Saturday, July 5, 2014

कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?

कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?

पलाश विश्वास

कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान?


रेल बजट से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के बारामूला जिले के कटरा से रेलवे के निजीकरण का ऐलान कर दिया।उन्होंने हालांकि  संकेत भर  दिया है  कि रेलवे के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ सकती है।


बेसरकारीकरण को विनिवेश का नाम देने वालों ने जोर काझटका धीरे से गे,जाहिर है कि ऐसा ही चाक चौबंद इंतजाम कर दिया है।पूरा देश ही अब शाक एबजार्बर है।


लोकप्रिय थीमसांग है कि बजट में यह प्रावधान हो कि विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा मिले, इसके लिए आवश्यक माहौल बनाया जाए। विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए निवेश से जुड़े कानूनों को उदार बनाया जाए।


कौन है माई का लाल जो बेसरकारीकरण और विनिवेश,प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश के खिलाफ बलकर अपनी हैसियत दांव पर लगा दें?


धर्मयोद्धा मोदी ने कहा हम चाहते हैं कि रेलवे स्टेशन पर हवाईअड्डों से बेहतर सुविधा हो। यह हमारा सपन है और ऐसा करना मुश्किल काम नहीं है और यह आर्थिक रूप से भी व्यावहारिक भी है। मैंने रेलवे से जुड़ मित्रों से इस संबंध में विस्तार से बात की है। आप निकट भविष्य में बदलाव देखेंगे।


गौरतलब है कि धर्मयोद्धा मोदी ने खुल्लमखुल्ला हाट में हड़िया तोड़ दी और कह दिया कि ऐसी स्थिति में निजी कंपनियां भी निवेश के लिए तैयार होंगी क्योंकि यह आर्थिक रूप से अच्छी परियोजना है और इससे सभी को फायदा होगा। यह दोनों के लिए फायदेमंद परियोजना होगी और हम चाहते हैं कि आने वाले दिनों में इस दिशा में आगे बढ़ें।निजी कंपनियों को तो फायदा ही फायदा होगा,बैशक,आम जनता का क्या हो गा,बस तेल देखिये,तोतेल की दार भी देखिये।


बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर के बारामूला जिले में नियंत्रण रेखा के पास 240 मेगावाट की उरी-2 पनबिजली परियोजना (एचईपी) का उद्घाटन किया।


प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एन एन वोहरा, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राष्ट्रीय जलविद्युत उर्जा निगम :एनएचपीसी: के शीर्ष अधिकारियों की मौजूदगी में परियोजना को राष्ट्र के नाम समर्पित किया।


गौर करें कि  रेलवे और ऊर्जा क्षेत्र हमारी विकास प्राथमिकताओं में शामिल हैं। जल्द ही इसमें आपको बदलाव नजर आएगा। निजी क्षेत्र की भागीदारी से यह बदलाव होगा। हमारा मकसद है कि विकास का लाभ आखिरी छोर तक बैठे व्यक्ति को भी मिले। अटलजी ने जिस विकास यात्रा को शुरू किया है, हम उसे आगे बढ़ाएंगे। हमारा मकसद राजनीतिक जय-पराजय का नहीं है, मैं जम्मू- कश्मीर के नागरिकों का दिल जीतना चाहता हूं। यह कार्य विकास के माध्यम से पूरा होगा। शुक्रवार को यह बात जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कही।



भारत में बुलेट ट्रनों का इंतजार वे लोग सबसे ज्यादा बेसब्री से कर रहे हैं जो स्लीपर क्लास में रिजर्वेशन करने तक का पैसा जुटा नहीं पाते और भेड़ बकरियों की तरह एक्सप्रेस ट्रेनों के दो अदद जनरल डब्बों में सीट पाने के लिए घंटों कतारबद्ध रहते हैं।


आगरा एक्सप्रेसवे में दो घंटे के फर्राटे के बाद दिल्ली से आगरा तक की रेलयात्रा नब्वे मिनट में सिमट जाने से वे ब्राजील के विश्वकप विजय की तरह उन्माद हुए जा रहे हैं।


