Saturday, May 31, 2014

दलित बहुजन राजनीतीं की ओर

मसीहियत बदला लेने में नहीं बल्कि माफ़ करने में विश्वास करती है, इसलिए तुम भी उन्हें माफ़ कर दो

हिन्दू तालिबान -26

------------------------
दलित बहुजन राजनीतीं की ओर
........................................
दलित सेना से निकाले जाने के बाद मेरे लिए अगला स्वाभाविक ठिकाना बहुजन समाज पार्टी और उस जैसी सोच रखने वाले संस्था ,संगठन थे ,मैं अपने आपको अब वैचारिक रूप से इन्हीं के करीब पाता था ,मैंने सोच रखा था कि किसी दिन अगर मैं सक्रीय राजनीती का हिस्सा बनूँगा तो उसकी शुरुआत बसपा से ही होगी ,बसपा उन दिनों मेरे लिए एक सामाजिक आन्दोलन थी ,मेरे एक मित्र आर पी जलथुरिया के घर बहुजन संगठक नामक अख़बार आता था ,मैं उसे नियमित रूप से पढता था ,बसपा सुप्रीमों मान्यवर कांशी राम के प्रति मन में बहुत अधिक सम्मान भी था ,उनके द्वारा सोयी हुयी दलित कौमों को जगाने के लिए किये जा रहे प्रयासों का मैं प्रशंसक और समर्थक था, तिलक तराजू और तलवार को जूते मारने की बात मुझे अपील करती थी. उस वक़्त का मीडिया आज जितना ही दलित विरोधी था ,मान्यवर मीडिया के इस चरित्र का बहुत ही सटीक और सरल विश्लेषण करते हुए कहते थे कि मीडिया कभी भी बहुजन समर्थक नहीं हो सकता है ,उसमे बनिए का पैसा और ब्राहमण का दिमाग लगा हुआ है ,अगर हम देखें तो हालात अब भी जस के तस ही है ,अभी भी अधिकांश मीडिया हाउस के मालिक वैश्य है और संपादक ब्राह्मण .
कांशीराम को तत्कालीन मीडिया अक्सर एक अवसरवादी और जातिवादी नेता के रूप में पेश करता था ,अवसरवाद पर बोलते हुए उन्होंने एक बार कहा था - हाँ मैं अवसरवादी हूँ और अवसर ना मिले तो मैं अवसर बना लेता हूँ समाज के हित में .....और वाकई उन्होंने बहुजनों के लिए खूब सारे मौके बनाये ,उनके द्वारा दिए गए नारों ने उन दिनों काफी हलचल मचा रखीथी ,मनुवाद को उन्होंने जमकर कोसा ,जयपुर में हाईकोर्ट में खड़े मनु की मूर्ति को हटाने के लिए भी उन्होंने अम्बेडकर सर्कल पर बड़ी मीटिंग की ,हम भीलवाडा से पूरी बस भर कर लोग लाये ,मान्यवर की पुस्तक 'चमचा युग ' भी पढ़ी ,उसमे चमचों के विभिन्न प्रकार पढ़ कर आनंद आया, चमचों का ऐसा वर्गीकरण शायद ही किसी और ने किया होगा ,वाकई कांशीराम का कोई मुकाबला नहीं था .बाबा साहब आंबेडकर के बाद उन्होंने जितना किया ,उसका आधा भी बहन कुमारी कर पाती तो तस्वीर आज जितनी निराशाजनक तो शायद नहीं होती ,पर दलित की बेटी दौलत की बेटी बनने के चक्कर में मिशन को ही भुला बैठी ...
मुझे मान्यवर से 5 बार मिलने का अवसर मिला ,उनकी सादगी और समझाने के तरीके ने मुझे प्रभावित किया ,वे जैसे थे ,बस वैसे ही थे ,उनका कोई और चेहरा नहीं था ,तड़क भड़क से दूर ,मीडिया की छपासलिप्सुता से अलग ,लोगों के बीच जा कर अपनी बात को समझाने का उनका श्रमसाध्य कार्य मेरी नज़र में वन्दनीय था ,मैं उनकी बातों और नारों का तो दीवाना ही था ,ठाकुर ब्राहमण बनिया को छोड़ कर सबको कमेरा बताना और इन्हें लुटेरा बताने का साहस वो ही कर सकते थे ,ये मान्यवर कांशीराम ही थे जिन्होंने कांग्रेस को सांपनाथ ,भाजपा को नागनाथ ,जनता दल को सपोला और वामपंथियों को हरी घास के हरे सांप निरुपित किया था ,बसपा सपा गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण के वक़्त लगा नारा -' मिले मुलायम कांशीराम,भाड में जाये जय श्रीराम ' उस वक़्त जितना जरुरी था , आज भी उसकी उतनी ही या उससे भी अधिक जरुरत महसूस होती है .
चूँकि मेरा प्रारम्भिक प्रशिक्षण संघी कट्टरपंथी विचारधारा के साथ हुआ इसलिए चरमपंथी विचारधारा मुझे तुरंत लुभा लेती थी ,उदारवादी और गांधीवादी टाइप के अम्बेडकरवादियों से मुझे कभी प्रेम नहीं रहा ,समरसता ,समन्वयन और भाईचारे की फर्जी बातों पर मेरा ज्यादा यकीन वैसे भी नहीं था ,इसलिए मान्यवर जैसे खरी खरी कहने वाले व्यक्ति को पसंद करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं थी ,एक और बात जो उनकी मुझे पसंद आती थी वो यह थी कि वे कभी किसी की चमचागिरी नहीं करते दिखाई पड़े ,याचक सा भाव नहीं ,बहुजनों को हुक्मरान बनाने की ललक और उसके लिए जीवन भर का समर्पण ..इसलिए मैं सदैव ही कांशीराम को पसंद करता रहा और आज भी अपनी सम्पूर्ण चेतना के साथ उन्हें आदर देता हूँ .
मेरी उनसे आखिरी मुलाकात चित्तोडगढ के डाक बंगले में हुयी ,वे गाड़िया लोहारों के सम्मलेन को संबोधित करने आये थे ,उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ की राजस्थान में कोई मेघवाल मुख्यमंत्री बने ,मैं उन्हें राजा बनाने आया हूँ ,लेकिन मान्यवर की इस इच्छा को परवान चढाने के लिए बसपा कभी उत्सुक नहीं नज़र आई ,जो लीडरशिप इस समुदाय से उभरी शिवदान मेघ ,भोजराज सोलंकी अथवा धरमपाल कटारिया के रूप में ,उसे भी किसी न किसी बहाने बेहद निर्ममता से ख़तम कर दिया गया ,मैंने देखा कि ज्यादातर प्रदेश प्रभारी बहन जी उतरप्रदेश से ही भेजती है ,जिनका कुल जमा काम राजस्थान से पार्टी फण्ड ,चुनाव सहयोग और बहन जी के बर्थ डे के नाम पर चंदा इकट्ठा करना रहता है .,
जब तक मान्यवर कांशीराम जिंदा और सक्रिय रहे, तब तक बसपा एक सामाजिक चेतना का आन्दोलन थी ,उसके बाद वह जेबकतरों की पार्टी में तब्दील होने लगी ,जिधर नज़र दौड़ाओ उधर ही लुटेरे लोग आ बैठे ,बातें विचारधारा तथा मिशन की ..और काम शुद्ध रूप से लूट- पाट ,सेक्टर प्रभारी से लेकर बहनजी तक जेब गरम ही बसपा का ख़ास धरम हो गया ,धन की इस वेगवान धारा में विचारधारा कब बह कर कहाँ जा गिरी ,किसी को मालूम तक नहीं पड़ा ,आज भी यह प्रश्न अनुतरित है कि बसपा नमक विचारधारा का आखिर हुआ क्या ?
तिलक तराजू और तलवार को चार चार जूते मारने वाले उन्हीं तिलकधारियों के जूते और तलुवे चाटने लग गए ,बसपा का हाथी अब मिश्रा जी का गणेश था ,मनुवाद को कोसने वाले अब ब्राहमण भाईचारा सम्मेलनों में शंखनाद कर रहे थे और पूरा बहुजन समाज बहनजी की इस कारस्तानी को सामाजिक अभियांत्रिकी समझ कर ढपोरशंख बना मूक दर्शक बना हुआ था ,किसी की मजाल जो दलित समाज की नयी नवेली इस तानाशाह के खिलाफ सवाल उठाने की हिम्मत करता ?बसपा अब द्विजों को जनेऊ बांटने का गोरखधंधा भी करने लगी थी ,दलितों को बिकाऊ नहीं टिकाऊ होने की नसीहत देने वाली पार्टी के चुनावी टिकट सब्जी मंडी के बैगनों की भांति खुले आम बिकने लगे ,पैसा इकट्ठा करना ही महानतम लक्ष्य बन चुका था ,बर्थ डे केक ,माथे पर सोने का ताज़ और लाखों रुपए की माला पहन कर बहनजी मायावती से मालावती बन बैठी ,बहुजन समाज स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगा ,सामाजिक परिवर्तन के एक जन आन्दोलन का ऐसा वैचारिक पतन इतिहास में दुर्लभ ही है ,मैं जिस उम्मीद के साथ बसपा में सक्रिय हुआ ,वैसा कोई काम वहां था ही नहीं ,वहां कोई किसी की नहीं सुनता है ,बहन जी तो कथित भगवानों की ही भांति अत्यंत दुर्लभ हस्ती है ,कभी कभार पार्टी मीटिंगों में दर्शन देती ,जहाँ सिर्फ वो कुर्सी पर बिराजमान होती और तमाम बहुजन कार्यकर्ता उनके चरणों में बैठ कर धन्य महसूस करते ,बसपा जैसी पार्टी में चरण स्पर्श जैसी ब्राह्मणवादी क्रिया नीचे से ऊपर तक बेहद पसंद की जाती है ,जो जो चरनागत हुए वो आज तक बहन जी के शरानागत है ,शेष का क्या हाल हुआ ,उससे हर कोई अवगत है ,जो भी बहन जी को चमकता सितारा लगा ,उसकी शामत आ गयी ,बोरिया बिस्तर बन्ध गए ,सोचने समझने की जुर्रत करने वाले लोग गद्दार कहे जा कर मिशनद्रोही घोषित किये गए और उन्हें निकाल बाहर किया गया ,हालत इतने बदतर हुए कि हजारों जातियों को एकजुट करके बनी 'बहुजन समाज पार्टी ' सिर्फ 'ब्राहण चमार पार्टी ' बन कर रह गयी ,
मान्यवर कांशीराम रहस्यमय मौत मर गए और धीरे धीरे बसपा भी अपनी मौत मरने लगी ,उसका मरना जारी है ..सामाजिक चेतना के एक आन्दोलन का इस तरह मरना निसंदेह दुख का विषय है पर किया ही क्या जा सकता है ,जहाँ आलोचना को दुश्मनी माना जाता हो और कार्यकर्ता को पैसा उगाहने की मशीन ,वहां विचार की बात करना ही बेमानी है ,मैं बसपा का सदस्य तो रहा और मान्यवर ने मुझे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए भी नामित किया ,लेकिन मैं कभी भी आचरण से बसपाई नहीं हो पाया ,मुझमे वो क्षमता ही नहीं थी ,यहाँ भी लीडर नहीं डीलर ही चाहिए थे ,जिन कारणों ने पासवान जी से पिंड छुड्वाया ,वे ही कारण बहनजी से दूर जाने का कारण बने ,दरअसल जिस दिन कांशीराम मरे ,उस दिन ही समाज परिवर्तन का बसपा नामक आन्दोलन भी मर गया ,मेरे जैसे सैंकड़ो साथियों के सपने भी मर गए ,उस दिन के बाद ना मुझे बसपा से प्यार रहा और ना ही नफरत .................( जारी )
- भंवर मेघवंशी 
आत्मकथा ' हिन्दू तालिबान ' का छब्बीसवा सर्ग

