Thursday, May 23, 2013

यूपी में बुलन्द हैं साम्प्रदायिक ताकतों के हौसले

यूपी में बुलन्द हैं साम्प्रदायिक ताकतों के हौसले


वसीम अकरम त्यागी

 

21 मई 2013 को फैजाबाद कोर्ट परिसर में हुआ मोहम्मद सलीम पर होने वाला हमला बहुत कुछ बयाँ कर गया और उस पर मीडिया की खामोशी से ये साबित होता है कि प्रदेश में अब साम्प्रदायिक लोगों के हौसले बुलन्दी पर हैं। जबकि ये Gundi in Faizabad, the attempt on Khalid's lawyerसंविधान पर हमला है ये हमला प्रदेश की समाजवादी सरकार पर हमला है, ये हमला लोकतन्त्र पर हमला है। क्योंकि जब पूर्व प्रधानमन्त्री के हत्यारों को वकील मुहैया कराया जा सकता है और उन पर किसी ने हमला तो दूर उनसे ये तक मालूम करना गवारा नहीं समझा कि आप देश के प्रधानमन्त्री के हत्यारों का मुकदमा क्यों लड़ रहे हो ? जबकि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक अभियुक्त को वकील उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है जिसके लिये एनिस्क कमैटी द्वारा उसे वकील उपलब्ध कराया जा सकता है ये तब है जब कोई भी वकील किसी अभियुक्त का मुकदमा लड़ने से इंकार कर दे। लेकिन अगर कोई किसी अभियुक्त का मुकदमा लड़ रहा है तो उस पर हमला करके उसे जान से मारने का प्रयास करना क्या दर्शाता है क्या ये भी किसी को बताने की जरूरत है कि ये हमला किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये किया गया है ?

एशियन ह्यूमन राईट्स कमीशन के प्रोग्राम कोर्डिनेटर अवनीश पांडे समर के शब्दों में कहा जाये तो "अगस्त 2008- लखनऊ बार एसोसिएशन मोहम्मद शोएब और ए एम फरीदी को 'संदिग्ध आतंकियों' का मुकदमा लड़ने के लिये बार काउन्सिल से निष्कासित कर देती है। इसके कुछ दिन बाद बार काउन्सिल के सदस्य वकील इन दोनों वकीलों पर अदालत परिसर में जानलेवा हमला करते हैं। उनके कपड़े फाड़ डालते हैं, उनसे पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवाते हैं। पाँच साल बाद भी किसी वकील को सजा नहीं होती। मई 2013- फैजाबाद बार काउन्सिल मौलाना खालिद मुजाहिद की अभिरक्षा में हत्या (custodial killing) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले मुस्लिम वकीलों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करती है। काउन्सिल के सदस्य वकील एडवोकेट मोहम्मद शकील पर जानलेवा हमला करते हैं। इन दोनों मामलों में अब्दुल्ला बुखारी से लेकर कल्बे सादिक तक और सलमान खुर्शीद से लेकर आज़म खान तक कौम के सरपरस्त मुँह सिल लेते हैं। अपराधियों के खिलाफ कहीं कोई मुकदमा दायर नहीं होता कोई पीआईएल नहीं की जाती"  वे आगे कहते हैं कि "मेरे तमाम इस्लामपरस्त मुसलमान दोस्तों को दीवालों पर लिखी इबारत साफ़ नहीं दिखती। वे इन सरपरस्तों के हलक में हाथ डाल के नहीं पूछते कि मियाँ- सिर्फ कौम की ठेकेदारी करोगे या कौम (इन्साफ छोडिये, कौम ही मान लेते हैं) के लिये सच में लड़ रहे इन जाँबाजों के लिये कुछ करोगे भी ?  हौसला है तो आइये ये जंग वहाँ लड़ते हैं जहाँ यह लड़ी जानी चाहिये.. एक बार पहले भी कहा था, फिर कह रहा हूँ कि हालात ख़राब हैं पर इतने नहीं कि बुखारियों के बोलने पर भी असर न हो"

वसीम अकरम त्यागी

वसीम अकरम त्यागी, लेखक युवा पत्रकार हैं।

क्या ये नाम निहाद मुस्लिम परस्त नेता कुछ बोलेंगे इस पर ? उलेमा कुछ करेंगे जो बिलावजह मेरठ के व्यापारपरस्त पूर्व मन्त्री हाजी याकूब कुरैशी के कमेले के झमेले में समर्थन दे रहे हैंजिससे शहर के लोगों को अलावा बीमारी के कुछ और मिला ही नहीं अब जब उस जमीन पर प्रशासन ने कॉलेज बनाने का फैसला किया है तो ये तथाकथित कौम परस्त उलेमा नेता जी के सुर में सुर मिला रहे हैं। जिसका कोई औचित्य ही बनता। क्या ये समझ लिया जाये कि जहाँ पर इनकी जरूरत सबसे अधिक होती है वहीं पर इनकी जबान खामोश क्यों हो जाती है ? उधर फैजाबाद से खबर आई है कि मोहम्मद सलीम जिनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने खालिद मुजाहिद की मौत के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था इसी लिये उन पर हमला किया गया जान लेवा हमला किया गया, आरोपियों में से दो के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गयी है और 12 अन्य आरोपियों को 123, 423, 506, धाराओं मे नामजद किया गया है। साथ ही चौक और कैंट थाना क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गयी है। आये दिन इस तरह की अराजकता फैलाने वाली घटनायें प्रदेश की समाजवादी सरकार में घट रही हैं, साम्प्रदायिक ताकतों के हौसले बुलन्दी पर पहुँच गये हैं तभी तो वकीलों पर वकीलों द्वारा हमले किये जा रहे हैं। उनसे अभद्रता की जा रही है।

 http://hastakshep.com/intervention-hastakshep/ajkal-current-affairs/2013/05/22/communal-forces-are-energetic-in-up#.UZ4n-KKBlA0

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