में ओबामा के प्रचार अभियान के मुख्यालय के सामने समर्थकों का बड़ा हुजूम उमड़ पड़ा। शिकागो ओबामा का गृहनगर है। पूरे अमेरिका में ओबामा समर्थक भारी जश्न मना रहे हैं। शिकागो से लेकर न्यूयार्क के टाइम्स स्क्वायर तक लोग खुशी में झूमते नजर आए।
चुनाव विश्लेषकों ने राष्ट्रपति चुनाव पर बहस एवं सर्वेक्षणों से पहले लगभग बराबरी के मुकाबले का अनुमान जताया था, लेकिन अंतिम विश्लेषण में ओबामा को 300 मत मिले, लेकिन यह 2008 के मुकाबले कम है जब उन्हें 349 मत मिले थे।
चैनलों द्वारा ओबामा को विजेता घोषित करने के बाद 65 वर्षीय रोमनी ने उन्हें फोन कर बधाई दी। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि हमारे देश के लिए यह बड़ी चुनौती का वक्त है। मैं राष्ट्रपति से आग्रह करता हूं कि हमारे देश का सफलतापूर्वक मार्गदर्शन करें।
राष्ट्रपति ने अपनी भावनाओं को जाहिर करते हुए कड़ी टक्कर देने के लिए उनका धन्यवाद किया। अपने प्रतिद्वंद्वी की प्रशंसा करते हुए ओबामा ने कहा कि वह रोमनी के साथ बैठकर उन मुद्दों पर चर्चा करेंगे, जहां हम इस देश को आगे ले जाने के लिए साथ मिलकर काम करें।
उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आगामी हफ्ते एवं महीने में मैं दोनों पार्टियों के नेताओं से संपर्क करूंगा, ताकि उन चुनौतियों का सामना कर सकें जिसे सिर्फ दोनों मिलकर कर सकते हैं।
इससे पहले विजय के बाद ओबामा ने अपने समर्थकों को टि्वट कर कहा कि यह आपके कारण हुआ है। आपको धन्यवाद। ओबामा का जन्म चार अगस्त 1961 को हवाई के होनोलुलु में हुआ था। उनकी मां श्वेत अमेरिकी थीं जबकि पिता केन्या में जन्मे हार्वर्ड में शिक्षित केन्या मूल के अर्थशास्त्री थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वह दूसरे ऐसे डेमोक्रेट नेता हैं जो दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं। इससे पहले बिल क्लिंटन लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति बने थे।
उम्मीद और बदलाव के वाहक के रूप में ओबामा पहली बार सत्तारूढ़ हुए थे जबकि दूसरा कार्यकाल नकारात्मक चुनाव प्रचार के बल पर उन्होंने जीता। उन्होंने मैसाचुसेट्स के गवर्नर रोमनी को संभ्रांत और मध्य वर्ग की पहुंच से दूर बताया। ओबामा को अब स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार और वाल स्ट्रीट में सुधार लाने के अपने वादे पर काम करना होगा। विदेशों में भी उनके समक्ष चुनौतियां होंगी जैसे ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने के प्रयास को रोकना।
तमाम अवरोधों को पार करते हुए बुधवार को एक बार फिर व्हाइट हाउस में चार साल के एक और कार्यकाल के लिए चुने गए बराक ओबामा बेहद दृढ़ प्रतिज्ञ, विनम्र, करिश्माई वाक कौशल के धनी और सबको साथ लेकर चलने वाले राजनेता हैं और उनके इन्हीं गुणों की बदौलत अमेरिकियों ने दूसरी बार सत्ता की कमान एक बार फिर से उनके हाथों में सौंपी है।
राष्ट्रपति पद के चुनाव में अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी की ओर से कड़े मुकाबले को धराशायी करते हुए 51 वर्षीय ओबामा का पिछले चार साल का कार्यकाल एक प्रकार से कांटों का ताज रहा, जिस दौरान उन्हें बिगड़ती अर्थव्यवस्था से जूझना पड़ा।
नए कार्यकाल में उनकी विदेश नीति एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर पहले की तरह ही केंद्रित रहेगी, जहां भारत को अमेरिकी रणनीति में महत्वपूर्ण धुरी के रूप में देखा जा रहा है। ओबामा भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं, लेकिन घरेलू बाध्याताओं के कारण उन्हें अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान नौकरियों को भारत में आउटसोर्स किए जाने के खिलाफ आवाज उठानी पड़ी।
अपने पहले ही कार्यकाल में भारत यात्रा पर जाने वाले ओबामा पहले अमेरिकी राष्ट्रपति थे और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे को भी समर्थन दिया है।
चुनाव परिणाम बताते हैं कि अमेरिका की गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने के उनके तौर तरीकों से असंतुष्ट रहने के बावजूद जनता उनके प्रति निष्ठावान बनी रही है और उनमें फिर से अपना भरोसा जताया है।
ओबामा ने हाल ही में सैंडी तूफान से तबाह हुए न्यूजर्सी के तटीय इलाकों का दौरा किया था और इस दौरान न्यूजर्सी के रिपब्लिकन गवर्नर भी उनके साथ थे। दोनों नेताओं ने अपनी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को दरकिनार करते हुए आपदा से निपटने के तौर तरीकों को लेकर एक दूसरे की जी भरकर तारीफ की।
आपदा से निपटने की उनकी शैली की जनता ने बड़ी सराहना की। राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान से मात्र कुछ ही दिन पहले आयी इस आपदा में 90 लोग मारे गए थे और देश की अर्थव्यवस्था को करीब 50 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था।
श्वेत अमेरिकी मां ऐन डनहैम और केन्या में पैदा हुए हार्वर्ड शिक्षित अर्थशास्त्री पिता के घर बराक का जन्म होनोलूलू के हवाई में बराक हुसैन ओबामा के रूप में हुआ था। वह चार नवंबर 2008 को अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने वाले पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। उन्होंने इन चुनावों में अपने तत्कालीन रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जान मैक्केन को परास्त किया था और 20 जनवरी 2009 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली।
