Wednesday, February 25, 2015

स्वाइन फ्लू का बढ़ते शिकंजे के साथ मनसेंटो बहार,दूसरी हरित क्रांति और भुला दिया गया भूमि सुधार ढेर सारी नदियों के पानी का जादू : एक के नहीं , दो के नहीं , लाखों -लाखों कोटि -कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा और उसके खिलाफ सत्ता वर्चस्व के अश्वमेधी घोड़े और म

स्वाइन फ्लू का बढ़ते शिकंजे के साथ मनसेंटो बहार,दूसरी हरित क्रांति और भुला दिया गया भूमि सुधार

ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :

एक के नहीं ,

दो के नहीं ,

लाखों -लाखों कोटि -कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा

और उसके खिलाफ सत्ता वर्चस्व के अश्वमेधी घोड़े और मुक्त बाजार के सांढ़

नित्यानंद गायेन ने लिखा है कि गौर करेंःइस कविता को पढ़ते हुए देश की वर्तमान सरकार की किसानों के प्रति तानाशाही व्यवहार को सोचिये , हमें किसके साथ खड़ा होना है यह भी तय करना होगा हमें ।

पलाश विश्वास

स्वाइन फ़्लू की दहशत

http://bbc.in/18jsihL

'स्वाइन फ़्लू की दहशत http://bbc.in/18jsihL'


बाबा की कविता और स्वाइन फ्लू से फैलते अंधियारा और दूसरी हरित क्रांति से देश में तमाम बीमारियों और त्रासदियों और आपदाओं की गगन घटा घहरानी के मध्य बजट ते जरिये क्षत्रपों को साधने,तोड़ने ,फतह करने के अश्वमेध अभियान से जब सारे खेत,सारी फसलें,सारी कायनात पूंजी के हवाले हैं,तो जिस ब्रह्मराक्षस की दीक्षा से हम अग्निपाखी जी रहे हैं,उन पूज्यवर गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी की ताजा सूक्ति से आज का रोजनामचा शुरु कर रहा हूंः

मन की बात

भूमि ग्रहण अध्यादेश के अनुसार जमीन उनकी, जिनके पास धनबल है या बाहुबल. बाकी लोगों के लिए देश की नदियों में पर्याप्त पानी है. जो भलेही जीने के काम का न भी हो, मरने के के लिए कम नहीं है.

सुबह लिखा था,जरुरी काम से कोलकाता निकलना है थोड़ी देर में दो तीन बजे तक लौटकर खा पीकर न जाने कब बैठना होगा कंप्यूटर पर।तब तक आप भी लिखें अपनी मन की बात,प्रसारण करने के लिए एक डीएक्टीवेटेड बंदा आपका दोस्त हो न हो,दुश्मन भी नहीं है।


लौटकर,टीवी उभी देखदाखकर फिर पीसी के मुखातिब हूं,मन की कोई बात फुसफुसाकर भी बोल नहीं रहा।ऐसा गजब सन्नाटा बट्टा दो है।


जनता ससुरी हमेशा की तरह खामोश जुती है हल बैल भैस से।

राजनीति उसे हांके जा रही है और सारी फसल उसी राजनीति की।

बाकी किसान वास्ते वही खुदकशी और बेदखली का विकल्प।

होरी को तो मरना ही है आखेर।

गोदान का सिलसिला भी जारी रहना है।


सुबह से एक खास टीवी चैनल पर लैंड वार फोकस था।

हमारे सबसे प्रिय एंकर बारी बारी से सबके मुखौटे खोल रहे थे।

पता चल रहा था कि राजस्व मंत्रियों की बैठक में पहले ही राजनीतिक सहमति हो चुकी है कारपोरेट पूंजी के खातिर विकास के बहाने जमीन अधिग्रहण की कारपोरेट की असुविधा वाली शर्तों को लेकर,सहमति की अनिवार्य सहमति को खारिज करने के मुद्दे पर।


किस्सा यह कुलो है कि मोदी सरकार एक मुश्त नाना किस्म के अध्यादेश जारी करके देशी विदेशी पूंजी की आस्था हासिल करती रही और विकास के हीरक एफडीआई निजीकरण माडल पेश करती रही,सुधार दमादम लागू करती रही।

देश अमेरिका बनता रहा और गुजरात माडले के अश्वमेदी घोड़े दौड़ते रहे।फतह ही फतह।


बाकी राजनीति इस कारपोरेट राज के आगे खिसियानी बिल्ली कि सुधार और विकास केखिलाफ,कारपोरेटपंडिंग और कारपोरेट लाबिइंग के खिलाफ बोले तो सत्ता में भागीदारी की कौन कहें ,राजनीति ही खत्म।


अब मजा देखिये कि जब जंतर मंतर पर हल्ला है,बाकी देश में भी हल्ला है तो भाजपा सरकार कह रही है कि खामी तो कांग्रेसी संशोधन में ही है।उसे दूर करने का तकाजा है और सहमति है।


मजा यह है कि सहमति है और बहुमत की बंदरघुड़की दी जा रही है।

डाउकैमिकल्स के वकील एक नहीं कई हैं,जिन्हें बजट बनाने की आदत रही है।

एको सुर में अलग अलग रंग में अलग अलग मुहावरे में वे विकास,गरीबी उन्मूलन,समरसता और सहमरमिता पादते हुए देश बेचने का साझा नक्शा तैयार करने में लगे हैं।