संघ और मैं- फिर आमने सामने

संघ और मैं- फिर आमने सामने
भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान'

संघ और मैं- फिर आमने सामने


हिन्दू तालिबान-29

भंवर मेघवंशी

इस दौरान भले ही दलित बहुजन राजनीति और विचारधारा के लिये अलग अलग प्रयास मैंने किये लेकिन साम्प्रदायिकता से संघर्ष के मिशन को कभी भी आँखों से ओझल नहीं होने दिया। जब ओडिशा में फादर ग्राहम स्टेंस और उनके दो मासूम बच्चों को संघी विचार से प्रभावित दारा सिंह नामक दुर्दान्त दरिन्दे ने जिन्दा जला दिया तब हमने भीलवाड़ा में उसके खिलाफ में हस्ताक्षर अभियान चलाया, प्रेस में ख़बर दी, हमारी उग्र भाषा को कभी भी स्थानीय मीडिया ने पसंद नहीं किया, लेकिन हमने अपनी बात को उतनी ही धारदार तरीके से कहना जारी रखा, लिख लिख कर तथा गाँव गाँव जाकर संघ परिवार को बेनकाब करना और दलित एवं आदिवासी युवकों को संगठित करना हमारा प्रमुख कार्य था।

संघ के निचले स्तर के लोग अक्सर निम्न स्तर पर उतर आते थे। गाँव में आमने सामने हो जाते, बहस करते और मारपीट करने, हाथ पांव तोड़ देने की गीदड़ भभकियाँ देते, पर मैंने कभी इनकी परवाह नहीं की। मेरे मन में सदैव से ही एक बात रची बसी हुई है कि अगर मेरे हाथ पांव टूटने है तो टूटेंगे ही, चाहे हिन्दू हुडदंगियों के हाथों टूटे या दुर्घटना में …और अगर ये नहीं होना है तो कोई भी कितनी भी कोशिश कर ले वह सफल नहीं हो सकते हैं। रही बात मरने की तो उसकी भी सदैव तैयारी है। मैं किसी अस्पताल में खांसते हुए मरने का इच्छुक कभी नहीं रहा। मौत जिन्दगी का अंतिम सत्य है, उसे जब आना है, आये, स्वागत है। बस ऐसी ही भावना के साथ स्वयं को निर्भय रहने का हौसला देते हुये हर रोज जीता हूँ, इसलिये जब अकेले संघर्ष शुरू किया तब भी संघी फौज से कभी नहीं डरा और आज हजारों साथी है, तब भी कोई डर नहीं। मैं सदैव ही जमीनी स्तर पर उनसे दो दो हाथ करने का इच्छुक रहा हूँ और आज हूँ। इसीलिये सदैव ही संघ के विषाक्त विचारों और मारक क्रियाकलापों को बेनकाब करने के काम को मैंने जारी रखा। बाद में जब मैं राजकीय पाठशाला में बतौर शिक्षक नियुक्त हुआ, तब यह लड़ाई और सघन हो गई क्योंकि हिंदी पट्टी के प्राथिमक शिक्षकों को तो आरएसएस ने जकड़ ही रखा है।

जब मुझे शिक्षक प्रशिक्षण हेतु मांडल बुलाया गया तब मैंने सोचा कि अब से थोडा शांत रहूँगा, अपने काम से मतलब रखूँगा, नेतागिरी नहीं करूँगा, सिर्फ शिक्षण के अपने दायित्व को निभाऊंगा। यही सोच कर 30 दिवसीय इस प्रशिक्षण में मैं पहुंचा। जून 1999 की बात थी, जाते ही पहली भिड़न्त हो गई प्रार्थना सभा से भी पहले। हुआ यह कि तिलक लगा कर स्वागत किया जा रहा ।था प्रशिक्षनार्थियों का वैसे राजस्थान में पगड़ी और तिलक से सम्मान किये जाने की सामाजिक परम्परा है। लेकिन मुझे इस तिलक से वैचारिक द्वन्द् पैदा हो गया। आप अपने घर में कुछ भी करो लेकिन सार्वजनिक आयोजनों में तिलक विलक क्यों ? इसलिये सरकारी शिक्षकों के प्रशिक्षण में तिलक लगाने पर मैंने सवाल खड़ा कर दिया। मेरी बात का कुछ मुस्लिम व दलित साथियों ने भी समर्थन किया। हमने कहा हम नहीं लगायेंगे तिलक। दक्ष प्रक्षिशकों को तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि सरस्वती के मंदिर में ऐसे उज्जड गंवार किस्म के लोग कहाँ से आ गये ?