अश्वेत मानवाधिकार नेता मार्टिन लूथर किंग द्वारा अमेरिकियों को समानता के सपने को पूरा करने के लिए उठ खड़े होने का आहवान किए जाने के ठीक 45 साल बाद ओबामा व्हाइट हाउस पहुंचे थे।
वर्ष 2009 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे गए ओबामा 21 जनवरी 2013 को दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगे। हालांकि संविधान के तहत 20 जनवरी का दिन शपथ ग्रहण के लिए तय होता है लेकिन उस दिन रविवार पड़ रहा है।
जनादेश के बाद ओबामा के कंधों पर देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की जिम्मेदारी नए सिरे से आ गयी है। कई दशकों के बाद अमेरिका में आयी भीषण मंदी के बीच ओबामा के कार्यभार संभालने के बाद से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी संघर्ष करना पड़ा है, जिसमें धीमी रोजगार वृद्धि दर और बेरोजगारी दर का आठ फीसदी से उपर बने रहना बड़े मुद्दे रहे हैं।
इससे पूर्व, नवंबर 2010 के मध्यावधि चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी को ऐतिहासिक नुकसान झेलना पड़ा था। अपने कंजरवेटिव एजेंडे को आगे बढ़ाने तथा राष्ट्रपति की योजनाओं में पलीता लगाने के लिए रिपब्लिकन अधिक दढ़ प्रतिज्ञ होकर सामने आ रहे थे।
हालांकि विदेश नीति के मुद्दे पर ओबामा ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मारने के लिए कमांडो दस्ता भेजकर , इराक में युद्ध को समाप्त कर और रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव के साथ नई परमाणु हथियार संधि कर अपनी स्थिति को काफी मजबूत करने में सफलता हासिल की।
ओबामा ने अपना पहला कार्यकाल संभालने के पहले दिन से ही भारत के साथ अमेरिकी संबंधों के महत्व को समझा तथा जनवरी 2009 में राष्ट्रपति पद की औपचारिक शपथ लेने से पहले ही तत्कालीन भारतीय राजदूत रोनेन सेन को खुद फोन कर मुंबई आतंकवादी हमलों पर संवेदना प्रकट की। इतना ही नहीं यह प्रतिबद्धता भी जतायी कि अमेरिका दोषियों को कानून के कठघरे में लाने के लिए हरसंभव सहायता उपलब्ध कराएगा।
उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले नवंबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने सरकारी मेहमान के रूप में आमंत्रित किया और उनके सम्मान में पहला रात्रिभोज दिया।
इसके एक साल बाद ही वह अपने पहले कार्यकाल के दौरान भारत यात्रा पर आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए जिस दौरान उन्होंने न केवल 21वीं सदी में भारत-अमेरिका संबंधों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संबंध घोषित किया बल्कि विश्व स्तर पर देश की बढ़ती महत्ता को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन भी किया।
बहरहाल, अमेरिकी राष्ट्रपतियों की सूची इस प्रकार है :
1. जॉर्ज वाशिंगटन (1789-1797)
2. जॉन एडम्स (1797-1801)
3. थॉमस जेफरसन (1801-1809)
4. जेम्स मेडिसन (1809-1817)
5. जेम्स मोनरो (1817-1825)
6. जॉन क्विंसी एडम्स (1825-1829)
7. एंड्रयू जैक्सन (1829-1837)
8. मार्टिन वैन बुरेन (1837-1841)
9. विलियम हेनरी हैरिसन (1841)
10. जॉन टेलर (1841-1845)
11.जेम्स नॉक्स पोक (1845-1849)
12 जेकरी टेलर (1849-1850)
13 मिलार्ड फिलमोर (1850-1853)
14. फ्रेंकलिन पियर्स (1853-1857)
15. जेम्स बुकानन (1857-1861)
16.अब्राहम लिंकन (18561-1865)
17. एंड्रयू जॉनसन (1865-1869)
18. यूलिसिस एस. ग्रांट (1869-1877)
19. रदरफोर्ड बर्चार्ड हायेस (1877-1881)
20. जेम्स अब्राहम गारफील्ड (1881)
21. चेस्टर एलन आर्थर (1881-1885)
22. ग्रोवर क्लीवलैंड (1885-1889)
23. बेंजामिन हैरिसन (1889-1893)
24. ग्रोवर क्लीवलांड (1893-1897)
25. विलियम मैक्किनली (1897-1901)
26. थियोडोर रूजवेल्ट (1901-1909)
27. विलियम हॉवर्ड टाफ्ट (1909-1913)
28. व्रूडो विल्सन (1913-1921)
29. वारेन गेमेलिएल हार्डिग (1921-1923)
30. केल्विन कूलिज (1923-1929)
31. हर्बर्ट क्लार्क हूवर (1929-1933)
32. फ्रैंकलिन डेलैनो रूजवेल्ट (1933-1945)
33. हैरी एस. ट्रमैन (1945-1953)
34. ड्वाइट डेविड आइजनहॉवर (1953-1961)
35. जॉन फिट्जगेराल्ड केनेडी (1961-1963)
36. लिंडन बेन्स जॉनसन (1963-1969)
37. रिचर्ड मिलहॉस निक्सन (1969-1974)
38. गेराल्ड रुडोल्फ फोर्ड (1974-1977)
39. जेम्स अर्ल कार्टर जूनियर (1977-1981)
40. रोनाल्ड विल्सन रीगन (1981-1989)
41. जार्ज हर्बर्ट वाकर बुश (1989-1993)
42. विलियम जेफरसन क्लिंटन (1993-2001)
43. जॉर्ज वाकर बुश (2001-2009)
44. बराक हुसैन ओबामा (2009 से अबतक
दुनिया
क्यों हारे रोमनी
राष्ट्रपति बनने की मिट रोमनी की ख्वाहिश लगातार दूसरी बार धराशायी हुई. रिपब्लिकन नेता रोमनी को हराने में उनकी अपनी गलतियों का बड़ा हाथ है. कई नाजुक मुद्दों पर पूंजीवादी नेता अमेरिकी जनता की नब्ज ठीक से टटोल नहीं पाया.मतदान से हफ्ते भर पहले अमेरिका में चक्रवाती तूफान सैंडी ने कहर मचाया. कई लोगों की जान गई और 20 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान हुआ. वैज्ञानिकों ने संकेत दिया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसे तूफानों की ताकत बढ़ी है. उनकी संख्या में भी इजाफा हुआ है. प्यू रिसर्च के एक सर्वे में 67 फीसदी अमेरिकियों ने माना कि धरती जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है.
रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी और डेमोक्रैट राष्ट्रपति बराक ओबामा दोनों तूफान पीड़ितों तक पहुंचे. राहत कार्यों में मदद भी की. तूफान के बाद जब चुनाव प्रचार फिर शुरू हुआ तो जलवायु परिवर्तन एक अनकहा मुद्दा बन गया. उद्योगों के विकास की बात करने वाले मिट रोमनी की पहले से यह छवि बन गई थी कि वह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं देंगे. जर्मनी समेत यूरोप के कुछ देशों में रोमनी को जलवायु के शत्रु के तौर पर देखा जाना लगा.
इसी दौरान पहली नवबंर को वर्जीनिया में एक रैली में एक नागरिक के खुलकर रोमनी से सवाल किया, "जलवायु के मुद्दे पर आप क्या सोचते हैं." पहली बार रोमनी ने इसे अनसुना कर दिया. दूसरी बार ज्यादा ध्यान नहीं दिया. तीसरी बार जब यह पूछा गया कि 'जलवायु पर चुप्पी तोड़ो' तो 65 साल के रोमनी खिसिया गए और चुप्पी न तोड़ सके. वह व्यक्ति हाथ में बैनर लिए हुए था, बैनर पर भी यही लिखा हुआ था. रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों ने इसे शान में गुस्ताखी समझा. हल्का बल प्रयोग कर उस व्यक्ति को और उसकी आवाज को दबा दिया.
मीडिया ने जब इस मुद्दे को उछाला तो पूरे अमेरिका को पता चल गया कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर रोमनी से उम्मीद करना बेमानी है. उनकी पार्टी पहले से इस मुद्दे पर बदनाम रही, रही सही कसर चुनाव प्रचार के दौरान पूरी हो गई. रोमनी लगातार उद्योगों को बढ़ाने की रट लगाते रहे, लेकिन अब लोग जान चुके हैं कि अंधा औद्योगिकीकरण जलवायु संबंधी मुश्किलें खड़ी कर रहा है.नतीजों से मायूस रिपब्लिकन पार्टी
रुढ़िवादी: पार्टी और रोमनी
रुढ़िवादी होने का आरोप झेल रहे रोमनी पूरे चुनाव अभियान में इस छवि को तोड़ नहीं सके. समलैंगिक शादी और गर्भपात के बढ़ते प्रचलन पर रिपब्लिकन पार्टी का एक भी नेता साफ राय जाहिर नहीं कर सका. रोमनी की मुश्किल यह रही कि चुनाव प्रचार के साथ उन्होंने लचीला दिखने की कोशिश की, लेकिन यह रवैया सफल नहीं हुआ.
पार्टी से चुनाव की दावेदारी पाने की प्रक्रिया में भी रिपब्लिकन पार्टी के किसी उम्मीद्वार ने इन मुद्दों पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया. जो भी बातें सामने आईं, उनसे यही लगा कि पार्टी रुढ़िवादी रास्ते से बाहर नहीं निकल पा रही है.काम नहीं आया आखिरी पल का चुनाव प्रचार
वोटों का ध्रुवीकरण
एक सशक्त अमेरिका की बात करने वाले रोमनी और ओबामा मतदाताओं को बांट गए. राष्ट्रपति ओबामा को बड़ी संख्या में युवाओं और दूसरे मूल के लोगों के वोट मिले. ओबामा को 60 फीसदी भारतीय मूल के अमेरिकियों के वोट मिले. दक्षिणी अमेरिकी और अफ्रीकी मूल के लोगों को वोट भी उन्हीं की झोली में गए. युवा जनता ने भी 51 साल के ओबामा पर भरोसा किया.
वहीं रोमनी के खाते में श्वेत लोगों के वोट गिरे. रिपब्लिकन उम्मीदवार को युवाओं के बहुत ज्यादा वोट नहीं मिले. उम्रदराज लोगों ने उन्हें अपनी पंसद बनाया, लेकिन यह संख्या काफी नहीं थी.
