Monday, October 31, 2011

Fwd: [बहुजन शासक] तानाशाही की और जा रहा रास्ता पीछे की और जाता है...



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From: Rajanand Meshram <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2011/10/31
Subject: [बहुजन शासक] तानाशाही की और जा रहा रास्ता पीछे की और जाता है...
To: बहुजन शासक <170298903031516@groups.facebook.com>


तानाशाही की और जा रहा रास्ता पीछे की और जाता...
Rajanand Meshram 8:03pm Oct 31
तानाशाही की और जा रहा रास्ता पीछे की और जाता है और जनतंत्र की और जानेवाला रास्ता लक्ष प्राप्ति की और आगे जाता है. सत्ता तो बीजेपी और कांग्रेस के पास भी है मगर पूंजीवाद और जातिवाद प्राप्त करने के लिए वे जनतंत्र का वापर कर रहे है. क्या उसे भी सही दिसा समझेंगे? केवल चलते रहना ठीक नहीं है, तो वह कोंसे दिसा से जा रहे है? यह बाते जादा महत्व पूर्ण है. डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर न जाती, वंश या तानाशाही के समर्थक थे लेकिन उनका नाम लेकर कुछ लोग आगे भी जा रहे है तो उसे आगे जाना नहीं कहा जायेगा. वह कार्य उद्धिष्टों के विरुद्ध है. क्या बाबासाहब ने सत्ता प्राप्ति के लीए जन्तान्त्रिक मूल्यों की क़ुरबानी देने को कहा था? दूसरे संघठन के लोग तो बीएसपी का मूल्यमापन गलत भी कर सकते है मगर क्या उसी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, मनोहर आटे भी उसका मूल्यमापन गलत कर सकते है? देखे वे क्या कहते है,
"नए-पुराने साथियों के आग्रह पर इस एतहासिक पुकार के लिए आवाज दे रहा हूँ. इसपर आप गंभीरता पूर्वक चिंतन-मनन करे. फिर सुझाव दे की बामसेफ-बीएसपी के मिशन को उन स्वार्थी, बेशर्म, निष्ठुर, धूर्त, पाखंडी और अवसरवादी लोगों से कैसे बचाया जाए जो इस मिशन को अपनी धन लोलुअ पता की पूर्ति का जरिया बनाए हुए है. जिनके नजरों से मिशन को मकशद ओझल हो गया है इस तरह के लोगों में भ्रष्ट है. मायावती को इन लोगों का नेता चुना गया है, दरअसल वे लोग मायावती की आड़ में आन्दोलन को गलत दिशा दे रहे है. यह सरासर दलित वोटों का दुरूपयोग है. पिछड़ों और अल्पसंख्यांको के उत्थान की बजाए सत्ता का गलत इस्तेमाल हो रहा है. अवसरवादी लोग बहुजन समाज को दबाने का काम कर रहे है. एइसा दरअसल ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद को आगे बढने एवं उसे मजबूत करने के लिए किया जा रहा है. ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद यह दोनों बहुजन समाज के मुख्य दुसमन है, जिनके खिलाफ हमारे मार्गदाता बाबासाहब आम्बेडकर ने १९३७ में ही सचेत कर दिया था. सन १९१६ से लेकर १९४६ तक उन्होंने ब्राह्मन वाद के उन्मुलन और संवैधानिक समाजवाद की स्थापना के लिए संघर्ष किया था."

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Palash Biswas
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