जिस पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे पंडित,सबसे जुझारु खेती विशेषज्ञ किसानों का वास है और जहां के किसान देश के महानगरों से ज्यादा राजस्व देते रहे हैं,उन्हें अब भट्टा परसौल की याद नहीं सताती।


कोई नहीं सोच रहा है,सोचने को तैयार भी नहीं है,क्या देश में यात्रियों का कोई ऐसा तबका है जो लगभग हवाई जहाज जितनी खर्चीली इसकी यात्रा का नियमित बोझ उठा सके? अभी तो मध्य वर्ग और साधारण तबका रेल किराये में मामूली बढ़ोतरी भी नहीं झेल पाता। फिर बुलेट ट्रेन किसके लिए चलेगी?


मीडिया विशेषज्ञ सपना बुनने में लगे हैं कि निश्चय ही बाधाएं बहुत हैं पर इनसे घबराकर हम विकास की दौड़ से बाहर नहीं हो सकते। सपना चाहे जितना भी खर्चीला हो, लंबे समय में वह सस्ता ही साबित होता है। इसलिए बुलेट ट्रेन चलाने के लक्ष्य को सामने रखकर रेलवे में सुधार जारी रखना होगा, ताकि एक दिन देश के सभी शहरों को एक-दूसरे के करीब लाया जा सके।


कोई नहीं बताता कि ये बुलेट ट्रेन भविष्य के कत्लगाहों को ही जोडेंगे ,इस देश के जनसामान्य इन्हीं बुलेट ट्रेनों के पहियों के नीच जमींदोज होंगे।


हमने यूरोप में  औद्योगिक क्रांति के सिलसिले में धर्म राजनीति और पूंजी के त्रिभुजाकार वर्चस्ववादी आक्रमण में किसानों के सफाये के बारे में पहले ही चर्चा की है।


कश्मीर से ही क्यों हुआ भारतीय रेलवे के निजीकरण का ऐलान,इस सवाल का जवाब खोजने के लिए इस नापाक गठबंधन का खुलासा होना जरुरी है।


ध्यान योग्य बात तो यह है कि यूरोपीय नवजागरण से अभिभूत हम क्रुसेड से यूरोप की औद्योगिक क्रांति का संबंध समझने से अमूमन परहेज करते हैं,वैसे ही जैसे भारतीय नवजागरण की चर्चा करते हुए मनीषियों के व्यक्तित्व कृतित्व की चर्चा करते हुए हम सत्रहवीं और अठारवीं शताब्दियों में आदिवासी और किसान जनविद्रोह की शानदार विरासत की चर्चा करना भूल जाते हैं।


इसीलिए राजा राममोहन राय और ब्रह्मसमाज की चर्चा करते हुए हम भूलकर भी हरिचांद ठाकुर,वीरसा मुंडा,रानी दुर्गावती,टांट्या भील,बीरसा मुंडा,सिधो कन्हो,महात्मा ज्योतिबा फूले,अयंकाली को भूलकर भी याद नहीं करते हैं।


खास बात तो यह कि मध्य एशिया से गुजरने वाले रेशम पथ का नजदीकी रिश्ता सोने की चिड़िया भारत के मुहावरे और एशियाई मध्ययुगीन अर्थव्यवस्था से है।


उस एशियाई अर्थव्यवस्था के मुकाबले यूरोप कंगाल था औययूरोप के लोग कृषि का मतलब पशुचारण समझते थे।


इंग्लैंड में संसद में महारानी के सिंहासन के सामने लार्ड चांसलर की कुर्सी के नीचे ऊन का बोरा बताता है कि भेड़ों के मार्फत जीते थे तब यूरोप के लोग।


जो सोना चांदी का ख्वाब ही सजोते थे और जलदस्युओं के जरिये महासागर के रास्त बाकी दुनिया को लूटने का कारोबार चलाते थे।


एशियाई रेशम पथ की अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने के लिए सौ साल का धर्मयुद्ध लड़ा गया,वह उसी तरह दो संस्कृतियों या दो धर्मों की लड़ाई नहीं थी जैसे उत्तरआधुनिक ग्लोबल दुनिया के मध्यपूर्व में साम्राज्यवादी तेलयुद्ध कोई इस्लाम के विरुद्ध पोप का जिहाद नहीं है।