पूंजीवाद से ऊब
अर्थव्यवस्था को लेकर ओबामा और रोमनी के कई वादे एक जैसे थे. दोनों 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का स्वप्न दिखा रहे थे. बजट घाटे को कम करने की बात कर रहे थे. टैक्स कम करने का वादा भी दोनों की जुबान से निकला. लेकिन इन वादों की मंजिल तक पहुंचने की दोनों की राह अलग अलग थी. ओबामा जहां सरकारी नौकरियां बढ़ाने, बदलाव से पहले कर्मचारियों को बेहतर प्रशिक्षण और समाजिक सुरक्षा की बात कर रहे थे, तो रोमनी स्कूल और कॉलेजों पर ज्यादा जोर दे रहे थे. यह कोई नहीं बात नहीं थी. ओबामा बीते तीन साल में कम से कम 30 बार स्कूल और कॉलेजों का स्तर सुधारने की बात कर चुके थे.
रोमनी नौकरियां पैदा करने के लिए छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने की बात कर रहे थे. यह खालिस अमेरिकी तरीका है. रोमनी इसमें खासे एक्सपर्ट भी थे लेकिन 2007 के बाद से मंदी की मार झेल रही अमेरिकी जनता शायद इससे हिचकिचा गई. लोगों ने ओबामा के कम जोखिम वाले रास्ते को बेहतर माना.
शांति की तलाश
विदेश नीति को लेकर भी रोमनी पर बहुत ज्यादा आक्रमक होने के आरोप लगे. रूस, चीन और ईरान के खिलाफ वह बीच बीच में आग उगलते रहे. अफगानिस्तान और इराक जैसे युद्धों में अपने कई सैनिक खो चुकी अमेरिकी जनता को पिछली बार की तरह इस बार भी संयमित ओबामा ज्यादा बेहतर लगे. अमेरिका और ईरान के लोगों का भी मानना था कि अगर रिपब्लिकन सत्ता में आए, तो अमेरिका और ईरान की जंग होनी तय है.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन
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दुनिया
ओबामा की जीत का दुनिया पर असर
भारत समेत कई देशों ने बराक ओबामा को राष्ट्रपति चुनाव जीतने पर बधाई दी. ईरान को जहां ओबामा की जीत से राहत की सांस लेने का मौका मिला है, वहीं पाकिस्तान को समझ नहीं आ रहा कि क्या कहा या किया जाए.ईरान
ईरान में लोग मान रहे थे कि अगर मिट रोमनी अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो जंग होनी तय है. रिपब्लिकन नेता रोमनी लगातार इस्राएल को ज्यादा समर्थन देने की बात कर रहे थे, वह ओबामा पर ईरान के खिलाफ सख्ती न बरतने का आरोप लगा थे. वहीं ओबामा ने सामरिक विकल्पों से ज्यादा कूटनीति को महत्व दिया. जाहिर है ऐसे में ओबामा की जीत पर तेहरान भले ही आधिकारिक बधाई न दे लेकिन उसका मुस्कुराना वाजिब है.
इस्राएल
रोमनी की हार से इस्राएल को भी थोड़ा झटका लगा. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू मिट रोमनी के दोस्त हैं. ओबामा की जीत पर इस्राएल सरकार ने कहा, "प्रधानमंत्री चुनाव में जीत के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को बधाई देते हैं. इस्राएल और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी अभी सबसे ज्यादा मजबूत है."
विश्लेषक मानते हैं कि नेतन्याहू मन ही मन ओबामा की जीत से बहुत ज्यादा खुश नहीं हैं. ओबामा मध्य पूर्व नीति के तहत इस्राएल को झिड़क चुके हैं. इस्राएल को उम्मीद थी कि रोमनी के आते ही वह अमेरिका की आड़ में ईरान पर धावा बोल देगा.अफगानिस्तान की बधाई, पाकिस्तान की चुप्पी
पाकिस्तान
असमंजस की स्थिति में पाकिस्तान भी है. इस्लामाबाद रिपब्लिकन पार्टी को ज्यादा बेहतर साथी समझता है. डेमोक्रैट ओबामा के साथ बीते दो साल से उसके अनुभव बड़े खट्टे रहे हैं. ड्रोन हमले, ओसामा बिन लादेन की मौत, नाटो के हवाई हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत और बढ़ते दबाव के लिए पाकिस्तान ओबामा को जिम्मेदार ठहराता है. लेकिन इस्लामाबाद के पास इस वक्त नतीजे को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है.
भारत
भारतीय नेताओं ने ओबामा की जीत का स्वागत किया है. ओबामा और मनमोहन सिंह के प्रगाढ़ संबंधों का असर बधाइयों में भी देखने को मिला. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, "भारत सरकार और भारत के लोग राष्ट्रपति ओबामा को दूसरी बार चुनाव जीतने पर बधाई देते हैं."
भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति को निजी तौर पर भी शुभकामनाएं दी. यह जानकारी देते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा, "लोकतंत्र पर विश्वास के साझा मूल्यों के आधार पर भारत और अमेरिका ने प्रगाढ़ द्विपक्षीय सहयोग और साझेदारी को विकसित किया है. आने वाले समय में हम भारत और अमेरिका के संबंधों को ज्यादा गहराई में ले जाने की उम्मीद करते हैं." ओबामा की जीत में भारतीय मूल के वोटरों का भी बड़ा योगदान रहा. चुनाव में निर्णायक साबित होने वाले अमेरिका के स्विंग स्टेट्स में तीन चौथाई भारतीय मूल के अमेरिकियों के वोट ओबामा को मिले.भारत को बेहतरीन दोस्ती की उम्मीद
चीन
बीजिंग ने भी ओबामा की जीत पर ऐसी ही खुशी जाहिर की. चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओं ने ओबामा को बधाई देते हुए कहा कि उनके कार्यकाल के बीते चार सालों में अमेरिका और चीन के संबंध सकारात्मक रहे. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग ली ने कहा, "राष्ट्रपति हू जिंताओ और प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने राष्ट्रपति ओबामा को दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी है."
