Saturday, November 3, 2012

कारपोरेट के आगे संसद और सरकार की नहीं चलती तो सीएजी किस खेत की मूली है?



कारपोरेट के आगे संसद और सरकार की नहीं चलती तो सीएजी किस खेत की मूली है?

हमारे नीति निर्धारक अपने अमेरिकी आकाओं की मिजाजपुर्सी ककी कवायद में लग गये हैं। कारपोरेट राज तमाम भंडाफोड़ के बावजूद और मजबूत होने के आसार है। प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष जो बोल रहे हैं, उसमें अमेरिकी चुनावों की चिंता राष्ट्रीय हितों से कहीं ज्यादा हावी है।जाहिर है कि भारत में सत्तावर्ग अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर वैश्विक व्यवश्था के माफिक नीतियों और रणनीतियों को अंजाम देने में लगी है। क्योंकि ओबामा हो या रोमनी, भारत के बाजार और अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी पकड़ ढीली नहीं पड़ने वाली और आर्थिक अश्वमेध थमने वाला नहीं है।अमेरिकी युद्धक अर्थ व्यवस्था को मंदी से उबरने के लिए इराक से सेना हटाने की मजबूरी थी और विश्वभर में अमेरिका की आक्रामक छवि से निजात पाने की फौरी आवश्यकता थी। जिस वजह से अश्वेत बराकक ओबामा राष्ट्रपति बनाये गये। वह एजंडा तो पूरा हो गया, अब अमेरिकी राष्ट्रवाद फिर आक्रामक तेवर में है। मिट रोमनी के पीछे मजबूती से खड़ा है यहूदी हिंदुत्व गठबंधन तो कारपोरेट पूंजी भी ओबामा के हटाये जाने पर दांव​​ लगाया हुआ है। लेकिन अभी मिटनी की जीत तय नहीं है। अभी भी ओबामा का करिश्मा काम कर रहा है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कारपोरेट के आगे संसद और सरकार की नहीं चलती तो सीएजी किस खेत की मूली है?कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) पर शनिवार को निशाना साधा।कांग्रस के लिए तकलीपदेह यह है कि केजी बेसिन पर रिलायंस के लिए सरकार की दरियादिली पर अरविंद के सवालों के बाद अब धीरे-धीरे सरकार से सवाल दूसरे भी करने लगे हैं। सीएजी ने केजी-डी6 तेल क्षेत्र के ऑडिट के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा रखी गईं शर्तों को मानने पर तेल मंत्रालय की खिंचाई की है। इसके ठीक बाद सिंह का यह बयान आया है।कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी-डी6 मामले में ऑडिट की शर्तें लगाने पर पेट्रोलियम मंत्रालय की खिंचाई की है।जानकारी के मुताबिक सीएजी ने केजी-डी6 के ऑडिट के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज की शर्तें मानने से इनकार कर दिया है। सीएजी ने रिलायंस इंडस्ट्रीज की शर्तों को प्रतिबंधात्मक बताया है।सीएजी के मुताबिक रिलायंस इंडस्ट्रीज की कई शर्तें सीएजी एक्ट के खिलाफ हैं। सीएजी ने शर्तों को दूर करने की मांग की है। पेट्रोलियम मंत्रालय केजी-डी6 के सिर्फ फाइनेंशियल ऑडिट के लिए रजामंदी दी थी।सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर दिग्विजय ने कहा, 'सीएजी की अंतरिम रिपोर्ट एक बार लीक हो गई। सभी को उपदेश देने से पहले सीएजी क्या लीक करने वाले अपने कार्यालय पर भी गौर करेगा।' उल्लेखनीय है कि सीएजी ने कथित रूप से मंत्रालय से कहा है कि उसे रिलायंस की शर्तों पर सहमत होने से पहले उससे सलाह-मशविरा करना चाहिए था। इसी बीच  एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को ऋण देने पर जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने शनिवार को निर्वाचन आयोग को कांग्रेस की मान्यता रद्द करने का ज्ञापन सौंपा है। जवाब में कांग्रेस ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्थापित समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को ऋण देना एक भावनात्मक मुद्दा था। इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) के सदस्य अरविंद केजरीवाल एवं भाजपा ने ऋण मामले की जांच की मांग की।