तिलक हमें नहीं लगवाना था, नहीं लगवाया। फिर ' वीणावादिनी वर दे' प्रार्थना हुई। मैंने कहा 'तू ही राम है तू रहीम है, तू करीम,कृष्ण, खुदा हुआ, तू ही वाहे गुरु, तू ही यीशु मसीह,हर नाम में तू समा रहा' की प्रार्थना क्यूँ नहीं ? यह सर्वधर्म की प्रार्थना है, वीणावादिनी हमें क्या वर देगी ? उसने कौन सी किताब या मंत्र अथवा श्लोक रचा है, विद्या की देवी तो शायद खुद ही अनपढ़ थी, वो हमें क्या वरदान दे सकती है। भाई, मेरा इतना कहना था कि जो प्रतिक्रिया हुयी उससे एक बारगी तो यह लगा की शायद मुझ से कोई काफिराना हरकत हो गई है। शिविराधिकारी की त्योरियां चढ़ गईं। उनका गुस्सा देखते ही बनता था, गजब तो तब हुआ जब मैंने "चन्दन है इस देश की माटी, तपो भूमि हर ग्राम है- हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है" गाने से साफ़ इंकार करते हुए उन्हें कहा कि ये संघ की शाखा नहीं है कि आप आरएसएस के गीत हमे गवावो। हम शिक्षक प्रशिक्षण हेतु आये हैं तथा आप की शैक्षणिक योजना व मोड्यूल में वर्णित गीत प्रार्थना ही हम से गवाई जाये तो बेहतर होगा, नहीं तो शिकायत ऊपर की जायेगी।

इस प्रतिरोध से ये हुआ कि जप माला छापा तिलक नदारद, सर्वधर्म प्रार्थना शुरू हुई और संघ के गीत गाने बंद किये गये, लेकिन मैं निशाने पर आ गया। मेरे दस्तावेज खंगाले गये। इधर-उधर से पूछ ताछ की गई कि यह बदतमीज लड़का कौन है जो प्रशिक्षण शिविर के अनुशासन को भंग कर रहा है। शिविराधिकारी एवं दक्ष प्रशिक्षकों के मध्य लम्बी मंत्रणा चली। मुझे बुलाकर पूछा गया- नेतागिरी करने आये हो या प्रशिक्षण लेने ? ऐसे नहीं चल सकता। मैंने उन्हें अपना विस्तृत परिचय दिया और स्पष्ट किया कि आप चाहे तो मुझे आज ही घर भेज सकते हैं मगर मैं इस प्रशिक्षण को संघ की शाखा नहीं बनने दूंगा। आप सब की शिकायत की जाएगी। मीडिया तक भी बात जायेगी। बेचारे दक्ष प्रशिक्षक डर गये। अंततः हमारे बीच समझौता हो गया, ना वे संघ समर्थक कोई बात, गीत या नारा लगायेंगे और ना मैं उनके विरोध में लोगों को उकसाऊंगा। लेकिन इस घटना से मेरी नेतागिरी यहाँ भी चालू हो गई। बाद में दो शैक्षणिक सत्रों तक मैंने प्राथमिक शाला शिक्षकों के मध्य जम कर नेतागिरी की। हम 99 लोगों का एक बैच था, उनके जरिये में मांडल तहसील के गाँव गाँव तक पहुंचा और अन्तत: हम 7 शिक्षक मित्रों ने मिलकर साम्प्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनवरी 2001 से एक मासिक पत्रिका "डायमंड इंडिया" का प्रकाशन प्रारंभ किया, जिसे भारत को हीरा बनाने की एक पंथनिरपेक्ष पहल के रूप में, सर्वत्र सराहना मिली। लेकिन प्रशंसा ज्यादा टिकती नहीं है, जैसे ही डायमंड इंडिया के जरिये सच्चाई लिखी जाने लगी, जातिवादी, साम्प्रदायिक और भ्रष्ट तत्वों ने मिलकर हमारी मुखालफत शुरू कर दी। इस विरोध में संघ से जुड़े और बरसों से मेरे से चिढ़े हुए लोग सबसे आगे थे, और इस तरह एक बार फिर संघ और मैं आमने सामने हो गये थे। लड़ाई लड़ने का आनंद ही अब आने वाला था ….(जारी….)

-भंवर मेघवंशी की आत्मकथा 'हिन्दू तालिबान' का उन्तीसवां पाठ

About The Author

भंवर मेघवंशी, लेखक स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

इन्हें भी पढ़ना न भूलें

- See more at: http://www.hastakshep.com/hindi-literature/book-excerpts/2014/05/31/%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%ae%e0%a5%88%e0%a4%82-%e0%a4%ab%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%86%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a5%87#.U4pOOnI70rs

Status Report of state SC Commissions !!!!!!!!

Status Report of state SC Commissions !!!!!!!!
At this juncture of time when lot of discussion and debate on atrocity against Dalits is going on due to recent gang rape & murder of two Dalit girls in Badaun (UP), it become important that we have to look in to the status of state commissions of scheduled caste .

A status report on state commissions of scheduled caste has been released by PACS-India & PRIA (Society for Participatory Research In Asia), India, N Delhi.

Please see these video documented by PMARC ! :

Status of State Commissions- Dr Alok Pandey

https://www.youtube.com/watch?v=_3Z7uD7cTjU

 

We are Watch Dog's

https://www.youtube.com/watch?v=JhRChNYVOrA&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Violence of Dalit Human Rights Dr Narendr Kumar

https://www.youtube.com/watch?v=EJVAkj_AajE&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Toothless Tigers-Vidyanad Vikal

https://www.youtube.com/watch?v=DwoykX1XUjo&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Question Hour 1st Session-2nd Day 14.02.20104

https://www.youtube.com/watch?v=3vILi66AyWo&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw

 

Way Forward- Paul Diwakar

https://www.youtube.com/watch?v=vMf_YqhV2eI&list=UUHvoAhfbMy7MklsByHdMcHw


Warm Regards !

ARUN KHOTE
PMARC

Dance of Demonocracy Anand Teltumbde

MARGIN SPEAK


Dance of Demonocracy


Anand Teltumbde


India has never been the democracy as it is made out to be. It has been a pure plutocracy. But for dalits, it is worse; it has been a veritable rule of demons – a demonocracy.


Anand Teltumbde (tanandraj@gmail.com) is a writer and civil rights activist with the Committee for the Protection of Democratic Rights, Mumbai.


10 June 7, 2014 vol xlix no 23 EPW Economic & Political Weekly


A s the much fl aunted "Dance of Democracy" had reached its high


pitch in the media, 201 million dalits in the country were experiencing


another low of their existence, encoun-tering a veritable dance of demonocracy.


Democracy anyway has been a far cry for them; in this alien tamasha, they


wondered whether they should continue calling this country their own.


"Every hour two dalits are assaulted; every day three dalit women are raped, two dalits are murdered, and two dalit homes are torched" has become a catch-phrase ever since Hillary Mayell coined it while writing in National Geographic 11 years ago. Well, today these figures have to be revised upwards; as for instance, the rape rate of dalit women has shot up from Hillary's 3 to well over 4.3, a whopping 43% rise. What annoys one is the duplicity even of the country's saner population – it had admirably raised a storm over the brutal rape of a Noida girl two years ago – in keeping silent over the horrifi c rapes of four minor dalit girls in the Jatland of Hary-ana or a honour killing of a dalit school-boy in Phule-Ambedkar's Maharashtra.


