Status Update
By चन्द्रशेखर करगेती
हल्द्वानी में एसडीएम के रूप में हरवीर सिंह की तैनाती कहीं खनन और भू माफियाओं को फ़ायदा पहुंचाने की कवायद तो नहीं ?
सवाल बड़ा गंभीर है, और प्रासंगिक भी, क्योंकि हल्द्वानी में इनकी एसडीएम के रूप में तैनाती से पूर्व उसकी पूरी तरह से भूमिका बनायी गयी, इन्हें पहले बिना विभाग के रखा गया, फिर धीरे से एएसडीएम बनाया गया, फिर एक महीने के भीतर ही एएसडीएम के रूप में लालकुआँ और कालाढूंगी तहसीलों का चार्ज दिया गया, फिर पहले से ही शहर में नए नए तैनात हुए अधिकारियों को बिना किसी खास असफलता के फेंटा गया, तब जाकर श्रीमान को एसडीएम की कुर्सी पर बैठाया गया ?
यह भी विअचार्नीय तथ्य है कि जो अधिकारी शुरू में शहर में एएसडीएम बनाया गया हो वह कैसे एकाएक हल्द्वानी जैसे मह्त्वपूर्ण उपखंड में एसडीएम पद के काबिल कैसे हो गया ? आज कुछ पुराने अखबार टटोल रहा था तो साहब के हल्द्वानी में तैनाती से पूर्व हरिद्वार में किये गए महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्यों की बानगी पढ़ने को मिली ! भला हो एडवोकेट एवं सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट विपिन चंद्र द्विवेदी का जिन्होंने कुछ परदे के पीछे के खेल को उजागर कर दिया !
जागो हल्द्वानी !
गाजियाबाद की एसडीएम दुर्गा शक्ति प्रकरण से कुछ तो सीख ले लो, वैसे भी एसडीएम हरवीर सिंह वो अधिकारी रहे हैं, जिनके दामन पर छींटे लगते रहें ! बिना किसी उचित कारण के बिना किसी प्रार्थना के विरोधी पक्ष में डिक्री को स्टे कर देना, बगैर आपत्ति मांगे दाखिल खारिज के आदेश कर देना फिर पक्षकार द्वारा आपत्ति दर्ज कराने पर किरकिरी से बचने के लिए अपने ही आदेशो को रद्द करना पुराना शगल है ! ये नीचे दिए गए खबर की लिंक से साबित हो जाता है.....
ऐसे अधिकारी हल्द्वानी का सौभाग्य या दुर्भाग्य आप जानो !
http://www.thesundaypost.in/24_06_12/avaran_katha.php
http://www.thesundaypost.in/01_07_12/follow_up.php
http://www.thesundaypost.in/07_10_12/avaran_katha.php
सवाल बड़ा गंभीर है, और प्रासंगिक भी, क्योंकि हल्द्वानी में इनकी एसडीएम के रूप में तैनाती से पूर्व उसकी पूरी तरह से भूमिका बनायी गयी, इन्हें पहले बिना विभाग के रखा गया, फिर धीरे से एएसडीएम बनाया गया, फिर एक महीने के भीतर ही एएसडीएम के रूप में लालकुआँ और कालाढूंगी तहसीलों का चार्ज दिया गया, फिर पहले से ही शहर में नए नए तैनात हुए अधिकारियों को बिना किसी खास असफलता के फेंटा गया, तब जाकर श्रीमान को एसडीएम की कुर्सी पर बैठाया गया ?
यह भी विअचार्नीय तथ्य है कि जो अधिकारी शुरू में शहर में एएसडीएम बनाया गया हो वह कैसे एकाएक हल्द्वानी जैसे मह्त्वपूर्ण उपखंड में एसडीएम पद के काबिल कैसे हो गया ? आज कुछ पुराने अखबार टटोल रहा था तो साहब के हल्द्वानी में तैनाती से पूर्व हरिद्वार में किये गए महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्यों की बानगी पढ़ने को मिली ! भला हो एडवोकेट एवं सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट विपिन चंद्र द्विवेदी का जिन्होंने कुछ परदे के पीछे के खेल को उजागर कर दिया !
जागो हल्द्वानी !
गाजियाबाद की एसडीएम दुर्गा शक्ति प्रकरण से कुछ तो सीख ले लो, वैसे भी एसडीएम हरवीर सिंह वो अधिकारी रहे हैं, जिनके दामन पर छींटे लगते रहें ! बिना किसी उचित कारण के बिना किसी प्रार्थना के विरोधी पक्ष में डिक्री को स्टे कर देना, बगैर आपत्ति मांगे दाखिल खारिज के आदेश कर देना फिर पक्षकार द्वारा आपत्ति दर्ज कराने पर किरकिरी से बचने के लिए अपने ही आदेशो को रद्द करना पुराना शगल है ! ये नीचे दिए गए खबर की लिंक से साबित हो जाता है.....
ऐसे अधिकारी हल्द्वानी का सौभाग्य या दुर्भाग्य आप जानो !
http://www.thesundaypost.in/24_06_12/avaran_katha.php
http://www.thesundaypost.in/01_07_12/follow_up.php
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