सौ साल के उस महायुद्ध में मौलिक भूमंडलीकरण की शुरुआत हुई जो चरित्र से धार्मिक और सामंती था।आज का उत्तर आधुनिक भूमंडलीकरण भी चरित्र से उतना ही धर्मोन्मादी और सामंती हैं।आज के धर्मयोद्धा यूरप के वे मासूम से दिखने वाली भेड़ें हैं, जिन्होंने चारा के साथ ही यूरोप की किसान आबादी को चबा लिया।


इसी धर्म युद्ध से आभिजात नाइटों का नया तबका तैयार हुआ और इन्हीं धर्मयोद्धाओं ने यूरोप में ही किसानों और देहात का सर्वनाश नहीं किया बल्कि दुनिया भर में सोना,चांदी हीरा जवाहिरात और दूसरे बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों के लिए जलदस्युओं के बेड़े के जरिये पूरे अमेरिका,पूरे आस्ट्रेलिया,पूरे अफ्रीका महाद्वीपों में स्थानीय जनसमुदायों का सफाया कर दिया।


वास्कोडिगामा,कप्तान कुक,मैडेलिन और कोलंबस को हमारे अंग्रेजीपरस्त इतिहासकारों ने महानायकों का दर्जा दे दिया है लेकिन वे कैरेबियन पाइरेट के मुकाबले ज्यादा खूंखार जलदस्यु और हत्यारे थे।


कैरेबियन पाइरेट में तो फिर भी मानवीय तमाम गुण है।कोलबंस और वास्कोडिगामा में ऐसा कोई गुण नहीं था।


हम तैमूर लंग और सिकंदर के हमलों की चर्चा करते हैं,लेकिन यूरोपीयहमलावरों को महान बनाने से बाज नहीं आते।विदेशी निवेशकों में जो खून का जायका  है,इंद्रियविकल हवाओं में उसकी कोई सुगंद नहीं है।


हमारे धर्मांध इतिहासकार जो तमाम इस्लामी धर्मस्थलों पर हिंदुत्व के दावे को पुष्ट करने में सबसे ज्यादा व्कत गंवाते हैं, वे यह तथ्य स्वीकार ही नहीं कर सकते कि भारत में तोपों से गोला बरसाते हुए और दरिया में सेरा जहाजों को लूटते डुबोते हुए भारत में दाखिल होने वाले वास्कोडिगामा अमेरिका,अफ्रीका और आस्ट्रेलिया महाद्वीपों में जा पहुंचे दूसरे जलदस्युओं की तरह स्थानीयजनसमूहों का सफाया सिर्फ इसलिए नहीं कर सकी कि तब वैस्विक अर्थव्यवस्था पर काबिज मुगलिया सल्तनत की केंद्रीय सत्ता इन जलदस्युओं को अपनी औकात बताने के लायक बेहद मजबूत थी।


गौरतलब है कि कंपनी राज के खिलाफ अठारवी सदीं के महाविद्रोह के नेता भी दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ही थे।


अब कोई इकलौती ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं है कोई,हजारों देशी विदेशी कंपनियां हैं और वे आपस में मारकाट में लगी भी हों तो जनसंहार के मोर्चे पर लामबंद हैं और जनता के मोर्चे पर कोई सांकेतिक प्रतिरोध की हलचल तक नहीं है।


नवजागरण के गौरवगान में औद्योगिक क्रांति के दौरान धर्म,राजनीति और पूंजी के प्रलंयकारी ब्रह्मा विष्णु महेश ने धर्मयोध्धाओं के जरिये कैसे यूरोप में जनसंहार को अंजाम दिया,ऐसा विश्वविद्यालयों में पढ़ाया नहीं जाता।


