दुखवा मैं कासे कहुं?
बहुत कठिन है डगर,बहुत कड़ी है धूप!
साथी संभलकर चलना!
साथी हाथ बढ़ाना!
परमाणविक सैन्य राष्ट्र भी जनता को कुचलने में कम है क्योंकि जनता जब बगावत पर उतर जाती है तो किसी गैस चैंबर या किसी तिलिस्म की दीवारों में उन्हें मार देना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है।इसी के मुकाबले हिंदू राष्ट्रवाद का यह आतंकवाद प्रलयंकर है,जिसे कोई लेकिन आतंकवाद कह नहीं रहा है।
इसीलिए नये सिरे से आतंक से निबटने की यह सहमति है और यूं समझ लीजिये कि आगे फिर आतंक के खिलाफ युद्ध घनघोर है और अमेरिका को खुल्ला न्यौता है कि उनकी कंपनियां हम पर राज करें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह और अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ निर्ममता के साथ भारतीय जनता को उसी तरह मटियामेट कर दें जैसे मटियामेट यूरोप का आधा नक्शा है,मटियामेट लातिन अमेरिका है,मटियामेट नियतनाम है,मटियामेट इराक से सलेकर अफगानिस्तान है,सारा मध्यपूर्व है,अफ्रीका और एशिया है।
पलाश विश्वास
Many of my blogs removed.Speech recorded and missing!
बहुत कठिन है डगर,बहुत कड़ी है धूप!
साथी संभलकर चलना!
साथी हाथ बढ़ाना!
निजी दुःखों,तकलीफों,सदमों की हदबंदी को तोड़ने का वक्त यह है क्योंकि कयामतों से दसों दिशाओं से घिरे हुए हैं हम।
इस तिलिस्म में कैद हम छटफटा रहे हैं और देश न सिर्फ मृत्यु उपत्यका में तब्दील है,बल्कि वह अब मुकम्मल गैस चैंबर बना दिया गया है और सारी खिड़कियां,दरवाजे और यहांतक कि रोशनदान तक बंद हैं।
बेइतंहा तन्हाई है।
तन्हाई हजारों सालों की है।
यह तन्हाई हड़प्पा की है और मोहंजोदोड़ो की भी।
यह तन्हाई माया और इंका सभ्यताओं की भी है।
हम सिर्फ उस विरासत को ढो रहे हैं,तन्हाई की विरासत।
तन्हाई में गीत कोई गुनगुनाते हुए फसल काटने का समय भी यह नहीं है क्योंकि सारे खेत खलिहान घाटी में आग लगी है।
हमारी तन्हाई आग के हवाले हैं।
इस तन्हाई के महातिलिस्म को तोड़े बिना आजादी गुलामी और कयामतों के मंजर से मिलने के कोई आसार नहीं हैं।
आइये,सबसे पहले अस्मिताओं में कैद हमारे वजूद को आजाद करें।सबसे पहले रीढ़ को सीधी कर लें जो सुतल रही कहीं किसी कोने में या हालात ने उसे तोड़ मरोड़ कर कचरा पेटी में डाला हुआ है।हम तूफां के गुजर जाने का इंतजार चूंकि कर नहीं सकते और सफर के लिए कारवां शुरु करने से पहले शुतुरमुर्ग लबादा उतार फेंकने की जरुरत भी है बहुत।
बहुत कठिन है डगर,बहुत कड़ी है धूप!
साथी संभलकर चलना!
साथी हाथ बढ़ाना!