चिदंबरम बाबू अब स्तंभन करने लगे हैं।

वे मोदी की ताकत लोकसभा में हरक्युलियन कहिके आवाजें दे रहे हैं कि मत चूको चौहान।

चूकने का सवाल ही नहीं उठता है,सज्जनों और देवियों।नाटक के सीन पदलते हैं,पात्र बदलते हैं,लेकिन नाटक अंत में वहींच होता है,जो उसका मकसद है।

कारपोरेट का कोई विरोध कर नहीं सकता।

सभी लोग सभी पक्ष कारपोरेट के पक्ष में है।

जाहिर सी बात है कि किसानों के हित कारपोरेटहितं के खिलाफ है।

कारपोरेट पक्ष किसानों का पक्ष हो नहीं सकता।

कुल तमाशा कारपोरेट पक्ष अपने को किसानों का पक्ष साबित करने को बेताब है।

कुलो किस्सा यहीच।

कारपोरेट के पास पूंजी है,जिससे राजनीति और सत्ता का भोग है तो किसान ससुरे वोट बैंक है।

आखिर या होरी है या फिर धनिया या कुलो गोबर हैं।

देश अमेरिका भयो।

गुजरात माडल दसों दिशाओं में।

हर शख्स यहां मौत का सौदागर।

सीमेंट का जंगल दसों दिशाओं में लेकिन खेती से जुड़े लोग कोट पैंट सूट बूट पहिनकर लंडन से लौटे साहिब बने रहने के बावजूद वही बुरबके बुरबकै है,जिसका दिल नारेबाजी, शगूफै, ऐलान, बजट तो धर्म और प्रवचन से भी हांका जा सकता है।

महाजन के खाते बही में टीप छाप का सिलसिला अभी जारी है।

देहात की दुनिया फिर वही मदर इंडिया है जो जुल्म केखिलाफ अपनी औलाद को गोली तो दाग सकती है,गीत सुहावने गा गाकर जहर जिंदगी पी सकती है,लेकिन जुल्मोसितम के खिलाफ लामबंद हो नहीं सकती है।खुदकशी करेगा किसान।बागी नहीं किसान।किसानों की बगावत का कोई डर नइखै।

बूझो पहेलियां,भूज सको तो

सहमति है ,लेकिन सहमति नहीं है।

सहमति की गुहार है।

लेकिन स्रवदलीय बैठक नहीं है।

संघ परिवार नाराज है।

स्वदेशी मंच नाराज है।

भाजपा नाराज है।

संसद में अटके भटके हैं अध्यादेश सकल।

फिरभी सरकार बिजनेस फ्रेंडली है।

फिरभी केसरिया में रंग सारे एकाकार है और सेल्फी से सोशल मीडिया लबालब है।

रेबड़ियां बांटी जा रही हैं।रे

बड़ियां बटोरी जा रही हैं।

सरकार अपनी रणनीति पर कायम है।

मनुस्मृति राज बहाल है.हिंदुत्व अश्वमेध जारी है।

धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का जिहाद जारी है।

राष्ट्रवाद राष्ट्रद्रोह एकाकार है।

देश नीलामी पर है।

नस्ली कत्लेआम है।

दाना दाना जहर है।

हवाओं पानियों में जहर है।

काहे को झुकने लगी कारपोरेट केसरिया सरकार।


BBC Hindi

Just now ·

दिल्ली में बिजली और पानी के बारे में आम आदमी पार्टी की बड़ी घोषणा.

'दिल्ली में बिजली और पानी के बारे में आम आदमी पार्टी की बड़ी घोषणा.'

बिजली पानी से जनता खुश।

स्मार्ट महानगरी जलवे से लोकतंत्र का कायकल्प।

सीमेंट का जंगल विकास है तो हरियाली का क्या काम है।

संशोधनों पर जोड़ तोड़ है कि वोटबैंक सध जाय हुजूर मेरे बाप,फिर किसानों का कत्लेआम जायज है।समां यही बांधा है।

Headlines Today's photo.

Headlines Today's photo.

Headlines Today added 2 new photos.

How Bharatiya Janata Party (BJP) cornered 69% of political donations in 2013-14

Read more at http://bit.ly/1DolHN8 | Via Mail Today



जिस चैनल पर सुबह से भूमि पर महाभारत था,वहीं अब फिर युवराज की ताजपोशी सबसे बड़ी खबर है।

कांग्रेस का ईश्वर बनकर युवराज देश और कायनात बचा लेंगे,यह क्रिया प्रतिक्रिया क्रियाकर्म साथेसाथ है।

कोई माई का लाल लेकिन कह नहीं रहा है कि जो जोते खेत ,खेत उसीका।

उस खेत से उसकी मर्जी के बिना बेदखली का हर कानून नाजायज है।

सब राजनीतिक और तकनीकी दलीलें पादै हैं।


कोलकाता में अपनी दीदी ने स्वाइन फ्लू मच्छरों के जिम्मे कर दिया है।लोग उनकी मजाक उड़ा रहे हैं।

मेडिकैली करेक्ट जो मंतव्य है वह भी आखिर पोलिटिकैली करेक्ट है।

भोपाल गैस त्रासदी से आमद विकलांगता अब इस देश की सेहत है और पहाड़ों में भी मधुमेह का कहर है।

हवा पानी की क्या कहिये,हरित क्रांति है,दूसर हरित क्रांति है,मनसेंटो है और भोपाल त्रासदियों की फिर तैयारी है,देश परमाणु भट्टी पर है।