कैसे कैरेबियन द्वीपों, उत्तरी,मध्य और उत्तरी अमेरिका में भौगोलिक खोज के बहाने पूरी आबादी खत्म कर दी गयी और हालत यह हो गयी कि अफ्रीका के आदिवासी गांवों में आग लगाकर स्त्री पुरुष बच्चों को जंगली जानवरों की तरह हांककर अमेरिकागामी जहाजों के मालखाने में भूखों प्यासे लादकर अमेरिका में श्रमशक्ति की आपूर्ति की गयी,कैसे भारत से भी कैरेबियन द्वीपों में गिरमिटिया मजदूरों का निर्यात किया गया,स्कूली विश्वविद्यालयी  पाठ में इसका कोई स्थान है ही नहीं।


सिलेबस मठाधीशों की दुकाने तो इन्हीं की चाटने से चलती है।इतिहास और पुरात्व विभागो की क्या कहें।वे वैसे ही हैं जैसे हमारे माहन अर्थशास्त्री।


उतने ही देश भक्त मौसेरे भाई हैं अकादमिक जगत और आइकनिक सिविल सोसाइटी के सेलिब्रेटी लोग जैसे थोक दरों पर संसद में जा रहे अरबपति करोड़पति रंग बिरंगे जनप्रतिनिधि।ये तमाम लोग वैश्विक व्यवस्था के मुफ्त के विश्व पर्यटक हैं।


इसलिए मध्ययुगीन उस धर्म,राजनीति और पूंजी के संंहारक त्रिभुज के बारे में हमारे लोगों को कोई आइडिया ही नहीं है।


हम यह समझने में हमेशा चूक जाते हैं कि दस साल तक जो शख्स इस देश का प्रधानमंत्री था और विश्वबैंक से लगातार पेंशन उठाता रहा और सत्ता कुनबा में तमाम अति शीर्षस्थानीय लोग जो पेंशनधारी रहे हैं विश्वबैंक के,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के, विश्वव्यापार संघ के,यूरोपीय समुदाय के,युनेस्को के,एशिया विकास बैंक के,उस गुलाम गिरमिटिया मजदूरों के शासक तबके को एकमुश्त खारिज करके अचानक क्रुसेड के बाद के यूरोप की तर्ज पर नाइटों यानि धर्मयोद्धाओं को सत्ता सौंपने के लिए वैश्विक कारपेरटजायनी शैतानी बंदोबस्त ने लाखों करोड़ रुपये क्यों खर्च कर डाले।


क्शमीर से रेलवे के निजीकरण के धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री का ऐलान समझ लें कि मध्ययुग के सौ साल के धर्मयुद्ध का आवाहन ही है।


यूरोप में तो भेड़ों के मार्फत सामंतों ने पहले सारी जमीन का बाड़ाबंदी कर दी और नगरों महानगरों में विस्थापित किसानों को मजदूर बनाकर औद्योगिक क्रांति कर दी।


उपन्यास विधा ही उस औद्योगिक नरसंहार का आख्यन है और इस हिसाब से तो भारत में इने गिने उपन्यासकार ही हैं जैसे माणिक बंद्योपाध्याय,जैसे समरेश बसु,जैसे भैरव प्रसाद गुप्त,जैसे यशपाल।


बाकी देहकथा है।मिटते हुए जनपदों का लोक  महाकाव्य हालांकि कम नही लिखा गया हालांकि वह सिलसिला भी अब बंद हो गया।


यूरोप और अमेरिका में हुई कयामत की वह महागाथा विक्टर ह्युगो,चार्ल्स डिकेंस और टामस हार्डी के उपन्यासों में पढ़ी जा सकती है,जो इतिहास से कमतर कतई नहीं है।रुसी साहित्य में भी इसका ब्यौरा सिलसिलेवार है।दास्तावस्की से काफ्का,सार्त्र से कामु तक के साहित्य में उस विध्वंस की गूंज है।


लेकिन हमारे मीडिया और साहित्य में बाजार की देहकथा और कंडोम कार्निवाल के अलावा बाकी क्या बचा है,इसकी तफतीश जरुरी है।