बीजिंग के मुताबिक दोनों देश भविष्य में अपने संबंधों और सहयोग को नई ऊंचाई पर ले जाने की कोशिश बरकरार रखेंगे. ओबामा की जीत ऐसे वक्त में हुई जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की महत्वपूर्ण कांग्रेस हो रही है. इसमें चीन के भावी शीर्ष नेतृत्व को चुना जाना है. वॉशिंगटन के नतीजों से चीनी नेताओं को पता चल गया है कि अगले चार साल तक उन्हें किस अमेरिकी के साथ काम करना है.यूरोप और चीन खुश
ब्राजील, मेक्सिको, कनाडा, इंडोनेशिया, जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं ने भी ओबामा को शुभकामनाएं भेजी हैं. ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने अपने बधाई देश में कहा, "ऑस्ट्रेलिया सरकार और ऑस्ट्रेलिया के लोगों की तरफ से मैं राष्ट्रपति बराक ओबामा को चुनाव जीतने पर हार्दिक बधाई देती हूं. मैं कामना करती हूं कि दूसरी पारी में उन्हें हर तरह की कामयाबी मिले."
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भी ओबामा की जीत को एक सकारात्मक संकेत करार दिया है. रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि आपसी सहयोग को लेकर अमेरिका जितना आगे बढ़ेगा, उतना ही आगे वह भी बढ़ेंगे.
रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी (एएफपी, डीपीए)
संपादनः एन रंजन
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उम्मीदों से बड़ी बराक ओबामा की जीत
बुधवार, 7 नवंबर, 2012 को 20:20 IST तक के समाचारओबामा का जीत के बाद का भाषण जोश से भरा था.
अमरीका के राष्ट्रपति क्लिक करेंबराक ओबामा मिट रोमनी को पछाड़ कर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुन लिए गए हैं. चार साल पहले देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा ने जीत के लिए 270 इलेक्टोरल वोट जीतकर इतिहास रच दिया है.विजय हासिल करने के बाद क्लिक करेंजोश से भरे भाषण में बराक ओबामा ने कहा कि वो मिट रोमनी से बात करेंगे.
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ओबामा ने कहा, "हम बात करके देखेंगे कि हम कैसे एक साथ काम करके देश को आगे बढ़ा सकते हैं."
बराक ओबामा को ये जीत अमरीका के क्लिक करेंमाली हालात पर अंसतोषऔर मिट रोमनी की कड़ी चुनौती के बावजूद मिली है. साथ ही उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी ने सीनेट में अपना बहुमत बरक़रार रखा है जो पार्टी के पास साल 2007 से है.
लेकिन रिपब्लिकन पार्टी ने भी प्रतिनिधि सभा पर अपना नियंत्रण बनाए रखा है.
जानकारों का मानना है कि इसकी वजह से पहले कार्यकाल की ही तरह इस बार भी ओबामा और प्रतिनिधि सभा के बीच कई क़ानूनों को पारित करने को लेकर गतिरोध बन सकता है.
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अपने भाषण में ओबामा ने विरोधियों से उनके साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया.
'एक देश'
"हम अमरीकी परिवार हैं. हमारा पतन और उदय एक ही राष्ट्र की तरह होगा."
बराक ओबामा
अब तक आए नतीजों में बराक ओबामा को 303 इलेक्टोरल वोट हासिल हुए हैं जबकि मिट रोमनी को 206 वोट मिले हैं. अब सिर्फ़ फ़्लोरिडा राज्य के 29 मतों का नतीजा आना बाकी है.अमरीका में हर राज्य में राष्ट्रपति के उम्मीदवार को मत डाले जाते हैं और उसके बाद जिसे बहुमत मिलता है उसके खाते में उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट डाल दिए जाते हैं.
उधर कुल वोटों में दोनों उम्मीदवारों के बीच ख़ास अंतर नहीं है. कुल मतों की सिर्फ़ सांकेतिक और राजनीतिक अहमियत है क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में विजेता का फ़ैसला इलेक्टोरल कॉलेज के मतों से ही होता है.
जीत के बाद ओबामा का भाषण जोश से भरा और उनके चिर-परिचित अंदाज़ में था.
अपने समर्थकों के नारों के बीच ओबामा ने कहा, "हम अपने दिल की गहराईयों में जानते हैं कि अमरीका के लिए बेहतरीन वक्त आना अभी बाक़ी है. मैं पहले से कहीं अधिक प्रेरित और दृढ़संकल्प होकर भविष्य को संवारने के लिए व्हाइट हाउस में लौट रहा हूं. "
और फिर उन्होंने अपने समर्थकों के शोर-शराबे के बीच ये जुमला कहा जिस पर लंबे समय तक तालियां गूंजती रहीं, " हम अमरीकी परिवार हैं. हमारा पतन और उदय एक ही राष्ट्र की तरह होगा. "
'सियासत से पहले लोकहित'
"मुझे उम्मीद है कि मैं इस देश को अलग ढंग से चलाने की आपकी उम्मीदें पर खरा उतरा होऊंगा लेकिन अमरीका ने दूसरे नेता को चुना है. इसलिए मैं आपके साथ मिलकर ओबामा और इस देश के लिए प्रार्थना करता हूं."