हर रोग अब स्वाइन फ्लू है।

मौसम बदलने पर जो हरारत होती रही है हजारों सालों से अब वह कयामत है।


कयामत के कारोबारी डाउ कैमिक्लस के बजट से हमें इम्मयून बनाकर आत्मध्वंसी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था में ऐसे इनक्लूड कर रहे हैं कि सुबह सवेरे गो मूत्र पान निदान है और हनुमान चालीसा यंत्र बेलजियम कांच रक्षा कवच है।

गीता महोत्सव में सपरिवार शामिल होकर सनातन हिंदुत्व का बजरंगी बन जाइये।

तंत्र मंत्र यंत्र से ही जान बचेगी अब।

खेत और फसलों से बेदखली का अंजाम लेकिन दाना दाना रेडियोएक्टिव पोलोनियम 210 है।


फसल

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एक के नहीं ,

दो के नहीं ,

ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :

एक के नहीं ,

दो के नहीं ,

लाखों -लाखों कोटि -कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :

एक की नहीं ,

दो की नहीं ,

हजार -हजार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म :

फसल क्या है ?

और तो कुछ नहीं है वह

नदियों के पानी का जादू है वह

हाथों के स्पर्श की महिमा है

भूरी -काली -संदली मिट्टी का गुण धर्म है

रूपांतरण है सूरज की किरणों का

सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का !

- नागार्जुन

सुबह सुबह बाबा की इस कविता को पोस्ट करते हुए हिंदी के  युवातर कवि,हमारे भाई  नित्यानंद गायेन ने लिखा है कि गौर करेंःइस कविता को पढ़ते हुए देश की वर्तमान सरकार की किसानों के प्रति तानाशाही व्यवहार को सोचिये , हमें किसके साथ खड़ा होना है यह भी तय करना होगा हमें ।

गौर करें कि इस पागल दौड़ के खिलाफ हिमांशु कुमार जी का मंतव्य यह हैः

सरकार की मदद के बिना कोई भी पूंजीपति दूसरों की ज़मीन, खदान हड़प कर या मेहनत का फल लूटे बिना अमीर नहीं बन सकता .

दुनिया भर की सरकारों का यही काम है देश की संपत्ति पर कब्ज़ा करने और मजदूर का हक मारने में अमीरों की कैसे मदद करी जाय ?

भारत की सरकार भी यही कर रही है .

गरीब आदमी खुद मेहनत करता है और अपना पेट भर लेता है .

अम्बानी और अदानी बिना सरकार की मदद के एक दिन भी अमीर बने रह कर दिखाएँ ज़रा ?

और यह सारी लूट देश के विकास के नाम पर करी जाती है .

मज़े की बात यह है की हम सब इस बेवकूफी के जुलूस में शामिल भी हो जाते हैं .


केसरिया करपोरेट राज पर एक रपट यह भी है,जिसपर जरुर गौर करेंः

संघ वटवृक्ष के बीज डॉ. हेडगेवार

डॉ. मनमोहन वैद्य

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम आज सर्वत्र चर्चा में है. संघ कार्य का बढ़ता व्याप देख कर संघ विचार के विरोधक चिंतित होकर संघ का नाम बार-बार उछाल रहे हैं. अपनी सारी शक्ति और युक्ति लगाकर संघ विचार का विरोध करने के बावजूद यह राष्ट्रीय शक्ति क्षीण होने के बजाय बढ़ रही है, यह उनकी चिंता और उद्वेग का कारण है. दूसरी ओर राष्ट्रहित में सोचने वाली सज्जन शक्ति संघ का बढ़ता प्रभाव एवं व्याप देख कर भारत के भविष्य के बारे में अधिक आश्वस्त होकर संघ के साथ या उसके सहयोग से किसी ना किसी सामाजिक कार्य में सक्रिय होने के लिए उत्सुक हैं, यह देखने में आ रहा है. संघ की वेबसाइट पर ही संघ से जुड़ने की उत्सुकता जताने वाले युवकों की संख्या 2012 में प्रतिमास 1000 थी. यही संख्या प्रतिमास 2013 में 2500 और 2014 में 9000 थी. इस से ही संघ के बढ़ते समर्थन का अंदाज लगाया जा सकता है. संघ की इस बढती शक्ति का कारण शाश्वत सत्य पर आधारित संघ का शुद्ध राष्ट्रीय विचार एवं इसके लिए तन–मन–धन पूर्वक कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की अखंड श्रृंखला है

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संघ का यह विशाल वटवृक्ष एक तरफ नई आकाशीय ऊंचाइयां छूता दिखता है, वहीँ उसकी अनेक जटाएं धरती में जाकर इस विशाल विस्तार के लिए रस पोषण करने हेतु नई-नई जमीन तलाश रही हैं, तैयार कर रही हैं. इस सुदृढ़, विस्तृत और विशाल वटवृक्ष का बीज कितना पुष्ट एवं शुद्ध होगा इसकी कल्पना से ही मन रोमांचित हो उठता है. इस संघ वृक्ष के बीज संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार, जिनके जन्म को इस वर्ष प्रतिपदा पर 125 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं. कैसा था यह बीज?