हैरतअंगेज हैं कि कश्मीर और मणिपुर में मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के हनन के तमाम मामलों,यूपी और गुजरात में तमाम फर्जी मुठभेड़ों,गोंडवाना और मध्यभारत और देशभर में खनिज समृद्ध इलाकों में आदिवासियों के खिलाफ अविराम जारी सलवा जुडुम को संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बताकर पत्रपाठ खारिज करने वाले और ऐसे मुद्दे को उठानेवाले इने गिने लोगों को तत्काल राष्ट्रद्रोही घोषित करने वाली धर्मयुद्ध की धर्मोन्मादी पैदल सेनाओं को भारत अमेरिकी परमाणु संधि,अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में पारमाणविक सैन्य गठजोड़ बनाकर मध्यपूर्व के युद्धक्षेत्र को हिंद महासार की हर लहर में विस्तृत करने की कार्रवाई तो समझ में नहीं आयी,तकनीकी क्रांति से सिक कबाब बनी जिंदगी को लेकर भी वे बेफिक्र हैं तो प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत प्रत्यक्ष विनिवेश को वे राष्ट्रहित मानने लगे हैं।


ऐसा है यह धर्म राजनीति और पूंजी का संहारक त्रिभुज।


धर्मयोद्धा प्रधानमंत्री ने बाकायदा राजसूयकर्मकांड विधि से रेलवे के निजीकरम का ऐलान कश्मीर से इसलिए किया है कि ताकि यह मामला भी अघोषित तौर पर निषिद्ध पाठ में शामिल हो जाये।


हमने कल रात इस प्रकरण पर अंग्रेजी में अपने आलेख में डिसइनवेस्टमेंट एजेंडा का खुलासा डिसइनवेस्टमेंट कौसिल की निजी कंपनियों के मालिकान का सरकारी उपक्रमों के खिलाफ युद्धघोषणा के दस्तावेज के साथ किया है।


जाहिर है,वह कहीं छपना नहीं है।चाहें तो मेरे ब्लागों में देख लें।


Long time before Budget,it is Killing time!PM hints at increased private sector role in Railways! Get bullet to destroy your rural India! If private players are allowed to harvest in the most sensitive defence arena,why should the private players not to be allowed to play on Railway pitch!In fact,they have already captured most of the structural Railway services skipping Railway staff and the workforce in Railway is getting size zero with greater speed than the Bullet train.

http://ambedkaractions.blogspot.in/2014/07/long-time-before-budgetit-is-killing.html



हम दृष्टिंअंध है।


सावन के गधों की तरह हमें दसों दिशाओं में हरियाली ही हरुयाली नजर आती है।

पतझड़ का रंग और मिजाज हम जानते नहीं है।


रैप म्युजिक और रीमिक्स में समयबद्ध विशुद्ध भारतीय राग आधारित शास्त्रीय संगीतसुनने का मन और कान दोनों हम खो चुके हैं।


हम देख नहीं रहे हैं कि अघोषित तौर पर पिछले तेइस सालों से विमानन,रेलवे, परिवहन,शिक्षा,चिकित्सा,डाक तार संचार,ऊर्जा, बैंकिंग, बीमा,बंदरगाह,शहरी विकास,निर्माण विनिर्माण,खुदरा कारोबार,खाद्य आपूर्ति,पेयजल,तेल और गैस,खनन, विज्ञान और आविस्कार,मीडिया और तकनीक,इंजीनियरिंग,प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा  समेत तमाम सेक्टरों और सेवाओं के साथ रेलवे का अघोषित बसरकारीकरण विश्वबैंक और वैश्विक व्यवस्थाओं के गुलामों ने कर दी है।


हम देख नहीं रहे हैं, ग्राम्यभारत का महाश्मशान जहां स्वर्णिम राजमार्गों और एक्सप्रेस हाईवे के नेटवर्क के जाल मे महासेजों,शैतानी औद्योगिक गलियारों और दसलखिया महानगरों के उत्थान का प्रेतसमय।


रेलवे कर्मचारियों की तादाद लगातार कम होती रहीं है।


रेलवे में निर्माण और तमाम जरुरी सेवाओं का निजीकरण पहले से हो चुका है और अब रेलपथों को निजी कंपनियों को सौंपने की बारी है।