जैसे कि मंगलेश डबराल ने लिखा है हमारे अपराजेय साथी का चले जाना,वह बेदह बड़ा सदमा है,हम तमाम लोगों के लिए।
हमारे प्रिय कवि वीरेन डंगवाल पूरे तीन साल कैंसर को हराते हुए चल दिये।तो अब 16 मई के बाद लिखी जा रही कविताओं की प्रासंगिकता और घनघोर है।
कोई लड़ाई कविता के बिना लड़ी नहीं जा सकती और उत्पादन कोई लोकगीत के बिना हो सकता नहीं है।
यह कविता को नींद से जगाने का वक्त है और दुनियाभर के कवियों के अंगड़ाई लेकर जागने का सही वक्त है।
तुनीर में वाण हैं तो निकालो भइये और फिर चूकना नहीं चौहान।
इस मृत्यु उपत्यका की दीवारों को ढहाने की जरुरत सबसे ज्यादा है। इस गैस चैंबर के सारे दरवाजे,सारी खिड़कियां और सारे रोशनदान खोलने की जरुरत है।
हम सबसे पहले अपने अखबारों और अपने साहित्य से बेदखल हो गये। क्योंकि बाजार ने दुनियाभर के मेहनतकशों के हाथ पांव काटने के लिए सबसे पहले साहित्य,संस्कृति और मीडिया पर कब्जा जमा लिया।
हमने फिर दुनियाभर में लघुपत्रिका और वैकल्पिक मीडिया का आंदोलन चलाया।
बिना संसाधन मुक्त बाजार में उस आंदोलन की सद्गति जनांदोलनों के अवसान के साथ साथ,विचारधारा और इतिहास की मृत्यु घोषणाओं के साथ साथ होती रही और हम इस आंदोलन के टिमटिमाते दिये से कटकटेला अंधियारा का मुकाबला कर रहे हैं।
फिर इंटरनेट और सोशल मीडिया से हमने देश दुनिया को जोड़ने की मुहिम चलायी।अब सोशल मीडिया भी बेदखल है।
बायोमेट्रिक,क्लोन,रोबोट नागरिकों का देश अब डिजिटल है।
अमेरिका और भारत में नये सिरे सहमति हो गयी है आतंक को खत्म करने के लिए।आतंक के विरुद्ध अमेरिका के युद्ध में इजराइल और ब्रिटेन के साथ भारत भी पार्टनर है,तो इस नयी सहमति का मतलब क्या है,यह समझना जरुरी है।
क्योंकि जर्मनी,जापान और ब्राजील के साथ भारत की खास भूमिका रही है संयुक्त राष्ट्र के नये सिरे से तय विकास,गरीबी उन्मूलन और आर्थिक सुधारों के सत्रहह सूत्री संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश का एजंडा पास कराने में।
गौरतलब है कि भारत की आजादी के लिए इऩ्हीं जर्मनी और जापान से मदद मांगने के अपराध में हमने अपने इतिहास में नेताजी को फासिस्ट बना दिया।और कोई सूरत बनी नहीं कि नेताजी फिर घर वापस होते।इतना पक्का इंतजाम हो गया।
टाइटैनिक बाबा भारत को और भारतीय अर्थव्यवस्था को टाइटैनिक में तब्दील करने लगे हैं।
जहाज में छेदा है और यहजहाज डूबने वाला है जैसे समूचा देश अब डूब में तब्दील है।
ऐसा इसलिए हो रहा है कि हम सही मायने में न मजहब समझ रहे हैं,न सियासत समझ रहे हैं औरन हुकूमत।
अर्थव्यवस्था हमारे लए सरदर्द का सबब भी नहीं है।
लोग जोड़ घटाव गुणा भाग भूल गये हैं और हम अस्मिताओं, जातियों और मजहबों के समीकरण सादने में लगे उन्माद हैं।
धर्मोन्माद धर्म नहीं होता और न धर्मोन्माद कोई राष्ट्रवाद होता है।नेतीजे बेहद भयंकर हैं कि मुहब्बत लापता है।लापता है सच।लापता है धर्म।लापता है आस्था।
उत्पादक समुदायों के नरसंहार के वास्ते,खेती,बिजनेस और इंडस्ट्री भी अमेरिकी प्राइवेट सेक्टर के हवाले करने का चाकचौबंद इंतजाम है।
शर्मनाक है कि हमारा प्रधानमंत्री राकस्टार जैसा आचरण कर रहे हैं और निजी कंपनियों के सीईओ को खींचकर सेल्फी निकाल रहे हैं और हम बल्ले बल्ले हैं।
शर्म किसी को आ नहीं रही है।
थोड़ी शर्म तो इस स्वतंत्र संप्रभु देश के नागरिकों को होनी चाहिए कि कैसे निजी क्षेत्र के प्रबंधकों के लिए हमारा प्रधानमंत्रित्व बिछा बिछा है रेड कार्पेट की तरह कि हमारे सारे संसाधन वे लूट लें,जलजंगल जमीन पहाड़ रण समुंदर औरमरुस्थल वे लूट लें औरमेहनतकश तबकों,किसानों,व्यापारियों और देशी उद्योगपतियों का वे सफाया कर दें।