नागपुर में वर्ष प्रतिपदा के पावन दिन 1 अप्रैल, 1889 को जन्मे केशव हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे. आजादी के आन्दोलन की आहट भी मध्य प्रान्त के नागपुर में सुनाई नहीं दी थी और केशव के घर में राजकीय आन्दोलन की ऐसी कोई परंपरा भी नहीं थी, तब भी शिशु केशव के मन में अपने देश को गुलाम बनाने वाले अंग्रेज के बारे में गुस्सा तथा स्वतंत्र होने की अदम्य इच्छा थी, ऐसा उनके बचपन के अनेक प्रसंगों से ध्यान में आता है. रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के हीरक महोत्सव के निमित्त विद्यालय में बांटी मिठाई को केशव द्वारा (उम्र 8 साल) कूड़े में फेंक देना या जॉर्ज पंचम के भारत आगमन पर सरकारी भवनों पर की गई रोशनी और आतिशबाजी देखने जाने के लिए केशव (उम्र 9 साल) का मना करना ऐसे कई उदहारण हैं.

बंग-भंग विरोधी आन्दोलन का दमन करने हेतु वन्देमातरम के प्रकट उद्घोष करने पर लगी पाबन्दी करने वाले रिस्ले सर्क्युलर की धज्जियाँ उड़ाते हुए 1907 में विद्यालय निरीक्षक के स्वागत में प्रत्येक कक्षा में वन्देमातरम का उद्घोष करवा कर, उनका स्वागत करने की योजना केशव की ही थी. इसके माध्यम से अपनी निर्भयता, देशभक्ति तथा संगठन कुशलता का परिचय केशव ने सबको कराया. वैद्यकीय शिक्षा की सुविधा मुंबई में होते हुए भी क्रन्तिकारी आंदोलन का प्रमुख केंद्र होने के कारण कोलकाता जाकर वैद्यकीय शिक्षा प्राप्त करने का उन्होंने निर्णय लिया और शीघ्र ही क्रान्तिकारी आन्दोलन की शीर्ष संस्था अनुशीलन समिति के अत्यंत अंतर्गत मंडली में उन्होंने अपना स्थान पा लिया. 1916 में नागपुर वापिस आने पर घर की आर्थिक दुरावस्था होते हुए भी, डॉक्टर बनने के बाद अपना व्यवसाय या व्यक्तिगत जीवन – विवाह आदि करने का विचार त्याग कर पूर्ण शक्ति के साथ स्वतंत्रता आन्दोलन में उन्होंने अपने आप को झोंक दिया.

1920 में नागपुर में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन की व्यवस्था के प्रबंधन की जिम्मेदारी डॉक्टर जी के पास थी. इस हेतु उन्होंने 1200 स्वयंसेवकों की भरती की थी. कांग्रेस की प्रस्ताव समिति के सामने उन्होंने दो प्रस्ताव रखे थे. भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता और विश्व को पूँजीवाद के चंगुल से मुक्त करना, यह कांग्रेस का लक्ष्य होना चाहिए. पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव कांग्रेस ने संघ स्थापना के बाद 1930 में स्वीकार कर पारित किया, इसलिए डॉक्टर जी ने संघ की सभी शाखाओं पर कांग्रेस का अभिनन्दन करने का कार्यक्रम करने के लिए सूचना दी थी. इससे डॉक्टर जी की दूरगामी एवं विश्वव्यापी दृष्टि का परिचय होता है.

व्यक्तिगत मतभिन्नता होने पर भी साम्राज्य विरोधी आन्दोलन में सभी ने साथ रहना चाहिए. और यह आन्दोलन कमजोर नहीं होने देना चाहिए ऐसा वे सोचते थे. इस सोच के कारण ही खिलाफत आन्दोलन को कांग्रेस का समर्थन देने की महात्मा गाँधी जी की घोषणा का विरोध होने के बावजूद उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर प्रकट नहीं की तथा गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन में वे बेहिचक सहभागी हुए.

स्वतंत्रता प्राप्त करना किसी भी समाज के लिए अत्यंत आवश्यक एवं स्वाभिमान का विषय है किन्तु वह चिरस्थायी रहे तथा समाज आने वाले सभी संकटों का सफलतापूर्वक सामना कर सके, इसलिए राष्ट्रीय गुणों से युक्त और सम्पूर्ण दोषमुक्त, विजय की आकांक्षा तथा विश्वास रख कर पुरुषार्थ करने वाला, स्वाभिमानी, सुसंगठित समाज का निर्माण करना अधिक आवश्यक एवं मूलभूत कार्य है. यह सोच कर डॉक्टर जी ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. प्रखर ध्येयनिष्ठा, असीम आत्मीयता और अपने आचरण के उदाहरण से युवकों को जोड़ कर उन्हें गढ़ने का कार्य शाखा के माध्यम से शुरू हुआ. शक्ति की उपासना, सामूहिकता, अनुशासन, देशभक्ति, राष्ट्रगौरव तथा सम्पूर्ण समाज के लिए आत्मीयता और समाज के लिए निःस्वार्थ भाव से त्याग करने की प्रेरणा इन गुणों के निर्माण हेतु अनेक कार्यक्रमों की योजना शाखा नामक अमोघ तंत्र में विकसित होती गयी. सारे भारत में प्रवास करते हुए अथक परिश्रम से केवल 15 वर्ष में ही आसेतु हिमालय, सम्पूर्ण भारत में संघ कार्य का विस्तार करने में वे सफल हुए.

अपनी प्राचीन संस्कृति एवं परम्पराओं के प्रति अपार श्रद्धा तथा विश्वास रखते हुए भी आवश्यक सामूहिक गुणों की निर्मिती हेतु आधुनिक साधनों का उपयोग करने में उन्हें जरा सी भी हिचक नहीं थी. अपने आप को पीछे रखकर अपने सहयोगियों को आगे करना, सारा श्रेय उन्हें देने की उनकी संगठन शैली के कारण ही संघ कार्य की नींव मजबूत बनी.

