Sunday, August 31, 2025
हमने आग को चूम लिया
“इमरोज़ बंबई चले गए। गुरुदत्त ने नौकरी, कमरा, सब पेश किया, पर नहीं जानती–तकदीर ने इमरोज़ से कुछ हौले से क्या कहा, कि ठीक तीन दिन के बाद इमरोज़ ने मुझे बंबई से फ़ोन किया–मैं दिल्ली आ रहा हूँ –
यह तकदीर का कोई रहस्य था, जो उसने अपनी उंगलियों से खोल दिया, और मैं जान पाई कि बीस सालों से जो एक साया–सा दिखाई देता रहा–वह इमरोज़ का साया था–जाने किस जन्म का, और अब एक हकीकत बनकर–धरती पर उतर आया है–
इमरोज़ जिंदगी में आए–एक हकीकत बन कर, और साहिर से वह रिश्ता हमेशा बना रहा–उसकी आखिरी सांस तक–
“याद आता है–बरसों पहले एक बार जब साहिर दिल्ली आए, मुझे और इमरोज़ को अपने पास बुलाया–वहाँ, जिस होटल में वे ठहरे थे। हम लोग करीब दो घण्टे वहाँ रहे। साहिर ने विस्की मंगवाई थी–और मेज़ पर तीन गिलास पड़े थे, जब रात गहरी होने लगी, तो हम लोग वापस आए थे। फिर रात करीब आधी होने लगी थी–जब मुझे साहिर का फोन आया–अब भी तीन गिलास मेज़ पर पड़े हैं, और मैं तीनों गिलासों से बारी–बारी से पी रहा हूँ, और लिख रहा हूँ–मेरे साथी ख़ाली जाम–
यह सिर्फ कुदरत जानती है कि कोई धागा था, पता नहीं किस जन्म का, जो इस जन्म में भी–हम तीनों के गिर्द लिपटा रहा–
1990 में जब जालंधर दूरदर्शन ने मुझ पर फिल्म बनाई, तो मुझे अपने–साहिर से और इमरोज़ से जो रिश्ता था, उसका कोई जिक्र करने को कहा। उस वक्त मैंने कहा–
दुनिया में रिश्ता एक ही होता है–तड़प का, विरह की हिचकी का, और शहनाई का, जो विरह की हिचकी में भी सुनाई देती है–यही रिश्ता साहिर से भी था, इमरोज़ से भी है – यह साहिर की मुहब्बत थी, जब लिखा –
“फिर तुम्हें याद किया, हमने आग को चूम लिया
इश्क ज़हर का प्याला सही, मैने एक घूंट फिर से मांग लिया,
और इमरोज़ की सूरत में–अहसास की जो इन्तहा देखी, एक दीवानगी का आलम था, जब कहा–
कलम ने आज गीतों का काफ़िया तोड़ दिया
मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आया है।
उठो! अपनी गागर–पानी की कटोरी दे दो
मैं राहों के हादसे, उस पानी से धो लूंगी–
राहों के हादसे – आकाश गंगा का पानी ही धो सकता है–एक दर्द था–जिसने मन की धरती को ज़रखेज़ किया और एक दीवानगी–उसकी बीज बन गई मन की हरियाली बन गई.
-अमृता प्रीतम(अक्षरों के साये; राजपाल एंड संज)
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