There could not be any possible explana-tion for it but for that vile word – caste. If this is the state of the minuscule popula-tion in the country that could be called sensible, what should dalits expect from the sea of insanity deeply poisoned with caste and communal venom?


Real Nirbhayas of Bhagana


On 23 March this year, Bhagana, a village just 13 km from Hisar in Haryana

and barely a three-hour drive from the national capital, was added to a long list of infamous places associated with ghastly atrocities on dalits. That evening, four dalit schoolgirls – one aged 13, two 17 and one 18 years – while urinating in a fi eld near their homes, were set upon by fi ve men belonging to the dominant Jat caste. They drugged and gang-raped them in the fi elds and carried them off in a car. They were perhaps raped the

entire night and were left in the bushes outside Bhatinda's railway station across the border in Punjab. When their families approached the village sarpanch Rakesh Kumar Pangal, who is also related to the criminals, he could tell them that the girls were at Bhatinda and would be brought back the next day.


Heavily sedated and in deep pain, the girls had woken up in the bushes the

next morning and walked up to the  station for help but had to wait without

any until 2.30 pm, when Rakesh and his uncle Virender had reached them along with their families. While the families were asked to leave by train, they were put into a car and driven to Bhagana.


En route Rakesh abused them, beat them and tried to threaten them to

stay silent. As they reached, dalit boys surrounded the car and rescued the girls from the clutches of the sarpanch. The next day, the girls were taken to Hisar general hospital for medical examination, which inexplicably dragged on from the morning till 1.30 am. The doctors, as per the girls, had carried out the humiliating and much criticised two-fi nger test for

virginity which stands banned by the government in dealing with rape vic-

tims. Only with pressure from more than 200 dalit activists and confi rma-

tion of rape in the medical report did the police at Sadar Hisar police station file a first information report (FIR) underthe Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, excluding Rakesh and Virender's names, despite the girls naming them in their testimonies.


Even such a shocking crime failed to move the police. Reminiscent of Khairlanji, it is only when public protest exploded with over 120 dalits agitating at Hisar's Mini Secretariat and the 90 dalit families from Bhagana, including girls, beginning their sit-in at Delhi's Jantar Mantar since 16 April, did the Haryana police wake up and arrest the fi ve rapists – Lalit, Sumit, Sandeep,  Parimal and Dharamvir – on 29 April.


Apart from demanding justice, the dalits of Bhagana simply could not go back for the fear of being killed by the Jats.


Rather than heeding to these dalit demands and fast-tracking the judicial

process, the Hisar district court is already engaged with the matter of releasing the criminals. Although these brave girls, the real nirbhayas, themselves have been narrating what befell them to the public, interestingly media has not cared to observe the code of not revealing the

identities of the rape victims they so meticulously did in the case of non-dalit nirbhayas. The media, busy making mountains out of molehills of silly statements of politicians, did not fi nd it worth their while to carry the simple news of this ongoing agitation, leave apart an choring a campaign as they did in most rape cases where the victim was a non-dalit. One hates to speak this language, but the media's own behaviour demands it.


An earlier fact-finding report of the Peoples Union for Democratic Rights

and the Association for Democratic Rights – This Village Is Mine Too: Dalit Assertion, Land Rights and Social Boycott in Bhagana (September 2012) – suggests that the Bhagana rapes are not mere bestial sex-crimes. Rather, they were committed in order to teach a lesson to dalits who have been protesting against the take over of their land, water and even burial grounds by Jats in the village and oppressing them.


Another Shame on Maharashtra The Jats in Haryana with their obnoxious

khap panchayats have been infamous for honour killings but in a distant Maharashtra that nauseatingly claims the legacy of Phule-Shahu-Ambedkar, the beacons of social reforms in the country, a

17-year-old schoolboy of a poor dalit family was brutally done to death in broad daylight on 28 April, in the thick of general elections, just for speaking with a Maratha girl. The gory incident hap-pened in village Kharda in Ahmednagar district, barely 200 km away from Pune where Phule had lit the fi re of revolt against brahmanism. A fact-fi nding report of the Dalit Atyachar Virodhi Kruti Economic & Political Weekly EPW June 7, 2014 vol xlix no 23 11Samiti revealed the brutal manner in which Nitin Aage, son of Raju and Rekha Aage, a landless dalit couple who earned their living by crushing stones for a small mill and lived at the edge of the village in

a tin shed, was lynched by Sachin Golekar (21) and his friend and relative Sheshrao Yeole (42), both from a rich and politically connected Maratha family of the village. Nitin was caught in the school, beaten mercilessly in its premises, dragged to a brick kiln owned by the Golekar family, tortured by putting members in his lap and pants, killed and then strangulated so as to camoufl age it as a case of suicide. The Golekar girl, who was in love with Nitin, reportedly tried to commit suicide, and it is feared that she may meet the fate of Nitin at the altar of caste.


Under pressure of local dalit activists, the police have registered an FIR after the medical examination of Nitin's body the next day, charging the accused of murder, causing disappearance of evidence, unlawful assembly and rioting under the Indian Penal Code and under the Section 3(2)(5) of the Prevention of Atrocities Act and also the Section 7(1)(d) of the Protection of Civil Rights Act.


The police have arrested 13 persons including the two main culprits and a

minor boy. But dalits do know by now that no wealthy upper-caste person ever gets convicted in the country for a crime against dalits. The Golekars with their riches and connections with one of the most unscrupulous political outfi ts, the Nationalist Congress Party (NCP), may not stay any longer in jail. After all, what happened in the scores of equally gory

caste atrocities that took place in recent years in this single district dominated by NCP bigwigs? What happened to the murderers of three dalit young men, Sandip Raju Dhanwar, Sachin Somlal Dharu and Rahul Raju Kandare of Sonai village in Nevasa taluka, which also was

a case of "honour killing"? What happened to the killers of Janabai Borge of Dhawalgaon who brunt her alive in 2010?


What happened to those who raped Suman Kale and then killed her in 2010 or to those who killed Walekar and cut him into pieces or to the killers of Baban Misal in 2008? This long list does tell us that in each of these atrocities the real culprit was some rich and powerful  person, but far from being convicted, he was not even named.


A Wake-up Call


The colossal human tragedy of Raju and Rekha Aage who lost their only son in so cruel a manner will just be a digit added to the "murder" count. The tearing traumas and permanent scars on the lives of those innocent Bhagana girls will be reduced to a one-plus "rape" count in the National Crime Records Bureau statistics. The enormous activist input that

transformed these human tragedies into statistics, without which they would simply be forgotten, is just lost. The atrocity statistics produced by such social processes still hover well above the 33,000 mark every year. Using these offi cial statistics, one can modestly see that more than 80,000 dalits have been murdered, more than one lakh dalit women have been raped and over 20 lakh dalits have suffered one or the other crime during the six decades of our constitutional regime. Not even wars can

rival these numbers. While dalits are conditioned to see the proverbial brahman behind their woes, the reality is that the very secular intrigues of this regime have created the demons that lynch and rape dalits with impunity.


It is this regime that has intrigued to preserve castes under the alibi of social justice; it resorted to land reforms with a redistribution alibi but actually carved a class of rich farmers out of the populous shudra castes; they brought the green revolution with feed-all alibi but actually opened up a vast rural market for capitalists. It is this very regime that brought in

reforms with the trickle-down alibi but actually imposed a social-Darwinist paradigm. These six decades are fraught with such intrigues and treacheries against the masses in which dalits have been the main sacrifi cial lambs. India has never been the demo cracy it is made out to be.


It has been a pure plutocracy. But for  dalits it is worse; it has been a veritable rule of demons, a demonocracy.


When will dalits wake up to these realities? When will dalits rise and say


enough is enough!

বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই, গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন! वाम नपुंसकता के मुकाबले बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है!

বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই,

গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন!

