क्या अपराधकर्म के विरुद्ध राजनीति की दीवार तोड़ पायेंगे महाश्वेता,शंख घोष, मृणाल सेन और बंगाल के शीर्ष बुद्धिजीवी?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सिंगुर नंदीग्राम आंदोलन के वक्त से बंगाल का सुशील समाज दो फाड़ है, शीर्ष बुद्धिजीवी अलग अलग खेमे में कैद हैं। तब महाश्वेता देवी की अगुवाई में परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवियों ने वामसत्ता के अवसान में निणयक भूमिका अदा की थी। लेकिन वाम समर्थक बुद्धिजीवियों से उनकी दूरी बढ़ती चली गयी। परिवर्तन के बाद राज्य में तमाम घटनाओं के परिप्रेक्ष्य बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया दलबद्धता से प्रभावित होती रही है। हाल की घटनाों के लिलसिले में बंगाल की बुद्धिजीवियों की खोमोशी को लेकर सवाल बी उठने शुरु हो गये हैं। वाम सत्ता के खिलाफ सुशील समाज के रुप में बुद्धिजीवियों का जो नागरिक मंच सक्रिय था, उसके मुकाबले छात्र युवाओं की अराजनीतिक पहल सड़कों पर उतर चुकी है। बारासात सामूहिक बलात्कारकांड के खिलाफ चुनिंदा बुद्धिजीवी ही मौके तक पहुंच सके, जबकि बाकी लोग खामोश रहे हैं। इस लिहाज से कवि शंख घोष की पहल पर महाश्वेता देवी, सौमित्र चटर्जी,मृमाल सेन, नवनीता देवसेन जैसे शीर्ष बुद्धजीवियों के एकसाथ राजपथ पर उतरने का ऐलान महत्वपूर्ण है।क्या अपराधकर्म के विरुद्ध राजनीति की दीवार तोड़ पायेंगे महाश्वेता,शंख घोष, मृणाल सेन और बंगाल के शीर्ष बुद्धिजीवी?
मालूम हो कि आखिरी बार कोलकाता में नंदीग्राम में गोलीकांड के खिलाफ कोलकाता के नागरिक मंच का ेकताबद्ध चेहरा सामने आया था।उस जुलूस में मृमाल सेन भी शामिल थे जो उसके तुरंत बाद नागरिक मंच से अलग हो गये।यह एक स्वतःस्फूर्त महारैली थी . और तदुपरांत एक ऐतिहासिक जनसमावेश। इस महाजुलूस की बात ही कुछ और थी . बिना किसी राजनैतिक पार्टी के आह्वान के, सिर्फ़ बुद्धिजीवियों की पुकार पर, यह आम नागरिकों का स्वतःस्फूर्त समावेश था।किसी को लाया नहीं गया था,किसी को मुफ़्त खिलाया नहीं गया था , किसी को कुछ दिया नहीं गया;बल्कि उनसे कुछ लिया ही गया — नंदीग्राम के संकटग्रस्त — मुसीबतज़दा — किसानों की यथासम्भव मदद के लिए यथासामर्थ्य धनराशि।दुपट्टे फैलाए युवतियां और साड़ी-चादरें फैलाए युवक घूम रहे थे और उपस्थित जनसमुदाय अपने हिसाब से दे रहा था, यथासामर्थ्य दस-बीस-पचास-सौ-पांचसौ रुपए!जुलूस कॉलेज स्क्वायर से शुरू हुआ और धर्मतल्ला पर स्थित पहुंच कर एक बहुत बड़े समावेश में बदल गया।