देश अब मुकम्मल मुक्त बाजार है और डजिटल देश है तो पूंजी अबाध है।संपूर्ण निजीकरण है और संपूर्ण विनिवेश है।
एफडीआई में भारतवर्ष ने चीन और अमेरिका को पछाड़ दिया है।
दरअसल यही है हिंदू राष्ट्र का एजंडा।
प्रधानमंत्री विदेशयात्रा पर है और अमेरिकी प्राइवेट सेक्टर के हवाले हमारे तमाम संसाधन कर रहे हैं तो इस देश के सबसे बड़े दिवालिये प्राइवेटाइज्ड रिजर्व बैंक के राजपाट खोये राजन ने त्योहारी मौसम के मुताबिक ब्याज दरों में कटौती कर दी और डाउ कैमिकल्स के वकील घोषणा कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में तेजी आयेगी।
अर्थव्यवस्था तेज नहीं होती।
अर्थव्यवस्था या तो कमजोर होती है या मजबूत होती है।
तेज शेयर बाजार होता है।
तेज भाव होते हैं।
तेज बाजार के सांढ़ और अस्वमेध के घोड़े होते हैं।
वे सही कह भी रहे हैं।बिहार में फिर कुरुक्षेत्र सजा है और कुरुवंश में महाभारत जातियों का है।
लोकतंत्र का कोई उत्सव नहीं हो रहा है कहीं,सर्वत्र बाजार का कार्निवाल है प्रलयंकर।
सारे के सारे लोग कबंध हैं और चेहरे सिरे से गायब हैं।
अश्वमेध के घोड़े दौड़ रहें हैं तेज तो बहुत तेज दौड़ रहे हैं मुक्त बाजार के सारे साँढ़।कयामतें रची जा रही हैं और कयामते ढहाई जा रही हैं।ढाये जा रहे हैं जुल्मोसितम।हम फिर भी सन्नाटा के कारीगर।
मेहनतकशों के हकहकूक की चर्चा देश द्रोह है।
धर्मोन्मादी बाजार का विरोध भी देशद्रोह है।
जनांदोलन जब तेज होता है तब वह या तो उग्रवाद है या फिर आतंकवाद है।
परमाणविक सैन्य राष्ट्र भी जनता को कुचलने में कम है क्योंकि जनता जब बगावत पर उतर जाती है तो किसी गैस चैंबर या किसी तिलिस्म की दीवारों में उन्हें मार देना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है।इसी के मुकाबले हिंदू राष्ट्रवाद का यह आतंकवाद प्रलयंकर है,जिसे कोई लेकिन आतंकवाद कह नहीं रहा है।
इसीलिए नये सिरे से आतंक से निबटने की यह सहमति है और यूं समझ लीजिये कि आगे फिर आतंक के खिलाफ युद्ध घनघोर है और अमेरिका को खुल्ला न्यौता है कि उनकी कंपनियां हम पर राज करें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह और अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ निर्ममता के साथ भारतीय जनता को उसी तरह मटियामेट कर दें जैसे मटियामेट यूरोप का आधा नक्शा है,मटियामेट लातिन अमेरिका है,मटियामेट नियतनाम है,मटियामेट इराक से सलेकर अफगानिस्तान है,सारा मध्यपूर्व है,अफ्रीका और एशिया है।
जनता लामबंद हो अस्वमेधी फौजों के लिए ,इसलिए बहुत जरुरी है कि सारे शंबूक फिर जाग जायें।
कलबुर्गी ,दाभोलकर और पानसारे की तरह सारे शंबूक फिर सर कटाने के लिए फिर हो जाये तैयार क्योंकि स्त्री अब भी दासी है।द्रोपदी को निर्वस्त्र करने का सिलसिला जारी है और गांधारी के सारे बेटे खेत हैं।
मनुसमृति अनुशासन के मुताबिक सबकुछ हो रहा है।
क्योंकि मनुस्मृति धर्मग्रंथ नहीं है कोई ,वह तो मुकम्मल अर्थशास्त्र है,वर्चस्व,आधिपात्य और नस्ली हुकूमत,सियासत और मजहब का जो अब मुक्त बाजार का अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद है।
हम ममता बनर्जी के आभारी हैं कि सत्तर साल से तहखानों में रखे हुए नेताजी से जुड़े दस्तावेज सारे वे सार्वजनिक करने लगी हैं।
नेताजी जिंदा हैं या मुर्दा,यह अब बेमतलब बहस है। कातिलों ने जाहिर है कि कोई सुराग नहीं छोडा़ तो जिंदा नेताजी को दफन करनेवालों के खिलाफ कोई सबूत भी नहीं होंगे।
