भारत सरकार का कोयला कारोबार समझ से परे है, लेकिन तय है यह मजदूरों के खिलाफ है और आम जनता के खिलाफ भी!
और खासतौर पर हमेशा वंचित कोयलांचलों के भी खिलाफ। जहां काला हीरा के बदले सारे लोग मुनाफा लूट ले जाते हैं, लेकिन आम जनता के हिस्से में कुछ भी नहीं आता। तबाही और अपराधकर्म के यथार्थ के सिवाय।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
एक ओर भारत सरकार को कोल इंडिया को बेचने की तैयारी में है,इसके खिलाफ कर्मचारी यूनियनों ने बेमियादी हड़ताल की धमकी दी है और इस पर 24 जून को कोलकाता में ही फैसला होना है,अफसरो ने पहले ही हड़ताल का ऐलान कर दिया है, तो दूसरी ओर, विदेशों में कोयला खानों पर कोल इंडिया का निवेश बढ़ता ही जा रहा है।जबकि आम उपभोक्ताओं की कमर तोड़ते हुए निजी कंपनियों के लिए कोयला आयात करके उसका बोझ जनता पर डाला जा रहा है। भारत सरकार का कोयला कारोबार समझ से परे है, लेकिन तय है यह मजदूरों के खिलाफ है और आम जनता के खिलाफ भी!और खासतौर पर हमेशा वंचित कोयलांचलों के भी खिलाफ! जहां काला हीरा के बदले सारे लोग मुनाफा लूट ले जाते हैं, लेकिन आम जनता के हिस्से में कुछ भी नहीं आता। तबाही और अपराधकर्म के यथार्थ के सिवाय।
कोल इंडिया का कहना है कि कंपनी की ऑस्ट्रेलिया की 2 माइनिंग कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने की योजना है। ऑस्ट्रेलिया में 2 माइनिंग कंपनियों में बड़ा हिस्सा 20,000-25,000 करोड़ रुपये में खरीदने की योजना है।कोल इंडिया के मुताबिक ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने पर फैसला 2-3 महीने में लिया जाएगा। 2 ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों के लिए ड्यू डिजिलेंस 1 हफ्ते में शुरू करेंगे। दोनों ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों का कुल उत्पादन 250 लाख टन सालाना है।
कोयले के दाम नीचे आने से कोल ब्लॉक्स के प्राइस घट गए हैं। इसे देखते हुए कोल मिनिस्ट्री विदेश में कोल ब्लॉक खरीदने के प्रोसेस को तेज करना चाहती है। कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने ईटी को कहा कि जब वैल्यूएशन कम हो, तब कोल रिसोर्सेज का अधिग्रहण कारोबारी नजरिए से सबसे उचित समय होता है।
भारतीय बाजारों को यूरोपीय बाजारों से भी कोई अच्छे संकेत नहीं मिले हैं। ऐसे में बाजार में सुबह से जारी गिरावट अब तक बरकरार है। ऑटो, पीएसयू, आईटी, पावर, कैपिटल गुड्स, बैंक और ऑयल एंड गैस शेयरों की पिटाई से घरेलू बाजारों पर दबाव बढ़ रहा है। हालांकि मेटल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और रियल्टी शेयरों में खरीदारी से बाजार को सहारा मिल रहा है। दिग्गजों में गिरावट जारी ही है, लेकिन मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में खरीदारी बढ़ रही है।बाजार में कारोबार के इस दौरान एनटीपीसी, ओएनजीसी, डॉ रेड्डीज, कोल इंडिया, टाटा मोटर्स और अल्ट्राटेक सीमेंट जैसे दिग्गज शेयरों में 2-1.5 फीसदी के आसपास कमजोरी देखने को मिल रही है। हालांकि जिंदल स्टील, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, भारती एयरटेल, टाटा स्टील, गेल इंडिया, सेसा गोवा और अंबुजा सीमेंट जैसे दिग्गज शेयर 6-1.1 फीसदी तक उछल गए हैं।
कोयला मंत्रालय ने विदेश अधिग्रहण को लेकर फाइनेंस की किसी तरह की दिक्कत से इनकार किया। कोल इंडिया के पास 42,000 करोड़ रुपए का कैश रिजर्व है।
जायसवाल ने कहा, 'अभी मार्केट डाउन है, इसलिए हमारा मानना है कि विदेश में कोल रिसोर्सेज हासिल करने का यह सबसे सही समय है। इसलिए इस प्रोसेस को तेज करने की जरूरत है। विदेश में कोल एसेट खरीदने के लिए कोल विदेश बनाई गई थी। इसने मोजाम्बिक में कोल ब्लॉक खरीदा है। कोल विदेश अधिग्रहण पर धीमी गति से बढ़ रही है। अभी एसेट वैल्यूएशन 50-60 फीसदी कम हो गया है, इसलिए अभी इसे अधिग्रहण की दिशा में तेजी से बढ़ना चाहिए। इससे देश को लाभ होगा।' हालांकि, जायसवाल ने कहा कि अगर कोल इंडिया इंटरनेशनल कोल एसेट खरीदने में ज्यादा तेजी दिखाती, तो उसे लॉस भी हो सकता था। जायसवाल ने कहा, 'लोगों को लगता है कि चीन सभी कोल एसेट को हासिल कर लेना चाहता है और उनका वैल्यूएशन बहुत बढ़ जाएगा। हालांकि, विदेश में कोल एसेट खरीदने का अभी सबसे सही समय आया है।'
