Saturday, June 4, 2016

'शान्तता !सुलभा देशपांडे दिवंगत! ज्येष्ठ अभिनेत्री सुलभा देशपांडे यांचं निधन पलाश विश्वास

'शान्तता !सुलभा देशपांडे दिवंगत!

ज्येष्ठ अभिनेत्री सुलभा देशपांडे यांचं निधन

पलाश विश्वास


'शान्तता !सुलभा देशपांडे दिवंगत!नैनीताल के वे दिन याद आ रहे हैं जब हम इस नाटक की खूब चर्चा करते रहे।मराठी रंगमंच की चर्चा अगर विजय तेंदुलकर के बिना असंभव है और वहीं  से समांतर सिनेमा के डा.शरीराम लागू,अमरीश पुरी और नाना पाटेकर जैसे असंख्य कलाकार भारतीय सिनेमा के चमकते दमकते सितारे रहे हैं,तो हमारी सुलभा देशपांडे न सिर्फ मराठी बल्कि भारतीय नारी का आम चेहरा है,जिसकी चमक किसी स्मिता पाटिल या शबाना आजमी से कम नहीं है।


मराठी मीडिया की खबर हैः


मुंबई : ज्येष्ठ अभिनेत्री सुलभा देशपांडे यांचं आज निधन झालं. वृद्धापकाळाने सुलभा देशपांडे यांनी राहत्या घरी त्यांनी अखेरचा श्वास घेतला. त्या 80 वर्षांच्या होत्या.

मराठीसह हिंदी सिनेमांमध्ये आपल्या अभिनयाची छाप उमटवणाऱ्या सुलभा देशपांडे यांच्या निधनामुळे अवघ्या चित्रपटसृष्टीवर शोककळा पसरली आहे.

सुलभा देशपांडे यांच्या अनेक भूमिकांनी प्रेक्षकांच्या मनावर छाप पाडली. शांतता! कोर्ट चालू आहे, चौकट राजा या सिनेमातील त्यांच्या भूमिका विशेष गाजल्या. मागील एक-दोन वर्षात आलेल्या  विहीर, हापूस या सिनेमातही त्यांनी काम केलं होतं.

मराठीच नाही तर आदमी खिलौना है, गुलाम-ए-मुस्तफा, विरासत या हिंदी चित्रपटातील त्यांच्या भूमिका लक्षवेधी होत्या.



संजोग से आज सुबह मैं न जाने क्यों भारतीय फिल्म की पहली सुपर स्टार कानन बाला की कथा ब्यथा से उलझा रहा।कानन बाला का बचपन सिरे से गुमशुदा है और मुकम्मल अभिनेत्री बतौर क्या अभिनय और क्या गायन वे भारतीय फिल्मों के संगीतबद्ध लोक संस्कृति से गूंथे मथे विकास में शामिल गाती,नाचती अभिनेत्रियों  में हैं,जिन्होंने परदे पर अपनी फिल्म मुक्ति में पहली दफा रवींद्र का गीत लाइव गाया और खुद कविगुरु उनके प्रशंसक थे तो वे शांति निकेतन से भी संबद्ध रही हैं।घर घर बर्तन मांजने वाली ,निषिद्ध बस्ती से संगीत और अभिनय यात्रा शुरु करने वाली कानबाला बुनियादी तौर पर एक भारतीय नारी है,जिसकी कोई जाति,वंश इत्यादि नहीं है।


अब खबर आ रही है कि प्रज्ञा की सुलू मौसी और बेहतरीन अदाकारा सुलभा देशपांडे नहीं रहीं तो भारतीय सिनेमा से तेजी से गायब होती जा रही श्री चारसौ बीस की आम औरतों के साथ साथ लोकगीतों के देसी परिदृश्य में असल भारतीय स्त्री का चेहरा सिलसिलेवार ढंग से गायब हो रहा है और समूचा लोक भव्य सेट और रंगों के बहार में गायब है क्योंकि बाजार में श्वेत श्याम पृष्ठभूमि गैरजरुरी है।


इसी श्वेत श्याम लोक भावभूमि में आम औरत का वह गायब जुझारु चेहरा काफी हद तक शबाना और स्मिता का अभिनय का चरमोत्कर्ष रहा  है।लेकिन वह चेहरा किसी सुलभा देशपांडे के बिना अधूरा है।