इन दस्तावेजों से जो साबित हुआ है वह बहुत खास है।गांधी जिसे पागलदौड़ कहते थे,विकास और तकनीक के सफेद झूठ का प्रदाफास होने लगा है।
साबित हुआ है कि नेताजी कोई ङिजलन न थे,न मुसोलिनी थे नेताजी और न तेजो से उनकी कोई रिश्तेदारी थी।
वे बाबासाहेब डा,अबेडकर की तरह हर कीमत पर हिंदू राष्ट्र के खिलाफ थे और हिंदुत्व के पुनरूत्थान को नेताजी मुल्क और इंसानियत के खिलाफ मान रहे थे।
दोनों को लेकिन हिंदुत्व ने अवतार हिंदुत्वका बना दिया है और इन झूठी मूर्तियों को गिराने और ढहाने की जरुरत सबसे ज्यादा है।
हम इस कदर बूतपरस्त हैं कि हमें रब से कोई मुहब्बत नहीं है और हमारी रूह में नफरत का लावा दहक रहा है।
हमें बूत से मुहब्बत है जीते जागते इंसान या इंसानियत से कोई मुहब्बत नहीं है।
हम बूत जिसका बनाते हैं,वह रब हो या इंसान,उसको हमारे धंधे के सांचे में गढ़ते हैं कि मह रब को कातिल बना देते हैं और कातिल को पिर रब बना देते हैं।बाकी कटकटेला अंधियारा है।
1938 से लेकर 1947 के जो दस्तावेज ममता दीदी ने सार्वजनिक किये हैं,उनसे साबित फिर हुआ कि हिंदुत्ववादी ताकतें बंगाल का विभाजन पर आमादा थीं ,इसीलिए कोलकाता में निर्णायक डायरेक्ट एक्शन हुआ,जिसके लिए अबतक मुसलमानों.मुस्लिम लीग और सुहारावर्दी को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है।
इन दस्तावेजों से भारतीय बहुजन समाज, दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों,पिछड़ों के रहनुमा बंगाल के भुला दिये गये पहले प्रधानमंत्री फजलुल हक और उनकी कृषक प्रजा पार्टी के इतिहास का पता चलता है।
कृषक प्रजा पार्टी हिंदुत्व और इस्लाम के झंडेवरदारों के मुकाबले जमींदारों और रियासतों के खिलाफ रैयतों और प्रजाजनों के हकहकूक की लड़ाई लड़ रही थी।जो भूमि सुधार के लिए लगातार जारी किसान आदिवासी विद्रोह की विरासत थी।
नेताजी ने जोगेंद्रनाथ मंडल को बरिशाल से बुलाकर कोलकाता नरग निगम का मेयर पार्षद बनाया था,जिनने बाद में मुकद बिहारी मल्लिक के साथ मिलकर बाबासाहेब को संविधान सभा में पहुंचाया था।बहुलता और विविधता और लोकतंत्र के कितने हक में थे नेताजी, आजाद हिंद फौज के इतिहास भूगोल की तरह यह वाकया भी काबिलेगौर है।
इन दस्तावेजों से साबित है कि नेताजी किसानों और आदिवासियों और मेहनतकशों के हकहकूक के लिए प्रजा कृषक पार्टी और फजलुल हक को समर्थन देने की पेशकश लगातार कांग्रेस नेतृत्व से कर रहे थे।
सारी हिंदुत्ववादी ताकतें जमींदारों और रियासतों के हित में रैयतों और बहुजनों के खिलाफ,फजलुल हक के खिलाफ लामबंद थी।
प्रजाजनों और किसानों और बहुजनों की बंगाल की उस पहली सरकार को समर्थन देने से कांग्रेस ने सिरे से इंकार कर दिया और फिर फजलुल हक की सरकार भी गिरवा दी।
1901 में ठाका में ही मुस्लिम लीग का गठन हुआ था और न बंगाल में और न बाकी देश में कोई उसे हवा पानी दे रहा था और पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना ने भी उसे खास तरजीह नहीं दी क्योंकि उसे आम मुसलमानों का कोई समर्थन उसी तरह न था जैसे हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कट्टर हिंदुत्व को हिंदुओं ने कोई समर्थन नहीं दिय।
तब नेताजी वामपंथियों समेत तमाम लोगों को जोड़कर भारत को आजाद करने का ख्वाब जी रहे थे।
जबकि कांग्रेस का नेतृत्व एक तरफ हिंदू महासभा तो दूसरी तरफ मुस्लिम लीग को तरजीह देकर दो राष्ट्र के सिद्धांत के तहत सत्ता और जनसंख्या के हस्तातंरणकी तैयारी कर रही थी।
इस एजंडा के तहत भारतीय राजनीति में वध सिर्फ नेताजी का नहीं हुआ,पहला महिषासुर ते फजलुल हक खेत रहे जिनका नामलेवा आजद भारत में कोई नहीं है।