हमारे नीति निर्धारक अपने अमेरिकी आकाओं की मिजाजपुर्सी ककी कवायद में लग गये हैं। कारपोरेट राज तमाम भंडाफोड़ के बावजूद और मजबूत होने के आसार है। प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष जो बोल रहे हैं, उसमें अमेरिकी चुनावों की चिंता राष्ट्रीय हितों से कहीं ज्यादा हावी है।जाहिर है कि भारत में सत्तावर्ग अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर वैश्विक व्यवश्था के माफिक नीतियों और रणनीतियों को अंजाम देने में लगी है। क्योंकि ओबामा हो या रोमनी, भारत के बाजार और अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी पकड़ ढीली नहीं पड़ने वाली और आर्थिक अश्वमेध थमने वाला नहीं है।अमेरिकी युद्धक अर्थ व्यवस्था को मंदी से उबरने के लिए इराक से सेना हटाने की मजबूरी थी और विश्वभर में अमेरिका की आक्रामक छवि से निजात पाने की फौरी आवश्यकता थी। जिस वजह से अश्वेत बराकक ओबामा राष्ट्रपति बनाये गये। वह एजंडा तो पूरा हो गया, अब अमेरिकी राष्ट्रवाद फिर आक्रामक तेवर में है। मिट रोमनी के पीछे मजबूती से खड़ा है यहूदी हिंदुत्व गठबंधन तो कारपोरेट पूंजी भी ओबामा के हटाये जाने पर दांव​​ लगाया हुआ है। लेकिन अभी मिटनी की जीत तय नहीं है। अभी भी ओबामा का करिश्मा काम कर रहा है। नतीजतन इस बीच शुक्रवार को अमेरिकी बाजारों में खासी कमजोरी देखी गई। बेरोजगारों की संख्या कम होने के बावजूद बाजारों में गिरावट का रुख देखा गया और डाओ जोंस 1 फीसदी फिसल गया और नैस्डेक में 1.25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति की तस्वीर साफ ना होने से भी अमेरिकी बाजारों में असमंजस बना हुआ है।कल अमेरिकी बाजार में डाओ जोंस 1.05 फीसदी की गिरावट के बाद 13,093.16 पर बंद हुआ। नैस्डेक कम्पोजिट इंडेक्स में 1.26 फीसदी की गिरावट के बाद 2,982.13 पर बंद देखा गया। वहीं एसएंडपी 500 इंडेक्स 0.94 फीसदी लुढ़ककर 1,414.19995 पर बंद हुआ।अमेरिका में हुए ताजा सर्वेक्षणों में छह नवंबर को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी के बीच कड़े मुकाबले का अनुमान लगाया गया है। राष्ट्रपति पद की दौड़ अब अपने आखिरी चरण में है। सीएनएन ने एक सूत्र के हवाले से कहा है कि ओबामा और रोमनी के अभियानों ने अपने संबंधित सहयोगियों के साथ मिलकर 11 राज्यों में नौ दिनों के लिए टेलीविजन पर कम से कम 9.30 करोड़ डॉलर के विज्ञापन के समय खरीद लिए हैं। अंतिम बचे कुछ दिनों में उम्मीदवार अहम प्रांतों में अपनी आखिरी जोर आजमाइश कर रहे हैं। रियलक्लियर पोलिटिक्स ने राष्ट्रीय चुनावों का करीबी से अध्ययन करने के बाद कल कहा कि ओबामा 0.1 फीसदी मतों के साथ आगे हैं। एबीसी न्यूज-वाशिंगटन पोल ने रोमनी को एक अंक की बढत दी। रासमुसेन के आकलन के मुताबिक यह दौड़ वस्तुत: झूठ है।रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मिट रोमनी ने वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबाम की आर्थिक नीतियों के प्रति आगाह करते हए कहा कि अमेरिका ने यदि अपना रवैया नहीं बदला, तो देश दूसरी मंदी की ओर बढ़ सकता है। उन्होंने एटना ओहियो में एक चुनावी रैली में कहा राष्ट्रपति नए वादे कर रहे हैं। ये ऐसे वादे हैं जिन्हें वह पिछले वादों की तरह निभा नहीं सकते। वह हमें बता रह हैं कि वह हमें उसी रास्ते पर रख रहे हैं जिन पर हम पहले थे। लेकिन एक चीज हम जानते हैं कि यदि हम उसी राह पर आगे बढ़ते हैं तो 16,000 अरब डॉलर का ऋण 20,000 अरब डॉलर हो जाएगा।अमेरीकी राष्ट्रपति-पद के दावेदार वर्मतान राष्ट्रपति बाराक ओबामा और उन के रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी ने दूसरी नवम्बर को अलग-अलग तौर पर मीडिया पर लेख प्रकाशित कर अपने-अपने चुनाव-प्रचार के लिए अंतिम व्याख्यान किया।दोनों उम्मीदवारों ने सीएनएन के वेबसाइट पर अमेरीका के प्रति मेरी आकांक्षा नामक लेख प्रकाशित किए।ओबामा ने अपने लेख में लिखा कि उनके कार्यकाल में अमेरीका पिछली सदी के 30 वाले दशक में हुई मंदी के बाद सब से भयंकर आर्थिक संकट से धीरे-धीरे उबर रहा है, इराक-युद्ध का अंत किया गया है, ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतार दिया गया है और अफगानिस्तान एवं इराक में तैनात सैनिक चरणबद्ध रूप से स्वदेश लौटे हैं।ओबामा ने अपने लेख में मान लिया है कि ये उपलब्धियां काफ़ी नहीं हैं। उन्होंने मतदाताओं से आगामी 6 तारीख को होने वाले चुनाव में उनके पक्ष में वोट डालने का अनुरोध किया।उधर रोमनी ने अपने लेख में ओबामा से बिल्कुल भिन्न विकास का रास्ता पेश किया। उन्होंने लिखा कि अगर वो राष्ट्रपति बने, तो घरेलू ऊर्जा के विकास को प्रेरणा देंगे, स्थानीय सरकार को अधिक अधिकार देंगे, शिक्षा को सुधारने के कार्य में निजी संस्थाओं की भूमिका अदा करवाएंगे, अमेरीकी कामगारों के हित की रक्षा करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी बढाएंगे, सरकारी खर्च को कम करेंगे, बजट को संतुलित करेंगे, कर-वसूली व्यवस्था और सरकारी नियमों में सुधार लाने के जरिए औद्योगिक एवं वाणिज्यिक विकास को बढावा देंगे। रोमनी ने लिखा कि इन उपायों के अमलीकरण से रोजगार के 1 करोड़ 20 लाख अवसर पैदा होंगे।ओबामा और रोमनी दोनों ने अपने-अपने लेख में दावा किया कि उन की अपनी-अपनी योजना ही अमेरीका में सच्चा बदलाव लाएगी।

