दोला और शोभनदेव की लड़ाई में जूट उद्योग गहरे संकट में!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
मां माटी सरकार चाहे औद्योगिक माहौल सुधारने के लिए कुछ भी करें ,उसका कोई असर होनेवाला नहीं है,जब तक कि जंगी ट्रेड यूनियन आंदोलन का बूत बंगाल से बाहर खदेड़ा नहीं जाता।विडंबना है कि इस जंगी ।ट्रेड यूनियन का नजारा हमेशा की तरह सत्ता दल की ोर से पेश किया जा रहा है।परिवर्तन के बाद दो साल बीतने के बावजूद इस परंपरा में कोई फर्क नहीं पड़ा है।अभी दुर्गापुर इस्पात संयंत्र में दोला सेन और शोभन देव की यूनियनों के बीच वर्चस्व की लडड़ाई का मामला सुलझा नहीं कि जूट उद्योग सत्तादल की इन दो यूनियनों की लड़ाई से गहरे संकट में है।ट्रेड यूनियनों की इस लड़ाई का खामियाजा हल्डिया बंदरगाह को भी भुगतना पड़ा है।तो कोलकाता विश्वविद्यालय परिसर में भी दोला और शोभनदेव की लड़ाई जारी रही है।
पिछले 12 जून को कनईदिल्ली में वस्त्र मंत्रालय की स्थाई कमिटी की बैठक में बंगाल के जूटउद्योग के हाल पर विचार किया गया और देश भर में अनाज कीढुलाई के लिए कुल 33 लाख गट्ठर बोरों में से एक तिहाई की आपूर्ति का ठेका बंगाल को देने का निर्णय हो गया। लेकिन जूट उद्योग में उत्पादन के लिए अनिवार्य तृपक्षीय समझौते पर दोला सेन की यूनियन हस्ताक्षर करें या शोभनदेव की यूनियन,यह पेंच फंस गया है। बंगाल की जूट मिलों को मिलने वाली इस बड़े ठेके के हाथों से निकल जाने का खतरा पैदा हो गया है।
हर साल होने वाले इस समझौते पर इसी साल मार्च में हस्ताक्षर हो जाने ते, जो लगातार टलता जा रहा है और जूट उद्योग को अभूतपूर्व उत्पादन संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे यूनियनों की वर्चस्व की लड़ाई के मद्देनजर निजात पाने के आसार दीख नहीं रहे हैं।
अभी 11 जून को जूटमिल मालिकों के संगठन आईजेएमए के साथ बैटक हुई राज्य के श्रम कमिश्नर की। उनकी तरफ से कोई अड़ंगा नहीं है, मामला य़ूनियनों और खासतौर पर दोला और शोभनदेव की तरफ से फंस गया है।इससे पहले राज्य श्रम विभाग की ओर से बुलाई गयी इस सिलसिले में त्रिपक्षीय बैटक बेनतीजा रही।
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