मिट रोमनी
उधर बॉस्टन में मिट रोमनी ने राष्ट्रपति को जीत पर बधाई दी और कहा कि उन्होंने चुनाव अभियान अपनी पूरी ताकत झोंक दीमुसीबतों से जूझती अमरीकी अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करते हुए रोमनी ने कहा कि अब विभाजक सियासी चालों को छोड़कर दो पार्टियों की कोशिश होनी चाहिए कि वो लोकहित से सर्वोपरि मानें.
मिट रोमनी ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि मैं इस देश को अलग ढंग से चलाने की आपकी उम्मीदें पर खरा उतरा होऊंगा लेकिन अमरीका ने दूसरे नेता को चुना है. इसलिए मैं आपके साथ मिलकर ओबामा और इस देश के लिए प्रार्थना करता हूं. "
अरबों का ख़र्च
ऐसा नहीं की रोमनी बुरी तरह हारे हों. उन्होंने पिछले चुनावों में ओबामा के साथ रहे नॉर्थ कैरोलिना और इंडियाना राज्यों में जीत हासिल की.हार के बाद रोमनी ने कहा कि अब दोनों दलों को सियासत से ऊपर लोकहित को रखना होगा
लेकिन वो ओहायो जैसे कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में नहीं जीते पाए. और इसी वजह से वो जीत के लिए ज़रुरी 270 इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों को हासिल नहीं कर पाए.मंगलवार को राष्ट्रपति चुनाव के अलावा 11 राज्यों में गवर्नर, सौ सदस्यों वाली सीनेट की एक-तिहाई सीटों और प्रतिनिधि सभा की सभी 435 सीटों के लिए भी मतदान हुआ था.
ओबामा की जीत बढ़ती बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था की ढीली रफ़्तार के बीच हुई है.
लेकिन मतदाताओं ने उन्हें साल 2009 में कार व्यवसाय को डूबने से बचाने और पिछले साल पाकिस्तान में बिन लादेन को मारने का श्रेय दिया.
इस चुनाव पर दोनों दलों और उनके सहयोगियों ने 800 करोड़ रुपए से भी अधिक का ख़र्च किया. इनमें अधिकतर ख़र्चा स्विंग स्टेट कहे जाने वाले राज्यों में विज्ञापनों पर किया गया.
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2012/11/121107_usa2012_obama_victory_finalcopy_psa.shtml
जीत के बाद अपने प्रशंसकों के सामने अपने परिवार के साथ बराक ओबामा.
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तस्वीर 1 से 11
http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2012/11/121107_usa2012_obama_celebration_pic_gallery.shtml
ओबामा की जीत से कितनी बदलेगी दुनिया?
बुधवार, 7 नवंबर, 2012 को 19:42 IST तक के समाचारअमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अगले चार साल के लिए एक बार फिर राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं, लेकिन ओबामा की जीत का उन देशों पर क्या असर पड़ेगा जिनका अमरीका से सीधा लेना देना रहा है?
एक नज़र बीबीसी संवाददाताओं के विश्लेषण पर.
मध्यपूर्व
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बीबीसी के मध्यपूर्व संपादक जेरमी ब्राउन के मुताबिक जीत के बाद दिए गए अपने भाषण में ओबामा ने अमरीकियों से कहा कि अफगानिस्तान में दस साल तक चला युद्ध अब खत्म होने वाला है, हालांकि मध्यपूर्व में बिगड़ते हालात ये दिखाते हैं कि अमरीका के लिए ये आखिरी सैन्य अभियान नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अमरीका को आगे भी कड़े फैसले लेने होंगे.
सीरिया में छिड़ा युद्ध पड़ोसी देशों तक पहुंच रहा है और मुमकिन है कि दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ओबामा सीरिया में विद्गोहियों के समर्थन में सीधे तौर पर सामने आएं.
इससे भी बड़ा फैसला ईरान को लेकर किया जाना है. अगले साल गर्मियों तक अगर अमरीका और उसके सहयोगी देश यह मान लेते हैं कि ईरान के पास परमाणु हथियार हैं तो राष्ट्रपति ओबामा को यह फैसला करना होगा कि वो ईरान के परमाणु केंद्रों पर हमला करेंगे या इसराइल को ऐसा करने की हरी झंडी देंगे.
अमरीका को अरब देशों के साथ नए सिरे से अपने संबंध परिभाषित करने होंगे. राष्ट्रपति ओबामा को यह ध्यान रखना होगा उनके पास भले ही सैन्य ताकत हो लेकिन मध्यपूर्व में अमरीका की राजनीतिक साख गिर रही है.
यूरोप
ओबामा के दोबारा चुने जाने से अमरीका-यूरोज़ोन की विदेश नीति और अर्थनीति में बड़े फेरबदल होने से बचे रहेंगे.
ब्रसेल्स में मौजूद बीबीसी संवाददाता क्रिस मॉरिस के मुताबिक अमरीकी चुनावी नतीजों की घोषणा के बाद ओबामा सहित यूरोप ने भी राहत की सांस ली है.सभी पूर्वानुमानों और चुनावी सर्वेक्षणों में बराक ओबामा के दोबारा चुने जाने की बात कही गई थी लेकिन अब जब नतीजे सामने हैं तो ब्रसेल्स में राहत की लहर दौड़ गई है जिसकी वजह साफ है.
यूरोज़ोन में छाई मंदी के बीच अमरीका से बातचीत जारी रही है और ब्रसेल्स में छाई गहमागहमी के बीच कोई नहीं चाहता था कि अमरीका में सत्ता परिवर्तन से और नए समीकरण बनें.
ओबामा के दोबारा चुने जाने से अमरीका-यूरोज़ोन की विदेश नीति और अर्थनीति में बड़े फेरबदल होने से बचे रहेंगे.