संघ कार्य आरंभ होने के बाद भी स्वातंत्र्य प्राप्ति के लिए समाज में चलने वाले तत्कालीन सभी आंदोलनों के साथ न केवल उनका संपर्क था, बल्कि उसमें समय-समय पर वे व्यक्तिगत तौर पर स्वयंसेवकों के साथ सहभागी भी होते थे. 1930 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू हुए सविनय कानून भंग आन्दोलन में सहभागी होने के लिए उन्होंने विदर्भ में जंगल सत्याग्रह में व्यक्तिगत तौर पर स्वयंसेवकों के साथ भाग लिया तथा 9 मास का कारावास भी सहन किया. इस समय भी व्यक्ति निर्माण एवं समाज संगठन का नित्य कार्य अविरत चलता रहे, इस हेतु उन्होंने अपने मित्र एवं सहकारी डॉ. परांजपे को सरसंघचालक पद का दायित्व सौंपा था तथा संघ शाखाओं पर प्रवास करने हेतु कार्यकर्ताओं की योजना भी की थी. उस समय समाज कांग्रेस–क्रान्तिकारी, तिलकवादी–गाँधीवादी, कांग्रेस–हिन्दु महासभा ऐसे द्वंद्वों में बंटा हुआ था. डॉक्टर जी इस द्वंद्व में ना फंस कर, सभी से समान नजदीकी रखते हुए कुशल नाविक की तरह संघ की नाव को चला रहे थे.

संघ को समाज में एक संगठन न बनने देने की विशेष सावधानी रखते हुए उन्होंने संघ को सम्पूर्ण समाज का संगठन के नाते ही विकसित किया. संघ कार्य को सम्पूर्ण स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनाते हुए उन्होंने बाहर से आर्थिक सहायता लेने की परंपरा नहीं रखी. संघ के घटक, स्वयंसेवक ही कार्य के लिए आवश्यक सभी धन, समय, परिश्रम, त्याग देने हेतु तत्पर हो, इस हेतु गुरु दक्षिणा की अभिनव परंपरा संघ में शुरू की. इस चिरपुरातन एवं नित्यनूतन हिन्दू समाज को सतत् प्रेरणा देने वाले, प्राचीन एवं सार्थक प्रतीक के नाते भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर स्थापित करने का उनका विचार, उनके दूरदृष्टा होने का परिचायक है. व्यक्ति चाहे कितना भी श्रेष्ठ क्यों ना हो, व्यक्ति नहीं, तत्वनिष्ठा पर उनका बल रहता था. इसके कारण ही आज 9 दशक बीतने के बाद भी, सात–सात पीढ़ियों से संघ कार्य चलने के बावजूद संघ कार्य अपने मार्ग से ना भटका, ना बंटा, ना रुका.

संघ संस्थापक होने का अहंकार उनके मन में लेशमात्र भी नहीं था. इसीलिए सरसंघचालक पद का दायित्व सहयोगियों का सामूहिक निर्णय होने कारण 1929 में उसे उन्होंने स्वीकार तो किया, परन्तु 1933 में संघचालक बैठक में उन्होंने अपना मनोगत व्यक्त किया. उसमें उन्होंने कहा –

"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्मदाता या संस्थापक मैं ना हो कर आप सब हैं, यह मैं भली-भांति जानता हूँ. आप के द्वारा स्थापित संघ का, आपकी इच्छानुसार, मैं एक दाई का कार्य कर रहा हूँ. मैं यह काम आपकी इच्छा एवं आज्ञा के अनुसार आगे भी करता रहूँगा तथा ऐसा करते समय किसी प्रकार के संकट अथवा मानापमान की मैं कतई चिंता नहीं करूँगा.

आप को जब भी प्रतीत हो कि मेरी अयोग्यता के कारण संघ की क्षति हो रही है, तो आप मेरे स्थान पर दूसरे योग्य व्यक्ति को प्रतिष्ठित करने के लिए स्वतंत्र हैं. आपकी इच्छा एवं आज्ञा से जितनी सहर्षता के साथ मैंने इस पद पर कार्य किया है, इतने ही आनंद से आप द्वारा चुने हुए नए सरसंघचालक के हाथ सभी अधिकार सूत्र समर्पित करके उसी क्षण से उसके विश्वासु स्वयंसेवक के रूप में कार्य करता रहूँगा. मेरे लिए व्यक्तित्व के मायने नहीं है; संघ कार्य का ही वास्तविक अर्थ में महत्व है. अतः संघ के हित में कोई भी कार्य करने में मैं पीछे नहीं हटूंगा"

संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार के ये विचार उनकी निर्लेप वृत्ति एवं ध्येय समर्पित व्यक्तित्व का दर्शन कराते है. सामूहिक गुणों की उपासना तथा सामूहिक अनुशासन, आत्मविलोपी वृत्ति स्वयंसेवकों में निर्माण करने हेतु भारतीय परंपरा में नए ऐसे समान गणवेश, संचलन, सैनिक कवायद, घोष, शिविर आदि कार्यक्रमों को संघ कार्य का अविभाज्य भाग बनाने का अत्याधुनिक विचार भी डॉक्टर जी ने किया. संघ कार्य पर होने वाली आलोचना को अनदेखा कर, उसकी उपेक्षा कर वादविवाद में ना उलझते हुए सभी से आत्मीय सम्बन्ध बनाए रखने का उनका आग्रह रहता था.