बैकिंग और बीमा में निजी पूंजी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये सरकारी उपक्रमों को बहुत पहले बाट लग चुकी है।


सारे के सारे बंदरगाह बिकने लगे हैं।


एअर इंडिया का काम तमाम।रिलायंस को अंबानी को सौंपने की देर है,बस।


मीडिया,ऊर्जा,निर्माण विनिर्माण,टेलीकाम से लेकरतेल और गैस तो रिलायंस के हवाले हैं ही।


चाय और जूट उद्योग का कबाड़ा हो गया है दशकों पहले।


कपास से सिर्फ आत्महत्याओं का अनंत चरखा काता जा रहा है।


कपड़ा उद्योग तो इंदिरा गांधी ही धीरूभाई अंबानी को सौंपकर हावड़ा के मैनचेस्टर को तबाह कर चुकी हैं।


इंजीनियरिंग खत्म है।


तकनीकी क्रांति और सेवा विस्फोट।


रोजगार खत्म।


खेती तबाह।


सिर्फ सेवा क्षेत्र और आयात निर्यात पर निर्भर विकास दर और भुगतान संतुलन।


निवेशकों की आस्था कुलमिलाकर इस कर्मकांडी अंधविश्वासी कुसंस्कारी देश में आस्था और धर्म कर्म पर भारी।


बाकी बचा सेनसेक्स और सेक्स,जसमें सांढ़ों का राज है।


हम एक दशक से वाणिज्य राजधानी मुंबई में रेलवे,ऊर्जा,बैंकिंग,पोर्ट,बीमा,विमानन, तेल गैस समेत तमाम सेक्टरों के शीर्ष अधिकारियों और ट्रेड युनियनों के अलावा आम व्रक्र्स के मुखातिब होते रहे हैं।


मुंबई में ही वर्षों से बजट की व्याख्या करते रहे हैं।


बंदरगाहों की धूल फांकते रहे हैं।


बाकी देश में भी दौड़ लगाते रहे हैं।


लेकिन मलाईदार तबकों का वर्चस्व इतना प्रबल है कि हमारी आवाज अनसुनी रह गयी।


अब तमाम कायदे कानून को खत्म करने की योजना है।


संसद पहले से हाशिये पर है।


लोकतांत्रिक ढांचा खत्म है।

अस्मिताओं और अलगाव के अलावा देश में कुछ बचा ही नहीं है।


हर गली में नये नये धर्मयोद्धा।


हर गली में एंकाउटर का माहौल।


सब्सिडी खत्म तो सामाजिक योजनाओं के साथ लोककल्याणकारी राज्य भी खत्म।


भड़ुवा सिविल सोसाइटी।


कारपोरेट मीडिया।


दल्ला साहित्य।


ऐसे महातिलिस्म में इस धर्म युद्ध के मुकाबले हम सभी इक्के दुक्के प्रतिवादी स्वर का हश्र वहीं अभिमन्यु है।


हम अब भी ब्राजील फुटबाल कार्निवाल  में लहूलुहान ब्राजील को देख नहीं रहे हैं।नहीं सुन रहे हैं सदियों से जारी आदिवासियों की अनंत चीखें।हम रोते हुए खिलाड़ियों को देखकर देश प्रेम से गदगद हैं पर उन आंसुओं के रसायन की पहचान की तमीज हमें नहीं है।


हम बल्कि चिंतित हैं कि मेसी मारादोना बनेगा या नहीं। ब्राजील और अर्जेंटीना का फािनल होगा कि नहीं।


हम बल्कि चिंतित हैं कि अपनी मेजबानी में विश्वकप जीतने का ख्वाब देख रही ब्राजील की टीम को उस समय तगड़ा झटका लगा जब उसका सबसे चर्चित खिलाड़ी नेमार रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर के कारण टूर्नामेंट से बाहर हो गया। नेमार को यह चोट कल क्वार्टर फाइनल में कोलंबिया पर मिली 2-1 से जीत के दौरान लगी। कोलंबियाई डिफेंडर जुआन जुनिग के साथ यहां मैच के अंतिम मिनटों में गेंद लपकने के प्रयास में नेमार इस कोलंबियाई खिलाड़ी के घुटने से टकराकर मैदान पर गिर गए और उन्हें दर्द से कराहते हुए स्ट्रेचर पर बाहर ले जाया गया।