चीन
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है उन्हें किसी बड़े बदलाव की कोई उम्मीद नहीं लेकिन अखबार के मुताबिक पश्चिम की लोकतांत्रिक व्यवस्था अब समाज के नेतृत्व के बजाय वोटरों को छलने पर आधारिक हो गई है. अखबार के मुताबिक चीन की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ही सबसे बेहतर है.अखबार के मुताबिक नई व्यवस्था में चीन के खिलाफ़ की जाने वाली गलत बातों पर अब रोक लगनी चाहिए.
बीजिंग में मौजूद बीबीसी संवाददाता मार्टिन पेशेन्स के मुताबिक चीन में गुरुवार को एक दशक बाद सत्ता परिवर्तन होगा और इससे ठीक पहले आए हैं अमरीका के चुनावी नतीजे. यही वजह है कि चीन का ध्यान अंदरूनी राजनीतिक गतिविधियों पर केंद्रित है.
आर्थिक मुद्दों को लेकर दोनों देशों के बीच संबंध खराब रहे हैं. और बीजिंग में इस बात को लेकर चिंता है कि ओबामा एक बार फिर एशिया पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. चीन की चिंताएं आगे भी जारी रहेंगी.
अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में अमरीका का अभियान खत्म होने को है.
काबुल में मौजूद बीबीसी संवाददाता क्वेंटिन सॉमरविलके मुताबिक अफगानिस्तान में अमरीका का अभियान खत्म होने को है और अफगानिस्तान पर अमरीका की नीति राष्ट्रपति के बदलने से नहीं बदलती.हालांकि ओबामा के सामने अब ये सवाल है कि अफगानिस्तान से सैन्य बलों को कितनी जल्दी निकाला जा सकता है. माना जा रहा है कि ओबामा 2014 तक अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों की संख्या कम करने की दिशा में और भी तेज़ी से काम करेंगे.
ईरान
ईरान में मौजूद बीबीसी संवाददाता मोहसिन असगारी के मुताबिक ईरान में लोगों को इस बात की आशंका थी कि मिट रोमनी की जीत का मतलब होगा ईरान के साथ युद्ध लेकिन ओबामा की वापसी के बाद लोग खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं.हालांकि ईरान के कुछ नेताओं का मानना है कि ओबामा की जीत से ईरान पर दबाव बढ़ेगा और वो इसराइल को बढ़ावा देने की नीति जारी रखेंगे.
पाकिस्तान
इस्लामाबाद में मौजूद बीबीसी के इलियास खान के मुताबिक पाकिस्तान की सेना का राजनीति पर खासा दबदबा है और रिपब्लिकन पार्टी के साथ लेना के हमेशा से सहज सबंध रहे हैं.जबकि लोकतंत्र, आज़ादी और परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर डेमोक्रेट पार्टी के नेता बराक ओबामा की नीतियां उसे रास नहीं आई हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि ओबामा की जीत के बाद पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा और अमरीका चाहेगा कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में अमरीका की नीति को समर्थन दे.
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2012/11/121107_international_usplus_obama_victory_world_pa.shtml
ओबामा की जीत के बाद
Tag cloud: टिप्पणी, विश्व, नीति, अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव7.11.2012, 16:22 |
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फ़ोटो: रिया नोवोस्ती |
अमरीका में राष्ट्रपति पद की दौड़ के दौरान जिन विषयों पर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया, वे थे- आर्थिक संकट, कर और बेरोज़गारी के मुद्दे। रूस के साथ संबंधों सहित विदेश नीति के मुद्दों पर बहस बयानबाज़ी के स्तर तक ही सीमित रही। अब चुनाव के बाद, वाशिंगटन "असली राजनीति" के रास्ते पर वापस आ जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि बराक ओबामा के राष्ट्रपति पद पर फिरसे चुने जाने के बाद वह अपनी पुरानी नीतियों को ही जारी रखेंगे। रिपब्लिकन पार्टी ने कांग्रेस पर अपना नियंत्रण खोया नहीं है। इसलिए यह पार्टी विदेश नीति पर अपने प्रभाव को बनाए रखेगी। यह बात ही रूस के साथ अमरीकी संबंधों को निर्धारित करेगी।
इस बार अमरीका में चुनाव अभियान के दौरान पहले से कहीं अधिक ध्यान घरेलू मुद्दों पर केंद्रित किया गया। अब ओबामा प्रशासन को संकट की स्थिति में, मुख्य रूप से, अर्थव्यवस्था के विकास, कर प्रणाली में सुधार और बेरोज़गारी को कम करने जैसे मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि विदेश नीति का महत्त्व कम हो जाएगा। हाँ, यह बात सही है कि विदेश नीति के मुद्दों पर चुनावी बहस के अंतिम दौर में ही ध्यान केंद्रित किया गया था। लेकिन राष्ट्रपति पद की दौड़ के नियम ऐसे ही होते हैं। अब इस दौड़ का अंत हो गया है और विदेश नीति की सभी प्राथमिकताएं फिरसे उभरकर सामने आ जाएंगी। इसके अलावा, वाशिंगटन अपने आपको वैश्विक प्रक्रियाओं से परे नहीं रख सकता है। इस सिलसिले में, अमरीका और कनाडा अध्ययन संस्थान के उप-निदेशक वलेरी गर्बूज़व ने कहा-