"वादो नाSवलम्ब्यः" और "सर्वेषाम् अविरोधेन" ऐसी उनकी भूमिका रहती थी. प्रशंसा और आलोचना में - दोनों ही स्थिति में डॉ. हेडगेवार अपने लक्ष्य, प्रकृति और तौर तरीकों से तनिक भी नहीं डगमगाते. संघ की प्रशंसा उत्तरदायित्व बढाने वाली प्रेरणा तथा आलोचना को आलोचक की अज्ञानता का प्रतीक मान कर वह अपनी दृढ़ता का परिचय देते रहे.

1936 में नासिक में शंकराचार्य विद्याशंकर भारती द्वारा डॉक्टर हेडगेवार को "राष्ट्र सेनापति" उपाधि से विभूषित किया गया, यह समाचार, समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ. डॉक्टर जी के पास अभिनन्दन पत्र आने लगे. पर उन्होंने स्वयंसेवकों को सूचना जारी करते हुए कहा कि "हम में से कोई भी और कभी भी इस उपाधि का उपयोग ना करे. उपाधि हम लोगों के लिए असंगत है." उनका चरित्र लिखने वालों को भी डॉक्टर जी ने हतोत्साहित किया. "तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें ना रहें" यह परंपरा उन्होंने संघ में निर्माण की.

शब्दों से नहीं, आचरण से सिखाने की उनकी कार्य पद्धति थी. संघ कार्य की प्रसिद्धि की चिंता ना करते हुए, संघ कार्य के परिणाम से ही लोग संघ कार्य को महसूस करेंगे, समझेंगे तथा सहयोग एवं समर्थन देंगे, ऐसा उनका विचार था. "फलानुमेया प्रारम्भः" याने वृक्ष का बीज बोया है इसकी प्रसिद्धि अथवा चर्चा ना करते हुए वृक्ष बड़ा होने पर उसके फलों का जब सब आस्वाद लेंगे तब किसी ने वृक्ष बोया था, यह बात अपने आप लोग जान लेंगे, ऐसी उनकी सोच एवं कार्य पद्धति थी.

इसीलिए उनके निधन होने के पश्चात् भी, अनेक उतार-चढाव संघ के जीवन में आने के बाद भी, राष्ट्र जीवन में अनेक उथल-पुथल होने के बावजूद संघ कार्य अपनी नियत दिशा में, निश्चित गति से लगातार बढ़ता हुआ अपने प्रभाव से सम्पूर्ण समाज को स्पर्श और आलोकित करता हुआ आगे ही बढ़ रहा है. संघ की इस यशोगाथा में ही डॉक्टर जी के समर्पित, युगदृष्टा, सफल संगठक और सार्थक जीवन की यशोगाथा है.

डॉक्टर हेडगेवार जी के गौरवमय जीवन के 125 वर्ष पूर्ण होने के पावन पर्व पर उनके चरणों में शत-शत नमन.

(लेखक: संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख)


Shailesh Kumar invited you to his event



भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में जुलूस एवं सभा :


Saturday, February 28 at 12:00am



Assi Ghat Varanasi in Varanasi, India








  



  








स्थान - अस्सी घाट, वाराणसी तिथि एवं समय - २८ फरवरी २०१५ , १२ बजे से वक्तागण - राजीव चंदेल , गम्भीरा प्रसाद ,राम कैलास कुशवाहा ,राजबहादुर पटेल नोट-जुलूस मुख्या द्वार (बीएचयू) से निकलेगा और अस्सी घाट...

Bhagat Singh Chhatra Morcha and 44 others are also in the guest list.

       




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प्रधानमंत्री मोदी ने कोऑपरेटिव फेडरलिज्म को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय विकास में राज्यों को भागीदार बनाने के अपने वादे को पूरा कर दिया है...

अपनी 8 स्कीमें बंद कर सकता है केंद्र

पीएम मोदी ने सबको साथ लेकर चलने के अपने वादे को पूरा कर दिया है। उन्होंने 14वें वित्त आयोग के सुझावों...

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कारपोरेट दलाल मोदी सरकार के 'अध्यादेशराज' के खिलाफ दिल्ली में गूंजी किसानों की आवाज़

Posted by संघर्ष संवाद on बुधवार, फ़रवरी 25, 2015 | 0 टिप्पणियाँ


24 फ़रवरी 2015 को देश के कोने-कोने से जबरिया भू-अधिग्रहण के खिलाफ 350 से भी ज्यादा जनांदोलनों के मोर्चे पर संघर्ष करते किसानों और समाजकर्मियों के कारवां ने राजधानी दिल्ली में मजबूत दस्तक दी. उड़ीसा के पोस्को से लेकर हरियाणा तक के किसानों का हुजूम जब दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचा तो राजधानी में सियासी सरगर्मियां तेज हो गईं और मोदी सरकार अपना बचाव करती नज़र आई. वहीं आन्दोलनों में आपसी तालमेल और नामी चेहरों के मौजूदगी के बावजूद अपना सामूहिक नेतृत्व बनाए रखने की परिपक्वता भी दिखाई दी.