घोटालों की खबर बनाने वाली राजनीति की खूबी यह है कि इस कवायद और इस वैस्वक समीकरण की सिरे से  अनदेखी हो रही है और कारपोरेट एजंडे को बिना सूचना, बिना खबर अंजाम दिया जा रहा है। रिलायंस केग विवाद की क्या कहें, सारे के सारे वित्तीय कानून तो कारपोरेट राज को मजबूत के लिए बनये जा रहे हैं। कारपोरेट चंदों से चलने वाली राजनीति चुनावी समीकरण साधने के लिए चाहे सुर्खियों का जो भी खेल खेलें, कारपोरेट हितों के मामले में सर्वदलीय सहमति है। भूमि ​​सुधार लागू करना तो असंभव है ही, संसाधनों और अवसरों के समान बंटवारे की बात भी बेमानी है। हमारी आंखें अभी अपनी मौत के​ ​ चाकचौबंद इंतजाम को देखने के लिए तैयार नहीं हैं। जनसंहार की नीतियों को आर्थिक सुधार बताकर दिनदहाड़े डकैती हो रही है। मसलन,प्रमुख औद्योगिक संगठन फिक्की ने सरकार से मांग की है कि वह प्रस्तावित जमीन अधिग्रहण विधेयक के कुछ प्रस्तावों पर फिर से विचार करे। उद्योग संगठन इस विधेयक के कैबिनेट के पास जाने से पहले अधिग्रहण में राज्यों की भूमिका जैसे प्रावधानों पर फिर से विचार चाहता है। कोयले की आपूर्ति के लिए ईंधन आपूर्ति समझौते, सुरक्षा एवं पर्यावरण संबंधी मंजूरी और वित्तीय बाधाएं आदि 12वीं योजना के दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश के लक्ष्य को हासिल करने में रोड़ा अटका सकती हैं। इनके समाधान के बिना इंफ्रा में एक लाख करोड़ डॉलर निवेश का लक्ष्य हासिल करना मुमकिन नहीं होगा।प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि राजकोषीय घाटा काफी ऊंचे स्तर पर होना घरेलू और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में बड़ी बाधा है। इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े सेक्टरों में करीब एक लाख करोड़ डॉलर के निवेश लक्ष्य को हासिल करना है तो सरकार को इस दबाव से बाहर आना होगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के गंभीर मुद्दों पर आम सहमति बनाने की जरूरत है।