वाम नपुंसकता के मुकाबले बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है!


এক্সকেলিবার স্টিভেন্স বিশ্বাস


বাংলায় বামেদের নেতা নেই,পিঠ বাঁচাতে বিজেপি ছাড়া উপায নেই,

গুন্ডারাজের বিরুদ্দে বিজেপি নেতৃত্ব হুন্কার দিয়ে এই বার্তাই দিলেন!

শাসকদলের বিরুদ্ধে সন্ত্রাসের অভিযোগ খতিয়ে দেখতে সন্দেশখালি পৌছল বিজেপির কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল। আতঙ্কিত গ্রামবাসীদের সঙ্গে কথা বলেন বিজেপি নেতৃত্ব। গ্রামবাসীরাও তাঁদের অভিজ্ঞতার কথা তুলে ধরেন বিজেপি নেতাদের কাছে। বিজেপি প্রতিনিধি দলে রয়েছেন বাবুল সুপ্রিয়, এস এস আলুওয়ালিয়া, সিদ্ধার্থনাথ সিং, মুখতার আব্বাস নকভি, ও মীণাক্ষি লেখি।


গত মঙ্গলবার, সন্দেশখালির ধামাখালিতে গুলিবিদ্ধ হন ২১ জন বিজেপি সমর্থক। তৃণমূল কর্মীদের বিরুদ্ধে গুলি চালানোর অভিযোগ ওঠে। ধামাখালি থেকে ফিরে আহত দলীয় সমর্থকদের দেখতে এসএসকেএমে যান বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতারা।


বার বিজেপি রাজ্যে দুটি লোকসভা আসন দখলের পাশাপাশি ভোটের হার ১৭ শতাংশে তুলে নিয়ে যাওয়ার পর প্রথম থেকেই একেবারে আঁটঘাট বেঁধে তৃণমূলকে টক্কর দিতে নেমেছে৷ তারই প্রমাণ হল, তাদের এই জেলা সফরের কর্মসূচি৷ শুধু তাই নয়, রাজ্যে সংগঠন জোরদার করার লক্ষ্যে রাহুলবাবু শুক্রবার জেলা সভাপতি এবং অন্য কর্মকর্তাদের নিয়ে দীর্ঘ বৈঠক করেন৷ তাতে জুন এবং জুলাই মাস জুড়ে বেশ কিছু কর্মসূচি নেওয়া হয়েছে৷


তৃণমূল অবশ্য বিজেপির এই সন্দেশখালি সফরকে প্রকাশ্যে খুব একটা গুরুত্ব দিতে চাইছে না৷ মুখে গুরুত্ব না দেওয়ার কথা বললেও তারা আজই সন্দেশখালিতে যাচ্ছে৷ শুক্রবার নেতাজি ইন্ডোর স্টেডিয়ামে নেত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দলীয় সংগঠনে ব্যাপক রদবদল করেছেন৷ উত্তর ২৪ পরগনা জেলার সভাপতি নির্মল ঘোষকে সরিয়ে নতুন সভাপতি করা হয়েছে খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিককে৷ দায়িত্ব বুঝে নিয়ে এ দিন সন্ধ্যাতেই জ্যোতিপ্রিয় সন্দেশখালিতে সভা করার কথা ঘোষণা করেন৷ এই সভা বিজেপির পাল্টা কি না, জানতে চাওয়া হলে জেলার অন্যতম নেতা ইদ্রিশ আলি বলেন, 'না, এটা পাল্টা কর্মসূচি নয়৷ আমরা বিজেপির প্রতিনিধি দল পাঠানোকে কোনও গুরুত্বই দিচ্ছি না৷' শাসক দল এবং বিজেপির জোড়া কর্মসূচি ঘিরে আজ জেলা প্রশাসনকে কিছুটা উদ্বেগের মধ্যেই থাকতে হবে৷


সিপিএম নেতৃত্ব যখন জেলায় জেলায় শাসক দলের হাতে আক্রান্ত দলীয় কর্মীদের পাশে পৌঁছতে ইতস্তত করছেন, তখন বিজেপির রাজ্য নেতারা কিন্ত্ত তৃণমূলকে চাপে রাখতে জেলা সফরে নেমে পড়ছেন৷ আজ শনিবার দলীয় সাংসদ মীনাক্ষী লেখি, জাতীয় মুখপাত্র মুখতার আব্বাস নাকভি এবং এ রাজ্যের পর্যবেক্ষক সিদ্ধার্থনাথ সিনহার নেতৃত্বে বিজেপির এক কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল সন্দেশখালিতে পৌছে গেল৷ ওই দলে রাজ্য থেকে নির্বাচিত দুই সাংসদ বাবুল সুপ্রিয় এবং এস এস আলুওয়ালিয়া ছাড়াও রাজ্য সভাপতি রাহুল সিনহা, বসিরহাটের পরাজিত প্রার্থী শমীক ভট্টাচার্য প্রমুখও থাকছেন৷ পাশাপাশি রাজ্য নেতৃত্বের আর একটি দল আজই যাচ্ছেন দক্ষিণ ২৪ পরগনার গোসাবায়৷ রাহুলবাবু শুক্রবার জানান, কাল রবিবার রাজ্য বিজেপির আরও দুটি দল পশ্চিম মেদিনীপুরের নয়াগ্রাম এবং বর্ধমানে দুর্গাপুরের লাউদোহা গ্রামে যাবে৷ নয়াগ্রামে তৃণমূলের কয়েক জন নেতৃস্থানীয় কর্মী বিজেপিতে যোগ দেওয়ার পর তাঁদের উপর তৃণমূল হামলা চালায় বলে অভিযোগ৷ আর লাউদোহায় বৃহস্পতিবার থানা অবরোধ কর্মসূচি সেরে বাড়ি ফেরার পথে কয়েক জন বিজেপি কর্মী আক্রান্ত হন৷ সব মিলিয়ে নরেন্দ্র মোদী প্রধানমন্ত্রী হওয়ার পরই যে ভাবে রাজ্য বিজেপি জেলায় জেলায় তৃণমূলের হাতে আক্রান্তদের পাশে দাঁড়ানোর কর্মসূচি নিয়েছে, তা যে শাসক দলকে চাপে রাখার জন্যই, সেটা বলার অপেক্ষা রাখে না৷


সন্দেশখালির পরিস্থিতি নিয়ে প্রধানমন্ত্রী এবং কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রীর কাছে রিপোর্ট জমা দিতে চলেছে বিজেপির কেন্দ্রীয় প্রতিনিধি দল৷ তাদের অভিযোগ, রাজ্যের আইনশৃঙ্খলা পরিস্থিতি বাম আমলেও থেকেও খারাপ৷ তৃণমূল আশ্রিত দুষ্কৃতীদের দৌরাত্ম্য বন্ধে পুলিশ-প্রশাসন কোনও পদক্ষেপই নিচ্ছে না৷

শনিবার ধামাখালিতে পা রাখার পরেই বিজেপির প্রতিনিধিদলের হাতে গুলির খোল তুলে দেন গ্রামবাসীরা৷ পাশাপাশি দেন সেদিনের ঘটনার বিবরণ৷ গ্রামবাসীদের অভিযোগ, পুলিশের উপস্থিতিতেই বিজেপি সমর্থকদের ওপর গুলি চালায় তৃণমূল আশ্রিত দুষ্কৃতীরা৷ গ্রামবাসীদের কাছ থেকে অভিযোগ পাওয়ার পর পুলিশি নিষ্ক্রিয়তার অভিযোগ তুলে সরব হয় বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব৷ তাঁদের অভিযোগ, রাজ্যের আইনশৃঙ্খলা পরিস্থিতি বাম আমলের থেকেও খারাপ৷

আক্রান্তদের সঙ্গে কথা বলার পর ধামাখালির স্কুল মাঠে একটি সভা করেন বিজেপি নেতারা৷ প্রাকৃতিক দুর্যোগের মধ্যেও সেখানে হাজির ছিলেন কয়েকশো মানুষ৷

