Friday, February 15, 2013

ख़बरदार जो अफज़ल की फाँसी के बारे में लिखा

ख़बरदार जो अफज़ल की फाँसी के बारे में लिखा



 हिमाँशु कुमार

कल अफज़ल गुरु का पत्र पढ़ रहा था। अफज़ल ने लिखा है कि पुलिस उसे बार-बार पकड़ लेती थी और उसे हर बार रिहा होने के लिये रिश्वत देनी पड़ती थी। पुलिस उसे और उस जैसे अन्य कश्मीरी नौजवानों को इसी तरह पकड़ लेती थी और उन्हें भी बुरी तरह सताती थी। एक बार अफज़ल को छोड़ने के के लिये पुलिस ने एक लाख रूपये की रिश्वत माँगी थी। अफज़ल ने अपना स्कूटर और अपनी बीबी के जेवर बेच कर पुलिस को रिश्वत दी थी।

अफज़ल ने लिखा है कि पुलिस वाले उनके गुप्तांगों में मिर्चें डालते थे और बिजली का करंट लगाते थे। अफज़ल आगे लिखता है कि एक पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह ने उससे एक छोटा सा काम करने के लिये कहा था और अफज़ल से दिल्ली में एक आदमी के लिये एक किराये के मकान का इंतजाम करने के लिये कहा था। पुलिस का कहा हुआ काम कर देने के बाद जब अफज़ल अपने घर वापिस जा रहा था तो पुलिस ने उसे बस अड्डे से पकड़ लिया और उसे संसद पर हमले का आरोपी बना कर अदालत में पेश कर दिया और उसे फाँसी की सज़ा दिलवा कर मरवा दिया।

पता नहीं क्यों मुझे यह पत्र बहुत जाना-पहचाना सा लग रहा है? इस पत्र को पढ़ते समय मुझे देजावु जैसा अनुभव हो रहा है जिसमें आपको लगता है कि ऐसा तो आपने पहले भी कहीं देखा था। मेरे आदिवासी साथियों लिंगा कोडोपी और कोपा कुंजाम को भी पुलिस ने ऐसे ही पकड़ा था। कोपा कुंजाम को थाने में उल्टा लटका कर रात भार पीटा जाता है और उसके नीचे से मिर्च का धुँआ किया जाता है। लिंगा कोडोपी को भी जेल में चालीस दिन तक थाने के शौचालय में बन्द कर के रखा जाता है और उसे करीब करीब भूखा रखा जाता है।

कोपा कुंजाम को रात भर पिटाई के दौरान पुलिस उससे कहती है कि तुम गाँवों को दोबारा बसाने का काम बन्द कर दो तो हम तुम्हें छोड़ देंगे। कोपा से किसी अपहरण या हत्या के बारे में पुलिस कुछ भी नहीं कहती। लेकिन दो दिन बाद कोपा को एक अपहरण और हत्या के मामले में अदालत में पेश कर देती है। बाद में अदालत में जिसके अपहरण का कोपा पर अपराध बनाया गया था वह खुद अदालत में आकर कहता है कि कोपा तो मुझे अपहरण के समय बचाने के लिये नक्सलियों से झगड़ रहा था लेकिन तब तक कोपा जेल में दो साल गुजार चुका है और कोपा कुंजाम का आदिवासियों को गावों में बसाने का काम बंद हो जाता है।

अफज़ल के मामले की तरह ही एक अधिकारी मानेकर सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी के पास आता है और उनसे कहता है कि आप लोग हमारा एक छोटा सा काम कर दो कि एस्सार कम्पनी के एक आदमी को नक्सली बन कर फोन कर दो और उनसे पंद्रह लाख रूपये लेकर आने के लिये कहो तो हम तुम पर लगाए गए पुराने सभी केस बंद कर देंगे। लिंगा कोडोपी और सोनी सोरी ऐसा करने से मना कर देते हैं। अगले दिन पुलिस लिंगा कोडोपी को उसके घर से उठा कर ले जाती है। सोनी सोरी कानूनी मदद के लिये दिल्ली आती है। दिल्ली में सोनी सोरी को पुलिस बस स्टैण्ड से से पकड़ लेती है। सोनी को थाने में करंट लगाया जाता है और पुलिस उनके गुप्तांगों में पत्थर भर देती है।