पूर्व पेट्रोलियम मंत्री एस.जयपाल रेड्डी की विदाई और नए पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली के आगमन के साथ ही मुकेश अंबानी की दिग्गज कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) को राहत मिलनी शुरू हो गई है। इस कंपनी को पहली राहत कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) की अहम बैठक को टाले जाने के रूप में मिली है। रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा अपने महत्वपूर्ण गैस ब्लॉक 'केजी-डी6' पर किए गए खर्च का ऑडिट शुरू करने के लिए कैग ने यह बैठक बुधवार को बुलाई थी। रिलायंस इंडस्ट्रीज और पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ कैग की यह एंट्री कांफ्रेंस होनी थी। हालांकि, पेट्रोलियम मंत्रालय ने 29 अक्टूबर को बाकायदा पत्र लिखकर यह कांफ्रेंस टाल दी।

सूत्रों के मुताबिक, कैग ने मंत्रालय को लिखे लेटर में कहा कि इन शर्तों पर सहमति जताने से पहले मंत्रालय को उससे सलाह लेनी चाहिए थी। इसके अलावा कैग ने आरआईएल की सभी शर्तों को मानने से इनकार कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक कैग ने तेल मंत्रालय से कहा है कि कंपनी की कई शर्तें प्रतिबंधात्मक हैं।कैग ने मंत्रालय को यह लेटर 26 अक्टूबर को कैबिनेट में हुए फेरबदल से पहले लिखा था। सूत्रों के मुताबिक, गोदावरी और कावेरी बेसिन में गैस निकालने के लिए और पिछले तीन सालों में खर्च किए गए पैसों के लिए सरकार ने एक कमेटी भी बनाई थी। केजी बेसिन के ऑडिट पर सीएजी की तेल मंत्रालय और रिलायंस के साथ होने वाली पहली ही बैठक को टाल दिया गया है। ये बैठक बुधवार को प्रस्तावित थी।सीएजी ने एक चिट्ठी भेजकर बैठक टालने की सूचना दी। सीएजी का मानना है कि बैठक का एजेंडा पूरी तरह रिलायंस के पक्ष में तय किया गया था जो उसे मंजूर नहीं है। ऑडिट के तरीकों पर मतभेद के चलते ही ये कदम उठाया गया है। दरअसल, रिलायंस प्रोडक्शन के बहीखातों और दस्तावेजों की ऑडिट को तो तैयार है, मगर परफॉर्मेंस ऑडिट का विरोध कर रही है। साथ ही सीएजी के पूछे जाने वाले सवालों की सफाई या इनसे जुड़े दस्तावेज देने के भी खिलाफ है।रिलायंस ये भी चाहती है कि सीएजी उसके परिसर में ही ऑडिट करे और इसकी रिपोर्ट संसद को सौंपने की बजाय तेल मंत्रालय को सौंपे। इसके उलट मंत्रालय चाहता है कि केजी बेसिन में किए गए निवेश और इससे जुड़े सभी मसलों का पूरा ऑडिट हो। मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भी सूचित किया था कि जब तक रिलायंस ऑडिट को तैयार नहीं होगी तब तक उसकी निवेश योजना को औपचारिक मंजूरी नहीं मिलेगी।अब जबकि जयपाल रेड्डी मंत्रालय से रुखसत हो चुके हैं और उनकी जगह वीरप्पा मोइली ने ले ली है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि इस मसले पर सरकार का क्या रुख रहता है। ये संयोग ही है कि बुधवार को ही इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के अरविंद केजरीवाल ने रिलायंस पर गैस कारोबार में गड़बड़ी का आरोप लगाया है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के अधिकारियों और कॉम्प्ट्रोलर ऐंड जनरल ऑडिटर (कैग) के बीच होने वाली मीटिंग को पेट्रोलियम मिनिस्ट्री द्वारा रद्द किए जाने से एक दिन पहले कैग ने यह साफ किया कि आरआईएल के सरकार के साथ हुए केजी बेसिन गैस कॉन्ट्रैक्ट के सभी दस्तावेजों की जांच करने का उसे पूरा अधिकार है।जनता के बीच अपने आदेशपत्र को दिखाते हुए ऑडिटर ने एक बयान जारी किया। अपने बयान में ऑडिटर ने कैग (ड्यूटीज, पावर ऐंड कंडिशंस ऑफ सर्विस) ऐक्ट 1971 का जिक्र किया, जिसके अंतर्गत कैग को इस तरह के ऑडिट की जांच करने के लिए सभी रेकॉर्ड्स चेक करने का पूरा अधिकार है और वह ऑडिट प्रोसेस के बीच आने वाले किसी भी नियम की अवहेलना भी कर सकता है।कैग की रिलायंस के साथ चल रही जवाबी जंग के बाद कैग का यह बयान बेहद मायने रखता है। इससे पहले, रिलायंस ने कहा था कि कैग को आरआईएल के केजी बेसिन के सबसे बड़े ब्लॉक डी6 फील्ड पर हुए मूल खर्च की जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। रिलायंस का कहना है कि उसका सरकार के साथ हुआ कॉन्ट्रैक्ट कैग को उसकी परफॉर्मेंस ऑडिट करने की इजाजत बिलकुल नहीं देता।कैग ने हालांकि प्राइवेट ऑपरेटर की परफॉर्मेंस ऑडिट न कर सकने की बात से सहमति जताते हुए कहा कि वह पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के परफॉर्मेंस ऑडिट के अंतर्गत आरआईएल के केजी बेसिन के कॉन्ट्रैक्टर होने के नाते उसकी जांच कर सकता है।

हालांकि, इस बैठक को टाले जाने के बावजूद पेट्रोलियम मंत्रालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के निवेश प्रस्तावों को अभी तक हरी झंडी नहीं दी है। कैग ने उपर्युक्त एंट्री कांफ्रेंस इसलिए बुलाई थी ताकि वह अपने संबंधित ऑडिट का दूसरा दौर शुरू कर सके। कैग को इसके तहत रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा वर्ष 2008-09 से लेकर वर्ष 2011-12 तक 'केजी-डी6' गैस फील्ड्स पर किए गए खर्चों की गहन पड़ताल करनी है। दरअसल, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैग की पड़ताल के सिलसिले में उससे ऐसी कोई भी सूचना या डाक्यूमेंट नहीं मांगा जाएगा जो पीएससी की लेखांकन प्रक्रिया की धारा 1.9 के तहत ऑडिट के दायरे से बाहर होगा। कंपनी यह भी चाहती है कि ऑडिट उसके परिसर में ही हो और ऑडिट रिपोर्ट संसद में पेश करने के बजाय पीएससी के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय को सौंपी जाए।