সভায় বিজেপি নেতারা অভিযোগ করেন, এই এলাকা তফসিলিদের জন্য সংরক্ষিত হওয়া সত্ত্বেও, রাজ্য তফসিলি কমিশন ঘটনাস্থলে আসেনি, হয়নি তদন্তও৷ এরপরই বিজেপির কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব জানান, দিল্লি থেকে জাতীয় এসসি-এসটি কমিশনের প্রতিনিধিদের পাঠানোর ব্যপারে উদ্যোগী হবেন তাঁরা৷

পুলিশ ও প্রশাসনের ওপর চাপ বাড়াতে সন্দেশখালি নিয়ে রিপোর্ট জমা দেওয়া হবে প্রধানমন্ত্রী এবং কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রীর কাছে৷ বিজেপি দলীয় প্রতিনিধিদল পাঠালেও বিষয়টি তারা তুলতে চায় কেন্দ্রীয় সরকারের কাছে৷

সরকার ও পুলিশ প্রশাসনের বিরুদ্ধে নিষ্ক্রিয়তার অভিযোগ তুলেই থেমে থাকেনি বিজেপি নেতৃত্ব৷ একধাপ এগিয়ে তাদের আরও অভিযোগ, প্রশাসনের ছত্রছায়াতেই শাসক দল আশ্রিত দুষ্কৃতীরা সন্ত্রাস চালাচ্ছে৷ এ রাজ্যে গণতান্ত্রিক ব্যবস্থাকে চরম অবমাননা করা হচ্ছে৷ বিষয়টি রাজ্যের মধ্যে আর সীমাবদ্ধ নেই৷ ফলে, জাতীয় স্তরে এই নিয়ে সরব হবে বিজেপির প্রতিনিধি দল৷


दक्षिण 24 परगना के संदेशखाली में केंद्रीयदल भेजकर भाजपा ने बंगाल में केसरिया फौज का हौसला बुलंद करने में खास पहल की है तो मौके पर पहुंचकर भाजपा सांसदों ने बंगाल में ममता बनर्जी पर तानाशाही ,बंगाल पुलिस को तृणमूल कैडर,बाहुबलि आतंकियों को ममता बनर्जी का संरक्षण और राज्य में गुंडा राज के गंभीर आरोप लगाकर तदनुसार केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को,जो अभ भी भाजपा अध्यक्ष हैं,को रपट देकर केंद्रीय हस्तक्षेप का वायदा किया है।


गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में अब तक मुख्य धारा से दूर रही भाजपाने अभी अभी संपन्न लोकसभा चुनावों में ... पार्टी ने एक समय पश्चिम बंगाल की बड़ी ताकत वाम मोर्चे के वोट आधार में सेंध लगाकर तीसरा स्थान हासिल किया है। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने वामदलों के ग्यारह फीसद वोट काट लिये।


तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा की जा रही हिंसा की जांच करने भाजपा के दल के साथ पहुंचे भाजपा के मुख्तार अब्बास नकवी ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान कानून व्यवस्था को कम्युनिस्ट शासन के समय से भी बदतर बताया है।


संदेशखाली में भाजपा को वोट देने के अपराध में आदिवासी गांवों को घेरकर तृणमूलियों ने अंधाधुंध फायरिंग की।इस गोलीकांड में जख्मी स्त्री पुरुषों को ही पुलिस ने इस मामले में अभियुक्त बनाया है जबकि चश्मदीद गवाहों के नामजद सारे के सारे अभियुक्त न केवल छुट्टा घूम रहे हैं बल्कि उन्होंने इलाके की नाकेबंदी कर रखी है।


भाजपा नेताओं ने एसएसकेएम अस्पताल जाकर पीड़ितों से मुलाकात भी की है।भाजपी प्रतिनिधिमंडल में बंगाल से सांसद सुरेंद्र सिंह आहलुवालिया और बाबुल सुप्रिय के अलावा भाजपा के बड़े नेता मुख्तार अब्बास नकवी,मीनाक्षी लेखी,सिद्धार्थनाथ सिंह जैसे लोग शामिल थे।


इसके विपरीत वाम शिविर में तूफानी बगावत के बावजूद वामदलों के नेता जनता के मध्य जाने से कतरा रहे हैं।


ममता बनर्जी तक ने सरकार और पार्टी में भारी फेरबदल करके आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केसरिया फौज के मुकाबले की तैयारी जोर शोर से शुरु कर दी है।


वहीं,वामदलों में रोज कहीं न कही नेतृत्व के खिलाफ बगावत हो रही है।प्रकाश कारत से लेकर विमान बोस तक बदलने की मांग अब आंदोलन है।


पार्टी नेतृत्व किसी तरह के संगठनात्मक फेरबदल के बजाय एक के बाद एक नेता कार्यकर्ता को बाहर का दरवाजा दिखा रहे हैं तो बंगाल भर में वाम कार्यरकर्ताओं और नेताओं पर जो हमले हो रहे हैं,वहां नेतृत्व का कोई प्रतिनिधि जा ही नहीं रहा है।


इसके विपरीत लोकसभा चुनाव में भाजपा के बढ़े वोट प्रतिशत से नाराज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का गुस्सा अभी थम नहीं रहा। अपने मंत्रियों पर गाज गिराने के बाद उन्होंने जिला स्तर पर भी तृणमूल नेताओं के पर कतर दिए हैं। शुक्रवार को ममता बनर्जी ने प्रदेश की सभी जिला कमेटियों को भंग कर नए सिरे से गठन किए जाने का ऐलान किया। बदलाव के रूप में संगठन में युवा, नए और मुस्लिम चेहरों को अहम जिम्मेदारी सौंपी।

युवा तृणमूल कांग्रेस का अध्यक्ष सौमित्र खान को बनाया गया है। उन्होंने शुभेंदू अधिकारी की जगह ली है। खान बांकुड़ा के विष्णुपुर से सांसद हैं। उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल का दामन थामा था।


तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल राय के बेटे विधायक शुभ्रांशु राय को युवा तृणमूल कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया है।


मुख्यमंत्री के भतीजे अभिषेक बनर्जी को भी राज्य कमेटी में शामिल किया गया है। हाजी नुरूल इस्लाम को तृणमूल कांग्रेस अल्पसंख्यक सेल का चेयरमैन बनाया गया है। उन्होंने इदरीश अली की जगह ली है।


दार्जिलिंग में फुटबॉलर वाईचुंग भूटिया को सांगठनिक जिम्मेदारी सौंपी गई है।


मुस्लिम वोटों के सहारे बंगाल में अपनी पकड़ कायम रख सकीं ममता

भाजपा ने दो सीटें जीतकर पश्चिम बंगाल में भले ही राजनीतिक तौर पर अपनी जगह बनाने में कामयाबी हासिल की हो पर तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी को राज्य में कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं आने दी। ममता को मुसलमानों के 28 प्रतिशत वोट शेयर से फायदा मिला जिससे तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 सीटों पर जीत हासिल की।


तृणमूल कांग्रेस को 39.4 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को चार सीटों और नौ फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा । वाम दलों ने आजादी के बाद अपना अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन किया और 23 फीसदी वोट एवं दो सीटें ही जीत सके।

चुनाव परिणाम आने तक बंगाल की राजनीति में अप्रासंगिक समझी जा रही भाजपा को 17.06 फीसदी वोट मिले और उसे दो सीटें भी हासिल हुईं। साल 2009 के लोकसभा चुनावों के बाद राज्य में भाजपा के वोट प्रतिशत में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है। बंगाल में सत्ता की राह समझे जाने वाले 28 फीसदी मुस्लिम वोट शेयर से ममता को फायदा मिला।


पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान ममता और मोदी के बीच छिड़ी जुबानी जंग से कांग्रेस, माकपा, तृणमूल और भाजपा का चौतरफा मुकाबला मोदी और ममता के बीच दोतरफा जंग में तब्दील हो गया। इससे ममता को दक्षिण बंगाल और उत्तर बंगाल के कुछ हिस्सों में मुस्लिमों के वोट हासिल करने में मदद मिली।

राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंद्योपाध्याय के मुताबिक, पूरा चुनाव मोदी के समर्थन या मोदी के विरोध पर केंद्रित हो गया। अल्पसंख्यकों सहित बंगाल में जितने मोदी विरोधी थे उन्होंने ममता का पूरा समर्थन किया और ममता के विरोधियों ने इस बार भाजपा को वोट किया।



भाजपा नेतृत्व ने संदेशखाली पहुंचकर वाम और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संकेत दिया है कि बंगाल में तृणमूली संत्रास के मुकाबले आखिरकार भाजपा ही सुरक्षा की गारंटी है।


भाजपा ने पश्चिम बंगाल की वर्तमान कानून व्यवस्था को वामपंथ के शासन के समय से भी बदतर बताया है। भाजपा का एक दल उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए हमले की स्थिति का आकलन करने पहुंचा है।


राज्यसभा सांसद और पार्टी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने यहां पार्टी के चार वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ''पश्चिम बंगाल में कानून व्यवस्था वाम शासन से भी ज्यादा बुरी हालात में है। जिस तरह से शासन द्वारा आधिकारिक मशीनरी का लोगों को डराने-धमकाने का प्रयोग किया जा रहा है वह बहुत निंदनीय है।''


नकवी ने कहा, ''हम यहां पार्टी कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमलों का आकलन करने आए हैं और इस संबंध में एक रिपोर्ट पार्टी के केंद्रीय नेताओं को सौंपेंगे।''


पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख राहुल सिन्हा ने बताया, ''भाजपा के दल ने उत्तर 24 परगना के संदेशखाली का दौरा किया और कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में संदेशखाली के हमलों में घायल हुए 30 पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी की।''


उन्होंने कहा कि इसके बाद एक प्रतिनिधि मंडल ने मुख्य सचिव संजय मित्रा से मुलाकात की। उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में 28 मई को 30 भाजपा कार्यकर्ताओं पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से हमला कर दिया था। मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था।


भाजपा और माकपा ने इस मामले में गुरुवार को 12 घंटे का बंद बुलाया था।



पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर जारी हमलों के विरोध में पार्टी ने गुरुवार को 12 घंटे के बंद का आह्वान किया। वामदलों ने भी तृणमूल कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस बंद में भाजपा का साथ दिया। बंद के दौरान भी तृणमूल कांग्रेस के समर्थकों ने जगह-जगह प्रदर्शनकारियों पर हमले किए। इधर, हमलों की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को मिलने के बाद जल्द ही पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल बंगाल का दौरा करेगा।

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के दिन जब भाजपा समर्थक बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में जश्न मना रहे थे, तो तृणमूल समर्थकों ने हमला कर करीब 21 लोगों को घायल कर दिया था। घटना के विरोध में गुरुवार को भाजपा व वाममोर्चा ने बसीरहाट बंद किया। इस दौरान भी तृणमूल कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह हमला किया। पुलिस व प्रशासन पर भी तृणमूल समर्थकों को मदद करने का आरोप है।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने बताया कि राज्य में भाजपाइयों पर हो रहे हमले की रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भेजी है। इस पर गृह मंत्री ने पांच सदस्यीय दल बंगाल में भेजने का निर्णय किया।


प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह पर उल्लास मना रहे भाजपा कार्यकर्ताओं पर संदेशखाली थाना के बेड़मजूर में हुए हमले के प्रतिवाद में भाजपा कार्यकर्ताओं ने गुरुवार बारह घटा बसीरहाट बंद रखा। माकपा ने इस बंद में शामिल न होते हुए अलग से इसका नैतिक समर्थन किया था। पुलिस ने विभिन्न जगहों से नौ अवरोधकारियों को गिरफ्तार किया है।

बसीरहाट भाजपा महासचिव विश्वजीत दास ने दावा किया कि इस दिन आम जनता स्वत: बंद में शामिल हुई और यह बंद सफल रहा। बंद के दौरान स्कूल, बाजार, दुकान बंद रहे। साथ ही उन्होंने कहा कि जिस तरह से यह हिंसक घटना घटी है और पूरे मामले में पुलिस निष्क्रिय रही है। उससे यह साबित होता है कि पुलिस सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर काम कर रही है। भाजपा कर्मियों पर हो रहे हमले के खिलाफ उन्होंने गणप्रतिरोध संगठित करने का आह्वान किया। इस दिन सियालदह हासनाबाद रेल शाखा के भाबला, और संडालिया रेल स्टेशनों पर भाजपा समर्थकों ने रेल अवरोध किया। जिसके चलते इस शाखा में रेल यातायात प्रभावित हुआ। अवरोध में फंसे रेल यात्रियों ने संडालिया स्टेशन से अवरोधकारियों को हटा दिया। वहीं बसीरहाट चौमाथा पर भाजपा कर्मियों के अवरोध के चलते टाकी सड़क पर जाम की स्थिति पैदा हो गई। जिसकी सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस ने चार अवरोधकारियों को गिरफ्तार किया।



दैनिक जागरण के मुताबिक राज्य में चुनाव बाद जो हिंसा शुरू हुई वह अब टकराव का स्थायी आकार लेने जा रही है। राज्य के विभिन्न भागों में राजनीतिक हिंसा से आतंक का माहौल पैदा हो गया है। अधिकांश हिंसक घटनाओं में तृणमूल कार्यकर्ताओं के हमले का शिकार भाजपा समर्थक हुए हैं। उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में भाजपा समर्थकों पर हमला अब तूल पकड़ने लगा है।


भाजपा समर्थक आक्रामक हो उठे हैं। भाजपा ने राज्य व्यापी विरोध प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के दिन से राज्य के विभिन्न भागों में भाजपा समर्थकों पर जो हमला शुरू हुआ वह बंद नहीं हुआ है। यह सीधे तौर पर भाजपा के साथ सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक टकराव है। सभी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में तृणमूल कांग्रेस समर्थक लिप्त बताए गए हैं।


संदेशखाली में राजनीतिक हिंसा के खिलाफ गुरुवार को भाजपा व वाममोर्चा ने अलग-अलग बसीरहाट महकमा बंद रखा। हालांकि बंद के दौरान अधिकांश जगहों पर भाजपा समर्थकों को ही पुलिस से जूझते देखा गया। तृणमूल कांग्रेस को जहां भाजपा की सेंधमारी का डर है, वहीं माकपा को यह भय है कि राज्य में भाजपा कहीं विरोधी पार्टी का स्थान न ले ले। इसलिए विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा एसएसकेएम अस्पातल में भर्ती घायलों को देखने गए, जबकि घायलों में अधिकांश भाजपा समर्थक हैं।


भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने भाजपा समर्थकों पर हमले की घटना को गंभीरता से लिया है। राजनाथ सिंह ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व का एक प्रतिनिधिमंडल हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में स्थिति का जायजा लेने के लिए बंगाल दौैरा पर भेजने की घोषणा की है। प्रतिनिधि मंडल पहले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के नेतृत्व में आनेवाला था, लेकिन बाद में राजनीतिक प्रतिनिधि मंडल भेजने का निर्णय किया गया ताकि कोई गलत संदेश न जाए। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि के बंगाल का दौरा करने पर सरकार को अनावश्यक केंद्रीय हस्तक्षेप कहने का मौका मिल जाता।