जंतर मंतर पर कल दो स्टेज बने हुए थे और अन्ना को अपना स्टेज छोड़कर देशभर से आए भू-अधिग्रहण विरोधी आन्दोलनों के साझा मंच पर आना पड़ा। इस तरफ लोग ज़्यादा थे और लगाम वाम/जनांदोलनों के हाथ में थी. भू-अधिग्रहण बिल को पूरी तरह खारिज करने की मांग पर आम सहमति थी, झंडों और संगठनों की विविधता के पार. देश के किसान और मजदूरों की एकताबद्ध कतारें साफ़ इशारा कर रहीं थीं कि ज़मीन के मुद्दे पर अब भारत के गाँवों का धीरज टूट चूका है और वे आर-पार की लड़ाई की मुद्रा में हैं.


देश का संविधान सभी देशवासियों के लिए समता, न्याय, भाईचारा और समाजवाद के मूल्यों पर आधारित है, फिर भी इस देश के किसान, खेत मजदूर, व अन्य श्रमिक तबके पिछले कई दशकों से विस्थापन, बेकारी व बदहाली से त्रस्त हैं. प्रकृत पर निर्भर रहते हुए अपनी मेहनत पर जीने वाले देश के ये समुदाय अपने हकों के लिए संघर्ष करते हुए समय-समय पर चुने हुए जन प्रतिनिधियों व देश की सरकारों को जनपक्षधर कानून बनाने के लिए मजबूर करते रहे हैं.


ब्रिटिशों द्वारा बनाए गए भू-अधिग्रहण कानून-1894 के खिलाफ इस देश की जनता द्वारा देश भर में चलाये गए जनांदोलनों के बाद पिछली संप्रग सरकार उस कानून को बदल कर भू-अधिग्रहण कानून-2013 को लाने के लिए बाध्य हुई थी. जनांदोलनों की मांग थी कि भू-अधिग्रहण की कार्यवाही शुरू होने से पहले जनतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ग्राम सभा, शहरों की बस्ती सभा तथा प्रभावित होने वाले किसान, मजदूर, मछुआरों की सहमती लेना जरुरी होना चाहिए, प्रत्येक परियोजना में न्यूनतम विस्थापन तथा विस्थापितों की आजीविका सुनिश्चित होनी चाहिए, खेती योग्य ज़मीनें गैर कृषि कार्यों के लिए न दी जाए, उद्योग बंजर ज़मीनों पर ही लगाए जाएँ और अर्जेंसी धारा का उपयोग आपदा की स्थिति में ही किया जाय, किसानों व आदिवासियों से भूमि जबरन छीनकर पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को औद्योगीकरण के नाम पर अय्याशी और ज़मींदारी को बढ़ावा देने के लिए आवंटित करना बंद हो, भूमि व चारागाहों पर भूमिहीनों, समुन्द्र तट पर मछुआरों के हकों को मान्यता देते हुए किसानों के साथ उन्हें भी विकास नियोजन की प्रक्रिया में सहभागी बनाया जाए.  


क्या हैं भू-अधिग्रहण कानून-2013 के प्रावधान?

जनांदोलनों की मांगों में से कुछ को वर्ष 2013 में बने भू-अधिग्रहण कानून में समाहित किया गया, जबकि अधिकांश मांगों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया. इस कानून में निजी और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की परियोंजनाओं में प्रभावित होने वाले 70 प्रतिशत किसानों से भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में सहमती लेने, अन्न सुरक्षा की दृष्टि से बहुफसली ज़मीनों का अधिग्रहण न करने व ग्रामसभाओं की सहभागिता से परियोजनाओं के सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन का अध्ययन करने तथा केवल प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ही अर्जेसी धारा का उपयोग करने के प्रावधान नए कानून में शामिल किये गए.

2013 के कानून में पुनर्वास को भू-अर्जन से तो ज़रूर जोड़ा गया, लेकिन प्रभावितों के वैकल्पिक आजीविका के प्रश्न को हल नही किया गया. किसी तरह से सिंचाई परियोजनाओं से विस्थापित हुए एस.सी/एस.टी. परिवारों को ढाई एकड़ व अन्य परिवारों को मात्र 1 एकड़़ ज़मीनें और संभव हुआ तो प्रभावित परिवारों के नौजवानों को नौकरी अन्यथा नौकरी देने के बदले पांच लाख रुपये देने, अधिग्रहित ज़मीनों का मुआवजा 'मार्किट या सरकारी रेट' से दो से चार गुना तक बढाकर देने का प्रावधान रखा गया. इस कानून में मौजूद उन जमीन मालिकों को 'जमीन वापसी' का प्रावधान महत्वपूर्ण है जहां पांच या अधिक साल पहले भू-अर्जन होने के बाद भी ज़मीन मूल मालिक के कब्जे में ही रही हो और उन्होंने मुआवजा नही स्वीकार किया


अध्यादेश ने मूल जनतांत्रिक नियोजन को खतम किया

नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा सत्ता में आते ही शुरू किये गए अध्यादेश राज ने इस क़ानून की जन पक्षधर प्रावधानों को खतम किया है. भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में निजी परियोजनाओं के लिए भी भूमि अधिग्रहण के सम्बन्ध में भूमिधर किसानों की सहमती को ज़रूरी नही माना गया है, तथा अध्यादेश खेती की बहुफसली ज़मीन को भी उद्योगों के लिए देने का प्रावधान रखता है. इसमें कंपनियों के लिए हर प्रकार की शासकीय व पीपीपी परियोजनाओं, निजी अस्पताल व स्कूल जैसी संस्थाओं इत्यादि के लिए ज़मीनें अधिग्रहित करने की छूट दी है.