दूसरे वध हुए बलुचिस्तान के सीमांत गांधी और आदिवासियों, दलितों और मुसलमानों,सिखों और मेहनतकशों के वध का अनंत सिलसिला अब हिंदू राष्ट्रवाद है और हिंदुत्व का एंजडा है।
यह निर्लज्ज एजंडा हिंदू बहुल नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर रहा है और नेपाल के लोकतांत्रिक नया संविधान रद्द करवाकर एकमुश्त हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की वापसी के लिए नेपाल में लगातार लगातार हस्तक्षेप कर रहा है।
भारत के इस सामंती साम्राज्यवादी हिंदुत्व के खिलाफ नेपाल में भारतीय मीडिया का बहिष्कार है और वहां भारतीय सारे चैनलों का प्रसारण बंद है।
शर्मिंद हम फिर भी नहीं हो रहे और न विरोध हम जता रहे हैं कि नेपाल में भारत के प्रधानमंत्री का पुतला और भारतीय झंडा दोनों जल रहे हैं।हम बिना वजह बेगुनाहों को मौत के घाट उतार रहे हैं।
हिंदुत्व का यही एजंडा है विभाजन का जो अब कश्मीर को अलग करने पर आमादा है क्योंकि कश्मीर घाटी के मुसलमानों को पाकिस्तान हांके बिना कोई सूरत नहीं है कि भारत हिंदू राष्ट्र बन सके।यह हम बार बार लिख बोल रहे हैं।
हिंदुत्व का यही एजंडा था कि बंगाल में मुस्लिम बहुमत और पंजाब की मुसलमान आबादी को अलग किये बिना हिंदू राष्ट्र अंसभव था।वैसा ही हुआ और इसीलिए भारत का विभाजन हो गया।
आजाद हिंद फौज भारत में दाखिल होते या फजलुल हक,सीमांत गांधी और नेताजी एक साथ होते या गांधी और अंबेडकर आदिवासियों को तरजीह दिये रहते तो बंटवारा इतना आसान भी नहीं होता और न किसी हत्यारे की गोली से गांधी का सीना छलनी हुआ रहता और न आज भी रोजाना गांधी का सीना लहूलुहान हो रहा है और उसपर गोलियों की बौछार हो रही है।
नेतीजी नहीं लौटे तो भारत की किस्मत बदल गयी और नेताजी भारत में कतई दाखिल न हो,इसके लिए नेताजी के मणिपुर के मोइरांग में तिरंगा फहराने के तुरंत बाद भारतीय राष्ट्रीय नेतृत्व और हिंदुत्ववादी ताकतों की आपातकालीन बैठक भी कोलकाता में हुई और भारत के बंटवाकरे का चाकचौबंद इंतजाम हो गया।बांटवारे का सिलसिला लेकिन थमा नहीं है।यही हिंदुत्व का पुनरूत्थान है।
दुखवा मैं कासे कहुं?
बहुत कठिन है डगर,बहुत कड़ी है धूप!
साथी संभलकर चलना!
साथी हाथ बढ़ाना!
परमाणविक सैन्य राष्ट्र भी जनता को कुचलने में कम है क्योंकि जनता जब बगावत पर उतर जाती है तो किसी गैस चैंबर या किसी तिलिस्म की दीवारों में उन्हें मार देना मुश्किल ही नहीं,नामुमकिन है।इसी के मुकाबले हिंदू राष्ट्रवाद का यह आतंकवाद प्रलयंकर है,जिसे कोई लेकिन आतंकवाद कह नहीं रहा है।
इसीलिए नये सिरे से आतंक से निबटने की यह सहमति है और यूं समझ लीजिये कि आगे फिर आतंक के खिलाफ युद्ध घनघोर है और अमेरिका को खुल्ला न्यौता है कि उनकी कंपनियां हम पर राज करें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह और अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ निर्ममता के साथ भारतीय जनता को उसी तरह मटियामेट कर दें जैसे मटियामेट यूरोप का आधा नक्शा है,मटियामेट लातिन अमेरिका है,मटियामेट नियतनाम है,मटियामेट इराक से सलेकर अफगानिस्तान है,सारा मध्यपूर्व है,अफ्रीका और एशिया है।
[Sign Petition] Dear India, stop interfereing in Nepal. Thanks!
Please sign and circulate widely. Endorsements can also be sent directly to Anand Swaroop Verma
[Sign Petition] Dear India, stop interfereing in Nepal. Thanks!
We, the undersigned extend full support to the people of Nepal on the occasion of the promulgation of their Constitution. We oppose the interference of the Indian…