जाहिर है कि नेमार की चोट और कप्तान थिएगो सिल्वा के अगले मैच के निलंबन जैसी बुरी हैं ब्राजील के लिए और हम ब्राजील प्रेमी अपने देश के आदिवासियों के जीने मरने की खबर नहीं रखते ,ब्राजील के बेदखल आदिवासियों को क्यों रोयें।





अकारण नहीं कि आगामी आम बजट में सुधारवादी एवं विकासोन्मुखी कदम उठाए जाने की उम्मीद में तेल व गैस क्षेत्र सहित प्रमुख शेयरों में लिवाली समर्थन से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 138 अंक की बढ़त के साथ नई रिकार्ड ऊंचाई 25,962.06 अंक पर बंद हुआ।


अकारण नहीं है कि देश के शेयर बाजारों में पिछले सप्ताह प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी में तीन फीसदी से अधिक तेजी रही। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स पिछले सप्ताह 3.43 फीसदी या 862.14 अंकों की तेजी के साथ शुक्रवार को 25,962.06 पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक निफ्टी 3.23 फीसदी या 242.8 अंकों की तेजी के साथ 7,751.60 पर बंद हुआ।


तीस शेयरों के भव से देश की आर्थिक सेहत बताते हैं अर्थशास्त्री और उसी मुताबिक नीति निर्धारम होता है।एक सौ बीस कराड़ की जनता तो जनगणना,आधार परियोजना या सिटीजन कार्ड और सचल वोटबैंक वास्ते हैं।


क्या फर्क पड़ता है कि आनेवालों दिनों में एलपीजी सिलेंडर के दाम में भारी इजाफा हो सकता है। पेट्रोलियम मंत्रालय विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुरूप मिट्टी के तेल व रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति (सीसीपीए) के पास भेजेगा।


भरोसा कीजै,अच्छे दिनों के ख्वाब रचिये कि वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि हर साल जुलाई-दिसंबर के दौरान जमाखोरी के कारण कुछ खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ती है। बढ़ती महंगाई के लिए जमाखोर जिम्‍मेवार हैं।वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली को जल्द लागू करने के लिये केन्द्र सरकार राज्यों के साथ राजस्व क्षतिपूर्ति से जुड़े मुद्दे का समाधान करेगी। जीएसटी नई कर व्यवस्था है जिसमें मौजूदा अप्रत्यक्ष करों को समाहित किया जायेगा।


बहरहाल,जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू कश्मीर का आर्थिक विकास काफी हद तक रेलवे पर निर्भर है । उन्होंने जम्मू-बारामुला रेलवे ट्रैक के उन हिस्सों को जल्द पूरा करने की आवश्यकता पर जोर दिया जो अब तक नहीं जुड़ पाए हैं ।

उमर ने कहा कि जम्मू कश्मीर को शेष देश से आर्थिक रूप से जोड़ा जाना रेलवे पर निर्भर करता है और इस पहल के जरिए इसे समग्र बढ़ावा मिलेगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कटरा रेल लाइन परियोजना के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में जम्मू खंड में पुंछ-राजौरी, डोडा-किश्तवाड़ को जोड़ने तथा कश्मीर घाटी में विभिन्न स्थानों, खासकर तंगमार्ग, पहलगाम और अन्य पर्यटन क्षेत्रों में रेल पटरी के विस्तार की आवश्यकता भी जताई ।

उमर ने कहा कि कश्मीर में रेल सेवाएं एक सपना थीं । उन्होंने लोगों की इस इच्छा को अमली जामा पहनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी जिक्र किया । उन्होंने उधमपुर से कटरा तक रेलवे लाइन के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया और उम्मीद जताई कि विभिन्न स्थानों पर रेल लाइन के विस्तार की राज्य की मांग को इसके व्यापक आर्थिक एवं विकास हितों के लिए पूरा किया जाएगा । उमर ने जम्मू रेलवे स्टेशन को उन्नत करने और देश के मॉडल शहरों जम्मू एवं श्रीनगर में विभिन्न पर्यटन और सौंदर्य परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए भी प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की ।