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने आज कहा कि उसने केजी डी-6 गैस फील्ड पर कंपनी के खर्चों का कैग से अंकेक्षण कराने के सरकार के अधिकार का कभी भी विरोध नहीं किया। लेकिन कंपनी को उम्मीद है कि यह अंकेक्षण 'कार्य निष्पादन का अंकेक्षण' नहीं होगा।कंपनी ने शनिवार शाम जारी एक बयान में कहा, 'आरआईएल ने कैग सहित किसी भी एजेंसी से अंकेक्षण कराने के सरकार के अधिकार का कभी भी विरोध नहीं किया जैसा कि पीएससी की लेखांकन प्रक्रिया की धारा 1.9 में दिया गया है।' कंपनी ने यह उल्लेख करते हुए कि वह एक निजी आपरेटर है और उत्पादन बंटवारा अनुबंध के तहत काम कर रही है, कहा कि 'कंपनी कैग की रिपोर्ट में दिए गए इस बयान की सराहना करती है कि वह निजी कंपनियों के निष्पादन का अंकेक्षण नहीं करता।' आरआईएल को उम्मीद है कि इस आडिट में कैग सरकार पर लागू कार्यनिष्पादन के आडिट के तरीकों का प्रयोग नहीं करेगा।कंपनी ने कहा कि उसे अपनी तकनीकी क्षमताओं पर पूरा भरोसा है और वह तेल एवं गैस क्षेत्र में गहरे जल में परिचालन की जटिलताओं की आवश्यक समझ रखने वाले विशेषज्ञों की ओर से उस पर की गयी टिप्पणियों का स्वागत करेगी। आरआईएल ने कहा है कि उसने सरकार द्वारा बिढाए गए किसी भी अंकेक्षक के साथ बराबर सहयोग किया है।

भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) विनोद राय ने आज आगाह किया कि भारत पारदर्शिता और जवाबदेही के बगैर सतत ऊंची वृद्धि दर नहीं हासिल कर सकता।11वें अखिल भारतीय लोकायुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'आर्थिक वृद्धि तब तक टिकाऊ और समावेशी नहीं हो सकती जब तक यह पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर आधारित न हो।' उन्होंने कहा कि भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा कोई नया नहीं है। देश को सतत रूप से 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने के लिए भ्रष्टाचार प्रभावी तरीके से निपटने की जरूरत है क्योंकि इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है। सरकारी अंकेक्षक कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लाक आवंटन पर अपनी रिपोर्टों में सरकार की ऐसी विभिन्न व्यवस्था का जिक्र किया है जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है। इन रिपोर्टों पर सरकार को कड़ी प्रतिक्रिया देनी पड़ी।भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक आर्थिक मंदी से पहले तक नौ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर से बढ़ रही थी, लेकिन 2008.09 में यह 6.7 प्रतिशत पर आ गई। कैग की कार्यप्रणाली के संबंध में राय ने कहा कि सरकारी अंकेक्षक ने दैनिक मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए पुस्तिका पेश करना शुरू किया है। उन्होंने कहा, 'अब हमने अपनी जटिल अंकेक्षण रिपोर्टों को छोटी पुस्तिका में तब्दील करना शुरू किया है। सामाजिक क्षेत्र से जुड़े सभी मुद्दों पर हम 14.15 पृष्ठों की पुस्तिका लेकर आए हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी रविवार को रामलीला मैदान में होने वाली कांग्रेस की महारैली को सम्बोधित करेंगे। विपक्ष के साथ-साथ सहयोगी दलों के चौतरफे हमले झेल रही कांग्रेस की सरकार इस रैली के जरिए राजधानी में अपना शक्ति प्रदर्शन करने की तैयारी में है।इस महारैली में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, प्रदेशों के अध्यक्ष, ब्लॉक व जिला कांग्रेस के अध्यक्ष, सांसद, विधायक और सभी अग्रिम संगठनों के अध्यक्ष शिरकत करेंगे। रैली के बाद नौ नवम्बर को सूरजकुंड में पार्टी के वरिष्ठ नेता समीक्षा बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे। इस बैठक में कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य, महासचिव, राज्यों के प्रभारी, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री और राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हिस्सा लेंगे।रविवार की रैली में प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष आर्थिक सुधारों की दिशा में हाल के दिनों में उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से विचार रख सकते हैं। यह रैली ऐसे समय में हो रही है जब जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने निर्वाचन आयोग से पार्टी की मान्यता खत्म करने की गुहार भी लगाई है। इसके अलावा इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। आईएसी ने पेट्रोलियम मंत्रालय से एस. जयपाल रेड्डी को हटाए जाने को लेकर भी मनमोहन सरकार पर आक्षेप लगाए हैं।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने शनिवार को कहा कि आर्थिक वृद्धि में गिरावट का दौर समाप्त हो गया है और अब इसमें तेजी आ रही है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत के बीच उन्होंने यह बात कही।सीआईआई-इनवेस्ट नार्थ कांफ्रेन्स में अलग से बातचीत में अहलूवालिया ने कहा, 'चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रही जबकि पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में यह 5.3 प्रतिशत थी। अत: यह कहा जा सकता है कि आर्थिक वृद्धि में जितनी गिरावट होनी थी, वह हो चुकी है और अब इसमें तेजी आ रही है।'पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक वृद्धि दर 5.3 प्रतिशत रही जो नौ साल का निम्न स्तर है। इससे पूर्व वित्त वर्ष में यह 6.5 प्रतिशत थी।उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि दर को गति देने तथा धारणा में सुधार के लिये सरकार ने हाल में जो कदम उठाए हैं, उसका नतीजा जनवरी से दिखने लगेगा।निर्णय लेने में देरी के बारे में उन्होंने कहा,'केंद्र सरकार निर्णय लेने में देरी के कारणों को दूर करने की कोशिश कर रही है और निजी क्षेत्र को इस मामले में सरकार की मदद करनी चाहिए।

कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने शनिवार को कहा, `हमारे लिए यह एक भावनात्मक मुद्दा है। केवल कांग्रेस ही निर्णय करेगी कि उसके लिए क्या राजनीतिक है और क्या नहीं?` कांग्रेस द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को ऋण देने की बात स्वीकार करने के एक दिन बाद स्वामी ने शनिवार को मान्यता रद्द करने के लिए निर्वाचन आयोग को ज्ञापन सौंपा। स्वामी ने ज्ञापन में कहा, `यह ऋण उन नियमों एवं दिशा निर्देशों का उल्लंघन है, जिसका पालन राजनीतिक दलों के पंजीयन एवं मान्यता जारी रखने के लिए आवश्यक है। आयकर अधिनियम (1961) की धारा 13ए और आरपीए (1951) अधिनियम की धारा 29ए से 29सी के अनुसार कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी कम्पनी को ब्याज या ब्याज मुक्त ऋण नहीं दे सकती है।`

उन्होंने याचिका में कहा, `कांग्रेस ने निर्वाचन कानून एवं आयकर कानून के तहत प्रथम दृष्टया अपराध स्वीकार कर लिया है। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि आप मामले की सुनवाई करें। इसलिए निर्वाचन आयोग को अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिह्न को रद्द कर देना चाहिए।` द्विवेदी ने शुक्रवार को स्वीकार किया था कि कांग्रेस ने इस समाचार पत्र को पुन: अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिया था। द्विवेदी ने कहा था, `कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की सहायता के लिए धन दिया था। ऐसा करके हमने अपना कर्तव्य निभाया है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।`

