Tuesday, April 23, 2013

जल प्रबंधन में भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार की वजह से सुजला सफला शष्य श्यामला बंगभूमि में मरुस्थल जैसे नजा

जल प्रबंधन में भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार की वजह से सुजला सफला शष्य श्यामला बंगभूमि में मरुस्थल जैसे नजारे!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


आखिर बंगाल को हो क्या गया है इस बार कोलकाता और हावड़ा, समस्थ उपनगरीय शहरों में गर्मी ठीक से आने से पहले आंधी पानी की सौगात के बावजूद जो अभूतपूर्व जलसंकट की हालत है, उसे नागरिकों ने बिना प्रतिवाद हजम कर लिया है। कहीं से शिकायत की कोई ऊंची आवाज तक नहीं सुनायी​​ देती। जलवायु में भारी असंतुलन का यह शुरुआती लक्षण है। मौसम चक्र बदल रहा है। इस बार जैसी गर्मी का बरसों से अनुभव नहीं था बंगाल ​​को और बाकी देश को। बिजली की कटौती, बिजली उत्पादन में घाटे से गरमी में नागरिक जीवन नारकीय तो होना ही है, ग्राम बांग्ला में तो पेयजल के साथ साथ सिंचाई और पशुओं के लिए भी भारी समस्या होनी है। जल प्रबंधन के बारे में अभी कोई सोच ही नहीं रहा है। राजनीतिक उत्कट ध्रूवीकरण के​​ माहौल में हर मुद्दे का राजनीतिकरण हो रहा है। जो मुद्दे राजनीति के लिहाज से सनसनीखेज हैं, उन्ही पर फोकस है। लेकिन बिजली पानी जैसी बुनियादी समस्या पर किसी का ध्यान ही नहीं है।​

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​जलसंकट नागरिक जीवन के संगीत का स्थाई भाव बन चुका है।इससे निजात पाने की कोई व्यवस्था नहीं है।लेकिन यह असंभव तो है नहीं। ​​मरुस्थल बहुल राजस्थान में अब जल संरक्षण की तरह तरह की तरकीबे निकाली गयी हैं। अब राजस्थान में जलसंकट की उतनी बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन जल संरक्षण परियोजना और आंदोलन के अभाव में जल प्रबंधन में भारी अनियमितता और भ्रष्टाचार की वजह से सुजला सफला शष्य श्यामला बंगभूमि में मरुस्थल जैसे नजारे हैं। हफ्ते हफ्तेभर से राजनीतिक तौर पर अति संवेदनशील कोलकाता, हावड़ा और दक्षिण से लेकर उत्तरी उपनगरों में जलापूर्ति ठप होने के बावजूद कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं है। यानी हम मरुस्थल में जीवनयापन की मानसिकता बना चुके हैं और मिनरल वाटर, पेप्सी कोला से ही अब प्यास बुझायेंगे। मसलन पानीहाटी नगरपालिका क्षेत्र में कालबैशाखी के आयला से बदल जाने के बाद जलापूर्ति ठप है। तालाबों में पानी नहीं है। कुंऔं पर मेला लगा हुआ है। पालिका की टंकियां कहीं दीख नहीं रही है। यह चुप्पी भयावह अशनिसंकेत है।गहराते संकट के मद्देनजर जल संरक्षण व जल प्रबंधन की सख्त आवश्यकता है। इसके लिए प्रत्येक नागरिक अपने स्तर पर योगदान कर सकता है।बंगाल  पहले से ही धान की पैदावार के लिए मशहूर है। अब नकदी फसलों और साग, सब्जियों और पूलों की खेती का पैमाना भी बहुत बढ़ गयाहै। भूगर्बीयजल दोहन ग्रामीण क्षेत्रों में इसी वजह से बढ़ा तो शहरी इलाकों में नदी , नाले, झीलें, तालाब और कुएं पाटकर जो अंधाधुंध निर्माण हरियाली की ​​कुर्बानी देकर जारी है, आम नागरिकों को उसीका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। किसानों पर जिम्मेदारी इसलिए अधिक हैं क्योंकि खेती के लिए अधिक जल की जरूरत होती है।आधुनिक विधियां जल संरक्षण के ही गुणवत्ता भी प्रदान करती हैं, इसलिए इनके प्रति किसान को जागरूक किया जाना चाहिए।बंगाल सरकार को इसकी फुरसत कहां है?सोच तक नहीं है।सबकुछ राम भरोसे चल रहा है।


दशकों से संचयनी के जमाने से चिटफंड का कारोबार बंगाल में चल रहा है। एक कंपनी बंद होती है तो दूसरे को फायदा हो जाता है। सिलसिला ​​थमता नहीं है।अब इसे लेकर जो तांडव मचा है, उसी में नागरिक जीवन पूरी तरह निष्णात है।इसी बीच, जहां कोलकाता और हावड़ा महापालिकाओं और उपनगरीय पालिकाओं के पंप जलस्तर गिरने की वजह से थोक पैमाने पर फेल हैं और जलापूर्ति निकट बविष्य में सामान्य होने के आसार नहीं दीख​ ​ कोलकाता रहे हैं, वहीं महानगर के दो दो ग्लेशियरों  गार्डनरीच और पलता जलकेंद्रों से जलापूर्ति में बारी अनियमितता और जल चोरी का आरोप ​​लगाया है कोलकाता नगरनिगम में वामनेत्री रुपा बागची ने।कोलकाता के मेयर ने तुरंत जलप्रबंधन में बिना किसी कार्रवाई के गार्डनरीच और दापा में दो और गलेशियर के सब्जबाग दिखा दिये।