कटरा तक ट्रेन संपर्क महत्वाकांक्षी कश्मीर रेल लिंक परियोजना का हिस्सा है जो घाटी को शेष देश से जोड़ेगी । कटरा और बनिहाल र्दे के बीच अंतिम लिंक के वर्ष 2018 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है । कुल 25 किलोमीटर लंबी उधमपुर-कटरा लाइन लंबे इंतजार के बाद शुरू हुई है जिसके निर्माण पर 1,132.75 करोड़ रूपये की अनुमानित लागत आई है ।

यह ट्रेन 7 सुरंगों और 30 से अधिक छोटे-बड़े पुलों से गुजरेगी । उधमपुर और कटरा के बीच एक छोटा स्टेशन चक्रख्वाल होगा । ट्रेनें अब सीधे कटरा तक पहुंचेंगी क्योंकि 53 किलोमीटर लंबी जम्मू-उधमपुर रेल लाइन पहले ही परिचालन में आ चुकी है । इससे वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालु सीधे आधार शिविर कटरा पहुंच सकेंगे ।


रेलवे की ऊंची उड़ान

नवभारत टाइम्स | Jul 5, 2014, 01.00AM IST


दिल्ली और आगरा के बीच सेमी हाई स्पीड ट्रेन के सफल परीक्षण के जरिए भारतीय रेलवे ने एक ऊंची उड़ान की शुरुआत की है। बुलेट ट्रेन चलाने की दिशा में इसको एक छोटा कदम माना जा सकता है। वैसे यह स्वप्न अभी बहुत दूर है और इस तक पहुंचने के लिए कठिन रास्तों से गुजरना पड़ेगा। बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका वादा किया है और कहा है कि बड़े शहरों को तेज गति के रेल नेटवर्क से जोड़ऩे के लिए 'हीरक चतुर्भुज' बनाया जाएगा। भारत में बुलेट ट्रेन चलाने की चर्चा नई नहीं है लेकिन इसकी ख्वाहिश पालने के बावजूद इस मामले में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो पाई है।


आज भी देश में सबसे तेज चलने वाली ट्रेन भोपाल शताब्दी की रफ्तार दिल्ली और आगरा के बीच कहीं-कहीं 150 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है। वैसे इसकी औसत गति केवल 86 किलोमीटर प्रति घंटा ही है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो दिल्ली-आगरा के बीच प्रस्तावित ट्रेन सितंबर से 160 किलोमीटर की गति से दौड़ती दिखेगी। हालांकि बुलेट ट्रेन से जुड़ी भारतीय महत्वाकांक्षा को कई लोग संदेह से देखते हैं। उनका सवाल है कि जो भारतीय रेलवे बुनियादी समस्याओं से ही नहीं उबर पा रही, वह क्या हाई स्पीड ट्रेन आराम से चला ले जाएगी?



बुलेट ट्रेन चलाने वाले चीन, जापान, फ्रांस और इटली जैसे मुल्कों ने अपने सामान्य रेल तंत्र को पहले ही काफी मजबूत बना लिया था। भारत इस मामले में उनसे काफी पीछे है। भारतीय रेल अपने नेटवर्क में सालाना औसतन 220 किलोमीटर का ही विस्तार कर पा रही है जबकि चीन में रेलवे का सालाना फैलाव 1,000 किलोमीटर का है। हाई स्पीड ट्रेन के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत पड़ेगी। सामान्य ट्रेनों की एक किलोमीटर पटरी बिछाने पर तीन करोड़ का खर्च आता है, जबकि बुलेट ट्रेन के लिए यह खर्च 8 करोड़ बैठता है। फिर उसके लिए बड़े पैमाने पर बिजली की व्यवस्था भी एक समस्या है। फिर खर्चे और आमदनी का हिसाब देखते हुए क्या यह समझदारी भरा प्रोजेक्ट साबित होगा?


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