Friday, September 30, 2011

Fwd: [Right to Education] सर : मै आपको बताना चाहता हूँ कि आज मैंने 32...



---------- Forwarded message ----------
From: Sadre Alam <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2011/9/29
Subject: [Right to Education] सर : मै आपको बताना चाहता हूँ कि आज मैंने 32...
To: Right to Education <167844673250090@groups.facebook.com>


सर : मै आपको बताना चाहता हूँ कि आज मैंने 32...
Sadre Alam 11:30pm Sep 29
सर : मै आपको बताना चाहता हूँ कि आज मैंने 32 रुपिये में अपना दिन दिल्ली में कैसे गुज़रा (1 ) सुबह उठा, झाड़ा लगा हुआ था, नीचे गया, गली में एक टेढ़ा मेढ़ा बोतल गिरा मिला, उसमे मुह से हवा भर कर उसे फुलाया, चरर फरर की आवाज़ के साथ बोतल फूल गया, वहीँ सीवर लाइन जाम होने से उस से तरल बह रहा था, काम चलाने के लिए उसे ही भर लिया और जंगल में चला गया, झारा over == (2 ) निकलते निकलते बबूल की एक टहनी तोड़ी और दांत रगड़ता हुआ गली में वापस पहुंचा, पानी तो था नहीं इस लिए जो भी मुह में था अन्दर बहार फ़ेंक - घोंट कर काम चला लिया, Fresh == (3 ) झोला लेकर निकला, चाय पीने की इच्छा हुयी, 5 की चाय थी पी गया - चाय वाले को 2 ही दिया, उसने 3 और मांगा मैंने आपका नाम लिया - वह गाली देने लगा, मैंने कहा की मोंटेक सर बोले हैं 2 की चाय होगई है, वह नहीं सूना और मुझे 2 फैन्ट मारा, मैंने भी एक लगाई, वह पोलिसे को बुलाने लगा, मै दौड़ कर भाग गया, अब दोबारा उस गली से जाऊंगा ही नहीं, tea भी हो गयी (4), मुझे माया पूरी जाना था 15 का टिकेट था, लेकिन मैंने 5 का ही टिकेट लिया, जैसे ही धौला कुआँ पहुंचा टिकेट चेक अकरने वाले आ गए, मै चलती बस से आपका नाम लेकर कूद गया - धन्य हो आका पैर नहीं टूटी, दूसरी बस आई - ये जानते हुए चढ़ गया कि ये बस माया पूरी नहीं जाएगी, कंडक्टर ने पूछा कहाँ जाओगे मैंने कहा माया पूरी , वह बोला अंधे हो पढ़ा नहीं जाता कि क्या लिखा है, ओह देखा नहीं कह कर एक स्टॉप पार कर गया, ऐसे ही 3 स्टॉप निकाल दिया और 2 किलोमीटर चल कर जहाँ पहुंचना था वहां पहुँच गया, आपके मुताबिक आज के 32 में से 7 खर्च हो चुके थे, 25 बचे थे, भूख भी लगी थी, एक छोले कुलचे 15 का था, मैंने पूछा सिर्फ 2 कुलचे कितने का दोगे ? वह बोला 10 का, मैंने कहा 7 का देदो, उसने मुझसे कहा - न जाने कहाँ कहाँ से चले आते हैं साले बिहारी, मैंने भी उसको कह दिया, न जाने कहाँ कहाँ से चले आते हैं पाकिस्तानी ! वह आपके से बहार होगया और मेरे ऊपर चाकू निकल लिया - मै भगा, दोबारा उधर से गुजरूँगा तो वह ज़रूर मरेगा, सड़क के उसपार चला गया - दूसरे कुलचे वाले से 5 रूपिया में एक कुलचा और 1 रुपिये का नमकीन पानी ( पानी वाले ने मांगने पर मुफ्त में थोडा कला नमक पानी में डाल दिया ) लेकर चबा गया, दिन के 10 बज चुके थे, 10 मिनट में उस दफ्तर में दाखिल नहीं हुआ तो आज की आधी तनखाह कट जाएगी == (5 ) जैसे ही 1.15 हुआ सब लोग खाने का आर्डर करने लगे, मै नहीं कर सकता था, आज तो मै आपका फरमाबरदार जो था, 1.30 होते ही सब का खाना शरू, मै दफ्तर से बहार निकल गया == (6 ) सामने के ढाबे पर गया वहां तो 25 से कम का कुछ भी नहीं था, मेरे जेब में कुल 19 रुपिये पड़े थे जिस में दिन का खाना भी खाना था और वापस भी जाना था और रात का खाना भी ! मै 5 पांच से ज्यादा किसी भी हाल में खर्च नहीं कर सकता था, सामने एक ठेला था उस पर लिखा था 15 की थाली, मै उसके सामने पहुँच कर सोचने लगा और जेब से पैसा निकाल कर गिनने लगा ! यहाँ पैसा पहले लिया जाता था, लेकिन आज गलती से यह समझ कर कि पैसा दे चुका हूँ और वापसी गिन रहा हूँ - ढाबा के स्टाफ ने खाना सामने रख दिया, भूख तो लगी ही थी मै बिना ज्यादा सोचे विचारे खाने लगा , खा कर पानी पी लिया और धीरे से खिसक लिया, जैसे ही सड़क में बीच में पहुंचा, ढाबा वाला चिला रहा था - अरे पैसा तो दे जाओ, मै सुन आकर भी अनसुनी कर रहा था, गाड़ियों की रफ़्तार इतनी थी कि वह आधी सड़क पार कर मेरी पास आ नहीं सकता था, तब तक मै दुसरे साइड की सड़क को भी पार कर गया, और भाग कर दफ्तर आ गया == (7) 5 बजे दफ्तर से निकला, यह सोच कर 2 किलोमीटर चला कि कहीं आप कार से गुज़रते मिल जाएँ तो आपकी कार से धौला कुआ तक चला जाऊंगा, लेकिन आप मिले नहीं, सड़क किनारे एक टेंट लगा दिखा, कुछ लोग लाइन में खड़े थे और हलवा शरबत ले रहे थे, मै भी लाइन में जा लगा, वहां से खा पी कर आगे बढ़ा, सामने बस खड़ी थी जो घर तक आ रही थी, दौड़ कर चढ़ गया, 15 का टिकेट था, यह सोच कर कि आपके मुताबिक रात का खाना 5 में और चाय 2 में खा पी कर सो जाऊंगा - 10 का टिकेट ले लेता हूँ, कम से कम धौला कुआँ तक ठीक से पहुँच जाऊंगा, उसके बाद देखी जायगी, अचानक मोती बाग़ पे किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा टिकेट, मै चौंक गया, मैंने टिकेट दिखाया , उसने देखते हुए 200 रूपिया माँगा, मैंने कहा मेरे पास नहीं है, उसने मेरा गरेबान पकड़ लिया ताकि मै भागूं नहीं, अगले स्टॉप पे मुझे बस से उतार लिया, मैंने कई बार आपका नाम लिया कि मै मोंटेक सर भक्त हूँ, वह नहीं माना और मुझे धौला कुआँ पुलिस थाने ले आया, और मुझे लाकप में बंद कर दिया, मै ये आप बीती उसी लाकप से लिख रहा हूँ ( story of a street play " mai montek ka bhakt hoon" )

View Post on Facebook · Edit Email Settings · Reply to this email to add a comment.



--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

No comments:

Post a Comment