हर चुनावी अभियान के अपने क़ायदे-कानून होते हैं। केवल युद्ध के दौरान चलने वाले अभियान अपवाद हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, जब इराक और अफ़गानिस्तान के मुद्दे बहुत गर्म थे, ऐसा ही हुआ था। अब ओबामा के दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने के बाद सब कुछ सामान्य-सा हो गया है। लेकिन अंतिम निष्कर्ष निकालने का समय अभी नहीं आया है। राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव के साथ साथ कांग्रेस की प्रतिनिधि सभा के सभी सदस्य और सीनेट के एक तिहाई सदस्य भी चुने गए हैं। रिपब्लिकन पार्टी का प्रतिनिधि सभा पर नियंत्रण बना रहेगा। बराक ओबामा के लिए यह कोई बहुत अच्छी स्थिति नहीं है, क्योंकि उनके हाथ काफ़ी हद तक बंधे रहेंगे। वह पूरी आज़ादी से फैसले नहीं कर पाएंगे।
यही एक बड़ा कारण था कि बराक ओबामा राष्ट्रपति पद पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान अपने कई वादे पूरे करने में विफल रहे। यही बात वैश्विक विवादों और मास्को के साथ अमरीकी संबंधों के मुद्दों से भी जुड़ी हुई है। इस संदर्भ में, ओहायो राज्य से एक कांग्रेस सदस्य और क्लीवलैंड नगर के पूर्व-महापौर, डेमोक्रेट डेनिस कुसिनिच ने "रेडियो रूस" को बताया-
अब वो समय आ गया है जब अमरीका को अपने युद्ध बंद करने चाहिएँ और दुनिया भर में अपने ड्रोन विमान नहीं भेजने चाहिएँ। रूस को कमज़ोर करने के प्रयासों का अंत कर देना चाहिए, हमें साझेदार बनना चाहिए, हमें अपने परमाणु हथियार कम करने चाहिएँ। हमें मध्य-पूर्व के क्षेत्र में सहयोग करने की ज़रूरत है। हमारे देश के पास बड़ी क्षमताएँ मौजूद हैं जिनका हम लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक ऐसे लोग सत्ता में रहेंगे जिन्हें केवल अपने ही हितों को बढ़ावा देने की चिंता लगी रहती है। मुझे उम्मीद नहीं है कि ओबामा प्रशासन इन मुद्दों पर अपनी नीति बदलने में सक्षम होगा।
डेमोक्रेटिक पार्टी का दावा है कि बराक ओबामा के पहले कार्यकाल के दौरान रूस के साथ संबंधों में हुआ सुधार अमरीकी विदेश नीति की एक बड़ी उपलब्धि है। तथापि आज, आपसी संबंधों के तथाकथित पुनर्निर्माण की नीति आगे नहीं बढ़ाई जा रही है। इसमें दोष वाशिंगटन का है जो मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली के मुद्दे पर रूस के साथ कोई ठोस बातचीत नहीं कर रहा है। वाशिंगटन परंपरागत रूप से मानवाधिकारों के मुद्दों पर कठोर बयानबाज़ी तो करता ही रहता है लेकिन पिछले कुछ समय से डेमोक्रेटिक पार्टी ने सीरिया के मुद्दे पर भी काफ़ी कठोर रवैया अपनाया हुआ है। लेकिन अब चुनाव का जुनून थम गया है। अब हमें मास्को और वाशिंगटन के बीच संबंधों में प्रगति की उम्मीद करनी चाहिए. इस संबंध में एक रूसी राजनीतिज्ञ मक्सिम मिनायेव ने कहा-
मुझे ऐसा लगता है कि इस मामले में सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि ओबामा और पूतिन के बीच संबंध कैसे बनेंगे। बेशक, "रीसेट" यानी आपसी संबंधों के पुनर्निर्माण की नीति को जारी रखने की संभावना के बारे में फ़िलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच मतभेद काफ़ी गहरे हैं। लेकिन हमें उम्मीद है कि बराक ओबामा राष्ट्रपति पद पर अपने नए कार्यकाल के दौरान एक संतुलित और अधिक तर्कसंगत नीति पर चलने की कोशिश करेंगे। रूस के लिए ऐसी नीति, शायद, अधिक सुविधाजनक रहेगी।
भारतीय राजनीतिविदों को भी आशा है कि अमरीका के साथ सहयोग फलप्रद रहेगा। अब बराक ओबामा जीत गए हैं। उनकी पुरानी टीम ही अपना काम जारी रखेगी। इस सिलसिले में एक प्रसिद्ध भारतीय पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विक्रम बहल ने कहा-
मुझे लगता है कि भविष्य में ओबामा प्रशासन की नीति की तीन मुख्य दिशाएं होंगी। पहली दिशा है- रोज़गार बढ़ाने की दिशा। ओबामा ने आउटसोर्सिंग के बारे में काफ़ी बातें कही हैं। भारत को आउटसोर्सिंग में एक बड़ी भागीदारी और अमरीकी बाज़ार में भारतीय कंपनियों की पहले से अधिक पहुँच होने की उम्मीद है। दूसरी दिशा है- भारतीय बाज़ार में अमरीकी कंपनियों की पहुँच। अमरीका भारतीय बाज़ार के नए क्षेत्रों में अपनी कंपनियों का प्रवेश चाहेगा। तीसरी दिशा का संबंध अमरीकी और वैश्विक अर्थव्यवस्था से होगा। मुझे लगता है, कि सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत-अमरीका सहयोग पहले से अधिक गहरा होगा। इस दिशा को हम तब देख सकेंगे जब बराक ओबामा भारत की यात्रा करेंगे। इसलिए अब वो समय आ गया है जब, जैसा कि बराक ओबामा ने कहा था, हमें महज आगे ही नहीं बढ़ना है बल्कि तेज़गति से आगे बढ़ना है।
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