हम नैनीताल के उन सनहले दिनों में किसी गहरी नीली झील में पैठ सी गयी हरियाली में घाटी में अपने रंगकर्मी साथियों के सान्निध्य में गिरदा जैसे लोक में रसे बसे करिश्मा के मुखातिब उस आम भारतीय औरत का जो चेहरा भारतीय रंगमंच के साथ साथ भारतीय सिनेमा खोजते रहे हैं,वह चेहरा कानन बाला को हो न हो,सुलभा ताई का ही चेहरा है,जिसे हम स्मिता और शबाना जैसी सितारों की चमक दमक में शायद सही तरीक से कभी जान ही नहीं सके हैं।


भारतीय समांतर सिनेमा आंदोलन का चेहरा सुलभा देशपांडे के बिना कितना अधूरा है तो उसे इसतरह समझें कि आप हम उन्हें बाज़ार, भूमिका जैसी भूमिकाओं के लिए जानते हैं लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान यह था कि मराठी में समानांतर रंगमंच को बढ़ाने वाले हरावल दस्ते की वे सदस्य थीं।


यह एक पूरा आन्दोलन था जिसने अनेक पीढ़ियों को तैयार किया।


प्रज्ञा के कहने पर उनकी सबसे अविस्मरणीय भूमिका - 'शान्तता ! कोर्ट चालू आहे' में मिस बेणारे.


बहरहाल मुंबई से खबर यह है कि कैंसर से पीड़ित प्रसिद्ध अभिनेत्री सुलभा देशपांडे का आज निधन हो गया।


वे 80 साल की थीं।

सुलभा देशपांडे मराठी के साथ ही हिंदी फिल्मों में भी काम किया था और आज उनके निधन से फिल्म उद्योग में शोक की लहर फैल गयी।


गौरतलब है कि सुलभा देशपांडे को छोटे परदे पर अंतिम बार 'अस्मिता' सीरियल में देखा गया था।


सुलभा देशपांडे का जन्म 1937 में मुंबई में हुआ था और अपने कैरियर की शुरूआत दबीलदास हाईस्कूल में एक शिक्षिका के रूप में शुरू किया था।


शिक्षिका का काम करते हुए सुलभा देशपांडे ने विजय तेंदुलकर के लिए बच्चों का नाटक लिखा था और उसी दरम्यान उनकी मुलाकात विजय मेहता, अरविंद देशपांडे, श्रीराम लागू, विजय तेंदुलकर जैसे कलाकारों से हुयी।


उन्होंने 1960 के दशक में श्री विजय तेंदुलकर के 'शांतता कोर्ट चालू आहे' नाटक में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।


महाराष्ट्र के लोगो के लिए वे इतनी खास है कि वे यह कहते नहीं हिचकते कि सुलभा देशपांडे ने मराठी सिनेमा, टीवी और नाटक के अलावा हिंदी फिल्मों में भी काम किया।जैसे कि हिंदी फिल्मों में उनका काम मराठी भावभूमि से तड़ीपार है।इसी तरह बाकी देश के लोगों को भी मालूम नहीं है कि वे किस हद तक अपनी जमीन की मराठा मानुष रही हैं कि उनके लिए मराठी मानुष के दिलों दिमागों में उथल पुथल मची हुई है और बाकी भारत के लिए यह किसी फिल्मी कलाकार की नार्मल मौत से ज्यादा बड़ी कोई घटना नहीं है।यही वर्चस्व वाद का वास्तव है जहां बहुलता और विविधता के बावजूद देश को देश बनाने वाली लोक विरासत की जड़ों से हमारे कटे होने का बेकल इंद्रिय नागरिकत्व है संवेदनाहीन।


गौरतलब है कि सुलभा ताई ने अपने पति अरविंद देशपांडे के साथ मिल कर आविष्कार संस्था की स्थापना की।यह युगलबंदी भारतीय रंगमंच के इतिहास में अभूतपूर्व है।


सुलभा ताई नेउन्होंने अरविंद देसाई की अजीब दास्तां, भूमिका, चौकट राजा, जैत रे जैत और आदमी खिलौना है जैसी फिल्मों में काम किया था।


अरसा हो गया अरविंद देसाई को गये और अब उनके पीछे पीछे सुलभा ताई भी चल दीं।


'शान्तता !सुलभा देशपांडे दिवंगत!



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सुलभा देशपांडे

अभिनेत्री

सुलभा देशपांडे हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। विकिपीडिया

जन्म: 1937, मुम्बई

जीवनसाथी: अरविंद देशपांडे (विवा. ?–1987)

पुरस्कार: संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार - रंगमंच - अभिनय (भाषायी आधार पर) - मराठी

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