उत्तराखंड में माओवाद या माओवाद का भूत ? !!
http://www.nainitalsamachar.in/maoism-in-uttarakhand-or-just-the-exercise-of-getting-money/लेकिन यह भी सच है कि पिछले नौ साल से इस प्रदेश में जिस तरह से मोहभंग की स्थिति आयी है, उसे ठीक करने की दिशा में प्रभावी कदम न उठाये गये तो कोई ताज्जुब नहीं कि यहाँ के नौजवान सचमुच हथियार उठाने लगें। आजादी की जंग के दौर से ही उत्तराखंड के लोग राजनीति की मुख्यधारा में शामिल रहे और राज्य आन्दोलन में मुजफ्फरनगर कांड, जिसके दोषियों को सजा दिलवाने के लिये भी सरकार हाथ-पाँव नहीं चला रही है, का अपमान झेलने के बाद भी उन्होंने हिंसा का सहारा नहीं लिया। मगर पृथक राज्य से उनकी तमाम आशायें जुड़ी थीं। उसका एक छोटा हिस्सा भी पूरा न हुआ, तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है। फिलहाल जरूरी यह है कि सरकार माओवाद का झूठा हौआ बनाने के बदले उन तमाम कारणों को खत्म करे, जिनके कारण माओवाद के पनपने की आशंका हो सकती है। विकास की गति तेज करे, गाँवों की हालत रहने लायक बनाये और रोजगारों का सृजन करे। माओवाद का भूत ज्यादा दिन तक उत्तराखंड में अमन-चैन नहीं बचा सकता।
No comments:
Post a Comment