अब तक तृणमूल कांग्रेस के हिंसा का शिकार माकपा समर्थक होते रहे हैं, लेकिन अचानक लोकसभा चुनाव के बाद उनके निशाने पर भाजपा समर्थक आ गए हैं। इससे साफ है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के दो नेताओं के जीतने के साथ उसका मत प्रतिशत बढ़ कर 17 प्रतिशत तक पहुंचने से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गयी है। कुल 42 लोकसभा सीटों में प्राय: सभी जगह भाजपा उम्मीदवारों को कुछ वोट मिले हैं। अब तो तृणमूल व वाममोर्चा के समर्थक भाजपा में शामिल भी होने लगे हैं। भाजपा बंगाल में अपनी राजनीतिक पैठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। उसका लक्ष्य अपने बढ़ते जनाधार को अगले विधानसभा चुनाव में भुनाना है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस यह कभी नहीं चाहेगी कि भाजपा को यहां पांव पसारने में सफलता मिले। वामपंथी समर्थकों की जगह अब भाजपा समर्थक तृणमूल के निशाने पर हैं तो इसका मतलब कोई भी आसानी से समझ सकता है।

मोदी सरकार पर प्रहार करेगी तृणमूल

कोलकाता: लोकसभा में 34 सदस्यों वाली तृणमूल कांग्रेस नरेन्द्र मोदी सरकार के कामकाज पर नजर रखेगी और यदि उसने लोगों के हित में काम नहीं किया तो पार्टी उसे इस बारे में अवगत करायेगी और फिर भी कुछ नहीं होने पर वह उस पर प्रहार करेगी.तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा : हम हमेशा से रचनात्मक रहे हैं, नकारात्मक नहीं.


यदि लोगों के हितों को नुकसान पहुंचा तो हम 'प्रहार' करेंगे. यदि हमने पाया कि यह (नरेंद्र मोदी सरकार) लोगों के भले के लिए काम कर रही है तो हम देखेंगे और विचार करेंगे. पार्टी की बंद कमरे में हुई बैठक के बाद ममता के करीबियों के अनुसार मुख्यमंत्री ने उस दौरान यह बात कही. ममता ने कहा : हम माकपा की तरह नहीं हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की आम चुनाव में प्रचार के दौरान मोदी के साथ कटु वाद विवाद हुआ था. उन्होंने 26 मई को राष्ट्रपति भवन में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पार्टी के महासचिव मुकुल राय एवं राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र को भेजा था.


संप्रग द्वितीय सरकार से कोई राहत नहीं मिल पाने के बाद ममता ने पिछले हफ्ते यह उम्मीद जतायी थी कि केंद्र की भाजपा सरकार राज्य की भारी रिण भुगतान संकट के बारे में सकारात्मक रुख अपनायेगी. राज्य के ऋण की अदायगी में कुछ समय की रोक लगाने के मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ कई बैठकों के बावजूद तृणमूल सरकार कोई भी आश्वासन लेने में विफल रही थी.ममता ने भाजपा के सत्ता में आने के लिए कांग्रेस को दोष दिया.उन्होंने कहा : हमने जब सरकार छोड़ी तो कांग्रेस के बुरे दिन शुरु हो गये. उन्हें किसी (सहयोगी) पर भरोसा नहीं था और किसी को भी विश्वास में नहीं लिया जाता था.


वाइलेंस की वजह से जीता तृणमूल

clip

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद वामपंथियों के अस्तित्व को लेकर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं. पहले पश्चिम बंगाल में 34 वर्षो से चल रही सरकार का पतन और अब लोकसभा चुनाव में वामपंथी प्रत्याशियों की करारी हार. माकपा सांसदों की स्थिति और बिगड़ी है तथा उनकी संख्या एकल अंक में सिमट कर नौ हो गयी है. सबसे बुरा हाल पश्चिम बंगाल का रहा. पश्चिम बंगाल में फिर से उभरने की कोशिश कर रही वामपंथी पार्टियों की सीटों की संख्या 15 से घट कर दो हो गयी है. वहीं, सत्तारूढ़ दल तृणमूल की सीटों की संख्या 19 से बढ़ कर 34 हो गयी है. जले में नमक का काम भाजपा का बढ़ता प्रभाव ने किया है.


चुनाव में वामपंथी वोटों में भाजपा ने सेंध लगायी है. इससे वामपंथी और भी तिलमिलाये हुए हैं. हालांकि वामपंथी पार्टियों ने हार के कारणों की समीक्षा व पार्टी को मजबूत बनाने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन कोई भी व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने से कतरा रहा है. पश्चिम बंगाल में हार की वजह चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की धांधली को बताकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं. माकपा नेता वंृदा करात का मानना है कि बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली तृणमूल सरकार को 34 सीटों पर जीत बैलेट से नहीं, बल्कि वायलेंस (धांधली) की बदौलत मिली. रही पूरे देश की बात तो हार के कारणों पर चर्चा हो रही है और सामूहिक चर्चा के बाद ही तय होगी जिम्मेदारी. लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन, वर्तमान स्थिति समेत कई मुद्दों को लेकर माकपा पोलित ब्यूरो की सदस्य वंृदा करात से प्रभात खबर के संवाददाता अमित शर्मा से विशेष बातचीत हुई. आइये जानते हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश :

पूरे देश में माकपा महज नौ सीटों पर सिमट गयी. इतनी बड़ी शिकस्त का क्या कारण मानती हैं?

इस बार लोकसभा चुनाव में माकपा का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा. हार के कारणों की समीक्षा की जा रही है. विगत 18 मई को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक में प्राथमिक रूप से चर्चा की गयी. चुनाव के दौरान पार्टी के कार्यो की समीक्षा को लेकर छह जून को माकपा पोलित ब्यूरो की बैठक होगी. सांगठनिक ताकत को बढ़ाने पर विचार विमर्श किया जायेगा. इसके बाद केंद्रीय समिति की बैठक सात व आठ जून को होगी. इसके बाद राज्य इकाइयों की बैठक होगी. माकपा सांगठनिक नियमों के अनुरूप चलती है. किसी की व्यक्तिगत राय से फैसले नहीं लिये जाते हैं. सभी मुद्दों पर सामूहिक चर्चा के बाद ही जिम्मेदारी तय होगी.

विगत लोकसभा चुनाव में बंगाल में माकपा को नौ सीटें मिलीं, लेकिन इस बार महज दो. कहां कमी रह गयी?

मतदान के पहले से ही राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हिंसा का वातावरण तैयार किया था. रिगिंग, हिंसा के बीच मतदान हुआ. बंगाल में हार के प्रमुख कारणों में यह सबसे प्रमुख है. यानी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को जीत बैलेट की बदौलत नहीं वायलेंस से मिली. अन्य कारणों को लेकर राज्य इकाई की होनेवाली बैठक में समीक्षा की जायेगी. इसके बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

आप रिगिंग की बात कह रही हैं. मतदान में चुनाव आयोग की भूमिका के विषय में क्या कहेंगी?

मतदान के दौरान माकपा द्वारा हिंसा व अन्य मुद्दों को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष 466 से ज्यादा मामले दर्ज कराये गये. यदि आयोग इन शिकायतों पर गौर करता, ठोस कदम उठाये जाते तो बंगाल में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव हो पाते. मतदान के दौरान मतदाताओं व वामपंथी कार्यकर्ताओं पर हमले हुए. महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. आलम यह रहा कि गर्भवती महिला मतदाता पर हमले हुए. कहा जा सकता है कि मतदान निष्पक्ष और शांतिपूर्ण करा पाने में चुनाव आयोग नाकाम रही और उसकी भूमिका पक्षपातपूर्ण, निराशाजनक और उदासीन रही.

तृणमूल सरकार के कार्यो को 10 में से कितना नंबर देंगी?

सरकार के रूप में कार्य करने की क्षमता तृणमूल कांग्रेस के पास नहीं है. आम जनता को केवल धोखा देने की कोशिश की जा रही है. बंगाल में हिंसा की राजनीति की जा रही है. महिलाओं की सुरक्षा पर संशय की स्थिति बनी हुई है. विपक्षी दलों पर हमले जारी हैं. मौजूदा सरकार की कोई गुणवत्ता नहीं है. विकास मूलक कार्य नहीं हुए हैं. ऐसे में 10 में एक भी अंक नहीं दे सकती.