रुपा बागची ने शिकायत की कि मेयर ने जलापूर्ति जैसा नाजुक महकमा अपने हात में रखा हुआ है और वे इस पर कतई ध्यान नहीं देते।उस दफ्तर के कामकाज की जो नियमित निगरानी होनी चाहिए, वह हो नहीं रही है।मेयर को अपनीव्यस्तताओं से पुरसत ही नहीं होती। जबकि महानगर में पानी की​​ चोरी खुलेआम हो रही है और लोग बूंद बूंद पानी को तरस रहे हैं।रुपा बागची के सुर में सुर मिलाते हुए कांग्रेस नेत्री मालारया ने बी कहा, कुछ​​ सालों पहले तक मेरे वार्ड में जलसंकट नहीं था। लेकिन अब लोगों को पानी की किल्लत से भारी परेशानी है। नगर निगम को इसकी कोई परवाह नहीं है।


जवाब में मेयर का दावा है कि गार्डन रीच जलाधार वाम शसनकाल में हमेशा गर्मी के वक्त बैठ जाता रहा है। लेकिन परिवर्तन राज में अबतक ​​ऐसा नहीं हुआ।दक्षिण कोलकाता में जलापूर्ति बढ़ाने के लिए गार्डनरीच में नयी जल परियजना लगायी जायेगी। इसके अलावा धापा जल परियोजना का काम भी प्रगति पर है। ये परियोजनाएं पूरी हो जाये,तो जलसंकट का नामोनिशान नहीं रहेगा।


मेयर के सुवचन से लोगों को कितनी राहत मिलेगी​​ कहना  मुश्किल है​। पर कहीं भी इस गंभीर जल संकट के वक्त जल प्रबंधन की कुव्यवस्था के चलते पाइपलाइन से या नलों से बेकार बरबाद होते पानी का नजारा देखा जा सकता है। पाइपलाइन से रोजाना गैलन गैलन पानी चुराया जा रहा है, निगमकर्मियों की मिलीभगत से।सर्वत्र समर्थ लोग टुल्लु पंप से जरुरत के हिसाब से इफरात पानी निकाल ले रहे हैं और उनपर नियंत्रण की कोई व्यवस्था है ही नहीं। जलापूर्ति की नर्धारित माप से ज्यादा आकार बढ़ा लेना आम रिवाज है।बहुमंजिली इमारतों और आवासीय परियोजनाओं में इसीतरह जल की खपत जरुरत से बहुत ज्यादा बढ़ जाने से आम लोगों को पानी मिलना मुश्किल हो गया है। यह बीमारी कोलकाता और हावड़ा निगमों से लेकर उपनगरीय इलाकों और वृहत्तर बंगाल के शहरी इलाकों में आम है। सीमेंट के जंगल में सिरे से गायब होता जा रहा पानी। आम जिंदगी तो अब जल बिन मछली है


इसी के मध्य राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) के प्रतिनिधियों के साथ प्रदेश में जल प्रबंधन और कृषि व गैर कृषि क्षेत्रों में कम पानी के बेहतर उपयोग पर चर्चा की।


गहलोत ने कहा कि कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत अलग-अलग औद्योगिक संस्थाएं, सामाजिक कार्यों में दो प्रतिशत राशि के प्रावधान में जल संरक्षण से जुड़ी गतिविधियों पर प्राथमिकता दें। इसके लिए राज्य सरकार पहल कर प्राइवेट सेक्टर की प्रमुख औद्योगिक इकाइयों का आईएफसी से समन्वय स्थापित करवाए। उन्होंने राज्य की बडी औद्योगिक कंपनियों को इसके लिए प्रेरित करने और आईएफसी के साथ मिलकर इस दिशा में काम करने के निर्देश दिए हैं।


मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में स्थित बांधों में अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण की वजह से 20 से 25 प्रतिशत पानी कम हो जाता है। आईएफसी जल प्रबंधन और संरक्षण के क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता के साथ ऐसी तकनीक राजस्थान में लाएं जिससे इन जलाशयों में जलहानि कम की जा सकें। उन्होंने भूजल को रिचार्ज करने के लिए भी राज्य की परिस्थितियों के अनुकूल तकनीक पर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया।


गौरतलब है कि जल संरक्षण का अर्थ है जल के प्रयोग को घटाना एवं सफाई, निर्माण एवं कृषि आदि के लिए अवशिष्ट जल का पुनःचक्रण (रिसाइक्लिंग) करना।


