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विकसित देशों में और अपने देश में केवल एक अन्तर नजर आता है. वह यह की उन देशों के सिस्टम में जरा भी लचीलापन नहीं है. वहाँ 'चलता है' सिरे से गायब है और अपने देश का सिस्ट्म इतना लचीला है कि यहाँ 'चलता है' के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता. यहाँ तक कि और तो और न्याय की सर्वोच्च पीठ के पीछे तराजू लिये न्याय की देवी भी न्याय करने से पहले प्राय: आखों पर बँधी पट्टी के कोने से पात्र की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक हैसियत देख लेती है
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