Tuesday, June 18, 2013

Mangalesh Dabral भीषण बारिश

भीषण बारिश

, बाढ़ और भू-स्खलन ने उत्तराखंड के मध्य हिमालयी भाग को तहस-नहस कर दिया है। जल प्रलय के दर्दनाक दृश्यों को देखकर एक तरफ रुलाई आती है तो दूसरी तरफ नेताओं, प्रॉपर्टी डीलरों, ठेकेदारों और नौकरशाहों के खिलाफ क्रोध की लहर उठती है जो विकास के बुलडोजरों से पहाड़ को रौंदते आये हैं। पिछले वर्ष भी ऐसी ही भयानक बाढ़ आयी थी, लेकिन उस चेतावनी को नही सुना गया। उत्तरकाशी में हमारे प्रिय और वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी का बहुत प्रेम से बनाया गया घर इस बार इस प्रचंड पानी की भेंट चढ़ गया। वह पिछली बाढ़ में खतरे की हालत में आ गया था। अगर समय रहते उपाय किया जाता तो वह बच सकता था। जगूड़ी का घर इसी तरह बहुत साल पहले भी ढहा था। उनका जीवन बार-बार बसने और उजड़ने की कहानी जैसा है। इस समय जगूड़ी की ही एक कविता "पेड़' की पंक्तियां याद आती हैं :
"

नदियां कहीं भी नागरिक नहीं होतीं
और पानी से ज्यादा कठोर और काटने वाला

कोई दूसरा औजार नहीं होता

फिर भी जो इस भयंकर बाढ़ में

अपनी बगलों तक डूबकर खड़ा रहा

वह अतीत के जबड़े से छीनकर

अपने टूटे हाथों को फिर से उगा रहा है

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