प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी ब्याज मुक्त ऋण देने के मामले की जांच की मांग की और कहा कि सत्तारुढ़ दल को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर स्पष्टीकरण देना होगा। भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने को कहा, `भाजपा स्पष्ट तौर पर मामले की जांच की मांग करती है। भाजपा की मांग है कि कांग्रेस को सच्चाई का सामना करना चाहिए और उत्तर देना चाहिए न कि नौवें या दसवें भ्रष्टाचार के मुद्दे से मुंह छिपाना चाहिए।` इंडिया अगेंस्ट करप्शन के अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इस मामले की जांच की जरूरत है।

स्वामी ने गुरुवार को कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उनके पुत्र राहुल गांधी ने कम्पनी बना कर नकली एवं फर्जी सौदे द्वारा 1600 करोड़ रुपये के हेराल्ड हाउस एवं इस समूह से जुड़ी सम्पत्तियों को हथिया लिया। उन्होंने कहा, `राहुल गांधी 2008 से ही एसोसिएटेड जर्नल्स प्राइवेट लिमिटेड के अंशधारक थे लेकिन उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनावों में इस बात का खुलासा नहीं किया।` स्वामी ने कहा कि कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स प्राइवेट लिमिटेड को 90 करोड़ रुपए बतौर ऋण बिना किसी जमानत के दिए जो कानूनों का उल्लंघन है।

जमीन अधिग्रहण विधेयक पर कृषि मंत्री शरद पवार की अध्यक्षता में गठित मंत्री समूह इस पर अपनी रिपोर्ट दे चुका है। पिछले महीने वह कुछसंशोधनों की सिफारिश के साथ इस विधेयक को मंजूरी दे चुका है। पवार को लिखे पत्र में फिक्की अध्यक्ष आरवी कानोडिय़ा ने कहा कि राज्य सरकारों को जमीन अधिग्रहण में निजी क्षेत्र की मदद सार्वजनिक उद्देश्य वाले प्रोजेक्टों के अलावा भी करना चाहिए।


भारत जैसी सघन आबादी वाले देश में उद्योग जगत के लिए जमीन अधिग्रहण में राज्यों की अहम भूमिका का होना बहुत जरूरी है। ज्यादा जमीन की जरूरत वाले प्रोजेक्टों में मामूली हिस्सा रखने वाले कुछलोगों की वजह से परेशानियां पैदा हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव के प्रावधानों के तहत निजी सेक्टर के लिए जमीन अधिग्रहण करना बहुत ज्यादा कठिन हो जाएगा।


सार्वजनिक उद्देश्य को छोड़कर बाकी प्रोजेक्टों के लिए निजी क्षेत्र यदि जरूरत की ज्यादातर जमीन खरीद भी लेता है तो भी कुछ लोगों की वजह से यह रुक सकता है। उन्होंने कहा कि सीमेंट और स्टील जैसे बड़े प्रोजेक्ट निजी क्षेत्र के सामने आखिरी इंच जमीन के अधिग्रहण तक समस्या बनी रहेगी। ऐसे मामलों में यदि राज्य सरकार मदद नहीं करेगी तो प्रोजेक्ट ही शुरू नहीं हो पाएंगे। मौजूदा प्रावधानों के तहत 75 फीसदी जमीन का अधिग्रहण होने पर ही कोई उद्योग किसी स्थान पर लग सकता है।


कानोडिय़ा ने कहा कि सहमति से अधिग्रहण के लिए प्रतिशत दो तिहाई से ज्यादा नहीं होना चाहिए। फिलहाल के प्रावधानों में है कि जमीन के 80 फीसदी मालिकों की रजामंदी किसी अधिग्रहण के लिए अनिवार्य है।कनोडिय़ा ने कहा कि मौजूदा प्रस्ताव में बहुत से ऐसे प्रावधान हैं जिसके चलते उद्योग जगत के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।

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