लगातार बढ़ते चालू खाते के घाटे की समस्या ढांचागत है और उससे निपटने के लिए भरत सरकार सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को बलि का बकरा बना रही है।ताजा विनिवेश लक्ष्य को हासिल करने के लिए कोलइंडिया पर सबसे ज्यादा दबाव है तो कारपोरेट लाबिंइंग कोकिंग कोल से समृद्ध झरिया रानीगंज कालफील्ड्स को ही बेचने की तैयारी है पुनर्गठन और विभाजन की आड़ में विशेषज्ञों की राय का इंतजार है।इस लिहाज से कोयलाब्लाकों का आबंटन बहुत छोटा घोटाला है। कोयला आयात का बोझ गरीबों के मत्थे डालना बड़ा घोटाला है। देश में कोलइंडि.या कीहिस्सेदारी बेचकर चालू घाटा पाटना और फिर विदेश में कोल इंडिया के जरिये निवेश का गणित भी समझ से परे है। जैसे कि चालू खाता का गणित जिसके गड़बड़ाने का ठिकरा भी कोयला,लौहअयस्क जैसे खान क्षेत्र में बढ़ते दबाव को बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि चालू खाता पर दबाव की एक हालिया वजह है खनिज कारोबार में बदलाव। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लौह अयस्क के निर्यात में कमी आई है और कोयले के आयात में बढ़ोतरी हुई है।
वर्ष 2000-01 तक चालू खाता घाटे की स्थिति में तो रहा लेकिन यह जीडीपी के दो फीसदी के दायरे में ही रहा और इसके अंतिम तीन वर्षों के दौरान यह जीडीपी के एक फीसदी के दायरे में रहा। वर्ष 2001-02 से 2003-04 के दौरान यह अधिशेष में रहा। आखिरी वर्ष में यह जीडीपी के एक फीसदी तक अधिशेष में रहा। वर्ष 2004-05 में यह एक बार फिर घाटे की स्थिति में लौट गया। पहले यह घाटा कम रहा लेकिन धीरे-धीरे इसमें इजाफा होने लगा। वर्ष 2010-11 तक तो यह जीडीपी के 3 फीसदी के दायरे में रहा लेकिन इसके बाद उसमें तेज इजाफा देखने को मिला।हाल के कुछ सप्ताहों के दौरान रुपये के व्यवहार के चलते देश के चालू खाता घाटे (सीएडी) का बढ़ता आकार लगातार चर्चा में रहा है। वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही और उसके बाद पूरे वर्ष का अनुमान आगामी 28 जून को प्रकाशित किया जाएगा। अनुमान तो यही है कि ये आंकड़े तीसरी तिमाही में लगे झटके के बाद अर्थव्यवस्था को कुछ राहत दिलाएंगे।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सोमवार को कहा कि जिन क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमाएं अपना वांछित उद्देश्य पूरा नहीं कर पा रही हैं उनमें सीमा का संशोधन किया जा सकता है। उन्होंने वित्त मंत्रालय की संसदीय परामर्श समिति की बैठक में कहा कि सरकार एफडीआई की सीमाओं पर विचार कर रही है ताकि यह पता लग सके कि क्या ये सीमाएं वांछित उददेश्य की पूर्ति कर पा रही हैं। अन्यथा इनमें संशोधन किया जा सकता है।
इस बैठक का एजेंडा था चालू खाते का घाटा- राजकोषीय घाटे को कम करने की पहल और असर। भारत में कई क्षेत्रो में 100 प्रतिशत तक एफडीआई की मंजूरी है लेकिन बहु-ब्रांड खुदरा कारोबार, बीमा, रक्षा एवं दूरसंचार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अधिकत विदेशी हिस्सेदारी को एक सीमा तक ही रखने की छूट है। सरकार ज्यादा से ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहती है। उसका प्रयास है कि इस समय चालू खाते के बढ़ते घाटे का वित्तपोषण इस तरह से आने वाले विदेशी धन से हो सके।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने रविवार कहा था कि वह जल्दी ही दूरसंचार एवं रक्षा क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने के लिए मंत्रिमंडल में प्रस्ताव करेंगे क्योंकि सरकार आर्थिक वृद्धि और निवेश बढ़ाना चाहती है। चिदंबरम ने कहा कि भारत के चालू खाते के बढ़ते घाटे की मुख्य वजह यह है कि देश तेल, कोयला और सोने जैसे उत्पादों के लिए भारी मात्रा में आयात पर निर्भर है।
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