वह कोलकाता के नागरिक समाज की चेतना की एक ईमानदार अभिव्यक्ति थी, जिसे दलबद्ध राजनीति ने विखंडित करके रख दिया।उस वक्त साथ साथ थे आम जनता के प्रिय लेखक-चित्रकार-गीतकार-फिल्मकार-गायक-नाट्यकर्मी-डॉक्टर-वैज्ञानिक-वकील-विद्यार्थी गण!इस महाजुलूस/जनसमावेश में शामिल थे महाश्वेता देवी,शंख घोष, सांओली मित्रा,मृणाल सेन,शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय,नवनीता देबसेन, जॉय गोस्वामी,अपर्णा सेन, शुभप्रसन्न, जोगेन चौधरी,विभास चक्रवर्ती,मनोज मित्रा,पूर्णदास बउल,सोहाग सेन,गौतम घोष, ऋतुपर्ण घोष,ममता शंकर, कौशिक सेन, अंजन दत्त,संदीप रॉय, पल्लब कीर्तनिया, नचिकेता, रूपम, परम्ब्रत चटर्जी आदि प्रमुख संस्कृतिकर्मी।
कवि शंख घोष के आह्वान पर अगले 21 जून को कालेज स्क्वायर से फिर राज्यभर में महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न और निरंकुश अपराधकर्म के खिलाफ जुलूस निकलेगा ,जिसमें शामिल होने की सहमति दे दी है महाश्वेता देवी,नवनीता देव सेन,सौमित्र चटर्जी, मृमाल सेन, तरुण सान्याल जैसे शीर्ष बुद्द्धिजीवी।क्क्या कोलकाता के राजपथ पर सिविल सोसाइटी का वह अराजनीतिक चेहरा फिर दिखेगा?
विभास चक्रवर्ती ने दावा किया है कि 20 जून को कालेज स्क्वायर में राज्यभर में बारासत से लेकर गेदे तक कीघटनाों के विरुद्ध धरना पर बैठेंगे साहित्यकार और कलाकार।
ফের পথে নামতে চলেছে নাগরিক সমাজ৷ আগামী ২১ তারিখ, শুক্রবার কলেজ স্কোয়্যার থেকে শুরু মিছিলে পা মেলাবেন সৌমিত্র চট্টোপাধ্যায়, মহাশ্বেতা দেবী, মৃণাল সেন, নবনীতা দেবসেন, সব্যসাচী চক্রবর্তী, তরুণ মজুমদার, তরুণ সান্যালের মতো বিশিষ্টজনেরা৷ অসুস্থতার কারণে মিছিলে না-ও থাকতে পারেন কবি শঙ্খ ঘোষ৷
মঙ্গলবার একটি প্রেস বিবৃতিতে তাঁদের তরফে বলা হয়েছে, 'রাজ্যের বিভিন্ন অঞ্চলে প্রায় প্রতিদিনই চলছে বেপরোয়া নারী নিগ্রহ, ধর্ষণ আর হত্যার তাণ্ডব৷ দুষ্কৃতীদের আচরণ দেখে মনে হয় তারা ধরেই নিয়েছে তাদের শাসক করার কেউ নেই, যে কোনও কুকীর্তির অধিকারই তাদের আছে৷ অন্য দিকে, সাধারণ মানুষের দৈনন্দিন জীবনে তৈরি হয়ে উঠেছে এক আতঙ্কের আবহ৷ প্রশাসন যদি এখনও এর প্রতিবিধানের জন্য সর্বাত্মক ব্যবস্থা নিতে না পারে, গোটা রাজ্যজুড়ে তা হলে দেখা দেবে এক ভয়াবহ বিপর্যয়৷ শুধু প্রশাসনিক ব্যবস্থাই নয়, আমরা এ-ও মনে করি যে চারদিকের এই অপশক্তির বিরুদ্ধে আমাদের গড়ে তুলতে হবে প্রবল এবং সাংগঠনিক সামাজিক প্রতিরোধ৷ সমস্ত রকম বিভেদ ভুলে সবাইকে একত্র হয়ে প্রতিবাদ জানাতে হবে আজ, দলীয় রাজনীতির বাইরে এসে স্বতঃস্ফূর্ত যে প্রতিবাদের পথ দেখিয়েছেন কামদুনিরই সাধারণ মানুষজন৷'
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