यद्यपि अध्यादेश में पुनर्वास हेतु मुआवजा देने का प्रावधान बरकरार रखा गया है, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि बढ़ा हुआ मुआवजा भी वैकल्पिक आजीविका नही दे सकता है. केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा ये अध्यादेश लाये गए हैं ताकि उद्योगपतियों व देशी विदेशी कम्पनियों व बिल्डरों को औद्योगिक कॉरिडोरों को बनाने, खदान खोलने, गरीबों के लिए सस्ते आवास निर्माण के नाम पर रियल स्टेट बनाने व इससे मुनाफा कमाने के लिए जमीनें किसानों से छीन कर उन्हें दी जा सकें. अकेले दिल्ली-मुम्बई कॉरीडोर के लिए ही 390,000 वर्ग हेक्टयर क्षेत्रफल की कृषि योग्य ज़मीनें किसानों के हाथों से निकल कर कंपनियों के हाथों में चली जायेंगीं.


आज चेन्नई, मुम्बई, हैदराबाद व रांची जैसे शहरों की बस्तियों पर बुलडोजरों के हमले तेज हो चले हैं. राज्यों की राजधानियों के विस्तार और चकाचौंध बढ़ाने के नाम पर आम जनता की हजारों हेक्टयर जमीनों की लूट जारी है. हैदराबाद व रायपुर जैसे शहरों में अम्बानी, अदानी, टाटा, मित्तल जैसे नए जमींदारों की ज़मींदारी को समृद्ध और सुरक्षित करने के लिए प्रकृति पर जीने वाले समाजों को ध्वस्त किया जा रहा है, और साथ ही पर्यावरणीय कानून, कानूनी मंजूरियों के प्रावधान, श्रम कानून, वनाधिकार कानून, रोजगार गारंटी व खाद्य सुरक्षा जैसे कानूनों को भी बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है.   


साथियों, देश की वर्तमान केंद्र सरकार जाति व मजहब के नाम पर समाज को बांटते हुए और साथ ही सेक्युलर, समाजवादी और न्यायपूर्ण संविधान को नकारते हुए देश की सम्पदा देशी-विदेशी-कंपनियों के हांथों में हस्तानांतरित कर रही है, जो कि जनता, जनतंत्र और देश के संविधान की घोर अवमानना है. इसलिए आज समय की मांग है कि सरकार द्वारा लाये गए जनविरोधी अध्यादेशों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में उतरा जाए.

हम इसे बर्दाश्त नही करेंगें-

  • जनविरोधी अध्यादेश को रद्द किया जाए.

  • इन अध्यादेशों को संसद द्वारा कानून में न बदला जाए.

  • किसानों और मछुआरों से भूमि छीनना बंद किया जाए, और जबरन भूमि अधिग्रहण पर प्रभावी रोक लगाई जाए.

  • शासन और विकास के कारपोरेटीकरण पर लगाम लगाकर गावों और बस्तियों को उजाड़ने पर रोक लगाई जाए.

हजारों हजारों की उठेगी आवाज, खत्म होगा पूंजी का राज !

खत्म करो अध्यादेश राज !!

जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय वन श्रम जीवी मंच, राष्ट्रीय किसान मज़दूर संगठन, एकता परिषद्, युवा क्रान्ति, जन संघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, जनपहल, किसान संघर्ष समिति, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, इन्साफ, दिल्ली समर्थक समूह, घर बचाओ - घर बनाओ आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, अखिल भारतीय किसान सभा, किसान मंच


तस्वीरें- अभिषेक श्रीवास्तव और कुमार सुन्दरम















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  3. न्यूज़ अलर्ट: नीतीश लेंगे सीएम पद की शपथ

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    पटना के गांधी मैदान में आयोजित होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में कई खास मेहमान हिस्सा लेने वाले हैं जिनमें कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा ... केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर पुनर्विचार के मूड में दिख रही है.
  4. …तो इसलिए सैफई तिलक में पहुंचे मोदी

    i watch-22/02/2015
    हालांकि मुलायम भी भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं लेकिन यह अभी साफ नहीं है कि वह जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे या नहीं? मोदी ... राष्ट्रपति भवन में मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भी मुलायम पहुंचे थे।
  5. Sahara Samay

    'भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन ...

    News18 Hindi-16/02/2015
    #लखनऊ #उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय लोकदल पूरे देश में भाजपा द्वारा लाए गए भूमिअधिग्रहण संशोधन अध्यादेश के खिलाफ आंदोलन करेगी। रालोद के अध्यक्ष ... इनके अलावा की पूर्व विधायकों ने भी रालोद की सदस्यता ग्रहण की। आप hindi.news18.com ...
  6. भूमि अधिग्रहण 'अध्यादेश' की जरूरत क्यों पड़ी

    पंजाब केसरी-04/01/2015
    अध्यादेश जारी करने की जरूरत इसलिए पड़ी कि इस प्रकार की अधिसूचना संसद के जुलाई-अगस्त 2014 बजट सत्र से पहले दायर की जानी थी और ... इसके बाद कानून में प्रावधान है कि इस भूमि ग्रहण के सामाजिक प्रभाव का विस्तृत अध्ययन करवाया जाए।
  7. पंजाब ड्रग मामले में मजीठिया से पूछताछ करने वाले ...

    ABP News-17/01/2015
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  9. रनों का रिकॉर्ड बना बोर्डर-गावस्कर ट्रॉफी

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