अवैध खनन रोकने के लिए कानून बनाने की पहल अभीतक नहीं!
कोयलांचल के गरीब लोगों की बेबसी का फायदा उठाते हुए मौत का यह कारोबार चलाते हैं माफिया और तस्कर। वर्चस्व कायम रखने के लिए उन्हींके मध्य फिर खूनी जंग होती रहती है और कोयलांचल में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह जाती। जिससे इन्ही माफिया और तस्करों का मुक्तांचल बन गया है कोयलांचल।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
केंद्र सरकार ने अवैध खनन के मामेले को राज्यों की कानून और व्यवस्था का मामला करार दिया है और अवैध खनन रोकने के लिए राज्य सरकारों को कानून बनाने के निर्देश दिये हैं।राज्य सरकारों से खनिजों के अवैध खनन, भंडारण तथा परिवहन को लेकर एमएमडीआर (खान तथा खनिज विकास तथा नियमन) कानून, 1957 की धारा-23 सी के तहत नियम बनाने का आग्रह किया गया है। जिस तरह पोंजी योजना के मार्फत चिटफंड कानून से निपटने के लिए कानूनी हधियार न केंद्र और राज्य सरकारों के पास है, ठीक उसी तरह अवैध खनन रोकने में केंद्र और राज्यों के हाथ बंधे हुए हैं। केंद्र सरकार ने राज्यों से अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिये नियम तैयार करने को कहा है। साथ ही प्रभावी नतीजा सुनिश्चित करने के लिये संबंधित विभागों के कामकाज में सुधार करने को कहा है।
सरकारी क्षेत्र की कंपनी होने की वजह से गरीब की जोरी है कोलइंडिया, जो खुली लूट के लिए उपलब्ध है। चालू कोयलाखानों को असुरक्षित घोषित करवाकर वहां से बेशकीमती कोकिंग कोयला निकालना तो रानीगंज झरिया कोलफील्ड्स के माफिया और तस्करों के लिए बांए हाथ का खेल है।अवैध खनन रोकने के लिए बंगाल और झारखंड सरकारों ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। जबकि कोययांचल में विकास न होने की वजह से वहां के गरीब लोगों के लिए अवैध खनन रोजगार का जरिया बना हुआ है। आये दिन दुर्धटनाएं होती रहती हैं। मामला ठंडा पड़ते न पड़ते फिर उसी अवैध, असुरक्षित खान में लोग कोयला निकालते हुए दिखा सकते हैं।
कोयलांचल के गरीब लोगों की बेबसी का फायदा उठाते हुए मौत का यह कारोबार चलाते हैं माफिया और तस्कर। वर्चस्व कायम रखने के लिए उन्हींके मध्य फिर खूनी जंग होती रहती है और कोयलांचल में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह जाती। जिससे इन्ही माफिया और तस्करों का मुक्तांचल बन गया है कोयलांचल।
केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में राजस्थान सरकार द्वारा किये गये काम का जिक्र करते हुए एक पत्र भी राज्यों को भेजा है।गौरतलब है कि राजस्थान सरकार ने अवैध खनन पर अंकुश लगाने के लिये अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में 450 कर्मियों का पुलिस बल तैनात किया है। ज्ञात रहे, एमएमडीआर कानून की धारा 23-सी के तहत राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन तथा भंडारण पर अंकुश लगाने के लिये कानून बनाने का अधिकार है।
अगर सीएजी की रिपोर्ट को ही आधार मानें तो अवैध खनन के कारण पिछले पांच साल में मध्य प्रदेश में करीब 1,500 करोड़ रु. और छत्तीसगढ़ में 700 करोड़ रु.की चपत लगी है। गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में सालाना 600 करोड़ रु. की चपत लगी है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोडा के खिलाफ भी अवैध खनन के आरोप लगे हैं।देश के प्रमुख खनिज उत्पादक राज्यों में शामिल है। यहां मुख्य रूप से कोयला, लौह अयस्क, काइनाइट, सोना, चांदी, बॉक्साइट और फेल्सपार का खनन होता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2009-10 में यहां 12,036.78 करोड़ रु. के खनिज और 40.14 करोड़ रु. के उपखजिनों का खनन हुआ। लेकिन यहां अवैध खनन की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा खुद भी अवैध खनन के मामलों में आरोपी हैं।झारखंड में अवैध खनन के ढोल की पोल खुद सरकारी दस्तावेज खोलते हैं। सन् 2008 में झारखंड के खनन विभाग की एक जारी एक रिपोर्ट के अनुसार इन अवैध खनन के कारण उस साल तक़रीबन 106 करोड़ का नुक्सान उठाना पड़ा। लेकिन अगर राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव की मानें तो तस्वीर इस से कहीं अधिक है। झारखंड में हर साल तकरीबन 7,20,000 टन कोयले का अवैध खनन होता है जिसकी वजह से कोयला कंपनी और सरकार को 600 करोड़ रु. के राजस्व का नुक्सान उठाना पड़ता है। झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार सिंह के मुताबिक, ''यह सब बिना प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत के संभव नहीं है. हमारे लोग माफिया लोगों से मिले हुए हैं।'' इसमें 10,000 के करीब छोटे-बड़े माफिया शामिल है।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की विभिन्न रिपोर्टों से निकले आंकड़ों के मुताबिक हिंदी पट्टी के पांच राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल के दौरान सीधे तौर पर 3,200 करोड़ रु. के खनन राजस्व की हानि पाई गई है। खनन की दुनिया में एक चालू फॉर्मूला है कि अगर कहीं एक रुपए की खनन राजस्व हानि दिखती है, तो वहां कम से कम पांच रुपए का अवैध खनन होता है। इस हिसाब से पांच राज्यों में अवैध खनन का आकार कम से कम 15,000 करोड़ रुपए का है। केंद्रीय खनन मंत्रालय के मुताबिक पांच राज्यों में वैध खनन कारोबार का आंकड़ा करीब 48,000 करोड़ रु. सालाना है। जबकि बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के दो राज्यों- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यही आंकड़ा 35,000 करोड़ रु. तक पहुंचता है। वैध कारोबार के आंकड़े इशारा करते हैं कि हिंदी पट्टी अवैध खनन के लिए कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से ज्यादा जरखेज जमीन है।
गुजरात सरकार के कृषि एवं जलसंसाधन मंत्री बाबूभाई बोखीरिया को स्थानीय अदालत ने 54 करोड़ की खनिज चोरी के आरोप में तीन साल की सजा सुनाई है। उनके तीन साथी कांग्रेस के पूर्व सांसद भरत ओडेदरा, लक्षमण ओडेदरा व माफिया भीमा दूला भी इस मामले में दोषी पाए गए हैं। अवैध खनन के 7 साल पुराने मामले में बोखीरिया को यह सजा मिली है, अदालत ने चारों आरोपियों को ऊपरी अदालत में अपील के लिए 7 दिन की सशर्त जमानत दी है।
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