कोपा कुंजाम की तरह ही बाद में अदालत में गवाह सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी को उनके खिलाफ लगाए गए मामलों में निर्दोष बताते हैं। फिर भी कानूनी प्रक्रिया उन्हें जेल में ही रखे हुये है। जबकि उनके साथ क्रूरता करने वाले पुलिस अधिकारी को राष्ट्रपति वीरता का पुरस्कार देता है। लेकिन गवाहों के कहने से क्या होता है? गवाह तो अफज़ल के खिलाफ भी कोई नहीं था। लेकिन जब पुलिस सरकार और अदालत किसी को मार डालने और किसी एक कौम को सबक सिखाने का ही फ़ैसला कर ले तो फिर गवाही, सुबूत और सच्चाई का क्या अर्थ बचता है?

हिमांशु कुमार,लेखक जाने-माने गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं

जब हम किसी ज़मीन के टुकड़े को राष्ट्र घोषित करते हैं तो उस ज़मीन के टुकड़े पर रहने वाले सभी लोगों को न्याय और बराबरी देने का वादा करते हैं। लेकिन भारतीय राष्ट्र अपने देश के करोड़ों आदिवासी, दलित,अल्पसंख्यक लोगों को उनके जन्म के स्थान, समुदाय और हैसियत के आधार पर बराबरी और न्याय से वंचित कर रहा है। सबसे भयानक बात यह है कि अपने ही कमज़ोर लोगों के साथ अन्याय करने का काम वही संस्थायें कर रही हैं जिन पर सभी नागरिकों के लिये न्याय और बराबरी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी थी। मनोरमा, अपर्णा मरांडी, आरती मांझी, सोनी सोरी इसलिये सरकार की क्रूरता का शिकार बनीं क्योंकि उनका सम्बन्ध एक खास समुदाय और स्थान से है।

अगर किसी खास समुदाय के करोड़ों लोगों को ऐसा महसूस होगा कि उन्हें इस देश में बराबरी और न्याय नहीं मिल रहा है तो वो खुद पर अन्याय करने वाले समूह के साथ क्योंकर रहना चाहेंगे?

हमारा अन्याय इस देश के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।

हम से बहुत से मित्र कह रहे हैं कि हम अफज़ल की फाँसी के बारे में ना लिखें और एक देशभक्त की तरह हमें अपनी सरकार का समर्थन करना चाहिए। कुछ मित्र हम से कह रहे हैं कि अफज़ल की फाँसी पर सवाल उठाना देशद्रोह है। कुछ साथी तो हमें पकिस्तान समर्थक भी कह रहे हैं। लेकिन आपको समझना चाहिए कि आपकी ये अंधराष्ट्रभक्ति किस तरह अपने ही करोड़ों देशवासियों के साथ भयंकर अन्याय का आधार बन रही है और आपके इस व्यवहार से सरकार को अन्याय जारी रखने में आपका समर्थन मिल रहा है।

अतीत में भी दुनिया के अनेकों देशों में इसी तरह बहुसंख्य लोगों ने अपने कमज़ोर समुदायों को अन्याय और भयानक कष्ट सहने के लिये विवश किया और उसका परिणाम गृह युद्धों के रूप में सामने आया। इस तरह के गृह युद्धों के कारण कई राष्ट्र टुकड़े-टुकड़े हो गये। नये राष्ट्र अस्तित्व में आ गये। इसलिये राष्ट्र को एक रखने के लिये सबको न्याय और बराबरी देना ही एक मात्र रास्ता है। आप अन्याय करते हुए मात्र सेना और पुलिस के दम पर राष्ट्र को कभी भी सुरक्षित नहीं रख सकते।

दंतेवाड़ावाणी से

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