धीमी गति के शावर हेड्स(कम पानी गरम होने के कारण कम ऊर्जा का प्रयोग होता है और इसीलिए इसे कभी-कभी ऊर्जा-कुशल शावर भी कहा जाता है।


धीमा फ्लश शौचालय एवं खाद शौचालय. चूंकि पारंपरिक पश्चिमी शौचालयों में जल की बड़ी मात्रा खर्च होती है,इसलिए इनका विकसित दुनिया में नाटकीय असर पड़ता है।


शौचालय में पानी डालने के लिए खारे पानी (समुद्री पानी) या बरसाती पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है।


फॉसेट एरेटर्स, जो कम पानी इस्तेमाल करते वक़्त 'गीलेपन का प्रभाव' बनाये रखने के लिए जल के प्रवाह को छोटे-छोटे कणों में तोड़ देता है। इसका एक अतिरिक्त फायदा यह है कि इसमें हाथ या बर्तन धोते वक़्त पड़ने वाले छींटे कम हो जाते हैं।


इस्तेमाल किये हुए पानी का फिर से इस्तेमाल एवं उनकी रिसाइकिलिंग:

शौचालय में पानी देने या बगीच

नली बंद नलिका, जो इस्तेमाल हो जाने के बाद जल प्रवाह को होते रहने देने के बजाय बंद कर देता है।


जल को देशीय वृक्ष-रोपण कर तथा आदतों में बदलाव लाकर भी संचित किया जा सकता है, मसलन- झरनों को छोटा करना तथा ब्रश करते वक़्त पानी का नल खुला न छोड़ना आदि।


जल संरक्षण का अर्थ है जल के प्रयोग को घटाना एवं सफाई, निर्माण एवं कृषि आदि के लिए अवशिष्ट जल का पुनःचक्रण (रिसाइक्लिंग) करना।


फसलों की सिंचाई के लिए, इष्टतम जल-क्षमता का अभिप्राय है वाष्पीकरण, अपवाह या उपसतही जल निकासी से होने वाले नुकसानों का कम से कम प्रभाव होना। यह निर्धारित करने के लिए कि किसी भूमि की सिंचाई के लिए कितने जल की आवश्यकता है, एक वाष्पीकरण पैन प्रयोग में लाया जा सकता है। प्राचीनतम एवं सबसे आम तरीक़ा बाढ़ सिंचाई में पानी का वितरण अक्सर असमान होता है, जिसमें भूमि का कोई अंश अतिरिक्त पानी ले सकता है ताकि वो दूसरे हिस्सों में पर्याप्त मात्र में पानी पहुंचा सके। ऊपरी सिंचाई, केंद्र-धुरी अथवा पार्श्व-गतिमान छींटों का उपयोग करते हुए कहीं अधिक समान एवं नियंत्रित वितरण पद्धति देते हैं। ड्रिप सिंचाई सबसे महंगा एवं सबसे कम प्रयोग होने वाला प्रकार है, लेकिन पानी बर्बाद किये बिना पौधों की जड़ तक पानी पहुंचाने में यह सर्वश्रेष्ठ परिणाम लाते हैं।चूंकि सिंचाई प्रणाली में बदलाव लाना एक महंगा क़दम है, अतः वर्त्तमान व्यवस्था में संरक्षण के प्रयास अक्सर दक्षता बढ़ाने की दिशा में केन्द्रित होते हैं. इसके तहत chiseling जमा मिटटी, पानी को बहने से रोकने के लिए कुंड बनाना एवं मिटटी तथा वर्षा की आर्द्रता, सिंचाई कार्यक्रम की बढ़ोत्तरी में मदद शामिल हैं।


रिचार्ज गड्ढे, जो वर्षा का पानी एवं बहा हुआ पानी इकट्ठा करते हैं एवं उसे भूजल आपूर्ति के रिचार्ज में उपयोग में लाते हैं।यह कुएं आदि के निर्माण में उपयोगी सिद्ध होते है एवं जल-बहाव के कारण होने वाले मिटटी के क्षरण को भी कम करते हैं।


जल के नुकसान, प्रयोग या बर्बादी में किसी प्रकार की लाभकारी कमी;

जल-संरक्षण के कार्यान्वयन अथवा जल-दक्षता उपायों को अपनाते हुए जल-प्रयोग में कमी; या,

जल प्रबंधन की विकसित पद्धतियां जो जल के लाभकारी प्रयोग को कम करते हैं या बढ़ाते हैं।जल संरक्षण का उपाय एक क्रिया, आदतों में बदलाव, उपकरण, तकनीक या बेहतर डिजाइन अथवा प्रक्रिया है जो जल के नुकसान, अपव्यय या प्रयोग को कम करने के लिए लागू किया जाता है। जल-क्षमता जल-संरक्षण का एक उपकरण है। इसका परिणाम जल का बेहतर प्रयोग होता है एवं इससे जल की मांग भी कम होती है. जल-क्षमता उपाय के मूल्य एवं लागत का मूल्यांकन अन्यान्य प्राकृतिक संसाधनों (यथा-ऊर्जा या रसायन) पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।


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